उमेश चंदोला
(30 नवंबर 2014 को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में अमित शाह की भूमिका की जांच करने वाले सीबीआई जज लोया की हत्या कर दी जाती है। जनवरी 2023 में भूतपूर्व भाजपा नेता अरुण शौरी के सुझाव पर निरंजन टकले इस पूरे मामले पर एक पुस्तक लिखते हैं। “जज लोया का कातिल कौन ” सच बोलो और शैतान को शर्मिंदा करो! उस पुस्तक पर आधारित यह समीक्षा पेश है।)
20 नवंबर 2017 को कारवां पत्रिका में निरंजन टकले का खोजी लेख प्रकाशित हुआ, “सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई कर रहे जज की मौत में चौंकाने वाला खुलासा”। एक दिन बाद दूसरी स्टोरी जारी की गई “सोहराबुद्दीन मामले में अनुकूल फैसला देने के लिए चीफ जस्टिस मोहित शाह ने मेरे भाई को 100 करोड़ रुपए की पेशकश की थी, जज लोया की बहन।”
सोहराबुद्दीन की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुलिस जांच की गई जिसमें आईजी गीता जौहरी ने सितंबर 2006 में अपनी अंतरिम रिपोर्ट पेश की। इसमें साफ तौर पर वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह को लिप्त पाया गया।
जनवरी 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन मामले को सीबीआई की विशेष अदालत को ट्रांसफर किया और जुलाई 2010 में अमित शाह गिरफ्तार हुए। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में इस मामले की सुनवाई एक ही जज से करवाने का आदेश दिया था। इसमें पहले जज जे.टी.उत्पट के सख्त रुख के चलते उनका ट्रांसफर जून 2014 में कर दिया गया।
दूसरे जज लोया नियुक्त किए गए। इन्होंने 2014 में अमित शाह को सीबीआई अदालत से डेढ़ किलोमीटर दूर उपस्थित रहने के बावजूद भी सीबीआई में न आने पर खरी खोटी सुनाई। दरअसल अमित शाह सीबीआई अदालत के सामने हुई नौ पेशियों में कभी भी हाजिर नहीं हुए।
इस पर अमित शाह को दिसंबर, 2014 में उपस्थित रहने की सख्त चेतावनी जारी की गई। इस बीच महाराष्ट्र हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस मोहित शाह बार-बार जज लोया पर दबाव डालते रहे। वीडियो प्रमाण है कि जज लोया की बहन डा. अनुराधा बियानी ने कहा कि मोहित शाह ने लोया को 100 करोड़ रुपए रिश्वत और घर देने की पेशकश की थी।
(न्यायपालिका में छाए हुए आतंक के मद्देनजर) नए सीबीआई जज एम.बी.गोसावी ने 15 दिसंबर को मामले की कमान संभाली और दो दिनों के अंदर अपना फैसला सुनाया! सैकड़ों गवाह, दस हजार से ज्यादा पन्नों की चार्ज शीट, सैकड़ों कॉल रिकॉर्ड पर सोच विचार किए बिना 48 घंटे में न्याय कैसे हो गया यह तो कोई नन्हा बच्चा भी बता सकता है। जस्टिस गोसावी ने अमित शाह को सब आरोपों से बरी कर दिया।
(यही नहीं जब जज लोया की हत्या की जांच की मांग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई तो अमित शाह को अभयदान देते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक अनोखा फैसला सुनाया कि, “इस मामले में जांच करने जैसा कुछ भी नहीं है। और भविष्य में भी मेरे ही फैसले को आधार बनाकर कोई अदालत इस पर विचार कर सकेगी। यानि भाजपा सरकार की रवानगी के बाद भी इस पर कोई जांच नहीं हो सकती।)
कत्ल से दो दिन पहले अचानक जज लोया को उनके दो सहयोगी जज नागपुर चलने के लिए कहते हैं। कारण बताया गया था कि वहां पर जज सपना जोशी की बेटी की शादी थी। वो कहते हैं कि लोया का टिकट भी बुक कर दिया गया है। इस बीच 1 दिसंबर 2014 को लोया की पांचों बहनों के पास जज लोया की मौत की खबर दी जाती है।
मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया जाता है। जबकि जज लोया की बहन जो कि स्वयं भी एक डॉक्टर हैं, उनका कहना था कि जज की पूरी कमीज खून से भीगी थी और हार्ट अटैक में कभी ऐसा नहीं होता है। नागपुर मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक विभाग के एक डॉक्टर के बहनोई महाराष्ट्र में भाजपा सरकार में मंत्री थे।
वहीं जज लोया का पोस्टमार्टम हुआ था। एम्स दिल्ली के अपराध विज्ञान के भूतपूर्व प्रोफेसर और वहीं के एक कार्डियोलॉजिस्ट ने भी हार्ट अटैक की संभावना से इनकार कर दिया था।
जज लोया का पोस्टमार्टम बिना उनके परिजनों की अनुमति के किया जाता है। महाराष्ट्र के प्रचलित कानून (कि हर पोस्टमार्टम की वीडियो रिकॉर्ड की जाए) का उल्लंघन करते हुए उनका पोस्टमार्टम की वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं कराई जाती है।
पोस्टमार्टम के बाद लाश को उनके परिवार यानि बीबी बच्चों के पास भेजने की बजाय उनके पैतृक घर लातूर केवल एक एंबुलेंस के ड्राइवर के साथ भेज दिया जाता है। जज लोया के परिवार को ना तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्राप्त होती है, ना फोरेंसिक रिपोर्ट ना पंचनामा की प्रति।
