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पुस्तक समीक्षा : महिला सशक्तिकरण

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डॉ.रश्मि जहॉं

महिला सशक्तीकरण जैसे व्यापक आयामों वाले विषय पर अकादमिक क्षेत्रों में सरल विश्लेषण के चलन के साथ पुस्तक लेखन की परिपाटी आम तौर पर दिखती है। इस गंभीर विषय पर साझा विमर्शों के साथ क्षेत्रीय अनुभवों को संजोकर भारतीय संदर्भ की पड़ताल करने का गंभीर साध्य अभी हमारे अकादमिक अभ्यासों में कम ही दिखता है। पुस्तक अपने सीधे-सरल शीर्षक “महिला सशक्तिकरण“ के साथ 22 अध्यायों के माध्यम से सशक्तिकरण के विविध क्षैतिजों का विस्तार महिलाओं की समस्याओं, मुद्दों और सुधारात्मक आयामों को रेखांकित करते हुए एक सफल प्रयास करती दिखती है। पुस्तक में प्राचीन सिंधु सभ्यता में सशक्त महिलाओं के साक्ष्यों सहित वैदिक संस्कृति में महिला समानता के आधारों के आख्यान और मध्यकालीन भारत में महिलाओं की बदलती स्थिति तथा आधुनिक भारत में महिला सशक्तिकरण की दशा व दिशा में योगदान करने वाले संवैधानिक प्रावधानों/अधिकारों पर विस्तार दृष्टि डालते कई शोध परक लेख है। संपादक सहित करीब 23 विद्वानों ने अपने-अपने शोध पत्रों में सशक्त होती महिलाओं के तथ्यात्मक विश्लेषणों को प्रस्तुत किया हैं। आशा है पुस्तक विभिन्न क्षेत्रों में महिला अध्ययन से जुड़े शोधों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी, एक नई दृष्टि प्रदान करेगी। वही महिला सशक्तिकरण को नई राह प्रदान करने में हमारी समझ बढ़ाने में अहम योगदान देगी।

नई सदी का नया भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी उपस्थिति दर्ज रख सके इसके लिए महिला समानता के साथ होने वाला सशक्तिकरण ही काम आयेगा। भारत में अर्थव्यवस्था और महिला सशक्तिकरण एक-दूसरे से जुड़ें हैं। भारत के आर्थिक विकास में महिलाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, वे कई दशकों से गैर बराबरी की शिकार होते हुए भी कम वेतन के साथ भी लगभग सभी राष्ट्र की आर्थिक भलाई में अपना योगदान करती आ रही है। महिलाएं देशों, पीढ़ियों और कई अन्य लोगों के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन में बहुत बड़ा योगदान देती हैं। इसलिए आर्थिक विकास संसाधनों पर महिलाओं के नियंत्रण और निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी पर सकारात्मक प्रभाव दिखा सकता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि अभी भी पुरी दुनियाँ में महिलाएं कमोबेश भारी आर्थिक दबाव के अधीन जी रही हैं।


महिला सशक्तिकरण यह मांग करता है कि प्रत्येक मनुष्य के साथ ऐसा व्यवहार हो जिससे उनकी गरिमा और अधिकारों का उल्लंघन न हो। सदियों से महिलाएँ तरह-तरह के उत्पीड़न से पीड़ित रही हैं! जैसे-जैसे दुनिया एक सभ्य विकसित समाज की दिशा में बदल रही है, महिलाएँ भी अपने अधिकारों के लिए निरंतर अपने हक-अधिकरों की आवाज बुलंद कर रही है। एक सभ्य दुनिया में रहने के लिए एक इंसान के रूप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम लोगों को जागरूक करने में मदद करें। उन्हें दुनियाँ की न्यायपूर्ण मानसिकता के साथ आगे बढ़ना सिखाना सभ्य नागरिक समाज का पुनीत दायित्व है। समाज को महिला विरोधी पुरातन पोंगापंथी वाली सोच से बाहर निकालें। जो 21 वीं सदी में भी समाज को आगे बढ़ने से रोक रही है। महिलाओं को शिक्षा से सशक्त बनाकर ही आने वाली पीढ़ियों के साथ सशक्त राष्ट्र के निर्माण की दिशा में बढ़ा जा सकता है। वैश्वीकरण के दौर में सबको सशक्त करके ही एक समृद्ध, शांतिपूर्ण, समरस और न्यायपूर्ण विश्व समाज की स्थापना की जा सकती है।


