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मानवता विरोधी कथित धर्म ग्रंथों का बहिष्कार करो !

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    मुनेश त्यागी

पिछले कुछ समय से समाज में जातिवाद और वर्णवाद को बढ़ाने की और कायम रखने की मुहिम जारी है। इस मुहिम में जातिवादी और वर्णवादी मानसिकता और सोच के लोग, बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि लोग इन संविधान विरोधी,जनविरोधी और मानवविरोधी मान्यताओं और सोच को आज भी पाले हुए हैं, इनमें विश्वास कर रहे हैं और इन्हें बरकरार रखना चाहते हैं।

            साथियों ! जातिवाद और वर्णवादी सोच और मानसिकता के मुख्य स्रोत हमारे धर्म ग्रंथ हैं जैसे मनुस्मृति, गीता, रामचरितमानस आदि। अगर इन ग्रंथों को खोलकर पढ़ा जाए तो इनमें काफी कुछ जनविरोधी और मानव विरोधी बातें  मिलेंगीं। अगर हम तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस को पढ़ते हैं तो उसमें अन्य बातों के अलावा यह साफ-साफ और स्पष्ट तौर पर लिखा है कि

‘ ढोल गंवार शुद्र पशु नारी 

ये सब ताड़न के अधिकारी ‘

क दूसरी चौपाई में लिखा है -‘ पूजिए विप्र ज्ञान गुण हीना…!

 पूजिए ना शूद्र, गुण ज्ञान प्रवीणा..! ‘

        इनके लेखक तुलसीदास हैं और उन्होंने इनका वर्णन राम चरित्र मानस में किया है। हालांकि उन्होंने इसी के साथ साथ यह भी कहा और लिखा है कि –

‘ जासू राज प्रिय प्रजा दुखारी,

सो नृप अवस नरक अधिकारी..! ‘

             मगर हमारे समाज में हजारों वर्षों से फैली जनविरोधी और मानव विरोधी सोच के लोगों ने जनविरोधी और अपनी प्रजा को दु :ख देने वाले राजा और इस प्रकार उसके नर्क में जाने की बात को आगे नहीं बढ़ाया। मगर उन्होंने तुलसीदास द्वारा लिखित उपरोक्त दोनों बातों को आगे बढ़ाया है। वे हजारों साल से यही काम कर रहे हैं। वे हजारों साल से कायम, इस सोच को, इस जनविरोधी सोच को,इस मानव विरोधी सोच और मानसिकता को आगे बढ़ाना चाहते हैं, इसे आज भी कायम रखना चाहते हैं,ताकि वे छल कपट, हरामखोरी और मक्कारी करके अपना उल्लू सीधा कर सकें और हजारों वर्षों से जारी शोषण, जुल्म,अन्याय,भेदभाव और गैर बराबरी के विचार को और मानसिकता को कायम रख सकें।

                 पिछले कुछ सालों से इन मानव विरोधी विचारों को और आगे बढ़ाने वाली मानसिकता का जोर – शोर से प्रचार – प्रसार हो रहा है ! इन जन विरोधी ताकतों ने समता, समानता,न्याय,भाई-चारा,सामाजिक सौहार्द, जियो और जीने दो की मानसिकता और विचारधारा को ताक पर रख दिया है ! बस वे जातिवाद,वर्णवाद और शोषण जुल्म की संकीर्ण और आमजनविरोधी सामाजिक मान्यताओं को बरकरार रखना चाहते हैं !

               आज हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि ये ताकतें भारत के संविधान में लिखित सारी मानवीय सोच को नेस्तनाबूद कर देना चाहती हैं, उसे जनता की दृष्टि से ओझल कर देना चाहती हैं और अगर हकीकत में देखा जाए तो ये ताकतें अपने मिशन में कामयाब हुई हैं। इन्होंने लोगों को और ज्यादा जातिवादी और वर्णवादी बनाया है।  इन्होंने लोगों को और ज्यादा धर्मांध,अंधविश्वासी, पाखंडी और अज्ञानी बनाया है। जातिवादी और धार्मिक वैमनस्यता वाली ताकतें सब मिलकर, जनता को संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों से कोसों दूर ले गई हैं ! 

              इसी के साथ साथ देखिए कि गीता में तथाकथित भगवान कृष्ण कहता है कि ब्राह्मण मेरे मुख से, क्षत्रिय मेरी बाहों से, वैश्य मेरी जंघाओं से और शूद्र मेरे पैरों से पैदा हुए हैं। अब आप देखिए कि शूद्र जिनमें भारत के तमाम मजदूर,किसान,अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति और तमाम ओबीसी के लोग शामिल हैं जो भारत में एक अरब से ज्यादा की संख्या में हैं, वे सब लोग तथाकथित भगवान कृष्ण के पैरों से पैदा हुए हैं ! मनुस्मृति में भी ठीक है ऐसा ही लिखा हुआ है कि मनुष्य की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण की, भुजाओं से क्षत्रियों की,जंघाओं से वैश्यों की और पैरों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई है ! मगर ज्ञान विज्ञान की जानकारी होने के बाद यह बात अब सभी बच्चों को भी खूब ठीक से जानकारी है कि मनुष्य की उत्पत्ति वैसे हो ही नहीं हो सकती,जैसे हमारे तथाकथित भगवान बता रहे हैं या मनुस्मृति में मनु नायक विकृत सोच के कथित ऋषि ने लिखा है ! 

