सोनी कुमारी, वाराणसी
महाभारत युद्ध के बाद श्री कृष्ण द्वारका जा रहे थे। मार्ग में उनकी भेंट उत्तंक मुनि से हुई। युद्ध की घटना से अनजान मुनि ने जब हस्तिनापुर की कुशलता पूछी तो श्री कृष्ण ने उन्हें कौरवों के नाश का समाचार सुनाया। मुनि ने क्रोध में कहा — वासुदेव, यदि आप चाहते तो यह विनाश रुक सकता था। मैं आपको अभी शाप दूंगा।
श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले- आप पहले शांतिपूर्वक मेरा पक्ष सुनें, फिर चाहे तो शाप दे दें। ऐसा कहकर श्री कृष्ण ने मुनि को अपना विराट रूप दिखाया और धर्म की रक्षा के लिए कौरवों के नाश की आवश्यकता बताई।श्री कृष्ण ने उनसे वर मांगने को भी कहा।
मुनि ने कहा– जब भी मुझे प्यास लगे वहीं मुझे जल मिल जाए। वर देकर श्री कृष्ण चले गए। एक दिन वन में मुनि को बड़ी प्यास लगी। तभी वहां एक मैले-कुचैले वस्त्रों में एक बूढ़ा दिखा। शिकारी कुत्तों के साथ वह हाथ में धनुष और पानी की मशक लिए हुए था। मुनि को देख वह मुस्कुराते हुए बोला– लगता है आप प्यासे हैं, लीजिए पानी पी लें और यह कहकर उसने मशक का मुँह आगे कर दिया।
घृणा में मुनि ने जल नहीं पिया। उन्हें श्री कृष्ण के दिये गये वर के इस स्वरूप पर क्रोध भी आया। तभी वह चांडाल हँसते हुए अंतर्धान हो गया। मुनि को अहसास हुआ कि उनकी परीक्षा ली गई है। जब वहां श्री कृष्ण प्रकट हुए तो उत्तंक ने कहा-प्रभु आपने मेरी परीक्षा ली। मैं ब्रामण होकर चांडाल की मशक का जल कैसे पीता ?
श्री कृष्ण ने मुस्कुरा कर कहा – आप ने जल की इच्छा की तो मैंने इन्द्र से आप को जल पिलाने को कहा। मैं निश्चिंत था कि आप जैसा ज्ञानी ब्राह्मण और चांडाल के भेद से ऊपर उठ चुका होगा और आप अमृत प्राप्त कर लेंगे। आप ने मुझे इंद्र के सामने लज्जित किया। यह कहकर श्री कृष्ण अंतर्धान हो गए।
यथार्थ ज्ञान होने पर जाति, वर्ण ज्ञान का कोई भेद नहीं रह जाता। यह समानता का ज्ञान न होने तक व्यक्ति प्राप्त हो रहे अमृत को भी ग्रहण नहीं कर पाता।
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