प्रस्तुत पुस्तक इन सभी बिन्दुओं को विमर्श के दायरों में लाने की कोशिश करती दिखती है। महिला हिंसा, सुरक्षा, लैंगिक समानता, राजनैतिक सहभागिता, पंचायतों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व, सरकारी व गैर-सरकारी क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती उपस्थिति को चिंहित करती लेखों की श्रृंखला से परिपूर्ण पुस्तक ’’महिला सशक्तीकरण’’ के शीर्षक के साथ न्याय करती दिखती है। पुस्तक को देश की राजधानी नई दिल्ली के प्रतिष्ठित प्रकाशन ’’अद्विक’’ पब्लिकेशन हाउस, नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है। पुस्तक भाषा की दृष्टि से भी बहुत सरल, सुस्पष्ट और आवश्यक साहित्यिक उत्कृष्टता के मानकों को भी अपने विभिन्न लेखों में पूरा करती हुई दिखती है। पुस्तक में कई आलेख अनुसंधान आधारित भाषा में अपने-अपने अनुशासनों में महिला सशक्तीकरण की जमीन को मजबूत करते है। भाषाई गुणवत्ता किसी लेखन की उत्कृष्टता के स्तर का निर्धारण तो करती ही है उस विषय के विस्तार और समाज में संचार के नए क्षैतिजों को भी स्थापित करती है।

प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से भी पुस्तक महिला सशक्तीकरण के भावों को अपने रंग, रुप, आकार, प्रकार और सरल चित्रमय प्रदर्शन के साथ सक्रिय उपस्थिति के लिए प्रेरित करती है। पुस्तक के गुलाबी कवर पर महिलाओं के मुठठी बंद तने हुए हाथ शक्ति, संघर्ष, साहस, सहयोग, सामूहिकता और संचार के संदेश समेटे हुए सबको आकर्षित करते है। प्रस्तुत पुस्तक अपने आकर्षण को गुणात्मक ढंग से बढ़ाती है अपने साइज को लेकर पुस्तक बहुत संतुलित आकार और सम्मोहक रंग के साथ अपनी ओर अनास ही सबको आकर्षित करने वाली है। साथ ही फिलिपकार्ड और अमेजन जैसे ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर पुस्तक की आसान उपलब्धता बड़े पाठक वर्ग तक अपनी पंहुच और विषय की व्यापकता का विस्तार करने में सफल बन पायेगी। पुस्तक प्रकाशन के सभी मानकों के साथ उच्च स्तरीय सिद्धांतों का अनुसरण करती है। सभी लेखकों ने अपने लेखों में समुचित लेखन प्रक्रिया को फोलो करते हुए कैची शीर्षक, सारांश, की-वर्डस, विषय विस्तार, निष्कर्ष और अंत में आवश्यक संदर्भों के उल्लेख सहित अकादमिक मानकों को आधार बनाया है।

कुल मिलाकर यह पुस्तक महिला सशक्तीकरण से जुड़े मुददों पर सार्थक बहस को आगे बढ़ाती है। पुस्तक की उपादेयता तो पाठकों की प्रतिक्रिया के साथ सही मायनों में सामने आयेगी पर एक तटस्थ पाठक के नजरिए से पुस्तक को पढ़ने की कोशिश की है और उन सब खूबियों-खामियों को रेखांकित करने का प्रयास इस समीक्षा के जरिए किया है जिसमें यह भी जरुरी दिखता है कि नव-उदारवाद ने भारतीय महिलाओं को गहराई तक प्रभावित करने वाले कुछ समसामयिक कारकों की शिनाख्त और शिददत के साथ की जाती तो पुस्तक पूरक ढंग से अपने उददेश्यों को पाने में सहज बनती। इस सामान्य सी आकांक्षा के साथ प्रस्तुत पुस्तक संपादन का एक लघु सा प्रयास इस महान उद्देश्य में अपना जो भी आंशिक अवदान दे पायेगा, उसमें आप सब सुधि पाठकों की सक्रिय सहभागिता ही अधिक निर्णायक रहेगी। इन आशाओं और आकांक्षाओं के साथ महिला सशक्तिकरण को बांचती यह पुस्तक अब आपके हवाले साथियों! ………..
सहायक आचार्या
विभागाध्यक्ष, बी. एड. विभाग, श्री द्रोणाचार्य डिग्री कॉलेज, दनकौर, ग्रेटर नोएडा

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