भोपाल। मप्र में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक पार्टियों की तैयारी परवान चढ़ती जा रही है। खासकर भाजपा और कांग्रेस सरकार बनाने के लिए चुनावी तैयारी कर रहे हैं। इसी कड़ी में भाजपा का लक्ष्य है कि गुजरात की तरह ही मप्र में भी रिकॉड जीत दर्ज की जाए। इसके लिए पार्टी की रणनीति है कि पुराने चावलों को विधानसभा के मोर्चे पर उतारा जाए। पार्टी सूत्रों के अनुसार क्षेत्रीय, जातिय समीकरणों को देखते हुए भाजपा आगामी चुनाव में सांसदों को विधानसभा का टिकट देने की रणनीति पर काम कर रही है। गौरतलब है की मप्र भाजपा के कई सांसद भी विधानसभा चुनाव लडऩे की मंशा जाहिर कर चुके हैं। 2018 के चुनाव से सबक लेते हुए भाजपा इस बार केवल उन्हीं चेहरों पर दांव लगाएगी जो जीताऊ हैं। वहीं पार्टी अपने कुछ सांसदों को भी उतार सकती है।
भाजपा इस बात का पता लगा रही है कि सांसदों को उतारने से जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन से जुड़े क्या फायदे हो सकते हैं। भाजपा इस कवायद के जरिए मुख्यतौर पर जातीय संतुलन और जीत की संभावना को बढ़ाने की कोशिश भी कर रही है। भाजपा सूत्रों के अनुसार इस बार गणेश सिंह, राव उदयप्रताप, अनिल फिरोजिया, रमाकांत भार्गव, रोडमल नागर, रीति पाठक, केपी यादव, दुर्गादास उइके, गजेंद्र सिंह पटेल और जीएस डामोर जैसे सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारे जाने की चर्चा हैं। ये नेता एक से तीन बार तक के सांसद हैं। इनके अलावा भाजपा भिंड की सांसद संध्या राय, ग्वालियर के विवेक नारायण शेजवलकर, सागर के राजबहादुर सिंह, रीवा के जनार्दन मिश्रा, भोपाल की साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और इंदौर के शंकर लालवानी को भी विधानसभा चुनाव लड़वाने की संभावना तलाश रही है।
प्रज्ञा देंगी नेता प्रतिपक्ष को चुनौती
भाजपा जिस रणनीति पर काम कर रही है, उसके अनुसार भोपाल की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाने की तैयारी है। भोपाल में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बाद अब भाजपा प्रज्ञा के जरिए नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह को घेरने की तैयारी कर रही है। लहार ऐसी विधानसभा सीट है, जहां पर भाजपा आज तक जीत हासिल नहीं कर पाई है। इस बार भाजपा किसी भी तरह से लहार के सियासी किले में अपना परचम लहराना चाहती है। पार्टी ने इसके लिए भोपाल की सांसद प्रज्ञा को चुना है। पार्टी सूत्रों की मानें तो पार्टी ने प्रज्ञा को लहार से उतारने की पूरी तैयारी कर ली है।
पार्टी में इसको लेकर मंथन भी चल रहा है। क्योंकि पार्टी प्रज्ञा को उतारने से पहले पूरा सियासी नफा-नुकसान देखना चाहती है। प्रज्ञा मूल रूप से भिंड जिले की रहने वाली हैं और लहार विधानसभा सीट भी भिंड में आती है। प्रज्ञा के जरिए पार्टी आक्रामक हिंदुत्व का कार्ड खेलना चाहती है। इसी रास्ते पर चलकर पार्टी ने प्रज्ञा को भोपाल लोकसभा सीट से दिग्विजय के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा था और बड़ी जीत भी हासिल हुई थी। यह स्थिति तब थी, जब दिग्विजय के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के दिग्गज और ताकतवर नेता तैयार नहीं थे। दिग्विजय के बाद अब पार्टी प्रज्ञा के जरिए लहार सीट पर मध्यप्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष डा. गोविंद सिंह को भी घेरने की तैयारी है। पार्टी को उम्मीद है कि इस रास्ते पर चलकर लहार में जीत का परचम लहराया जा सकता है।