यह सब खोजी पत्रकार निरंजन टकले अपनी जान पर खेल कर नागपुर जाकर लाते हैं। इस बीच में वो कई हमलों का भी सामना करते हैं।
पुस्तक के अन्त में एक घटना का जिक्र है। सन 2018 में लेखक निरंजन टकले को एक वकील एडवोकेट बोरकर का संदेश ट्विटर पर प्राप्त होता है। जिसमें उन्होंने लिखा था कि लोया के सिर के पिछले हिस्से में ड्रिलिंग मशीन से सुराख किया गया और उनकी हत्या कर दी गई।
वो कहते हैं कि, “इस कत्ल के वीडियो सबूत भी हैं। मैंने इन्हें 6 सुरक्षित जगहों पर रखा है। जस्टिस दीपक मिश्रा का तबादला होने के बाद मैं अदालत में याचिका दायर करूंगा।” निरंजन इस बात पर बिल्कुल भी यकीन नहीं करते हैं।
लेकिन बोरकर कहता है कि, “जज लोया को आधी रात को रवि भवन के बाहर एक बंगले में ले जाया गया। उन्हें बताया गया कि ड्रिलिंग मशीन से उनके सिर पर वार किया गया और इसके 10 मिनट बाद लोया के गले में किसी ने जहर डाल दिया। उन्होंने बताया कि यह वीडियो एक साथी ने अपनी हिफाजत के लिए लिया था। इस बंगले में उनके कुछ न्यायिक सहयोगी मौजूद थे। “
आखिर 30 जुलाई 2018 को निरंजन टकले एडवोकेट बोरकर से मिलने को राजी हो जाते हैं, लेकिन लेखक निरंजन टकले का फोन टैप किया जा रहा था। इसलिए यह खबर जज लोया के कातिल तक कैसे न पहुंचती? ठीक उसी दिन एडवोकेट सुरेंद्र बोरकर की भी मौत हो जाती है।
रहस्यमयी बात यह है कि मौत की “कथित जगह” सीबीआई कोर्ट (जहां एडवोकेट बोरकर काम करते थे) से जे.जे.अस्पताल (जहां कि पोस्टमार्टम हुआ था) की दूरी कम से कम 20 मिनट है। लेकिन 8 मिनट बाद ही उनका पोस्टमार्टम भी कर दिया जाता है।
जज को जबरदस्ती शादी के बहाने ले जाने वाले जज भी हत्याकांड के 2 महीने बाद ही जज लोया के घर जाने का साहस जुटा पाते हैं।
12 जनवरी 2018 को भारत में एक भूतपूर्व घटना घटित हुई। सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने अपने घर पर एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई जिसमें भूतपूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने साफ कहा था कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का तात्कालिक और मुख्य कारण था। जज लोया की मृत्यु की पारदर्शी जांच की जाए।
पुस्तक में दर्ज किया गया है कि जज लोया के पुत्र अनुज लोया ने एक पत्र लिखा था। उसमें उसने लिखा था कि अगर मुझे या मेरे परिवार के लोगों को कुछ हो जाता है तो इसके लिए मुंबई हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस मोहित शाह जिम्मेदार होंगे।
खोजी पत्रकार निरंजन टकले नागपुर के जिला प्रोटोकोल ऑफीसर के रिकॉर्ड खंगालते हैं तो पता चलता है कि चीफ जस्टिस मोहित शाह ठीक उसी दिन नागपुर आए थे। यानि जब जज लोया की मौत हुई तब वह यहां थे।
लेकिन नागपुर के वीआईपी गेस्ट हाउस रवि भवन के रिकॉर्ड से कुछ पन्ने गायब थे जो इस बात का सबूत हैं कि जज लोया के रहने के बारे में रिकॉर्ड को हटा दिया गया है।
यही नहीं अमित शाह मार्च में तीन-चार दिन तक रवि भवन में रुके थे। 13 मार्च से 16 मार्च 2015 तक। वह सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस शरद बोबडे, जस्टिस उदय ललित और मुंबई हाई कोर्ट के जस्टिस एन. डब्लू .सांभरे के साथ रहे।
यहां तक कि सोहराबुद्दीन मुकदमे के अभियोजन पक्ष के वकील और सीबीआई के वकील अनिल सिंह भी वहां मौजूद थे। लेकिन कमाल यह था कि उन दिनों के किसी भी मराठी समाचार पत्र में अमित शाह के कोई पब्लिक प्रोग्राम या ऑफिशियल दौरे का समाचार नहीं था। दरअसल यह एक गुप्त दौरा था।
हजार सवालों को उठा रही पुस्तक की समीक्षा यहां समाप्त की जाती है।
लेकिन सवाल यह है कि अगर 2018 में ही लोया की हत्या की पारदर्शी जांच हो जाती तो कातिल तो जेल जाएगा ही लेकिन वह अकेले कहां डूबने वाला है। कितने हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के जज डूब जाते हैं। फिर नरेंद्र मोदी के साथ सरकार भी जानी सुनिश्चित है।
क्या इसी के लिए चुनाव आयोग को भी कब्जे में लेना पड़ा था।
इस मसले पर केजरीवाल और शरद पवार भी पांच साल से बेरोजगार निरंजन टकले को कोरा आश्वासन देते हैं। राजनीतिक पार्टियों में व्याप्त खामोशी को समझा जा सकता है, लेकिन भारत के क्रांतिकारी मजदूर किसान संगठनों को किस बात का डर है? क्या जज लोया के कातिल की गिरफ्तारी हिंदुस्तान में फासीवादी आंदोलन की कमर तोड़ सकती है या नहीं ?
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