रामस्वरूप मंत्री
ऐसी पुख्ता जानकारियां कर्इ अध्ययनों से आ चुकी हैं कि देश के कर्इ हिस्सों में धरती के नीचे का पानी पीने लायक नहीं रह गया है, इससे छुटकारे के लिए ही बोतलबंद पानी चलन में आया था। इसकी गुणवत्ता के खूब दावे किए गए, पर अब बताया जा रहा है कि यह भी मानव शरीर के लिए मुफीद नहीं है। ताजा रिपोटोर्ं के आधार पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने भारतीय खाध सुरक्षा और मानक प्रााधिकरण को दिल्ली में बोतलबंद पानी के संयंत्रों में शुद्धिकरण की स्थिति और उनके जलस्त्रोतों की जांच करने के लिए चिटठी लिखी है। साथ ही चिटठी में यह भी हवाला दिया है कि वह दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बेचे जा रहे बोतलबंद पानी में उपलब्ध रासयनिक तत्वों, जीवाणुओं और वीशाणुओं की जांच कर रिपोर्ट दे, यह पानी पीने के लायक है भी या नहीं ?
पानी जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पानी आमतौर पर एक प्राकृतिक संसाधन है जिस पर हम सभी का अधिकार है, लेकिन आजकल पानी का व्यवसायीकरण किया जा रहा है। हम जो डिब्बाबंद पानी पीते हैं वह न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए बल्कि हमारी मिट्टी के लिए भी हानिकारक है।डिब्बाबंद पानी हृदय रोग से लेकर मधुमेह तक कई बीमारियों का कारण बनता है।पानी की बोतल बनाने में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक एक प्रकार का पॉलीमर होता है। यह बोतल कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और क्लोराइड से बनी है। हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर पानी की बोतलें पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक से बनी होती हैं। बोतलबंद पानी में ‘फाथलेट्स’ और ‘बिसाफेनॉल-ए’ (बीपीए) नामक रसायन भी मिलाया जाता है, जो हृदय रोग या मधुमेह का कारण बन सकता है।
अब तक बोतलबंद पानी को पेयजल स्त्रोतों से सीधे पीने की तुलना में सेहत के लिए ज्यादा सुरक्षात्मक विकल्प माना जाता रहा था, किंतु नए अध्ययनों से पता चला है कि राजधानी दिल्ली में विभिन्न ब्राण्डों का जो बोतलबंद पानी बेचा जा रहा है, वह शरीर के लिए हानिकारक है। इसकी गुणवत्ता इसे शुद्ध करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे रसायनों से हो रही है। भारतीय अध्ययनों के अलावा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इस सिलसिले में जो अध्ययन किए हैं, उनसे भी साफ हुआ है कि नल के मुकाबले बोतलबंद पानी ज्यादा प्रदूषित और नुकसानदेह है। इस पानी में खतरनाक बैक्टीरिया इसलिए पनपे हैं, क्योंकि नदी और भूजल ही दूषित हो गये है। इन स्त्रोतों को प्रदूषणमुक्त करने के कोर्इ ठोस उपाय नहीं हो रहे हैं, बावजूद बोतलबंद पानी का कारोबार सालाना 10 हजार करोड़ से भी ज्यादा का हो गया है।
ऐसी पुख्ता जानकारियां कर्इ अध्ययनों से आ चुकी हैं कि देश के कर्इ हिस्सों में धरती के नीचे का पानी पीने लायक नहीं रह गया है, इससे छुटकारे के लिए ही बोतलबंद पानी चलन में आया था। इसकी गुणवत्ता के खूब दावे किए गए, पर अब बताया जा रहा है कि यह भी मानव शरीर के लिए मुफीद नहीं है। ताजा रिपोटोर्ं के आधार पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने भारतीय खाध सुरक्षा और मानक प्रााधिकरण को दिल्ली में बोतलबंद पानी के संयंत्रों में शुद्धिकरण की स्थिति और उनके जलस्त्रोतों की जांच करने के लिए चिटठी लिखी है। साथ ही चिटठी में यह भी हवाला दिया है कि वह दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बेचे जा रहे बोतलबंद पानी में उपलब्ध रासयनिक तत्वों, जीवाणुओं और वीशाणुओं की जांच कर रिपोर्ट दे, यह पानी पीने के लायक है भी या नहीं ?
