संघ की चुप्पी पर उठ रहे सवाल*
*विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन*
हाल ही में भाजपा केंद्रीय संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को बाहर का रास्ता दिखाकर सभी को चौंका दिया है। शीर्षस्थ दल ने शिवराज सिंह चौहान के स्थान पर पूर्व राज्यसभा सांसद सत्यनारायण जटिया और नितिन गडकरी के स्थान पर महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फण्डवीस को स्थान दिया है। बीजेपी के कुछ लोगों का कहना है कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी का शीर्षस्थ दल ने चुनाव की जमावट की है। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। दरअसल इस समय बीजेपी सिर्फ हम दो हमारे दो की राह पर चल पड़ी है। हम दो में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह हैं वहीं हमारे दो में उदयोगपति गौतम अडानी और मुकेश अंबानी हैं। मोदी सरकार के फैसलों से तो यही लगता है। हाल ही लिया गया फैसला यही दर्शाता है कि बीजेपी में मोदी और शाह के अलावा किसी को भी आगे बढ़ने का अवसर नहीं दिया जायेगा। इस समिति से गडकरी को निकालना कहीं न कहीं मोदी सरकार की बदले की भावना से उठाया गया कदम है। पिछले दिनों ही गडकरी ने राजनीति को लेकर एक बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि अब राजनीति देश के लिए नहीं सत्ता के लिए हो गई है। उन्होंने कहा कि अब मन करता है कि राजनीति छोड़ दूं। यह बयान उन्होंने नागपुर में ही दिया था। यह बयान सीधे-सीधे तौर पर मोदी सरकार पर हमला ही है। इससे जाहिर हो रहा था कि गडकरी और सरकार के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह की यह रणनीति पूरी तरह से राजनीति से जुड़े लोगों के समझ से परे है। अब कोई इसे शिवराज और नितिन गडकरी के पर कतरने से जोड़कर देख रहा है तो कोई इसे नये चेहरों को मौका देने से जोड़कर देख रहा है। कुल मिलाकर हकीकत क्या है इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा। लेकिन एक बात तो यह तय है कि भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी में इस तरह से अचानक बदलाव कहीं न कहीं मोदी, शाह और नड्डा की मनमानी की ओर इशारा कर रहा है। इस फैसले में मोदी और शाह की तानाशाही साफ झलक रही है। इसे संघ को रोकना होगा।
*शिवराज को बाहर करने के क्या हैं मायने*
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आज की स्थिति में एक सीनियर नेता के रूप में स्थापित हो गये हैं। उन्होंने प्रदेश में लगभग 15 साल तक मुख्यमंत्री का पद संभाला है और प्रदेश में पार्टी को मजबूत स्थिति में स्थापित किया है। ऐसी स्थिति में शिवराज को केन्द्रीय संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से बाहर किया जाना कई सवाल पैदा कर रहा है। शिवराज का बाहर होना किसी रणनीति को हिस्सा नहीं है बल्कि मोदी शाह की व्यक्तिगत इच्छा कहा जा सकता है। शिवराज जैसे अनुभवी और काबिल सीएम को इस तरह से बाहर करना निश्चित ही पार्टी के अंदर कई सवाल खड़े कर रहा है। शिवराज 2013 से इन समितियों के सदस्य रहे हैं। हालांकि कहा यह जा रहा है कि किसी भी मुख्यमंत्री को इन समितियों में नहीं रखा गया है। आखिर सवाल उठता है किे मुख्यमंत्रियों को इन समितियों में रखने से क्या नुकसान होने वाला है। यह बोर्ड काफी ताकतवर होता है और इस बोर्ड के बाहर होने के साथ ही इन नेताओं के आगे बढ़ने के रास्ते भी कष्टदायी हो गये हैं। कहीं यही कारण रहा है कि मोदी शाह नहीं चाहते कि इनके रहते कोई आगे नहीं बढ़ सकें।
*यह भी हो सकता है महत्वपूर्ण कारण*
सूत्रों के अनुसार मोदी, शाह और नड्डा को शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी के बढ़ते कद से कहीं न कहीं अंदर ही अंसतोष है। उन्हें यह भय सताने लगा है कि कहीं आगामी लोकसभा चुनाव में ये दोनों ही प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पेश न करने लगे। जबकि अभी तक जो बातें सामने आ रही है उसमें यही कहा जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के स्थान पर अगर किसी को बैठाने की तैयारी है तो वो है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। जबकि तीनों ही प्रत्याशियों में अगर प्रधानमंत्री पद के लिए किसी का पलड़ा भारी है तो वो है योगी आदित्यनाथ। इसका बड़ा कारण है कि नितिन गडकरी खुद राजनीति से संन्यास लेने की इच्छा पहले ही जाहिर कर चुके हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अब तक प्रधानमंत्री पद की कोई इच्छा जाहिर नहीं की है।
*संघ की चुप्पी पर खड़े हो रहे सवाल*
भारतीय जनता पार्टी संघ समर्थित पार्टी मानी जाती हैं। ऐसे में अब तक मोदी और शाह की कार्यशैली पर संघ की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। जबकि गडकरी पूरी तरह से संघ समर्पित चेहरा हैं और संघ के समर्थन के बाद ही उन्हें केंद्रीय मंत्री पद दिया गया था। संघ खुद भी गडकरी को प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश करने के लिए कई बार इशारा कर चुके हैं। लेकिन गडकरी के साथ हुए इस दुर्व्यवहार पर अब तक संघ की चुप्पी कई सवालियां निशान खड़े कर रही है। यही नहीं शिवराज सिंह चौहान भी संघ के करीबी मानें जाते हैं। लेकिन उनको भी बाहर का रास्ता दिखाने के बाद संघ ने अब तक किसी प्रकार का कोई सवाल-जबाव मोदी और शाह से नहीं किया यह आश्चर्य करने वाली बात है। कुल मिलाकर देश में इन दिनों मोदी और शाह की जुगलबंदी इस तरह हावी है कि इनके बीच कोई भी कुछ भी बोलने को लेकर तैयार नहीं है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब कार्यकर्ताओं के मन से भाजपा के लिए विश्वास बनाए रखना मुश्किल हो जायेगा।
*वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ हुआ धोखा*
अगर हम भाजपा के इतिहास की बात की जाये तो यह वही पार्टी है जहां एक छोटा सा कार्यकर्ता अपनी मेहनत के बल पर पार्टी के सर्वोच्च पद तक पहुंचने की ताकत रखता है। यहां कोई परिवारवाद नहीं है, जातिवाद नहीं है, धर्मवाद नहीं है। लेकिन पिछले कुछ समय की बात करें तो नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के आने के बाद पार्टी में एक अलग ही बदलाव देखने को मिल रहा है। अब यहां वही होता है जो यह दोनों चाहते हैं। अगर इनकी इच्छा होगी तो नड्डा राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे, अगर इच्छा नहीं होगी तो चंद मिनटों में उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा। हालांकि सूत्रों की मानें तो मोदी और शाह की इच्छानुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल आगे बढ़ाये जाने के संकेत मिल गये हैं। नड्डा के अध्यक्ष पद के लिए अब केवल आदेश जारी करना बाकी है। बाकी तीनों की तिकड़ी ने मिलकर यह निर्णय लिया है कि नड्डा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहने दिया जाये।