अग्नि आलोक
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ब्रेकिंग समाचार -मध्य प्रदेश में 7 अप्रैल को मेगा रोड शो करेंगे पीएम मोदी,लोकसभा चुनाव 2024: मुद्दे गुम-प्रचार सुस्त, प्रभावी नारे भी नदारद;पाकिस्तान में साजिशों का ‘जहर’,आईपीएल में पानी की बर्बादी: NGT सख्त

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर उसके शासन के दौरान देश की ‘प्रतिष्ठा को धूमिल’ करने का आरोप लगाया। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव समेत 14 सांसदों ने गुरुवार को राज्यसभा के सदस्य के रूप में शपथ ली।सोनिया गांधी और अश्विनी वैष्णव सहित 14 सांसदों ने राज्यसभा सदस्य के रूप ली शपथ,उच्च न्यायालय ने केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने संबंधी याचिका पर सुनवाई से इनकार किया,CPI(M) ने आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अपना चुनाव घोषणापत्र जारी किया,कर्नाटक: लाचयान गांव में खुले बोरवेल में गिरे एक डेढ़ साल के बच्चे को सुरक्षित बाहर निकाला गया, उच्च न्यायालय ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने संबंधी याचिका पर सुनवाई से इनकार किया।

गन्ना बेल्ट में सुर्ख हैं सियासत के रंग

Lok Sabha Elections 2024 : Ground Report of Muzaffarnagar

चुनावी मौसम है। मौसम है, तो रंग बदलेगा ही। बदल भी रहा है। कभी ये रंग, कभी वो रंग। पल में तोला, पल में माशा। इस मौसम की खुमारी में जनता भी सियासी हो चली है। कहीं पर निगाहें, तो कहीं पर निशाना…। उनके बड़े-बड़े सवाल हैं। सवालों पर भी सवाल हैं। बड़ी-बड़ी उम्मीदें हैं। ये चाहिए, वो चाहिए। बड़ी-बड़ी तकरीरें हैं। दलीलें हैं। पर, कुरेदते ही रंग बदल जाता है। जाति-मजहब की रेखाएं साफ-साफ उभर आती हैं। फुफकारने लगती हैं। नए समीकरण बनाने लगती हैं। मुजफ्फरनगर में मतदाताओं का कुछ ऐसा ही अंदाज है। पेश है रिपोर्ट… 

गन्ना बेल्ट में शामिल मुजफ्फरनगर के सियासी कड़ाह में उबाल आने लगा है। चुनावी चाशनी पकने लगी है। इसकी मिठास अपने हिस्से में समेटने के लिए उम्मीदवारों में रस्साकशी चल रही है। चुनाव की बात करें तो इस बार यहां मुकाबला कड़ा है। चुनावी दंगल में नए राजनीतिक समीकरणों के पेच भी हैं। पुराने दिग्गजों का कड़ा इम्तिहान है, पर उनके चक्रव्यूह को तोड़ना नए सूरमाओं के लिए भी उतना ही चुनौतीपूर्ण है।

बुढ़ाना कस्बा हमेशा ही गुलजार रहता है। इसलिए हमने सबसे पहले इस कस्बे का ही रुख किया। हमारी उम्मीद के मुताबिक दोपहर के 12 बजे भी यहां चौपाल सजी मिली। हमने चर्चा छेड़ी तो मांगेराम बोले, इस बार चुनाव आसान नहीं है। बसपा ने यहां से दारा सिंह प्रजापति को मैदान में उतारा है। यदि बसपा काडर के अलावा उन्हें अपने लोगों का वोट मिल गया तो वे सबपर इक्कीस साबित होंगे। अभी वह बात पूरी करते उससे पहले ही भौंह सिकोड़ते हुए ब्रह्म सिंह बोल पड़े, राह इतनी भी आसान नहीं है। देवीदास और पालेराम भी ब्रह्म सिंह की बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, मुकाबला तो भाई सभी के बीच है। हां, बसपा का उम्मीदवार इस बार जरा मजबूत लग रहा है।

मुस्लिम बहुल बुढ़ाना कस्बे के मुख्य बाजार में पहुंचे तो वहां नजारा अलग मिला। यहां मिले महबूब अली अलग समीकरण पेश करते हैं। वह कहते हैं, मुकाबला तो सीधा भाजपा के डाॅ. संजीव बालियान और सपा के हरेंद्र मलिक के बीच ही है। बाकी तो सब पीछे हैं। कौन फायदे में दिख रहा, इस सवाल पर इरशाद कहते हैं, बसपा उम्मीदवार दारा सिंह प्रजापति भाजपा का वोट काट रहे हैं। इससे साफ है कि सपा को लाभ मिल रहा है।

बुढ़ाना से निकल हम शाहपुर कस्बे की ओर रवाना हुए। करीब 10 किमी के सफर में हमें चुनाव के कई रंग देखने को मिले। उसका विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि यहां मुकाबला रोचक है। शाहपुर कस्बा पहुंचे तो बस अड्डे पर ही हमें नवाब अली मिले। उनका अनुमान है कि इस बार भाजपा और सपा में सीधा मुकाबला है। हालांकि, वहीं मिले लेखराज नवाब अली की बातों से इत्तफाक नहीं रखते। वह कहते हैं, बसपा को हल्के में लेकर बाकी दल भूल कर रहे हैं। दारा सिंह प्रजापति भारी पड़ सकते हैं।

शाहपुर कस्बे से रुखसत होकर हम आगे बढ़े। करीब पांच किमी का सफर तय कर हम बसी कलां गांव पहुंचे। यहां ग्रामीणों से चर्चा छिड़ी तो ज्यादातर ने कहा कि यहां तो मुकाबला त्रिकोणीय है। पर, गांव के रोहताश ऐसा नहीं मानते। वह कहते हैं, कुछ भी हो इस बार भी यहां भाजपा ही जीतेगी। पर, मनोज उनकी बात काटते हुए कहते हैं, इतना आसान भी नहीं समझो। मुकाबला कड़ा है।

