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सरकार की दस साल की भंयकर नाकामियों का काला पत्र 

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 मुनेश त्यागी

     भारत की केंद्र सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक श्वेत पत्र जारी किया है। इस श्वेत पत्र में यूपीए सरकार की नीतियों की आलोचना की गई है। मगर यह श्वेत पत्र यूपीए सरकार के असली आंकड़ों को छुपाने की एक चालकी भारी स्वार्थी और गुमराह करने वाली साजिश का हिस्सा है। पहले कोई प्रधानमंत्री हरित क्रांति लेकर आया था, कोई दुग्ध क्रांति लेकर आया था तो कोई उद्योग क्रांति लेकर आया था।

      अब 2024 की सबसे बड़ी पार्टी श्वेत पत्र लेकर भारत की जनता के सामने अवतरित हुई है जिसमें इसने खास तौर से यूपीए सरकार की नीतियों के बारे में ज्यादा और अपनी नाकामियों पर जबरदस्त चुप्पी साधी गई है। इस श्वेत पत्र में जनता को गुमराह करने के लिए बहुत कुछ नहीं बताया गया है और उससे बहुत कुछ छुपाया गया है। पिछले दस सालों में 55 लाख करोड़ का कर्ज़ 155 लाख करोड़ हो गया है। यह आंकड़ा श्वेत पत्र से नदारत है।

     पीएम केयर के हजारों करोड रुपए कहां गए यह आंकड़ा श्वेत पत्र से गायब है। देश के पूंजीपतियों का 15 लाख करोड़ रुपए का लोन माफ कर दिया गया है यह आंकड़ा भी श्वेत पत्र से गायब कर दिया गया।मजदूर कानूनों को खत्म करके, अस्थाई नौकरी, ठेका प्रथा और फिक्स टर्म योजना शुरू कर दी गई है,  मजदूर यूनियन बनना लगभग खत्म कर दिया गया है। 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता, मजदूर कानूनों को लागू करने को लेकर सरकार अंधी, गूंगी और बहरी हो गई है।

     भारत के किसानों को आज तक फसलों का लाभकारी मूल्य और एमएसपी नहीं मिलता, इस पर सरकार पूरी तरह से खामोश है। देश में 10 करोड़ मुकदमे लंबित हैं, मुकदमों के अनुपात में जज, स्टेनो, कर्मचारी और अदालतें नहीं हैं। जनता सस्ते और सुलभ न्याय के संवैधानिक अधिकार से बिल्कुल वंचित कर दी गई है, सरकार ने इस मुद्दे पर मौन धारण कर लिया है।

     देश और राज्यों के स्तर पर करोड़ों पद खाली पड़े हुए हैं। पिछले कई सालों से उन्हें नहीं भरा जा रहा है। यह मुद्दा सरकार की एजेंडे में ही नहीं है। श्वेत पत्र इस मुद्दे पर बिल्कुल गूंगा हो गया है। देश में करोड़ों करोड़ नौजवान बेरोजगार हैं। पढ़े-लिखे होने के बावजूद भी उन्हें नौकरी देना सरकार की एजेंडे में से बिल्कुल बाहर हो गया है। श्वेत पत्र से यह सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा गायब है।

     सरकार एससी, एसटी और ओबीसी के कल्याण की बहुत बात कर रही है, मगर सरकार इनकी जनगणना से भाग रही है, इनकी संख्या बताने को तैयार नहीं है। सरकार ने अपने दस सालों के शासन में कितने एससी, एसटी और ओबीसी को नौकरियां दी हैं, श्वेत पत्र इस आंकड़े को बताने को तैयार नहीं है।

    मणिपुर पिछले कई महीनों से सांप्रदायिक नफरत की आग में जल रहा है, हजारों घर फूंके जा चुके हैं, सैकड़ो निर्दोष लोग मारे जा चुके हैं, महिलाओं को नंगा करके घुमाया गया है, सरकार और श्वेत पत्र इस अति गंभीर मुद्दे पर आश्चर्य जनक रूप से छुपी साधे हुए हैं। श्वेत पत्र इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।