तैयार कराई जा रही है रिपोर्ट
पार्टी सूत्रों की मानें तो कुछ सांसदों ने खुद ये इच्छा जाहिर की है। पार्टी अभी हार-जीत की संभावनाएं खोज रही है। पार्टी अंदरूनी तौर पर सांसदों की छवि और उनके प्रभाव वाले इलाकों में पकड़ को लेकर भी रिपोर्ट तैयार करा रही है। दरअसल, भाजपा का पूरा फोकस विधानसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीटें जीतकर सत्ता हासिल करने पर है। निकाय पंचायत चुनाव के दौरान भाजपा को कई जिलों से मैदानी स्थिति की रिपोर्ट मिल चुकी है। वहीं कई विधायकों की स्थिति संतोषजनक नहीं है। कांग्रेस की विधायकी छोडक़र भाजपा में जो लोग आए उनमें से 3 मंत्री सहित 11 तो उपचुनाव में ही हार गए थे। लेकिन जो भाजपा के टिकट पर चुन लिए गए हैं , फिर भी अगले चुनाव में उनके टिकट को लेकर अनिश्चय बना हुआ है। क्योंकि उन सभी सीटों के पुराने नेता भी अब पूरी ताकत से अपनी दावेदारी जताएंगे। ऐसे में पार्टी ने अपने कई सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ा सकती है।
क्षेत्रीय और जातीय संतुलन बिठाने की कोशिश
अपने सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारकर भाजपा क्षेत्रीय और जातीय संतुलन बिठाने की कोशिश करेगी। पार्टी अपने गढ़ विंध्य को और मजबूत करने के लिए सीधी सांसद रीति पाठक को विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती है। भाजपा के पास डॉ. गिरीश गौतम, राजेंद्र शुक्ला, शरदेंदु तिवारी, केदारनाथ शुक्ला बड़े ब्राह्मण चेहरे हैं। अगर रीति पाठक भी विधानसभा पहुंचती हैं, तो पार्टी को और मजबूती मिलेगी। वहीं सतना के सांसद गणेश सिंह का सतना-रीवा और सीधी के कुछ हिस्सों में कुर्मी समाज का खासा दखल है। इसका भाजपा को विधानसभा में लाभ मिल सकता है, क्योंकि उसके पास कोई बड़ा कुर्मी चेहरा नहीं है। जबकि कांग्रेस में पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल और राज्यसभा सांसद राजमणि पटेल जैसे कुर्मी चेहरे हैं। गणेश सिंह इनको चुनौती दे सकते हैं। गुना के सांसद केपी यादव ने 2019 के चुनाव में तत्कालीन कांग्रेस नेता श्रीमंत को हराया था। बाद में श्रीमंत बगावत कर भाजपा में शामिल हो गए थे। वो इस समय केंद्र सरकार में मंत्री हैं। ऐसे में संभावना इस बात की है कि भाजपा श्रीमंत को 2024 में गुना से ही मौका दे। इसलिए लिए गुना के भाजपा सांसद केपी यादव को विधानसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। एक वजह यह भी है कि भाजपा नेता राव देशराज सिंह के बेटे यादवेंद्र ने हाल ही में कांग्रेस का दामन थाम लिया है। ऐसे में यादव वर्ग में संतुलन बनाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। नर्मदापुरम क्षेत्र में सरताज सिंह और सीता सरन शर्मा वरिष्ठ हो चुके हैं। ऐसे में राव उदयप्रताप को आगे बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। अनिल फिरोजिया सांसद बनने के पहले विधायक भी रह चुके हैं। विधानसभा में लौटते हैं, तो खटीक समाज को मजबूती मिलेगी। बलाई वर्ग को छोडक़र बाकी जातियां एकजुट होंगी। वहीं जीएस डामोर भाजपा के कद्दावर नेता रहे दिलीप सिंह भूरिया की कमी को पूरा कर सकते हैं। मौजूदा आदिवासी विधायक सुलोचना रावत बीमार चल रही हैं।