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भारत की विदेश नीति और कूटनीति दोनों ही बड़ी खराब स्थिति में

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सनत जैन

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत हवाई दुर्घटना में हो गई है। उनका हेलीकॉप्टर क्रैश हुआ। 17 घंटे के बाद हेलीकॉप्टर का मलमा मिला। राष्ट्रपति इब्राहिम, विदेश मंत्री हुसैन, पूर्वी अजरबेजान प्रांत के गवर्नर और अंगरक्षक हेलीकॉप्टर पर सवार थे। दुर्घटना के लगभग 20 घंटे के बाद ईरान सरकार की ओर से आधिकारिक तौर पर ईरान के राष्ट्रपति और उनके साथ जो लोग सवार थे, उनकी मौत की पुष्टि की है। ईरान के राष्ट्रपति अमेरिका में बने बेल 212 हेलीकॉप्टर में यात्रा कर रहे थे।

हेलीकॉप्टर को खोजने में लगभग 17 घंटे का समय लगा। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार घने कोहरे के कारण शायद आपातकालीन लैंडिंग के दौरान हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ है। ड्रोन फुटेज में जंगल में आग जलती हुई नजर आई। उसके बाद हेलीकॉप्टर मिला जो पूरी तरह से तबाह हो चुका था। यह दुर्घटना ऐसे समय पर हुई है जब ईरान के राष्ट्रपति रईसी और सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के नेतृत्व में पिछले महीने ही ईरान ने जबरदस्त ड्रोन और मिसाइल से इजराइल पर हमला किया था। कुछ दिन पहले भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर एक समझौता हुआ था। इस समझौते के अनुसार ईरान के चाबहार बंदरगाह का स्वामित्व एवं संचालन का अनुबंध भारत की कंपनी के साथ किया गया था। ईरान के ऊपर अमेरिका ने कई वर्ष पहले से प्रतिबंध लगा रखे थे। इस समझौते के बाद भारत का खाडी के देशों और रूस के बीच समुद्री परिवहन निर्वाध रूप से होने लगता। इसका लाभ ईरान को भी मिलता।

अमेरिका के लिए यह सबसे बड़ा धक्का था। इस समझौते के बाद ही आशंका व्यक्त की जा रही थी की विश्व स्तर पर अब कुछ ना कुछ बड़ा घटने जा रहा है। समझौते के ठीक एक सप्ताह के अंदर ईरान के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री का हवाई दुर्घटना में मौत हो जाना सामान्य दुर्घटना नहीं माना जा सकता है। इसके पीछे साजशि की आशंका बताई जा रही है। रूस और यूक्रेन के बीच लंबे समय से युद्ध चल रहा है। नाटो देश और अमेरिका यूक्रेन का साथ दे रहा है। इसी बीच इजराइल और हमास के बीच युद्ध शुरू हो गया। अमेरिका, इजराइल को लड़ाई में हर संभव समर्थन दे रहा है। ईरान का जब इजराइल पर हमला हुआ, उसके बाद से स्थिति विस्फोटक होती जा रही थी। इजराइल से ईरान के ऊपर कोई बड़े हमले की आशंका बनी हुई थी। ईरान के राष्ट्रपति ने पिछले महीने पाकिस्तान का दौरा किया था। वहां से लौटने के बाद भारत के साथ बंदरगाह और रोड बनाने का समझौता ईरान ने किया। इस समझौते ने आग में घी डालने का काम किया।

वैश्विक स्तर पर रूस और चीन, अमेरिका के मुकाबले में एक साथ खड़े हुए हैं। उत्तर कोरिया भी इसमें शामिल है। अमेरिका भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को अपनी ओर खड़ा करना चाहता है। अमेरिका का समर्थन भारत वैसा नहीं कर रहा है, जैसा अमेरिका चाहता है। जिसके कारण अमेरिका, पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को मजबूत कर रहा है। आर्थिक रूप से पाकिस्तान की हालत बहुत खराब है। अमेरिका के लिए पाकिस्तान सॉफ्ट टारगेट है। इजराइल में प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ उनकी कैबिनेट के मंत्रियों ने विद्रोह कर दिया है। गाजा के साथ युद्ध को लेकर कैबिनेट मंत्रियों ने नेतन्याहू को इस्तीफा देने की चेतावनी दे दी है। रूस और चीन मिलकर अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच 2 साल से ज्यादा समय से युद्ध चल रहा है। रूस के ऊपर जो अमेरिकी प्रतिबंध लगाए थे। इसका असर रूस और ईरान पर नहीं हुआ। रूस और चीन के मित्र देश एक नया वैश्विक समीकरण तैयार कर चुके हैं। उत्तर कोरिया आणविक हथियारों के साथ रूस और चीन के साथ सहयोग कर रहा है। वर्तमान स्थिति में भारत की विदेश नीति और कूटनीति दोनों ही बड़ी खराब स्थिति में पहुंच गए हैं। मोदी सरकार ने आर्थिक लाभ को देखते हुए, सामरिक स्थिति पर ध्यान नहीं दिया। रूस से सस्ते में कच्चा तेल लिया। अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भी ईरान के साथ व्यापार जारी रखा।

चीन के साथ भारत के व्यापारिक रिश्ते चरम सीमा पर हैं। भारतीय सीमा पर चीन की दादागिरी का शिकार भारत हो रहा है। अमेरिका वर्तमान स्थिति में भारत और पाकिस्तान को अपना मोहरा बनाना चाहता है। वैश्विक शक्तियों के चक्रव्यूह में भारत बुरी तरह से फंस गया है। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पंचशील के सिद्धांत और निर्गुट देश के रूप में भारत की जो साख बनाई थी, पिछले 10 वर्षों में भारत ने व्यापार को ध्यान में रखते हुए, एक ही मियान पर चार तलवारें रखने का जो जोखिम उठाया है, उसके दुष्परिणाम निकट भविष्य में सामने आ सकते हैं। कहने को भारत के रूस, अमेरिका, चीन, ईरान, इजरायल एवं नाटो देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते हैं। इसके बाद भी भारत पर कोई भी देश विश्वास करने की स्थिति में नहीं है।

अमेरिका इस लड़ाई में भारत को अपना मोहरा बनाना चाहता था, जिस तरह के हालात दुनिया की महा शक्तियों के बीच में बन गए हैं। ईरान के राष्ट्रपति की मौत, जिस समय और जिस तरह से हुई है, उसके बाद विश्व युद्ध की संभावनाएं बन गई हैं। कोई भी महाशक्ति एक कदम भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। चीन, रूस, यूक्रेन, उत्तर कोरिया इत्यादि देशों के शासको की मनोवृत्ति तनाशाह की तरह है। सभी का दबाव भारत के ऊपर पड़ रहा है। इस स्थिति से भारत कैसे निपट पाएगा, यह चिंता का विषय है।

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