     सरकार ने पिछले दस सालों में कितने स्कूल, विश्वविद्यालय और अस्पताल बनाए हैं, कितने सार्वजनिक उद्योग लगाए हैं, कितने शिक्षक नियुक्त किए हैं, कितने सरकारी डॉक्टर, नर्स और वार्ड बॉय नियुक्त किए हैं? श्वेत पत्र इन अति गंभीर मुद्दों पर अंधा बहरा और गूंगा बन गया है। 

    लगातार बढ़ती जा रहे महंगाई आम जनता की कमर तोड़ रही है, जनता महंगाई की अबाध रूप से बढ़ती गति से परेशान है, सरकार ने इसे रोकने के लिए क्या किया है? कितने नियम कानून बनाए हैं? महंगाई बढ़ाने वालों के खिलाफ क्या कानूनी कार्रवाई की हैं, श्वेत पत्र इस आवश्यक मुद्दे पर बिल्कुल चुप्पी साधे हुए हैं।

     भारत पिछले दस सालों में दरबारी पूंजीवाद, सांप्रदायिकता और केंद्रीय एजेंटीयों के पतन की भेंट चढ़ गया है। भारत पिछले दस वर्षों में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से अन्याय और पतन की पराकाष्ठा को छू गया है। श्वेत पत्र इन अति गंभीर मामलों पर चुप है। इलेक्टोरल बोंड्स पर सरकार और श्वेत पत्र की चुप्पी बहुत चौंकाने वाली है। कितना धन किस पूंजीपति से किस दल को प्राप्त हुआ? सरकार इस हैरान करने वाले आंकड़े को बताने को तैयार नहीं है। सरकार यह बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी सर्वोच्च न्यायालय को भी देने में आनाकानी कर रही है।

      जनतंत्र और संविधान को नाकारा बनाया जा रहा है। आज जनतंत्र धनतंत्र में बदल गया है। एक भला और ईमानदार आदमी चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं रह गया है, क्योंकि चुनाव लडना बहुत बहुत मंहगा और पैसे वालों का खेल बना दिया गया है। बेरोजगारी की महामारी पर सरकार चुप है। भ्रष्टाचार के बढ़ते कैंसर पर हैरानी भरी चुप्पी साधी गई है, भयंकर रूप का भ्रष्टाचारी एक पार्टी में आकर पूरी तरह से ईमानदार हो जाता है। भारत के संघवाद पर हमला जारी है। गैर बीजेपी राज्यों की सरकारों को पर्याप्त फंड न देना जैसे कर्नाटक और केरल  की सरकारें दिल्ली में धरना दे रही हैं, सरकार इस पर कुछ बोलने को तैयार नहीं है।

      देश का चौथा खंभा धाराशाई कर दिया गया है यानी प्रेस की स्वतंत्रता का खात्मा कर दिया गया है। प्रेस पूंजीपतियों की पिछलगू, कठपुतली और गुलाम हो गई है। उसने जनता को सच बताना छोड़ दिया है और जनता अपने देश की सच्चाई जानने से बिल्कुल वंचित कर दी गई है। सरकार पिछले दिनों 141 विधायकों की खरीद फरोख्त कर चुकी है। उसने जैसे विपक्षी पार्टियों का काम करना लगभग असंभव कर दिया है।

      हमारा संविधान ज्ञान विज्ञान की संस्कृति को बढ़ाने की बात करता है, खोज और अन्वेषण की बात करता है, मगर सरकार इन मूल्यों को आगे न बढ़ाकर, अंधविश्वासों और धर्मांता को बढ़ा रही है। उसने पूरी जनता को अज्ञानता,  पाखंडों और अंधविश्वासों के गर्त में धकेल दिया है। अब तो वह मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठा के अभियान में जुट गई है।

     प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रसेनजीत बॉस के आंकड़े इस श्वेत पत्र को लेकर कुछ और ही कहते हैं। आइए इन महत्वपूर्ण आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं,,,,