                यहां पर यह बिल्कुल साफ तरीके से सोचने और समझने वाली बात और हकीकत है कि पैरों को हिकारत की नजर से,अपमान की दृष्टि से,अनादर की दृष्टि से देखा गया है और आज भी देखा जा रहा है, इसीलिए भारतीय समाज में इन मेहनतकश किसानों,मजदूरों,एससी,एसटी  और ओबीसी के करोड़ों लोगों को हिकारत की दृष्टि से देखने के लिए उनकी उत्पत्ति को पैरों से होना बता दिया गया है ! उनके लिए समाज में कोई सम्मान और आदर ही नहीं है,हालांकि नासमझ और मक्कार लोग यह नहीं सोच समझ रहे हैं कि कोई भी आदमी मुंह,बाहों,पैरों या जांघों से पैदा हो ही नहीं सकता ! आदमी तो केवल मां के गर्भ में ही पालित-पोषित होकर केवल उनके योनि मार्ग से ही इस दुनिया में पैदा होता है।

                एक और ऐतिहासिक सच्चाई देखिए कि हजारों – लाखों साल से इस दुनिया में प्राकृतिक संसाधनों को छोड़कर,जो भी दिखाई देता है,जो कुछ भी सुनाई देता है,वह सब किसानों,मजदूरों, मेहनतकशों, टेक्नीशियनों, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं द्वारा ही अविष्कार किया जाता है, जिनमें युवा, पुरूष और महिलाएं भी शामिल हैं, यानी मेहनतकश वर्ग के “श्रम और मेहनत ” का परिणाम है। इसमें लुटेरे वर्ग और शोषण व अन्याय करने वाले वर्ग के लोगों और कथित भगवानों,अल्लाह,गॉड और देवी – देवताओं का कोई भी योगदान नहीं होता है। यह सबकुछ मनुष्य की मेहनत का फल और योगदान है।

           यहां पर एक हकीकत और देखिए की जिस औरत को तुलसीदास जैसे लोग ताड़न का अधिकारी बताया जा रहा है, वह इस पूरी मानवता की एकमात्र जननी है। इस पूरे संसार को,पूरी दुनिया के लोगों को, औरतों ने ही पैदा किया है,उन्होंने ही जन्म दिया है। अगर औरतें ना होतीं तो यह पूरी दुनिया बियाबान जंगल ही होती, इसलिए औरतों को गाली देना,उनकी तौहीन करना,उनका अपमान करना,उनका निरादर करना,किसी भी दशा में स्वीकार नहीं किया जा सकता। और एक हकीकत यह भी है और अपनी एक रचना, जिस पर हम जोर देकर कहेंगे कि –

‘बच्चों से मानव वंश चले, बच्चे हैं घर की शान, 

पर जिस घर में बेटी नहीं, वह घर हैं रेगिस्तान ! ‘

           और कमाल की बात देखिए, यही बात तुलसीदास रामचरितमानस में कह रहे हैं कि ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी, सबको ताडन के अधिकारी बता रहे हैं, सबको निरादर और अपमान के अधिकारी बता रहे हैं। आधुनिक भारत में यह सब कैसे माना और स्वीकार किया सकता है ? भारत के संविधान के रहते यह सब जन विरोधी है, मानव विरोधी है और इसे किसी भी अवस्था में स्वीकार नहीं किया जा सकता !

           इसलिए वर्तमान हालात में यह एकदम जरूरी हो गया है कि ऐसी किसान, मजदूर, दलित विरोधी, महिला और शूद्र विरोधी मानसिकता को एकदम तिलांजलि दे दी जाए। ऐसी मनुवादी, धर्मग्रंथों वाली और गीता वाली सोच को, तुरंत विदाई दे दी जाए और समाज में समता,समानता और भाईचारे के विचारों और भावनाओं को, सोच और मानसिकता को पुष्पित और पल्लवित किया जाए और ऐसे मानव विरोधी तमाम धर्म ग्रंथों मानसिकता और सोच का अविलंब बहिष्कार किया जाए और “वसुधैव कुटुंबकम” और “विश्व बंधुत्व “और “जय हिंद ” और “इंकलाब जिंदाबाद ” की भारतीय संस्कृति का प्रचार – प्रसार किया जाए।

          मुनेश त्यागी,जनकवि और सीनियर ऐडवोकेट,मेरठ कोर्ट,मेरठ, संपर्क- 98371 51641

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