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भारत की 4 सबसे बड़ी बीफ निर्यातक कम्पनियो के मालिक हैं ब्राह्मण ?

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देश के सबसे बड़े बूचड़खाने के मालिक हिंदू, साल में 650 करोड़ रुपये का कारोबार

मोदी सरकार एक और चारित्रिक दोहरेपन की शिकार है। एक ओर यह बीफ के उत्पादन एवं व्यापार को नियन्त्रित करने के लिए एक नये केन्द्रीय कानून बनाने की बात कर रही है और दूसरी ओर बीफ मिश्रित तरह-तरह के खाद्य पदार्थों को बनाने और बेचने वाली केएफसी, मेकडोनाल्ड, सब वे एवं डोमिनो जैसी विदेशी कम्पनियों को धड़ल्ले से लाइसेन्स दे रही है। ये कम्पनियां हर रोज लाखों जानवरों का वध कराती हैं और अपने भारतीय ग्राहकों (जिनमें ज्यादातर हिन्दू होते हैं) को लजीज बीफ व्यंजन परोस कर करोड़ों रुपए का मुनाफा कमाती हैं।

हमारे देश में बीफ (गाय एवं अन्य पशुओं के मांस) का उत्पादन एवं व्यापार काफी अरसे से होता आ रहा है। बीफ भारतवासियों के एक बड़े हिस्से के भोज्य सामग्री में शामिल रहा है। बीफ उत्पादन एवं उससे जुड़े हुए उद्योगों में हमारे देश की अच्छी खासी आबादी, जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक हिन्दू हैं, को रोजगार मिला हुआ है। यूपीए की मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान बीफ के उत्पादन, उपभोग एवं व्यापार को काफी प्रोत्साहित किया गया, जिसे ‘गुलाबी क्रान्ति’ (Pink Revolution) के रूप में प्रचारित भी किया गया। फलस्वरूप, बीफ के निर्यात में भारत विश्व में दूसरे नम्बर (पहले नम्बर पर ब्राजील) पर आ गया। इसके बाद भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद्, आर.एस.एस. एवं हिन्दुत्व की अन्य ताकतों ने मनमोहन सरकार को निशाने पर लेना शुरू किया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस नीत संप्रग सरकार गोहत्या को बढ़ावा दे रही है। नरेन्द्र मोदी ने भी 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान मनमोहन सरकार की ‘गुलाबी क्रान्ति’ और बीफ निर्यात का विरोध किया।

लेकिन जब मई 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने केन्द्र की सत्ता संभाली तो उनके तेवर बदल गए। मोदी सरकार ने भी बीफ के उत्पादन, उपभोग एवं व्यापार पर काफी जोर दिया। इसने अपने पहले बजट में नये बूचड़खाने बनाने एवं पुरानों के आधुनिकीकरण करने के लिए 15 करोड़ रुपए की सब्सिडी देने का प्रावधान किया। नजीजतन, इस सरकार के मात्र एक साल के कार्यकाल (2014-15) के दौरान भारत ने बीफ निर्यात में ब्राजील को पीछे छोड़ दिया और वह नम्बर वन हो गया। हाल में जारी की गई अमेरिकी कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 2015 में कुल 24 लाख टन बीफ का निर्यात किया (जो वैश्विक बीफ निर्यात का 58.7 प्रतिशत होता है), जबकि ब्राजील ने केवल 20 लाख टन का।

पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे देश की 6 सबसे बड़ी बीफ निर्यातक कम्पनियों में से 4 के मालिक ब्राह्मण हैं। इन कम्पनियों के नाम एवं पते

(1) अल-कबीर एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेड

मालिक-सतीश एवं अतुल सभरवाल, 92, जॉली मेकर्स, मुम्बई-400021;

(2) अरबियन एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेड
मालिक-सुनील कपूर, रूजन मेन्शन्स, मुम्बई-400001;