,,,,,यूपीए सरकार 2004 में सत्ता में आई थी, तब केंद्र सरकार का ऋण जीडीपी का 67 परसेंट और केंद्र व राज्य सरकारों का जीडीपी का क़र्ज़ 85% था। जब यूपीए-दो का कार्यकाल 2014 में खत्म हुआ तो ये कर्ज घटकर क्रमशः 53% और 67% रह गए थे।पिछले 10 वर्षों में ये दोनों कर्ज जीडीपी के 58% और 82% हो गए हैं। 

,,,,,इस सरकार के काल में इन दोनों कर्जों के बढ़ने के कारण हैं ,,,,डिमॉनेटाइजेशन, जीएसटी लागू करना और निजी इन्वेस्टमेंट में तेज गति से कमी आना। सरकार यूपीए के इन महत्वपूर्ण आंकड़ों को जनता को नही बता रही है और अपनी नाकामियों को जनता से छिपा रही है। सरकार आने वाले चुनावी प्रोपेगेंडा की वजह से ऐसा कर रही है।

,,,,,,मोदी सरकार पिछले दस सालों के अपने जन विरोधी कारनामों को जनता से छुपा रही है। पिछले 10 सालों में निर्यात घटा है। रुपए की कीमत 2014 में ₹60 से घटकर 83 रुपए हो गई है। महंगाई  कमरतोड़ स्तर पर पहुंच गई है। बैंकों का एनपीए 15 ट्रिलियन हो गया है जिसका फायदा चंद पूंजीपति दोस्तों को पहुंचाया गया है। कॉरपोरेट टैक्स को ऐतिहासिक रूप से घटाया गया है, जबकि जनता पर करो का बोझ बढ़ाया जा रहा है।

,,,,,,बेरोजगारी ने अपना नया और रिकॉर्ड तोड इतिहास बना दिया है। सरकार धर्म के नाम पर जनता को बांटकर उनका ध्यान मूल मुद्दों से भटका रही है। दरबारी पूंजीपतियों की फौज खड़ी कर दी गई है। पिछले दस सालों में इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से बीजेपी की चांदी हो गई है। भारत की न्याय व्यवस्था और न्यायपालिका की आजादी पर सरकार गंभीर हमले कर रही है और सरकार उसे अपनी पिछलगू बनाने पर आमादा है। 

     कितना अच्छा होता कि केंद्र सरकार अपनी नाकामियों और कर्मियों पर एक  श्वेत पत्र लाकर जनता को इससे अवगत कराती। इस प्रकार सरकार ने अपनी नाकामियों को छिपाकर चुनावी प्रोपेगेंडा के लिए यह श्वेत पत्र जारी किया है। यहीं पर मोदी सरकार की बहुप्रचारित गारंटियों पर एक नजर डालना जरूरी है जो 2014 से 2024 तक, इस स्तर पहुंच गई हैं ,,,,,

,,,,डॉलर 58 रुपए से ₹83 

,,,,केंद्र सरकार का कर्ज 56 लाख करोड रुपए से बढ़कर 172 लाख करोड रुपए,

,,,,एलपीजी गैस 410 से ₹900,

,,,,पेट्रोल पर केंद्रीय टैक्स ₹9 से बढ़कर ₹20,

,,,,डीजल पर केंद्रीय टैक्स₹3 से ₹16,

,,,,बेरोजगारी दर 5% से 9% और 

,,,,अरबपतियों की संख्या 63 से 259 हो गई है,

,,,,छटा वेतन आयोग 2006 में 40%बढोतरी

,,,, सातवां वेतन आयोग 2016 में 14% बढ़ौतरी।

      इस श्वेत पत्र के माध्यम से सरकार ने भारत की जनता को गुमराह किया गया है और सरकार ने अपनी तमाम नाकामियों को जनता से छुपाने की कोशिश की है। उपरोक्त तथ्यों की रोशनी के आधार पर इसे सरकार की नाकामियों का काला पत्र कहना ही ज्यादा कारगर होगा और यही सरकार के दस साल की नाकामियों का काला सच है।

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