सबसे बड़ा मुद्दा कानून-व्यवस्था
मुजफ्फरनगर हमेशा से ही संवेदनशील रहा है। जरा-जरा सी बात पर यहां का मिजाज गर्म होता रहा है। अब यहां सबसे बड़ा मुद्दा कानून-व्यवस्था है। मुजफ्फरनगर शहर में चाय की दुकान पर बड़ी गंभीर चुनावी चर्चा चलती मिली। मांगेराम कहते हैं, कोई किसी को खाने को नहीं देता है। सबसे अहम है कानून-व्यवस्था। इस समय कानून-व्यवस्था चाक-चौबंद है। पूरा सीन ही बदला हुआ है। इसका लाभ भाजपा को जाता दिख रहा है। सुलेमान अपना ही समीकरण बताते हैं। कहते हैं कि मुजफ्फरनगर में भाजपा से ठाकुर बिरादरी नाराज चल रही है। उन्हें मनाया जा रहा है। गुर्जर भी कुछ खफा हैं। दोनों ही मान गए, तो भाजपा की जीत को रोकने वाला कोई नहीं है।

मुद्दे तो बहुत हैं, पर बदल गए समीकरण
मुद्दे तो यहां तमाम हैं, पर भाजपा और रालोद के समीकरण का खासा असर इस सीट पर दिख रहा है। गन्ना मूल्य और छुट्टा पशुओं से लोग परेशान हैं, लेकिन जातीय समीकरण हावी है। शिशुपाल कहते हैं, यह गठबंधन दोनों के लिए बड़ा लाभकारी है। विजय बहादुर यादव कहते हैं, बिगड़ रही हवा का रुख अब ठीक होता दिख रहा है।

मान-मनौवल का दौर जारी

  • चर्चा में सामने आया कि डॉ. संजीव बालियान के लिए इस चुनाव में थोड़ी चुनौती बढ़ी है। लोगों में चर्चा रही कि ठाकुर और गुर्जर उनसे कुछ मसलों पर नाराज हैं। ऐसे में मान-मनौवल का दौर चल रहा है। गिले-शिकवे दूर करने के लिए पूरी ताकत लगाई जा रही है। सपा और बसपा इस पर नजर गड़ाए हुए है। गुर्जर, जाट, ठाकुर आदि धड़ों को साधने के लिए सभी ने अपनी पूरी ताकत झोंकी है। बहरहाल, श्रीपाल कहते हैं कि यह हर चुनाव में ऐसा होता है। उनका मानना है कि सबको मना लिया जाएगा।

बदली रणनीति, एक भी मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं

  • सियासी दलों ने भी मुजफ्फरनगर के हिसाब से ही अपनी रणनीति तैयार की है। यहां करीब छह लाख मुस्लिम हैं फिर भी किसी मुख्य दल ने मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा है। निर्दलीय भी कोई मुस्लिम चुनाव नहीं लड़ रहा है। पिछले चुनाव में भी ऐसा हुआ था। यहां के मिजाज की बात करें तो वर्ष 1967 में सीपीआई के टिकट पर लताफत अली खां जीते थे। उन्होंने कांग्रेस के ब्रह्म स्वरूप को हराया था। 1977 में लोकदल के सईद मुर्तजा जीते, 1980 में जनता दल (एस) के गय्यूर अली खां, 1989 में कश्मीर से आए मुफ्ती मोहम्मद सईद जीते। मुनव्वर राना और कादिर राना भी यहां से चुनाव जीत चुके हैं। (इनपुट मदन बालियान)

चुनावी समर के योद्धा

  • डॉ. संजीव बालियान, भाजपा : दो बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं। पिछली बार रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह को चुनाव हराया था और इस बार हैट्रिक मारने के इरादे से मैदान में हैं।
  • हरेंद्र मलिक, सपा : मुजफ्फरनगर के मैदान में तीसरी बार उतरे हैं और हार बार निराशा ही हाथ लगी। मुस्लिम वोटों पर पैनी नजर है। जाट व अन्य वर्गों में भी सेंध लगाने में जुटे हैं।
  • दारा सिंह प्रजापति, बसपा : पहली बार मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा व सपा के उम्मीदवारों के सामने खुद को स्थानीय साबित करने की चुनौती है। छिटके हुए बसपा के काडर वोटर को समेटने की क्षमता रखते हैं।

ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है…
यहां मुद्दे तो तमाम हैं, पर अब मुद्दों पर चुनाव होते कहां हैं। बहरहाल लोग तो आकर यही बता रहे हैं कि फिर से भाजपा की सरकार बन रही है। पर, मेरा अनुमान है कि राह इतनी आसान नहीं है। सरकारों को अपने एजेंडे में किसानों को प्रमुखता से शामिल करना चाहिए। चुनावी समीकरण तो बनते बिगड़ते रहे हैं, लेकिन जनता के बारे में सोचना सबका कर्तव्य है। मुजफ्फरनगर की बात करूं तो यहां तीनों उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर है। ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है।
-चौधरी नरेश टिकैत, अध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन

सालाना बजट खर्च करने में कोताही, बीमारियों का घर बन रहीं जेलें; व्यवस्था सुधारने पर ध्यान जरूरी

Overcrowded Indian Prisons and threat of Disease spread and illness serious concern

भारतीय जेलों में क्षमता से अधिक बंदियों को रखे जाने के कारण उत्पन्न नारकीय स्थितियां न केवल संयुक्त राष्ट्र के नियमों का, बल्कि मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। यह वेदना किसी मानवाधिकार कार्यकर्ता की नहीं, बल्कि स्वयं गृह मंत्रालय के अंतर्गत निदेशक (एसआर) प्रवीन कुमारी सिंह द्वारा सभी राज्यों के प्रमुख सचिव गृह और कारागार तथा पुलिस प्रमुखों के लिए नौ मई, 2011 को जारी सर्कुलर में व्यक्त की गई है। जेलों की इस स्थिति पर संसद में भी निरंतर चिंता प्रकट की जाती रही है।