(3) एम. के. आर. फ्रोजेन फूड एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेड
मालिक-मदन एबॉट, एम. जी. रोड, जनपथ, नई दिल्ली-110001 और

(4) पी. एम. एल. इण्डस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड,

मालिक-ए. एस. बिन्द्रा, एस. सी. ओ. 62-63, सेक्टर-34, चण्डीगढ़-160022। एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेड

मालिक-सुनील कपूर, रूजन मेन्शन्स, मुम्बई-400001;

(3) एम. के. आर. फ्रोजेन फूड एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेड
मालिक-मदन एबॉट, एम. जी. रोड, जनपथ, नई दिल्ली-110001 और

(4) पी. एम. एल. इण्डस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड,
मालिक-ए. एस. बिन्द्रा, एस. सी. ओ. 62-63, सेक्टर-34, चण्डीगढ़-160022।

ज्ञातव्य है कि ब्राह्मणों के मालिकाने में कार्यरत मुस्लिम नामों वाली इन बीफ कम्पनियों को गोवध कराने एवं गोमांस का निर्यात करने में भी महारत है। सवाल उठता है कि क्या हिन्दुत्व ताकतें और मोदी सरकार इन कम्पनियों पर कार्रवाई करने की हिम्मत रखती हैं?

हालांकि, मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद गाय को संरक्षित और गोमांस को प्रतिबन्धित करने की मांग जोर-शोर से उठने लगी है। एक ओर महाराष्ट्र, हरियाणा एवं भाजपा शासित कुछ अन्य राज्यों की सरकारों ने गोहत्या प्रतिबन्ध को कड़ाई से लागू करना शुरू कर दिया है

मोदी सरकार एक और चारित्रिक दोहरेपन की शिकार है। एक ओर यह बीफ के उत्पादन एवं व्यापार को नियन्त्रित करने के लिए एक नये केन्द्रीय कानून बनाने की बात कर रही है और दूसरी ओर बीफ मिश्रित तरह-तरह के खाद्य पदार्थों को बनाने और बेचने वाली केएफसी, मेकडोनाल्ड, सब वे एवं डोमिनो जैसी विदेशी कम्पनियों को धड़ल्ले से लाइसेन्स दे रही है। ये कम्पनियां हर रोज लाखों जानवरों का वध कराती हैं और अपने भारतीय ग्राहकों (जिनमें ज्यादातर हिन्दू होते हैं) को लजीज बीफ व्यंजन परोस कर करोड़ों रुपए का मुनाफा कमाती हैं।

बूचड़खाना लगाने पर छूट क्यों?
मांस के इस व्यापार से भारत के पशुधन की क्या स्थिति हो गयी है, सरकारें इसकी अनदेखी करती रहीं हैं। दिल को दहला देने वाला एक तथ्य यह है कि आजादी के समय भारत में गोवंश (गाय, बछड़े-बछड़े, बैल और सांड) की जनसंख्या कुल मिलाकर 1 अरब 21 करोड़ के आस-पास थी। तब भारत की जनसंख्या 35 करोड़ बतायी जाती थी। अब हालत उलट गए हैं। भारत की जनसंख्या 1 अरब 21 करोड़ को पार कर गयी है और गोवंश बचा है सिर्फ 10 करोड़ के लगभग।

मोदी सरकार ने गोवंश के संरक्षण के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च कर राष्ट्रीय गोकुल मिशन भी बनाया है। पर गोमांस के उत्पादन,उसकी बिक्री और निर्यात को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने का जज्बा अभी दिखाई नहीं देता।

यहीं एक गंभीर सवाल खड़ा होता है। मानवीय जनसंख्या के अनुपात में गोवंश की जनसंख्या क्यों नहीं बढ़ी? और घटी भी तो इतनी तेजी से क्यों घटी? अगर मांस के नाम पर गोमांस का व्यापार नहीं हो रहा है तो क्या भारत में गोमांस की इतनी ज्यादा खपत है? फिर मांस की आड़ में गोमांस के निर्यात की अनदेखी क्यों की गयी और क्यों की जा रही है?

