सुधा सिंह
कोईरी एक जाति होती है। तरकारी ( तरोई – भिंडी -बैगन – टमाटर – नेनुआ …) की खेती करना इनका मुख्य पेशा था। आज भी है।
धान – गेहूं ,चना – अरहर , मकई – ज्वार सब लोग उगा लेते हैं , थोड़ा बहुत भरीत – आंगन में खाने भर का सब्जी सब कोई उगा लेता है ,लेकिन कमर्शियली सब्जी उगाने का काम कोईरी ही करते हैं।
हमारे गांव के पास एक गांव है ,कोईरी बहुल। वहां से कई सब्जी लोकल मार्केट में आती है। सप्ताहिक हाट के दिन बोरा पर सब्जी बेचने वाले 98 % कोईरी होंते हैं। बस 1- 2 % दूसरी जातियां होती हैं।
दुनिया – जहान इनको कोईरी के नाम से जानता है। लेकिन अब वे खुद को कुशवाहा कहने लगे हैं। कोईरी कहना खुद उन्हें अपमानजनक लगता है। ब्राह्मणवाद ने उन्हें इतना तो बता दिया है खेती करना – सब्जी उगाना नीच काम है।
अगर कोई नीच काम करता रहे तो ,उसे लोग सम्मान कैसे देंगे। इस लिए अपनी नीचता छिपाने के लिए , वह इतना बड़ा आदमी ढूंढ़ लाए हैं, कि कोई उनसे बड़ा न हो। उसके साथ अपना कुल और वंश जोड़कर बड़ा होने का सुख मिल जाता है।
इसलिए वे राम के पुत्र कुश के वंशज होते हैं तो उन्हें इस बात का गुमान होता है कि हम सीधे भगवान राम के वंशज है और एक समय था सब सारी जाति हमारे अधीन थी और हम राजा थे।
पब्लिक हमें भगवान मानती थी। आज कुछ दुर्दिन के दिन आ गए हैं ,माना हम सब्जी की खेती करते हैं , लेकिन हमारा वंश थोड़े न बदल जाएगा। भगवान का रक्त हमारे अंदर प्रवाहित हो रहा है।
वैसे यह केवल कोईरी तक ही सीमित नहीं हैं। इस तरह का गर्व फील करने का दिमागी रोग हर जाति में घुस गई है। इससे समाज में जो वर्तमान अवस्थिति है , उसके कारण जो मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न है , उत्पीड़न का जो दंश है ,वह कम हो जाता है।
हां ,कुछ लोग मिडिल क्लास या अपर मिडिल क्लास बन गए हैं। उनके पास आज हर भौतिक सुख – सुविधा है। वह अच्छे स्कूल में जा सकते हैं , अच्छी शिक्षा ले सकते हैं और किसी के साथ तर्क – वितर्क कर सकते हैं । उनको कोई रोक नहीं है।
लेकिन जो गरीब है , जीवन के हर मोड़ पर संघर्ष कर रहा ,उसे तो आप कोईरी भाई की जगह , कुशवाहा जी या मौर्या जी कह दीजिए ,उसका छाती दूना हो जाता है। यह अस्मिता उसके लिए पेन – किलर का काम करती है। पेन – किलर आप लेना छोड़ दे तो दर्द और भयानक फील होता है।
लेकिनआप ठेल – ठाल कर अपनी जाति के मुख्यमंत्री ,मंत्री बना दीजिए ,लेकिन सिस्टम तो वहीं काम कर रहा है जो सदियों से करता आ रहा है।
आज कुणाल किशोर ,एक छोटे से हनुमान मंदिर को विशाल और भव्य बना चुके हैं। यह रातों रात संभव नहीं हुआ। इसमें उनके ब्यूरेक्रेट , समाज , हैसियत का योगदान है। किशोर कुणाल की यह समाजिक पूंजी है और सांस्कृतिक भी। वह आज चाहे तो उसी तरह का दस मंदिर खड़ा कर दे।
समाज और समय उसका साथ देगा। अगर पटना के सारे कोईरी भी मिल जाए तो एक बौद्ध विहार नहीं खड़ा कर सकते।
गुमान यह है कि हम रघुलकुल वंशज भगवान श्री राम के नाति – पोता हैं ।बुद्ध के भतीजे हैं। एक बार मान लिया जाए कि आप हैं , जबकि इसका कोई प्रमाण नहीं कि आज के कोईरी ही भूतकाल के शाक्य थे।
कमाल की बात यह है कि दुसाध की तरह कोईरी का भी इन ब्राह्मण और बौद्ध ग्रंथों में चर्चा ही नहीं है। भगवान राम ने कभी कहा कि वह कोईरी हैं , न बुद्ध ने कहा कि वह कोईरी हैं ? जो ग्रंथ आपका नाम नहीं जानता ,आपकी जाति के पहचानने से इंकार कर देता है और जो आपके ऐतिहासिक उपस्थित को नकार देता है ,उसी ग्रंथ और ऐतिहासिक पुरूष के साथ आप अपना अनुवांशिक नाता जोड़ लेते हैं , यह अजूबा है। और बिना बात का अजीब हरकत करना पागलपन ही है।
खैर ,आप भगवान या महात्मा के वंशज बन गए तो आप चाहते क्या हैं ? आपको आपके घर में राजा मान लिया जाए ?
आपके मुहल्ले में सब कोई आपको राजा माने ? गांव के सब लोग आपसे आकर कहें कि आप ही राजा हैं या पंचायत का मुखिया आपके दरवाजे पर आकर कहें – भगवन ,आप ही हमारे माई – बाप हैं ,आगे क्या करना है यह आप बताइए। आखिर आपा राजा का वंशज बन करना क्या चाहते हैं?
भारत में तो राजतंत्र है ही नहीं आपको राजा मानेगा कौन। संविधान तो सबको बराबरी का हक दिये बैठे हैं , किसी के सामने आप छाती फुलाकर कहिएगा कि हम बड़का हैं वहीं वह आपकी छाती में सूई चुभा कर हवा निकाल देगा।
चाहिए यह हर जाति के लिए सलाह है वह अलोकतांत्रिक ,असमाजिक ,राजतांत्रिक बनने के बजाए , लोकतांत्रिक , व्यक्ति की गरिमा विकसित करने वाले सोच अपनाएं।
उसके लिए इतिहास की जड़ खोदे। फल से लदे पेड़ पर सब कोई झटहा चला देता है। अपना खुद का पौधा लगा , सींच ,बड़ा कर फल खाने का कुछ और मजा है।
ब्राह्मणवाद फल से लदराया हुआ पेड़ है। ब्राह्मण उसका पहरेदार और होल – सोल ,ऑथोरोटिरियन। वह किसी को कुछ नहीं देगा। देगा उसी को जो उसकी पहरेदारी और चाकरी कर सके।
आज हर जाति अस्मिता के भंवर जाल में फंसी है। हर धर्म में, हर जाति में कटेगरियां है. नाम अलग हो, लेकिन ऊंच-नीच की श्रेणियां हैं. सर्वोच्च श्रेणी ब्रह्मण ही है.