जेलों में क्षमता से अधिक संख्या में एक साथ बंदियों को रखे जाने से एक-दूसरे में बीमारियों के फैलने की आशंका ज्यादा होती है। मानवाधिकारों के उल्लंघन, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और न्याय-आधारित विकल्पों की अनुपस्थिति के कारण जेलों में बंद लोगों के स्वास्थ्य की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जेलों का भौतिक बुनियादी ढांचा, भीड़-भाड़ का खतरा और कैदियों की लगातार आवाजाही से टीबी जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाले भारत की जेलें भी भरी रहती हैं। लॉन्सेट पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार, भारत में कैदियों को सामान्य आबादी की तुलना में तपेदिक (टीबी) होने का खतरा पांच गुना अधिक है। जर्नल के जुलाई, 2023 संस्करण में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि भारत की जेलों में प्रति एक लाख कैदियों पर टीबी के 1,076 मामले थे। शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय स्तर पर तपेदिक की घटनाओं की दर और जेलों में भीड़-भाड़ के बीच एक सीधा संबंध पाया। विशेषज्ञों के अनुसार, जेलों में भीड़-भाड़ और वेंटिलेशन की कमी के चलते तपेदिक (टीबी) रोगियों की संख्या अधिक पाई जाती है। वर्ष 2017 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिजीज में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भारत की जेलों में टीबी के इलाज और जांच की व्यवस्था का अध्ययन किया, तो पाया कि निदान या डाइग्नोसिस की केवल 18 प्रतिशत, इलाज की 54 प्रतिशत और समय-समय पर जांच की 60 प्रतिशत जेलों में ही व्यवस्था थी।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ‘प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया रिपोर्ट-2022’  के अनुसार 31 दिसंबर, 2022 को भारत की जेलों में कुल 5,73,220 लोग बंदी थे, जबकि देश की कुल 1,330 जेलों में कुल क्षमता 4,36,266 कैदियों की ही थी। इस प्रकार देखा जाए, तो इन जेलों में क्षमता से 131.4 प्रतिशत अधिक बंदी रखे गए थे। ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, मणिपुर और नगालैंड जैसे कुछ राज्यों में क्षमता से कम बंदी थे, जबकि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर जैसे कुछ राज्यों की जेलों में भेड़-बकरियों की तरह बंदी ठूंसे जाते हैं। उत्तराखंड जैसे शांत और छोटे राज्य की जेलों में 31 जनवरी, 2024 तक कुल 3,461 बंदियों की क्षमता के विपरीत 6,603 कैदी बंद थे। इन बंदियों में से लगभग 75 प्रतिशत विचाराधीन कैदी थे।

उक्त जेल सांख्यिकी के अनुसार, जेलों में बंद सभी बंदियों में केवल 1,33,415 बंदी ही सजायाफ्ता थे और शेष 4,34,302 विचाराधीन कैदी थे। इन विचाराधीन कैदियों में से कई ऐसे भी हैं, जो अदालत द्वारा दोष सिद्ध होने से पहले ही पांच साल से अधिक समय से जेलों में सजा काट रहे हैं। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा द्वारा 6 फरवरी, 2024 को लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, भारतीय जेलों में दो से तीन साल से 33,980 विचाराधीन कैदी, तीन से पांच साल से 25,869 विचाराधीन कैदी और पांच साल से अधिक समय से 11,448 विचाराधीन कैदी फैसले का इंतजार कर रहे थे। इनमें से कुछ निर्दोष भी हो सकते हैं और कुछ को कम सजा भी मिल सकती है, मगर वे पहले ही अकारण सजा काट रहे हैं।

इन भीड़-भाड़ वाली जेलों में सामान्य मानवीय सुविधाओं का अभाव तो रहता ही है, साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं का भी भारी अभाव रहता है, जिस कारण कैदी जेलों में दम तोड़ते रहते हैं। जेल सांख्यिकी के अनुसार, देश की जेलों में वर्ष 2022 में 1,995 मौतें हुईं, जिनमें 1,773 प्राकृतिक और 159 अप्राकृतिक मौतें थीं, जिनमें आत्महत्याएं भी शामिल थीं। प्राकृतिक मौतों में तपेदिक जैसी बीमारियां शामिल थीं। वर्ष 2022-23 में भारतीय जेलों के लिए कुल बजट 8,725 करोड़ रुपये आवंटित किया गया था, जिसमें से 7,781.9 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए। अतः जेलों की व्यवस्था सुधारने पर भी ध्यान देना चाहिए।

लोकसभा चुनाव 2024: मुद्दे गुम-प्रचार सुस्त, प्रभावी नारे भी नदारद; क्या स्थानीय मुद्दे और समीकरण होंगे हावी?

इस बार का आम चुनाव वादों और दावों की जगह गारंटी और भरोसे का है। हालांकि पहले चरण का मतदान बमुश्किल दो सप्ताह दूर है, इसके बावजूद केंद्रीय मुद्दों और प्रभावी नारों के अभाव में चुनाव प्रचार में उफान नहीं दिख रहा। शांत मतदाता न तो गारंटी की ओर भरोसे से देख रहे हैं और न ही भरोसे पर गारंटी देने का संकेत दे रहे हैं। न तो किसी मुद्दा विशेष पर देश में बहस छिड़ी है और न ही कोई ऐसा नारा है, जो लोगों की जुबान पर चढ़ा हो।पहले चरण का मतदान महज दो सप्ताह दूर रहने के बावजूद मतदाताओं की चुप्पी से सियासी दल हैरान हैं। इस चुप्पी के निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस बार का आम चुनाव मुद्दाविहीन रहेगा? अगर ऐसा हुआ तो नतीजे तय करने में स्थानीय मुद्दे और समीकरण हावी रहेंगे। 