भारत के 29 में से 26 राज्यों में गोवध बंदी कानून लागू है। कुछ राज्यों में तो हर प्रकार और किसी भी आयु के गोवंश के वध पर न केवल पूर्ण प्रतिवंध है बल्कि उसे गंभीर और गैरजमानती अपराध की श्रेणी में भी रखा गया है। बड़ी बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में आजादी के पहले से ही गोवध बंदी लागू है। आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में कहीं सभी प्रकार के पशुओं के वध की अनुमति है तो कहीं आयु के आधार पर कुछ शर्तों के साथ गोवध की भी अनुमति है।

पर बड़ी बात यह है कि पूरे देश में मांस के उत्पादन पर रोक नहीं है। यहां तक कि मांस के उत्पादकों को भारत के आयकर अधिनियम की धारा 80-आई.वी.जेड(इलेवन-ए) के तहत आयकर में छूट प्राप्त है। मांस के परिवहन पर दी जाने वाली 23 प्रतिशत की छूट अगर पिछली सरकार ने समाप्त भी कर दी, तो भी मास उत्पादन और कत्लखाने की स्थापना में दी जाने वाली 13 प्रकार की छूट ज्यों की त्यों है। मांस के कारखाने में लगने वाले प्री-कूलिंग सिस्टम में 50 प्रतिशत, हीट ट्रीटमेंट प्लांट में 50 प्रतिशत, कोल्ड स्टोरेज में 100 प्रतिशत, पैकिंग में 30 प्रतिशत, इससे जुड़े साहित्य के प्रकाशन पर 40 प्रतिशत, कंसल्टेशन फीस में 50 प्रतिशत, कत्लखाने के आधुनिकीकरण पर 50 प्रतिशत, क र्मचारियों के प्रशिक्षण पर 50 प्रतिशत छूट दिए जाने के प्रावधान हैं।

अन्य कई मदों में भी कर में छूट या अनुदान दिया जाता है। इसका तर्क यह कि अवैध कत्लखानों पर रोक लगे, गैरकानूनी तरीके से पशुओं का कत्ल न हो, आधुनिक तकनीकी से पशुओं की कम से कम प्रताड़ना कर अधिक मात्रा में उच्च गुणवत्ता वाला मांस प्राप्त किया जा सके। जो अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप हो और निर्यात के लिए उपयुक्त हो। इसके लिए देश में 3616 बूचड़खाने हैं। इनमें से 38 अत्याधुनिक या कहें यांत्रिक कत्लखाने हैं। इससे अलावा 40 हजार से ज्यादा अवैध कत्लखाने हैं।

इस सबके बाद सबसे चौंकाने वाला एक तथ्य यह भी है कि नया कत्लखाना स्थापित करने पर देश के बाहर से मशीनरी और कल-पुर्जे आयात करने पर इम्पोर्ट ड्यूटी (आयात शुल्क) 10 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया। यह काम इसी सरकार के कार्यकाल में ही हुआ है। सन्देश साफ है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को मांस के व्यापार में लाभ दिखाई देता है। उसकी आड़ में गोमांस का निर्यात हो या पशुओं का अवैध कटान हो तो यह उसकी जिम्मेदारी नहीं। वह तो गृह मंत्रालय का काम है।

गृह मंत्रालय बांग्लादेश सीमा पर गायों की अवैध तस्करी रोकने में पूरी ताकत झोंक रहा है। इन दिनों बांग्लादेश सीमा से पशुओं की तस्करी लगभग रुक-सी गई है। इसका बांग्लादेश के गोमांस और चमड़ा व्यापार पर खासा असर पड़ा है। मोदी सरकार ने गोवंश के संरक्षण के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च कर राष्ट्रीय गोकुल मिशन भी बनाया है। पर गोमांस के उत्पादन,उसकी बिक्री और निर्यात को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने का जज्बा अभी दिखाई नहीं देता। अनिरुद्ध अनुज

