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बॉलीवुड के ‘कमिश्‍नर साहब’ इफ्तेखार खान

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जिन्‍होंने बेटी के कारण घुट-घुटकर बिताए आखि‍री लम्‍हे

संदीप द्विवेदी 

पुलिस की वर्दी में रौब जमाने वाले इफ्तेखार। कभी भावुक पिता बनकर रुलाने वाले इफ्तेखार। वो एक्टर, जिसने अपने हर तरह के किरदारों में जान फूंकी। लेकिन पर्सनल जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही। उनकी मौत सबसे दर्दनाक हुई थी, जिसे जानकर आप भी सिहर उठेंगे। उनकी बर्थ एनिवर्सिरी पर जानिए उनके बारे में सबकुछ।

इफ्तेखार खान ने 40 से 90 के दशक तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में खूब सारी फिल्मों में काम किया। वो राजेश खन्ना से लेकर अमिताभ बच्चन तक संग स्क्रीन शेयर करते नजर आए, लेकिन उन्हें ‘द रियल पुलिस ऑफ बॉलीवुड’ कहा गया। क्योंकि उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में पुलिस ऑफिसर का दमदार किरदार निभाया और उनमें जान फूंक दी। क्या आप जानते हैं कि वो एक्टर होने के साथ पेंटर और सिंगर भी थे। एक तरफ वो अपना करियर बना रहे थे तो दूसरी तरफ उनकी जिंदगी में तब तूफान आ गया, जब देश का विभाजन हुआ। उनका परिवार पाकिस्तान चला गया, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहने का फैसला किया। इस दौरान वो आर्थिक तंगी से भी गुजरे, लेकिन हार नहीं मानी। फिर उनकी किस्मत चमकी और बॉलीवुड में छा गए, लेकिन उनकी मौत बहुत ही दर्दनाक हुई थी।

गाने का शौक रखने वाले इफ्तेखार ऐसे बने एक्टर

इफ्तेखार का जन्म 22 फरवरी 1924 को जालंधर में हुआ था। वो चार भाई और एक बहन में सबसे बड़े थे। मैट्रिक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने लखनऊ कॉलेज ऑफ आर्ट्स से पेंटिंग में डिप्लोमा कोर्स किया। यानी इफ्तेखार एक्टर होने के साथ-साथ पेटिंग की कला में भी माहिर थ। क्या आप जानते हैं कि उन्हें गाने का शौक था और वो फेमस सिंगर कुंदनलाल सहगल से प्रभावित थे! यही वजह थी कि वो 20 साल की उम्र में संगीतकार कमल दासगुप्ता के ऑडिशन के लिए वो कोलकाता चले गए। कमल दासगुप्ता उस समय एचएमवी के लिए काम कर रहे थे। वो इफ्तेखार की पर्सनैलिटी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एमपी प्रोडक्शंस को एक्टर के लिए उनके नाम की सिफारिश की।

जब पाई-पाई के मोहताज हो गए थे इफ्तेखार

इफ्तेखार ने साल 1944 में फिल्म ‘तकरार’ से करियर की शुरुआत की। ये मूवी आर्ट फिल्म्स-कोलकाता के बैनर तले बनी थी। दूसरी तरफ उनकी पर्सनल जिंदगी में उथल-पुथल मची थी। देश के विभाजन के दौरान उनके माता-पिता, भाई-बहन और कई करीबी रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए। इफ्तेखार को भारत में रहना पसंद था, लेकिन दंगों ने उन्हें कोलकाता छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। वो बीवी और बेटियों संग बंबई (अब मुंबई) चले गए। इस दौरान आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी थी, लेकिन मुंबई में किस्मत उनका इंतजार कर रही थी।

अशोक कुमार ने मुंबई में दिलाया काम

इफ्तेखार को कोलकाता में उनके समय के दौरान एक्टर अशोक कुमार से मिलवाया गया था। यही वजह रही कि मुंबई में बॉम्बे टॉकीज फिल्म मुकद्दर (1950) में एक किरदार के लिए उनसे संपर्क किया गया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें ज्यादातर पुलिस के किरदार में देखा गया और पसंद किया गया। उन्होंने 1940 से 1990 के दशक की शुरुआत तक अपने करियर में 400 से ज्यादा फिल्मों में एक्टिंग की। उनके भाई इम्तियाज अहमद PTV (पाकिस्तान) के एक फेमस टीवी एक्टर हैं।

पुलिस के किरदार में खूब बटोरा प्यार

इफ्तेखार ने बतौर लीड एक्टर भी काम किया, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में पिता, अंकल, ग्रेट-अंकल, दादाजी और पुलिस ऑफिसर, कमिश्नर, कोर्टरूम जज और डॉक्टर के किरदार निभाए और उन्हें काफी पसंद भी किया गया। उन्होंने ‘बंदिनी’, ‘सावन भादो’, ‘खेल खेल में’ और ‘एजेंट विनोद’ में निगेटिव रोल भी किया। 1960 और 1970 के दशक में इफ्तेखार ने तो चाचा और पिता की खूब भूमिका निभाई और उनकी एक्टिंग सीधे दिल में उतरती थी। चाहे कड़क पुलिस का किरदार निभाना हो या फिर भावुक पिता का। वो यश चोपड़ा की क्लासिक मूवी दीवार (1975) में अमिताभ बच्चन के करप्ट बिजनेस मेंटर का किरदार निभाया। उन्होंने ‘जंजीर’ में पुलिस इंस्पेक्टर का दमदार किरदार निभाया। भले ही उनका सीन ज्यादा नहीं था, लेकिन जिस तरह से उन्होंने एक्टिंग की, वो बहुत प्रभावशाली थी। 1978 की हिट फिल्म ‘डॉन’ के लिए भी उन्हें याद किया जाता है। उन्होंने राजेश खन्ना संग भी भी खूब काम किया। वो ‘जोरू का गुलाम’, ‘द ट्रेन’, ‘खामोशी’, ‘महबूब की मेहंदी’, ‘राजपूत’ और ‘आवाम’ जैसी फिल्मों में नजर आए।

इंग्लिश प्रोजेक्ट में भी किया काम

हिंदी फिल्मों के अलावा इफ्तेखार साल 1967 में अमेरिकन टीवी सीरीज ‘माया’ में नजर आए थे। इसके अलावा साल 1970 में इंग्लिश लैंग्वेज मूवी ‘बॉम्बे टॉकीज’ और 1992 में ‘सिटी ऑफ जॉय’ में भी दिखे।

बेटी की मौत का सदमा

पर्सनल लाइफ की बात करें तो इफ्तेखार ने कोलकाता की एक यहूदी महिला हन्ना जोसेफ से शादी की थी। हन्ना ने अपना धर्म और नाम बदलकर रेहाना अहमद रख लिया था। उनकी दो बेटियां थीं, सलमा और सईदा। सईदा की 7 फरवरी 1995 को कैंसर से मौत हो गई। बेटी की मौत ने इफ्तेखार को झकझोर दिया था। अपने सामने अपनी बच्ची को मरता देख, उन पर क्या बीती होगी, ये अहसास करना भी दर्दनाक है। बेटी के गुजरने के बाद वो बुरी तरह बीमार पड़ गए। वो अंदर ही अंदर इतने घुट रहे थे कि बेटी की मौत के एक महीने के अंदर ही 4 मार्च को इफ्तेखार ने भी 71 साल की उम्र में दम तोड़ दिया था।

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