हालांकि भाजपा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ एनडीए और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन के साथ कई क्षेत्रीय दल अपने-अपने मुद्दों को केंद्र में लाने की कोशिश जरूर कर रहे हैं। विपक्षी गठबंधन केंद्रीय एजेंसियों के कथित दुरुपयोग, चुनावी बॉन्ड और केंद्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना के मुद्दे को तूल देने की कोशिश कर रहा है। इस क्रम में इनकी चार मार्च को पटना, तो 31 मार्च को राजधानी दिल्ली में बड़ी रैली हो चुकी है। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार जनसभाएं कर रहे हैं। इनकी कोशिश केंद्रीय योजनाओं के कारण आए सकारात्मक बदलाव और हिंदुत्व से जुड़े राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद-370 का खात्मा, सीएए जैसी उपलब्धियों को मुद्दों के केंद्र में लाने की है।

मुद्दों को लेकर निरंतरता नहीं, सीट बंटवारे में ही उलझा विपक्ष
चुनाव प्रचार के उफान पर न आने का सबसे बड़ा कारण मुद्दों को लेकर विपक्ष में निरंतरता प्रदर्शित करने का अभाव है। खासतौर से विपक्षी गठबंधन बनने के बाद भी विपक्ष मैदान में खुलकर उतरने के बदले सीट बंटवारे की गुत्थी सुलझाने में ही उलझा है। भले ही यह गठबंधन दो बार एक मंच पर आने में सफल रहा है, मगर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी या कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे मोदी, शाह, नड्डा की तुलना में बहुत कम जनसभाओं को संबोधित कर रहे हैं।

बीते चुनाव में चढ़ गया था रंग
2019 का आमचुनाव इस चुनाव से बिल्कुल अलग था। चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पूर्व ही सियासी मैदान भ्रष्टाचार बनाम राष्ट्रवाद का रूप ले चुका था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी राफेल सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर चौकीदार चोर है, के नारे लगवा रहे थे, जबकि भाजपा पुलवामा आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान के खिलाफ हुई एयर स्ट्राइक को मोदी है तो मुमकिन है नारा लगा रही थी। राफेल मामले में पीएम पर व्यक्तिगत हमले को भाजपा गरीब पर हमले से जोड़ रही थी। इन दोनों ही मुद्दों पर तब राष्ट्रव्यापी चर्चा शुरू हो चुकी थी।

कांग्रेस की पांच न्याय, 25 गारंटी
घर घर गारंटी अभियान की शुरुआत कर चुकी कांग्रेस पहली नौकरी पक्की, भर्ती भरोसा, पेपर लीक मुक्ति, गिग वर्कर सुरक्षा और युवा रोशनी गारंटी के रूप में अलग-अलग वर्गों को साधने की कोशिश की है। इसके अलावा पार्टी ने महिला, किसान, श्रमिक और हिस्सेदारी न्याय के तहत अलग-अलग वर्गों के लिए कई वादे किए हैं। हालांकि पार्टी का घोषणापत्र अब तक जारी नहीं हुआ है।

भाजपा का मोदी भरोसा, मोदी गारंटी
एनडीए के लिए अबकी बार चार सौ पार, तो अपने लिए 370 सीटें जीतने का दावा कर रही भाजपा ने मतदाताओं को साधने के लिए ब्रांड मोदी को हथियार बनाया है। पार्टी युवाओं के विकास, महिलाओं के सशक्तीकरण, किसानों के कल्याण और हाशिये पर पड़े कमजोर लोगों के सशक्तीकरण के लिए मोदी गारंटी दे रही है। जबकि विकसित भारत के निर्माण और देश की तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने की गारंटी दे रही है।

स्थानीय रणनीति दिखाएगी कमाल
किसी एक मुद्दे को केंद्र में लाने की सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधन की तमाम कोशिशें सिरे नहीं चढ़ी हैं। विपक्षी गठबंधन के नेता लालू प्रसाद की पीएम मोदी पर व्यक्तिगत टिप्पणी के खिलाफ भाजपा ने मोदी का परिवार अभियान चलाया। भाजपा इंदिरा सरकार के समय तमिलनाडु से सटे कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को दिए जाने के मुद्दे पर आक्रामक है। वहीं, विपक्षी गठबंधन कभी केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग, कभी चुनावी बॉन्ड में भ्रष्टाचार, तो कभी केंद्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है।

प्रबंधन तय करेगा हार और जीत  
चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव मुद्दाविहीन रहा, तो हार-जीत तय करने में स्थानीय मुद्दे अहम भूमिका निभाएंगे। जो दल स्थानीय समीकरण साधेगा, चुनाव प्रबंधन बेहतर होगा, वह बाजी मार लेगा। विश्लेषक इसके लिए पांच राज्यों के हालिया विधानसभा चुनाव का उदाहरण देते हैं। कर्नाटक और तेलंगाना में भ्रष्टाचार मुद्दा था, जबकि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान करीब-करीब मुद्दाविहीन था। इस कारण कर्नाटक व तेलंगाना में सत्ता बदली, जबकि तीन राज्यों में भाजपा ने बेहतर प्रबंधन से बाजी मार ली।

शेयर बाजार के माहिर खिलाड़ी निकले राहुल, 25 कंपनियों के 4.34 करोड़ के शेयर हैं कांग्रेस नेता के पास

Rahul Gandhi Affidavit stock market shares worth Rs 4.34 crore in 25 companies

पीएम नरेंद्र मोदी पर हमेशा हमलावर रहे कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का मानना है कि इस सरकार के दौरान देश में कुछ भी अच्छा नहीं हुआ। हालांकि, कम से कम एक क्षेत्र ऐसा है, जिसमें राहुल ने मोदी सरकार के दौरान खासा लाभ उठाया और वह है शेयर बाजार। बीते 10 सालों में राहुल ने शेयर बाजार में खासा पैसा निवेश किया। अभी उनके पास 25 नामी कंपनियों के 4,33,60,519 रुपये के शेयर हैं।केरल के वायनाड से कांग्रेस के प्रत्याशी राहुल गांधी 20 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति के मालिक हैं। हालांकि, उनके पास न खुद का घर है, न खुद की कार। पिछले पांच वर्ष में उनकी दौलत करीब 5 करोड़ बढ़ी है। इसके बाद भी उनपर 50 लाख का कर्ज है। 