देश के सबसे बड़े बूचड़खाने के मालिक हिंदू, साल में 650 करोड़ रुपये का कारोबार

उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों कुछ बूचड़खाने बंद कराए गए। सरकार का कहना है कि वो ‘अवैध’ रूप से चलाए जा रहे थे। बूचड़खानों का जिक्र आने पर आम लोग जहां मानते हैं कि इस पेशे में एक खास मजहब और वर्ग के लोग ही काम करते हैं। हकीकत क्या है? भारत के बड़े बीफ एक्सपोर्टर्स का संबंध हिंदू समुदाय से है। केंद्र सरकार के वाणिज्य मंत्रालय की संस्था कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (अपेडा) से मंजूर देश के 74 बूचड़खानों में 9 के मालिक हिंदू हैं।

देश के सबसे बड़े और आधुनिक बूचड़खाने के मालिक गैर-मुस्लिम हैं।

अल कबीर
देश का सबसे बड़ा बूचड़खाना तेलंगाना के मेडक जिले में रूद्रम गांव में है। तकरीबन 400 एकड़ में फैले इस बूचड़खाने के मालिक सतीश सब्बरवाल हैं। यह बूचड़खाना अल कबीर एक्स्पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड चलाता है।

मुंबई के नरीमन प्वॉइंट स्थित मुख्यालय से मध्य-पूर्व के कई देशों को बीफ निर्यात किया जाता है। यह भारत का सबसे बड़ा बीफ निर्यातक भी है और मध्य-पूर्व के कई शहरों में इसके दफ्तर हैं। अल कबीर के दफ्तर दुबई, अबू धाबी, कुवैत, जेद्दा, दम्मम, मदीना, रियाद, खरमिश, सित्रा, मस्कट और दोहा में हैं।

दुबई दफ्तर से फोन पर बातचीत में अल कबीर मध्य पूर्व के चेयरमैन सुरेश सब्बरवाल ने बीबीसी से कहा, “धर्म और व्यवसाय दो बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं और दोनों को एक दूसरे से मिला कर नहीं देखा जाना चाहिए। कोई हिंदू बीफ व्यवसाय में रहे या मुसलमान ब्याज पर पैसे देने के व्यवसाय में रहे तो क्या हर्ज़ है?” अल कबीर ने बीते साल लगभग 650 करोड़ रुपये का कुल व्यवसाय किया था।

अरेबियन एक्सपोर्ट्स और एमकेआर एक्सपोर्ट्स

India's Top Beef Exporter statement over business

अरेबियन एक्सपोर्ट्स

अरेबियन एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लमिटेड के मालिक सुनील कपूर हैं। इसका मुख्यालय मुंबई के रशियन मैनशन्स में है। कंपनी बीफ के अलावा भेड़ के मांस का भी निर्यात करती है। इसके निदेशक मंडल में विरनत नागनाथ कुडमुले, विकास मारुति शिंदे और अशोक नारंग हैं।

एमकेआर एक्सपोर्ट्स
एमकेआर फ्रोजन फूड एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक मदन एबट हैं।  कंपनी का मुख्यालय दिल्ली में है। एबट कोल्ड स्टोरेजेज प्राइवेट लिमिटेड का बूचड़खाना पंजाब के मोहाली जिले के समगौली गांव में है। इसके निदेशक सनी एबट हैं।

अल नूर एक्सपोर्ट्स और एओवी एक्सपोर्ट्स

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अल नूर एक्सपोर्ट्स

अल नूर एक्सपोर्ट्स के मालिक सुनील सूद हैं। इस कंपनी का दफ्तर दिल्ली में हैय। लेकिन इसका बूचड़खाना और मांस प्रसंस्करण संयंत्र उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के शेरनगर गांव में है। इसके अलावा मेरठ और मुबई में भी इसके संयंत्र हैं। इसके दूसरे पार्टनर अजय सूद हैं। इस कंपनी की स्थापना 1992 में हुई और यह 35 देशों को बीफ निर्यात करती है।