हालांकि अब इस तरह के इतने अध्ययन आ चुके है कि नर्इ जांच की जरुरत ही नहीं है। पंजाब के भंटिडा जिले में हुए एक अध्ययन से जानकारी सामने आर्इ थी कि भूजल और मिटटी में बड़ी मात्रा में जहरीले रसायन घुले हुए हैं। इसी पानी को पेयजल के रुप में इस्तेमाल करने की वजह से इस जिले के लोग दिल और फेफड़ों से संबंधित गंभीर बीमारियों की गिरफत में आ रहे हैं। इसके पहले उत्तर प्रदेश और बिहार के गंगा के तटवर्ती इलाकों में भूजल के विशाक्त होने के प्रमाण सामने आए थे। नरौरा परमाणु संयंत्र के अवशेष इसी गंगा में डाले जाकर इसके जल को जहरीला बनाया जा रहा है। कानपुर के 400 से भी ज्यादा कारखानों का मल गंगा में बहुत पहले से प्रवाहित किया जा रहा है। गंगा से भी बददतर हाल में यमुना है। इसीलिए इसे एक मरी हुर्इ नदी कहा जाने लगा है। यमुनोत्री से लेकर प्रयाग के संगम स्थल तक यह नदी करीब 1400 किमी का रास्ता नापती है। इस धार्मिक नदी की यह लंबी यात्रा एक गंदे नाले में बदल चुकी है। इसे प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए इस पर अभी तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुकें हैं, लेकिन बदहाली जस की तस है। गंदे नालों के परनाले और कचरों डंफर इसमें बहाने का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। यमुना में 70 फीसदी कचरा दिल्लीवासियों का होता है, रही-सही कसर हरियाणा और उत्तरप्रदेश पूरी कर देते हैं। गंदे पानी को शुद्ध करने के लगाए गए संयंत्र अपनी क्षमता का 50 प्रतिशत भी काम नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि मथुरा के आसपास के इलाकों में यमुना के दूषित पानी के कारण चर्मरोग, त्वचा कैंसर जैसी बीमारियां लोगों के जीवन में पैठ बना रही हैं। पशु और फसलें भी अछूते नहीं रह गए हैं। जांचों से पता चला है कि इस इलाके में उपजने वाली फसलें और पशुचारा जहरीले हैं।
उत्तरी बिहार की फल्गू नदी के बारे में ताजा अध्ययनों से पता चला है कि इस नदी के पानी को पीने मतलब है, मौत को घर बैठे दावत देना। जबकि सनातन हिन्दू धर्म में इस नदी की महत्ता इतनी है कि गया में इसके तट पर मृतकों के पिंडदान करने से उनकी आत्माएं भटकती नहीं है। उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है। भगवान राम ने अपने पिता दशरथ की मुक्ति के लिए यहीं पिंडदान किया था। महाभारत युद्ध में मारे गए अपने वंशजों का पिंडदान युधिष्ठिर ने यहीं किया था। वायु पुराण के अनुसार फल्गू नदी भगवान विष्णु का अवतार है। इस नदीं के साथ यह दंतकथा भी जुड़ी है कि एक समय यह दूध की नदी थी। लेकिन अब यह बीमारियों की नदी है।
मध्यप्रदेश की जीवन रेखा मानी जानी वाली नर्मदा भी प्रदूषित नदियों की श्रेणी में आ गर्इ है। जबकि इस नदी को दुनिया की प्राचीनतम नदी घाटी सभ्यताओं के विकास में प्रमुख माना जाता है। लेकिन औधोगिक विकास की विडंबना के चलते नर्मदा घाटी परियोजनाओं के अंतर्गत इस पर तीन हजार से भी ज्यादा छोटे-बड़े बांध बनाए जा रहे हैं। तय है, पानी का बड़ी मात्रा में दोहन नर्मदा को ही मौत के घाट उतार देगा। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में कहा गया है, इसके उदगम स्थल अमरकंटक में भी यह प्रदूषित हो चुकी है। तमाम तटवर्ती शहरों के मानव मल-मूत्र और औधोगिक कचरा इसी में बहाने के कारण भी यह नदी तिल-तिल मरना शुरु हो गर्इ है। भारतीय प्राणीषास्त्र सर्वेक्षण द्वारा किए एक अध्ययन में बताया गया है कि यदि यही सिलसिला जारी रहा तो इस नदी की जैव विविधता 25 साल के भीतर पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इस नदी को सबसे ज्यादा नुकसान वे कोयला विधुत संयंत्र पंहुचा रहे हैं जो अमरकंटक से लेकर खंबात की खाड़ी तक लगे हैं।
इन नदियों के पानी की जांच से पता चला है कि इनके जल में कैलिशयम, मैगिन्नीशियम, क्लोराइड, डिजाल्वड आक्सीजन, पीएच, बीओडी, अल्केलिनिटि जैसे तत्वों की मात्रा जरुरत से ज्यादा बढ़ रही है। ऐसा रासयनिक उर्वरकों, कीटनाशकों का खेती में अंधाधुंध इस्तेमाल और कारखानों से निकलने वाले जहरीले पानी व कचरे का उचित निपटान न किए जाने के कारण हो रहा है। बीते कुछ सालों में जीएम बीजों का इस्तेमाल बढ़ने से भी रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की जरुरत बढ़ी है। यही रसायन मिटटी और पानी में घुलकर बोतलबंद पानी का हिस्सा बन रहा है, जो शुद्धता के बहाने लोगों की सेहत बिगाड़ने का काम कर रहा है। कीटनाशक के रुप में उपयोग किए जाने वाले एंडोसल्फान ने भी बड़ी मात्रा में भूजल को दूषित किया है। केरल के कसारगोड जिले में अब तक एक जहार लोगों की जानें जा चुकी हैं और 10 हजार से ज्यादा लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में हैं।
हमारे यहां जितने भी बोतलबंद पानी के संयंत्र हैं, वे इन्हीं नदियों या दूषित पानी को शुद्ध करने के लिए अनेक रसायनों का उपयोग करते हैं। इस प्रकि्रया में इस प्रदूषित जल में ऐसे रसायन और विलय हो जाते हैं, जो मानव शरीर में पहुंचकर उसे हानि पहुंचाते हैं। इन संयंत्रों में तमाम अनियमितिताएं पार्इ गर्इ हैं। अनेक बिना लायसेंस के पेयजल बेच रही हैं, तो अनेक पास भारतीय मानक संस्था का प्रमाणीकरण नहीं है। जाहिर है, इनकी गुणवत्ता संदिग्ध है। हमने जिन देशों से औधोगीकरण का नमूना अपनाया है,उन देशों से यह नहीं सीखा कि उन्होंने अपने प्राकृतिक संसाधनों को कैसे बचाया। यही कारण है कि वहां की नदियां तालाब, बांध हमारी तुलना में ज्यादा शुद्ध और निर्मल हैं। स्वच्छ पेयजल देश के नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है। लेकिन इसे साकार रुप देने की बजाय केंद्र व राज्य सरकारें जल को लाभकारी उत्पाद मानकर चल रही हैं। यह स्थिति देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
जमीन पर पीने के पानी की क्या स्थिति है?