केरल के वायनाड से कांग्रेस के प्रत्याशी राहुल गांधी 20 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति के मालिक हैं। हालांकि, उनके पास न खुद का घर है, न खुद की कार। पिछले पांच वर्ष में उनकी दौलत करीब 5 करोड़ बढ़ी है। इसके बाद भी उनपर 50 लाख का कर्ज है। चुनावी हलफनामे के अनुसार राहुल के पास 55 हजार नकद हैं। 9.24 करोड़ की चल और 11.14 करोड़ की अचल संपत्ति है। उनके खिलाफ कुल 18 आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से एक मामले में उन्हें दो वर्ष की सजा हो चुकी है। 

विरासत में मिली करोड़ों की जमीन
राहुल के पास खेती की दो जमीनें हैं, जिसका मालिकाना हक उनकी बहन प्रियंका के पास भी है। दिल्ली की जमीन 2.346 और मेहरौली की 1.432 एकड़ की हैं। इसकी कुल कीमत 2.10 करोड़ है। राहुल के पास गुरुग्राम में दो कॉमर्शियल बिल्डिंग हैं, जिसकी कीमत 9 करोड़ से ज्यादा है।

साल में 5 करोड़ बढ़ गई कांग्रेस  नेता की संपत्ति
राहुल गांधी का 2014 तक यूपीए सरकार के दौरान शेयर बाजार में निवेश शून्य था। उन्होंने उस साल हुए लोकसभा चुनाव में दिए हलफनामे में यह जानकारी दी थी। उनके पास सिर्फ यंग इंडिया कंपनी के शेयर थे जो कांग्रेस पार्टी की अपनी कंपनी है। मोदी राज में राहुल ने जिन कंपनियों के शेयरों में निवेश किया है, उनमें सबसे अधिक 42,27,432 रुपये के 1,474 शेयर पिडिलाइट इंडस्ट्रीज के हैं। इसके बाद 35,89,407 रुपये के शेयर बजाज इंडस्ट्रीज के, 35,67,001 रुपये के शेयर नेस्ले इंडिया के, 35,29,954 रुपये के शेयर एशियन पेंट्स के और 32,58,980 रुपये के शेयर टाइटन कंपनी के हैं। राहुल ने सात म्यूचुअल फंड में भी निवेश कर रखा है, जिसका मूल्य 3,81,33,572 रुपये है।  उनके पास 15.2 लाख के गोल्ड बॉन्ड्स हैं।  

तब रिस्की बताया था
खुद शेयर बाजार में जमकर निवेश करने वाले राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के साथ बातचीत में इसे जोखिम भरा बताया था।

एनी राजा : खाते में केवल 62 हजार, नकद 10 हजार
वायनाड में राहुल को चुनौती दे रहीं सीपीआई उम्मीदवार एनी राजा के पास कुल 10 हजार रुपये नकद हैं। जबकि बैंक खाते में कुल 62 हजार जमा हैं। सीपीआई महासचिव डी राजा की पत्नी एनी को 71 लाख रुपये की संपत्ति विरासत में मिली हुई है। उनके पास 25 हजार रुपये के आभूषण हैं। पति के पास खाते में नौ लाख रुपये से अधिक जमा हैं।

राजस्थान: राजनीति में लंबे समय से बरकरार है राजघरानों की धमक

Dominance of former royal families in politics for a long time

धौलपुर राजघराने से दुष्यंत सिंह बीते 20 वर्षों से झालावाड़ सीट से सांसद हैं और इस बार भी चुनाव मैदान में हैं। जयपुर राजपरिवार की दीया कुमारी के स्थान पर राजसमंद सीट पर भाजपा ने उदयपुर राजघराने की महिमा विश्वेश्वर सिंह पर भरोसा जताया है। रियासतकाल में राजा-रजवाड़ों के लिए मशहूर रहे राजस्थान में अभी भी ऐसे कई राजघराने मौजूद हैं, जिनका सूबे की सियासत में लंबे समय से दबदबा रहा है। हर चुनाव में इनके सदस्य लोकसभा-विधानसभा में जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रत्येक चुनाव में इन चेहरों को लोकतंत्र के मैदान में उतारती रही हैं। मौजूदा चुनाव की बात करें तो धौलपुर राजघराने से दुष्यंत सिंह बीते 20 वर्षों से झालावाड़ सीट से सांसद हैं और इस बार भी चुनाव मैदान में हैं। जयपुर राजपरिवार की दीया कुमारी के स्थान पर राजसमंद सीट पर भाजपा ने उदयपुर राजघराने की महिमा विश्वेश्वर सिंह पर भरोसा जताया है। जयपुर सीट पर भी शाहपुरा पूर्व राजपरिवार के प्रमुख राव राजेन्द्र सिंह को भाजपा ने मैदान में उतारा है। पंकज चतुर्वेदी की रिपोर्ट

बीते 3 चुनावों में रजवाड़ी चेहरों पर दांव

लोकसभा 2019

  • दुष्यंत सिंह- झालावाड़ से भाजपा प्रत्याशी, जीते
  • भंवर जितेन्द्र सिंह- अलवर से कांग्रेस प्रत्याशी, हारे
  • दीया कुमारी- राजसमंद से भाजपा प्रत्याशी, जीतीं

लोकसभा 2014

  • चंद्रेश कुमारी- जोधपुर से कांग्रेस प्रत्याशी, हारीं
  • दुष्यंत सिंह- झालावाड़ से भाजपा प्रत्याशी, जीते

लोकसभा 2009

  • भंवर जितेन्द्र सिंह- अलवर से कांग्रेस प्रत्याशी, जीते
  • चंद्रेश कुमारी- जोधपुर से कांग्रेस प्रत्याशी, जीतीं

 पाकिस्तान में साजिशों का ‘जहर’, PM शहबाज की अग्निपरीक्षा; इमरान खान और शीर्ष जजों के आरोप बेहद गंभीर