एओवी एक्सपोर्ट्स

एओवी एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड का बूचड़खाना उत्तर प्रदेश के उन्नाव में है। इसका मांस प्रसंस्करण संयंत्र भी है। इसके निदेशक ओपी अरोड़ा हैं। यह कंपनी साल 2001 से काम कर रही है। यह मुख्य रूप से बीफ निर्यात करती है। कंपनी का मुख्यालय नोएडा में है। अभिषेक अरोड़ा एओवी एग्रो फूड्स के निदेशक हैं। इस कंपनी का संयंत्र मेवात के नूह में है।

स्टैंडर्ड फ्रोजन फूड्स एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड

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स्टैंडर्ड फ्रोजन फूड्स एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड

इसके प्रबंध निदेशक कमल वर्मा हैं। इस कंपनी का बूचड़खाना और सयंत्र उत्तर प्रदेश के उन्नाव के चांदपुर गांव में है। इसका दफ्तर हापुड़ के शिवपुरी में है।

पोन्ने प्रोडक्ट्सएक्सपोर्ट्स

पोन्ने प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट्स के निदेशक एस सास्ति कुमार हैं। यह कंपनी बीफ के अलावा मुर्गी के अंडे और मांस के व्यवसाय में भी है। कपंनी का संयंत्र तमिलनाडु के नमक्काल में परमति रोड पर है। 

अश्विनी एग्रो एक्सपोर्ट्स

अश्विनी एग्रो एक्सपोर्ट्स का बूचड़खाना तमिलनाडु के गांधीनगर में है। कंपनी के निदेशक के राजेंद्रन धर्म को व्यवसाय से बिल्कुल अलग रखते हैं। वे कहते हैं, “धर्म निहायत ही निजी चीज है और इसका व्यवसाय से कोई ताल्लुक नहीं होना चाहिए.” राजेंद्रन ने इसके साथ यह जरूर माना कि उन्हें कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कई बार ‘स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें परेशान’ किया है। 

महाराष्ट्र फूड्स प्रोसेसिंग

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महाराष्ट्र फूड्स प्रोसेसिंग

महाराष्ट्र फूड्स प्रोसेसिंग एंड कोल्ड स्टोरेज के पार्टनर सन्नी खट्टर का भी यही मानना है कि धर्म और धंधा अलग अलग चीजें हैं और दोनों को मिलाना गलत है। वो कहते हैं, “मैं हिंदू हूं और बीफ व्यवसाय में हूं तो क्या हो गया? किसी हिंदू के इस व्यवसाय में होने में कोई बुराई नहीं है। मैं यह व्यवसाय कर कोई बुरा हिंदू नहीं बन गया।” इस कंपनी का बूचड़खाना महाराष्ट्र के सतारा जिले के फलटन में है। इसके अलावा हिंदुओं की ऐसी कई कंपनियां हैं, जो सिर्फ बीफ निर्यात के क्षेत्र में हैं। उनका बूचड़खाना नहीं है, पर वे मांस प्रसंस्करण, पैकेजिंग कर निर्यात करते हैं। 

कनक ट्रेडर्स ऐसी ही एक कंपनी है। इसके प्रोप्राइटर राजेश स्वामी ने कहा, “इस व्यवसाय में हिंदू-मुसलमान का भेदभाव नहीं है। दोनों धर्मों के लोग मिलजुल कर काम करते हैं। किसी के हिंदू होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।”

वे यह भी कहते हैं कि बूचड़खाने बंद हुए तो हिंदू-मुसलमान दोनों को नुकसान होगा। बड़ी तादाद में हिंदू मध्यम स्तर के प्रबंधन में हैं। वे कंपनी के मालिक तो नहीं, लेकिन निदेशक, क्वॉलिटी प्रबंधक, सलाहकार और इस तरह के दूसरे पदों पर हैं।

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