आयकर ब्याज माफ करने का अधिकार दिया नौकरशाहों को
हरनाम सिंह
वर्षों तक चंदे के लिए इलेक्ट्रोल बांड का उपयोग कर चुनाव में सफलता प्राप्त कर रही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को तब झटका लगा था, जब सर्वोच्च न्यायालय ने धन संग्रह के इस माध्यम को अवैध घोषित कर इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। शासकीय विभागों की शक्तियों उनके अधिकारों का अपने दलीय हितों में दोहन करने में माहिर भाजपा ने इलेक्ट्रॉल बांड का विकल्प खोज लिया है। चुनाव में अब भाजपा को धन की कमी नहीं होगी। सरकार ने समय पर आयकर न चुका पाने वालों से ब्याज न लेने या उसे माफ करने का अधिकार आयकर अधिकारियों को सौंप कर अपने लिए चंदे का पुख्ता इंतजाम कर लिया है।
#स्व विवेक का अधिकार
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने 4 नवंबर 2024 को एक परिपत्र क्रमांक 15 /2024 जारी किया है। जिसके अनुसार आयकर अधिनियम 1961 की धारा 220 (2) के तहत कर अधिकारियों को भुगतान में असफल पूंजी पतियों, कंपनियां को ब्याज माफ करने या कम करने का अधिकार होगा। इसके लिए पात्रता के नियम भी तय किए गए हैं।
आयकर अधिनियम की धारा 220 (2 ए )के तहत यदि कोई कर दाता किसी डिमांड नोटिस में निर्दिष्ट कर राशि के भुगतान में विफल रहता है तो उसे भुगतान में देरी की अवधि के लिए एक प्रतिशत राशि प्रति माह की दर से ब्याज का भुगतान करना होता है। जो कंपनी अथवा व्यक्ति भुगतान नहीं करता है उस पर ब्याज राशि कम करने अथवा माफ करने के लिए अधिकारियों को स्व विवेक से निर्णय का अधिकार दिया है, जिसके तहत अधिकारियों की रैंक के अनुसार प्रधान मुख्य आयुक्त डेढ़ करोड़ रुपए और उससे अधिक की धनराशि। मुख्य आयुक्त 50 लाख से डेढ़ करोड़ की धनराशि तथा प्रधान आयुक्त को 50 लाख रुपए बकाया ब्याज माफ करने अथवा कम करने का अधिकार होगा।
#पात्रता की शर्तें
परिपत्र में जारी निर्देशों के अनुसार इस छूट के लिए तीन शर्ते निर्धारित की गई है
1. राशि के भुगतान से कर दाता को वास्तविक कठिनाई हुई हो या होगी।
2. ब्याज भुगतान में चूक, कर दाता के नियंत्रण से परे हो, किन्हीं पारिस्थिति के कारण हुई थी।
3. कर दाता ने कर निर्धारण से संबंधित जांच या उस हेतु वसूली की कार्यवाही में सहयोग किया हो।
सरकार के इस निर्णय का कारपोरेट जगत ने स्वागत किया है। उल्लेखनीय है कि राजीव गांधी सरकार में वित्त मंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने स्व विवेक के इस अधिकार को वापस ले लिया था। उस दौरान कोई भी चूककर्ता चाहे वह कितना ही प्रभावशाली पूंजीपति अथवा नेता क्यों न हो सभी को बकाया कर राशि पर ब्याज चुकाना ही पड़ता था।
आलोचकों के अनुसार सरकार का यह निर्णय रिश्वतखोरी को बढ़ावा देने के प्रयास के रूप में देखा जाएगा। ब्याज माफ करने के लिए पात्रता की लचर शर्तें ही इसे प्रमाणित करती है।
सरकार अधिकारियों के माध्यम से उन पूंजी पतियों से सौदेबाजी करेगी जो ब्याज माफी चाहेंगे। इस सौदेबाजी में पूंजीपतियों को तो लाभ होगा ही साथ ही अधिकारियों के माध्यम से भाजपा भी धन वसूली कर सकेगी।
वरिष्ठ पत्रकार विष्णु बैरागी के अनुसार सरकार के पास देश के बकायेदारों की सूची है। अब अधिकारियों से वसूली अभियान चलाने के लिए कहा जाएगा। कर अधिकारियों की भूमिका कमीशन एजेंट अथवा दलाल की होकर रह जाएगी। सरकार का यह आदेश इलेक्ट्रोल बांड वापसी के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा चंदा वसूली में कानूनी तरीके का उपयोग करेगी। जिसमें किसी न्यायालय का दखल देना भी मुश्किल होगा। श्री बैरागी के अनुसार रिश्वतखोरी के लिए कानूनी रास्ते तलाश करने में मोदी सरकार ने रिकॉर्ड कायम किया है।
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