यहां तक कि हम बोतल से जो पानी पीते हैं, उसमें हमारे शरीर में माइक्रोप्लास्टिक होता है। ‘Frontiers.org’ के एक शोध के मुताबिक, धूप के संपर्क में आने पर बोतलबंद पानी सेहत के लिए ज्यादा हानिकारक होता है।
जब भी ये पानी की बोतलें धूप के संपर्क में आती हैं या लंबे समय तक इनमें रखी जाती हैं, तो ये बोतलें पानी में माइक्रोप्लास्टिक छोड़ना शुरू कर देती हैं और इस पानी को पीते समय यह शरीर के हार्मोन संतुलन प्रणाली को बिगाड़ देती है। अगर इस पानी को लंबे समय तक पिया जाए तो यह हार्मोन में बदलाव, जल्दी यौवन, बांझपन और लीवर को नुकसान पहुंचाने वाली कई बीमारियों का कारण बन सकता है।
दूसरी ओर, प्लास्टिक की बोतलें सालों तक सड़ती नहीं हैं इसलिए मिट्टी के लिए हानिकारक हैं। प्लास्टिक की बोतलों से हमारी धरती गर्म हो रही है। 1 लीटर पानी की बोतल बनाने में 1.6 लीटर बर्बाद हो जाता है।न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर 1 मिनट में 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जा रही हैं. 2009 के बाद से अब तक इतनी प्लास्टिक की बोतलें बिक चुकी हैं कि अगर इनमें मिला दिया जाए तो मुंबई या न्यूयॉर्क के मैनहट्टन द्वीप पर एक लंबा टावर बन जाएगा।
‘यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल’ की एक रिपोर्ट की बात करें तो साल 2021 में पूरी दुनिया में 480 अरब प्लास्टिक की बोतलें बिकी थीं। साथ ही हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में फेंका जाता है।2021 तक पैकेज्ड वाटर का व्यापार 24 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। तो एक रिपोर्ट में सामने आया कि लोग नल के पानी की जगह बोतलबंद पानी ज्यादा पीते हैं। दूसरी ओर जहां कई कंपनियों ने बीपीए रसायनों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है, वहीं कई कंपनियां अब भी इनका इस्तेमाल कर रही हैं। 2015 में, कई जर्मन शोधकर्ताओं ने बोतलबंद पानी का एक अध्ययन किया, जिसमें बोतलबंद पानी में 25,000 हानिकारक रसायन पाए गए।
बोतलबंद पानी के बारे में डॉक्टर क्या कहते हैं
तो जिससे बोतलबंद पानी की मांग बढ़ गई है, उस दूषित पानी को पीने से हमें क्या नुकसान।साफ पानी के अभाव में लोग बोतलबंद पानी ज्यादा पी रहे हैं। अब तो शहरों और गांवों में भी बोतलबंद पानी पर निर्भरता बढ़ गई है। दूषित पानी के कारण हर 10 सेकेंड में 1 व्यक्ति की मौत हो रही है।‘द वर्ल्ड काउंट्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक, पानी से जुड़ी बीमारियों की वजह से हर साल करीब 35 लाख लोग अपनी जान गंवाते हैं। इनमें करीब 2.2 करोड़ बच्चे हैं। दुनिया के आधे से ज्यादा अस्पताल पानी से संबंधित बीमारियों के मरीजों को भर्ती करते हैं।
दूषित पानी से सड़क हादसों जितनी मौतें यह दुनिया भर में एक ही साल में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या थी।साफ पानी की कमी से हैजा, डायरिया, हेपेटाइटिस ए, टाइफाइड, पोलियो और डेंगू जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है जो जानलेवा साबित होते हैं। ये रोग बच्चों में अधिक खतरनाक रूप धारण कर लेते हैं।