Pakistan Politics Imran Khan Islamabad High Court Judges Allegation serious Testing time for PM Shehbaz

इस हफ्ते पाकिस्तान के अखबारों एवं टेलीविजन चैनलों पर ‘जहर’ सुर्खियों में रहा। विपक्षी नेताओं एवं हाईकोर्ट तथा पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा जहर देने और धमकाने के आरोपों से पूरे मुल्क में सनसनी फैल गई है।पाकिस्तान के विपक्षी नेताओं एवं सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा लगाए गए जहर देने और धमकाने के आरोपों से मुल्क में सनसनी फैल गई है। यह निश्चित रूप से प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की नई सरकार के लिए एक गंभीर मुद्दा है, जो टीटीपी के आतंकवादी हमलों और महंगाई से पहले ही जूझ रही है। 

यह निश्चित रूप से प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की नई सरकार के लिए एक गंभीर मुद्दा है, जो अफगानिस्तान स्थित तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के लगातार आतंकवादी हमलों, आम पाकिस्तानियों की कमर तोड़ने वाली महंगाई और सबसे महत्वपूर्ण पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के नेता इमरान खान के निरंतर पलटवार से निपटने की कोशिश कर रही है। जेल में होने के बावजूद इमरान खान ने 2024 के चुनाव परिणामों को स्वीकारने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया है कि पाकिस्तान चुनाव आयोग ने सुरक्षा प्रतिष्ठान के साथ मिलकर उनकी पार्टी के समर्थित उम्मीदवारों को मिले वोटों की संख्या में हेराफेरी की और उन्हें चुनाव जीतने से वंचित कर दिया।

जहर का आरोप इमरान खान की पत्नी बुशरा बेगम ने लगाया था, जो इस्लामाबाद के बाहरी इलाके बनिगाला में स्थित खान के महलनुमा घर में नजरबंद हैं। यह वही संपत्ति है, जिसे इमरान खान की पूर्व पत्नी जेमिमा खान ने खरीदकर इमरान खान को उपहार में दिया था। बनिगाला स्थित आवास को अदालत द्वारा उप-जेल घोषित कर दिया गया है, जहां बेगम बुशरा रहती हैं। इस बीच उनके पति इमरान खान पंजाब प्रांत के रावलपिंडी की अदियाला जेल में कैद हैं।

अपने एक मामले की सुनवाई के दौरान अदालत में मीडिया से एक संक्षिप्त बातचीत के दौरान इमरान खान ने पत्रकारों को यह कहकर चौंका दिया कि बुशरा बेगम के खाने में टॉयलेट क्लीनर की तीन बूंदें मिला दी गई थीं, जिससे उनकी आंखों में तकलीफ हुई और पेट एवं छाती में दर्द महसूस हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने अदालत को भी इसके बारे में बताया और अदालत से मांग की कि उनकी पत्नी की पूरी तरह से स्वास्थ्य जांच उनके लाहौर स्थित कुलसुम अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा करवाई जानी चाहिए, क्योंकि उन्हें अन्य किसी भी डॉक्टर पर भरोसा नहीं है, जिसे सरकार नामित करना चाहती हो।

उस समय बुशरा बेगम भी अदालत में मौजूद थीं, क्योंकि उन्हें अपने खिलाफ एक मामले में पेश होना था, लेकिन उन्होंने वहां मीडिया से बात करने से साफ इन्कार कर दिया और एक असामान्य अनुरोध किया कि वह वहां मौजूद एक व्लॉगर से बात करना चाहती हैं। लेकिन अदालत ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी।

हालांकि, जब उनसे पूछा गया कि उन्हें कैसे पता चला कि उनके खाने में टॉयलेट क्लीनर की बूंदें मिलाई गई हैं, तो उन्होंने कहा कि यह सूचना देने वाले का नाम वह उजागर नहीं करेगी।

दूसरा मामला तो इससे भी ज्यादा खतरनाक है और यह वाकई अविश्वसनीय है, क्योंकि इससे पहले पाकिस्तान में ऐसा कभी नहीं हुआ था। इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के छह न्यायाधीशों ने पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश काजी फैज ईसा को पत्र लिखकर शिकायत की कि उन्हें खुफिया एजेंसी की ओर से लगातार धमकाया जा रहा है और वे इससे सुरक्षा चाहते हैं, ताकि बिना भय के अपना काम कर सकें।

इसके बाद प्रधान न्यायाधीश को स्वतः कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा और उन्होंने इन छह न्यायाधीशों के आरोपों की सुनवाई करने के लिए एक पीठ का गठन किया। उसके ठीक अगले दिन इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं सात अन्य जजों को संदिग्ध एंथ्रेक्स-युक्त पत्र मिला, जो अब पुलिस के पास है। इन पत्रों में इन न्यायाधीशों को धमकी दी गई है। एक दिन बाद लाहौर उच्च न्यायालय के चार जजों को भी धमकी भरा पत्र मिला।

आखिर इसके पीछे कौन है? और क्या ये वाकई गंभीर धमकियां थीं या किसी ने शरारत की थी? जजों के पते पर भेजे गए पत्र के लिफाफे से पता चला कि उन्हें रेशम नाम की किसी महिला ने भेजा है, लेकिन पुलिस अब भी इन धमकी भरे पत्रों के असली स्रोत की जांच कर रही है। लेकिन तहरीक-ए नामूस-ए पाकिस्तान नामक एक अल्पज्ञात आतंकवादी गुट ने शीघ्र ही इस संबंध में एक बयान जारी किया। यह बयान सार्वजनिक रूप से जारी किया गया और सोशल मीडिया पर भी यह प्रसारित हो रहा है। इस बयान पर खोपड़ी का निशान बना हुआ है। बयान में तहरीक-ए-नामूस-ए पाकिस्तान ने इन पत्रों को भेजने की जिम्मेदारी ली है, जिनमें एंथ्रेक्स पाउडर भी था और पाकिस्तान की उच्चतम न्यायपालिका के प्रति स्पष्ट गुस्सा भी दर्शाया गया था। नामूस का मतलब सम्मान होता है, इसलिए यह सम्मान के लिए एक आंदोलन प्रतीत होता है।

