वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री और शिव शंकर हेड़ा के अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष रहते हुए ही तेलंगाना सरकार को 5 हजार वर्ग मीटर भूमि का आवंटन हुआ है।
कांग्रेस शासन में तो सिर्फ संशोधित मानचित्र स्वीकृत हुआ है।
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एस पी मित्तल, अजमेर
अजमेर के जागरूक नागरिक राजेंद्र लालवानी ने 20 जनवरी को मुझे 24 जून 2018 वाला मेरा ब्लॉक संख्या 4244 भेजा है। सबसे पहले तो मैं आदरणीय लालवानी जी का आभार प्रकट करना चाहता हूं कि उन्होंने चार वर्ष पुराना मेरा ब्लॉग संभाल कर रखा और मौका आने पर मुझे ही पढ़ने के लिए भेज दिया। 24 जून 2018 वाले इस ब्लॉग को मैं ज्यों का त्यों अपने फेसबुक पेज www.facebook.com/SPMittalblog पर आज फिर पोस्ट कर रहा हंू। यह ब्लॉग अजमेर में बनने वाले तेलंगाना हाउस से संबंधित है। इस ब्लॉग को उन भाजपा नेताओं को पढ़ना चाहिए जो आज तेलंगाना हाउस का विरोध कर रहे हैं। असल में तेलंगाना हाउस के लिए अजमेर के कोटड़ा क्षेत्र में पांच हजार वर्ग मीटर भूमि का आवंटन तब हुआ, जब राजस्थान में वसुंधरा राजे भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री थीं और अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष की कुर्सी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अजमेर महानगर के संघ चालक रहे शिव शंकर हेड़ा विराजमान थे। तब किसी भी भाजपाई नेता को अजमेर में तेलंगाना हाउस के बनने पर एतराज नहीं था। यही वजह रही कि 8 मार्च से 18 जून 2018 तकी चार माह की अवधि में पांच हजार वर्ग मीटर भूमि के चिन्हीकरण से लेकर भूमि का कब्जा सौंपते तक का कार्य हो गया। इस चार माह की अवधि में भूमि आवंटन की फाइल दो बार राज्य सरकार की स्वीकृति के लिए जयपुर भी गई। प्राधिकरण की जिस बोर्ड बैठक में भूमि आवंटन का निर्णय हुआ, उसके सदस्य भी भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी और श्रीमती अनिता भदेल थीं। तब देवनानी और भदेल स्वतंत्र प्रकार के राज्य मंत्री भी थे। अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा के आदेश से ही 2 करोड़ 40 लाख 35 हजार रुपए की राशि तेलंगाना सरकार ने जमा करवाई। असल में यह भूमि आवंटन राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के बीच आपसी समझौते के तहत हुआ। जब वसुंधरा राजे ने तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में राजस्थान हाउस के लिए भूमि मांगी तो चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना से ख्वाजा साहब की दरगाह में जियारत के लिए आने वाले जायरीन के लिए अजमेर में भूमि मांगी। चंद्रशेखर राव के प्रस्ताव पर वसुंधरा राजे ने मात्र चार माह की अवधि में तेलंगाना सरकार को भूमि का कब्जा दिया। कांग्रेस के शासन में तो अभी 8 जनवरी को सिर्फ संशोधित चित्र स्वीकृत हुआ है। भाजपा अब इसे मुद्दा बनाकर भूमि आवंटन को निरस्त करने की मांग कर रही है। भाजपा नेताओं का मानना है कि तेलंगाना हाउस बनने से कोटड़ा क्षेत्र का माहौल खराब होगा। सवाल उठता है कि भाजपा नेताओं को यह आशंका 2018 में भूमि आवंटन के समय नजर क्यों नहीं आई। भाजपा के नेता अब भले ही राजनीतिक कारणों से तेलंगाना हाउस का विरोध करें, लेकिन नैतिक आधार पर विरोध करने का अधिकार भाजपा नेताओं को नहीं है।