जजों को भेजे गए पत्र में लिखा गया है-‘अब और नहीं। हम आपको अपने मुल्क को और कमजोर नहीं करने देंगे। पाकिस्तान की अदालतों में बैठे आप लोग इस मुल्क की स्थापना के बाद से ही न्याय करने का दिखावा कर रहे हैं। पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट मातृभूमि की समस्या और बीमारी का हिस्सा बन गया है।’

तहरीक-ए नामूस-ए पाकिस्तान नामक इस गुट की जब जांच की गई, तो नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार पता चला कि यह एक नया आतंकवादी गुट है, जिसकी उत्पत्ति और उद्देश्य के बारे में कुछ पता नहीं है। पिछले वर्ष जब प्रधान न्यायाधीश काजी फैज ईसा ने पद की शपथ ली थी, तो वन्यजीव विभाग की टीम ने इस्लामाबाद के बाहरी इलाके मार्गल्ला हिल्स में रेड जोन स्थित संवेदनशील इमारतों से संबंधित मानचित्रों और विस्फोटकों का पता लगाया था। मार्गल्ला हिल्स पर मिले पत्रों  में मुल्क की न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को धमकी दी गई थी।

जहां तक इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के छह न्यायाधीशों की बात है, जिन्होंने खुफिया एजेंसियों पर परेशान करने और धमकाने का गंभीर आरोप लगाया है, ज्यादातर लोगों का मानना है कि इन न्यायाधीशों ने अवैध कार्रवाई को चुनौती दी है, इसलिए लोकतंत्र एवं कानून के शासन के लिए लड़ने वाले लोगों को इनका समर्थन करना चाहिए।

आजम परिवार पर किसानों की जमीन कब्जाने के 22 मामलों में आरोप तय, सुनवाई 18 अप्रैल को

Rampur: Charges framed against Azam family in 22 cases of grabbing farmers' land.

जौहर यूनिवर्सिटी के लिए किसानों की जमीन कब्जाने के 27 मामलों में से 22 मामलों में बृहस्पतिवार को एमपी-एमएलए (मजिस्ट्रेट ट्रायल) कोर्ट ने सपा नेता आजम खां, उनके परिवार के चार सदस्यों और चमरौवा के सपा विधायक नसीर खां समेत 12 लोगों के खिलाफ आरोप तय कर दिए। 

अब्दुल्ला आजम दो जन्म प्रमाणपत्र के मामले में सात साल की सजा काट रहे सपा नेता आजम खां की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। किसानों की जमीन कब्जाने के मामलों में उनके परिवार पर आरोप तय हो गए हैं। 2019 में अजीमनगर थाना क्षेत्र के आलियागंज निवासी किसान हनीफ, जुम्मा, कल्लन, यासीन, रफीक, बंदे अली, नब्बू, भुल्लन, शरीफ, मुस्तकीन, अमीर आलम, नामे अली, अबरार, नजाकत, मतलूब, असरार, मोहम्मद आलिम, जाकिर की ओर से अजीमनगर थाने में 27 मुकदमे दर्ज कराए गए थे।

एमपी-एमएलए कोर्ट (मजिस्ट्रेट ट्रायल) के जज शोभित बंसल ने आरोपियों द्वारा पेश किए गए डिस्चार्ज प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया और सभी आरोपियों पर आरोप तय कर दिए। साथ ही कोर्ट ने गवाहों को तलब किया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी। सुनवाई के दौरान सपा विधायक नसीर अहमद खां और लेखपाल आनंदवीर कोर्ट में पेश हुए, जबकि शेष आरोपियों की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई।

ये आरोपी शामिल, एमपी-एमएलए कोर्ट में चल रही सुनवाई
मामले में सपा नेता आजम खां, उनकी पत्नी डाॅ. तजीन फात्मा, बेटे अदीब आजम, अब्दुल्ला आजम, बहन निखहत अखलाक, चमरौवा विधायक नसीर अहमद खां, तत्कालीन सीओ सिटी आले हसन, थानाध्यक्ष कुशलवीर सिंह, जकी उर रहमान सिद्दीकी, मुश्ताक अहमद सिद्दीकी, फसी जैदी, लेखपाल आनंदवीर सिंह आरोपी हैं। सभी मुकदमों की सुनवाई एमपी-एमएलए कोर्ट में चल रही है।

पूर्व थानाध्यक्ष पर 15 और लेखपाल पर तीन मामले
वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी अमरनाथ तिवारी के मुताबिक अजीमनगर के तत्कालीन थानाध्यक्ष कुशलवीर सिंह के खिलाफ 15, जबकि लेखपाल आनंदवीर के खिलाफ तीन मामलों में आरोप तय किए गए हैं।

जमीन की कीमत दिए बिना ही बैनामा कराया

किसानों ने आरोप लगाया था कि उनकी जमीनों पर जबरन कब्जा किया गया। उनको बंधक बनाया गया और जमीन की कीमत दिए बिना ही बैनामा करा लिया गया।

आईपीएल में पानी की बर्बादी: NGT सख्त, बंगलूरू जल आपूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड के चेयरमैन से मांगी रिपोर्ट

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के दौरान पानी की बर्बादी के मामले में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने सख्ती दिखाई है। मामला बंगलूरू के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम से जुड़ा है। एनजीटी ने जल आपूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड के चेयरमैन से रिपोर्ट मांगी है।

एनजीटी ने पानी की बर्बादी पर स्वत:संज्ञान लिया। एनजीटी के आदेश के अनुसार, उसके सामने यह तथ्य आया कि लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिल रहा है, जबकि जल बोर्ड ने बंगलूरू में लगातार तीन आईपीएल मैचों में लाखों लीटर शोधित पानी के उपयोग की कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन को इजाजत दे दी। मैच के लिए मैदान तैयार करने में करीब 75 हजार लीटर पानी की रोज जरूरत होती है।

मुंबई के मामले के साथ होगी सुनवाई
मुंबई में आईपीएल मैच में पानी की बर्बादी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के स्वत:संज्ञान के बाद एनजीटी ने जरूरी निर्देश दिए थे। इसका अनुपालन एनजीटी को सुनिश्चित कराना है। ऐसे में दो मई को इसकी सुनवाई होगी। बंगलूरू मामले की भी सुनवाई इसी के साथ ही होगी।

कार धोने, बागवानी व निर्माण कार्यों में पेयजल के इस्तेमाल पर है रोक
बंगलूरू में करीब 14,000 बोरवेल में से 6,900 सूख चुके हैं। बंगलूरू जल आपूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड ने पीने के पानी का कार धोने, बागवानी और निर्माण कार्यों में उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है। दूसरी तरफ मैच के लिए पेयजल और रसोई में उपयोग होने वाले शोधित पानी का उपयोग किया जा रहा है।

कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव को भी नोटिस
एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और सदस्य डॉ. ए सेंथिल वेल ने बंगलूरू जल आपूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड को विस्तृत रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। इसमें स्टेडियम में पानी के उपयोग, इसके स्रोत की जानकारी देनी होगी। एनजीटी ने बोर्ड के चेयरमैन के अलावा कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव, बंगलूरू के उपायुक्त व कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव को भी नोटिस जारी किया है।

मध्य प्रदेश में 7 अप्रैल को मेगा रोड शो करेंगे पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रविवार को जबलपुर निर्वाचन क्षेत्र में एक रोड शो का नेतृत्व करके मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत करेंगे। बता दें कि 16 मार्च को आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी का यह पहला मध्य प्रदेश दौरा होगा।

चन्द्रशेखर आज़ाद को मिली जान से मारने की धमकी, पुलिस ने शुरू की जांच

आजाद समाज पार्टी के संस्थापक और नगीना लोकसभा सीट से प्रत्याशी चंद्रशेखर आजाद को कथित तौर पर जान से मारने की धमकी मिली है। आजाद की पार्टी के एक पदाधिकारी ने यह जानकारी दी और कहा कि इस बाबत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई है। पुलिस ने कहा कि कुतुबशेर पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया है और जांच की जा रही है।

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की पूरी राजनीति मुद्दाविहीन, दिशाविहीन है- कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के बयान पर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि स्मृति इरानी की पूरी राजनीति मुद्दाविहीन, दिशाविहीन है। वे महिला बाल विकास मंत्री हैं। महिलाओं के साथ-साथ क्या नहीं हो जाता, उनके(स्मृति इरानी) मुंह से एक शब्द नहीं फूटता है। हाथरस हो, उन्नाव हो, लखीमपुर हो आपने महिलाओं को सिर्फ और सिर्फ शोषण के लिए छोड़ा है।मुझे ऐसा लगता है कि स्मृति इरानी को अमेठी जाना चाहिए। वे 2019 में 13 रुपये की चीनी देने वाली थीं जिसे आज भी लोग ढ़ूंढ रहे हैं।

दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी ने कथित अपमानजनक पोस्टर पर भाजपा के खिलाफ दर्ज कराई शिकायत

दिल्ली: दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने कथित अपमानजनक पोस्टर पर भाजपा के खिलाफ कश्मीरी गेट स्थित राज्य चुनाव कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत दर्ज करवाने के बाद उन्होंने कहा कि भाजपा ने पूरी दिल्ली में कई आपत्तिजनक पोस्टर्स लगाए हैं। हमने और हमारी लीगल टीम ने 6 दिन पहले इन आपत्तिजनक होर्डिंग्स के खिलाफ शिकायत की थी और आज हम CEO दिल्ली से मिलकर आए हैं। ये हमारे लिए चिंता का विषय है कि 6 दिन बीत गए हैं लेकिन अभी तक भाजपा के आपत्तिजनक पोस्टर्स और होर्डिंग्स पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 6 दिन में यदि कुछ पोस्टर्स और होर्डिंग्स के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती तो बड़ी समस्याओं का क्या होगा?

पीएम मोदी ने एक रैली को संबोधित करते हुए किया बंगाल सरकार का आभार व्यक्त

पश्चिम बंगाल: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कूच बिहार में सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि मैं सबसे पहले बंगाल की मुख्यमंत्री ममता दीदी का आभार व्यक्त करना चाहता हूं क्योंकि 2019 में मैं इसी मैदान में जनसभा करने आया था तब उन्होंने एक बड़ा मंच बीच में बनाकर मैदान छोटा कर दिया था, मैंने तब उनसे कहा था कि जनता आपको जवाब देगी लेकिन आज उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया और मैदान खुला रखा। इसलिए मैं बंगाल सरकार का कोई रुकावट न करने के लिए आभार व्यक्त करता हूं।

गौरव वल्लभ ने छोड़ी कांग्रेस पार्टी

लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी को झटके पर झटके लग रहे हैं। अब गौरव वल्लभ ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया है। गौरव वल्लभ कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता थे। उनकी एक टीवी डिबेट के दौरान बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा के साथ नोंकझोंक हो गई थी, उसके बाद वो काफी चर्चा में आ गए थे। वल्लभ ने पात्रा से पूछ लिया था कि एक ट्रिलियन में कितने जीरो होते हैं? इसका जवाब नहीं दे पाने के कारण संबित पात्रा की काफी किरकिरी हुई थी और गौरव वल्लभ चर्चा में आ गए। गौरव वल्लभ ने अपने इस्तीफे में लिखा है, ‘कांग्रेस पार्टी आज जिस प्रकार से दिशाहीन होकर आगे बढ़ रही है,उसमें मैं खुद को सहज महसूस नहीं कर पा रहा। मैं ना तो सनातन विरोधी नारे लगा सकता हूं और ना ही सुबह-शाम देश के वेल्थ क्रिएटर्स को गाली दे सकता हूं। इसलिए मैं कांग्रेस पार्टी के सभी पदों एवं प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूं।’

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