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ब्रेकिंग समाचार -आज  मेरठ में पीएम मोदी की जनसभा; रामलीला मैदान में विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ की रैली,100 सीटों पर मुस्लिमों का व्यापक असर,परिवारवाद पर हमले बढ़े तो  बड़े दलों की चुनौतियां बढ़ीं,आखिर कैसे आर्यवर्त का नाम पड़ा भारत

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 दिल्ली सरकार में मंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के नेता कैलाश गहलोत दिल्ली की अब रद्द हो चुकी आबकारी नीति से जुड़े धन शोधन के एक मामले में पूछताछ के लिए शनिवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समक्ष पेश हुए।माफिया से नेता बने पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी का शव कड़ी सुरक्षा के बीच शनिवार को गाजीपुर जिले के उनके पैतृक निवास युसूफपुर मोहम्मदाबाद के निकट कालीबाग स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया।

आज मेरठ में शंखनाद करेंगे PM मोदी, पश्चिम से चढ़ेगा सियासी पारा; मंच पर रहेंगे ‘चौधरी’

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को क्रांतिधरा मेरठ से शंखनाद करेंगे। इसमें उत्तर प्रदेश और हरियाणा के मुख्यमंत्री के अलावा एनडीए के सहयोगी दलों के नेता भी शामिल होंगे। ये रैली इस लिहाज से भी खास होने जा रही है क्योंकि 15 साल बाद रालोद मुखिया चौधरी जयंत सिंह प्रधानमंत्री के साथ दूसरी बार मंच साझा करेंगे।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज रविवार को क्रांतिधरा मेरठ से चुनावी शंखनाद करेंगे। पीएम मोदी पश्चिम से ही पूरे देश में सियासी पारा गरमाएंगे। वहीं, पीएम मोदी की रैली को लेकर चप्पे-चप्पे पर फोर्स तैनात की गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली शाम को तीन बजे मोदीपुरम स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के मैदान पर होगी। ऐसा तीसरी बार होगा, जब मोदी उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत मेरठ से करेंगे।

2014 और 2019 में भी नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव का बिगुल यहीं से फूंका था। मेरठ-हापुड़ के अलावा बागपत, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, कैराना, सहारनपुर, गाजियाबाद, बुलंदशहर और गौतमबुद्धनगर आदि लोकसभा को साधेंगे, साथ ही यहीं से मोदी देश भर का सियासी पारा भी गरमाएंगे।

इस रैली में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी भी शामिल होंगे। रैली को सफल बनाने के लिए भाजपा और रालोद के कार्यकर्ता तीन दिन से मेरठ में ही डेरा डाले हुए हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी शनिवार को ही मेरठ पहुंच गए।

वहीं, रैली की व्यवस्था एसपीजी ने संभाल ली है। चप्पे-चप्पे पर पुलिस और अर्द्ध सैनिक बल के जवान तैनात किए गए हैं। एडीजी सुरक्षा, एडीजी मेरठ जोन सुरक्षा की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। रैली स्थल पर 15 सौ से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।

I.N.D.I.A. की महारैली आज : लगेगा विपक्ष का जमघट, खचाखच कुर्सियों से भरा मैदान

लोकसभा चुनाव को लेकर इंडिया गठबंधन की रामलीला मैदान में रविवार होने जा रही रामलीला मैदान की महारैली की तैयारियां एक दिन पहले ही पूरी हो गई हैं। शनिवार दिनभर रामलीला मैदान में रैली को लेकर चहल-कदमी देखने को मिली। तैयारियों का जायजा लेने दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय व विधायक दिलीप पांडेय समेत दूसरे नेता भी पहुंचे। 

मौके पर मौजूद कार्यकर्ताओं को आप नेताओं ने जरूरी दिशा-निर्देश दिए। उधर, रैली स्थल पर बड़े नेताओं के लिए करीब साढ़े सात फुट ऊंचा मंच तैयार किया है। दोपहर की गर्मी से बचने के लिए टेंट का भी इंतजाम है। इसमें कूलर व पंखे लगाए गए हैं। पूरा मैदान कुर्सियों से भरा नजर आया। यहां पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए अलग से भी टेंट लगाया है।

महारैली में इंडिया गठबंधन का नारा तानाशाही हटाओ, लोकतंत्र बचाओ है। इसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, एनसीपी से शरद पवार, शिवसेना से उद्धव ठाकरे, समाजवादी पार्टी से अखिलेश यादव, आरजेडी से तेजस्वी यादव, झारखंड के मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, सीपीआई से डी राजा, टीएमसी से डेरेक ओ ब्रायन, सीपीआई-एम से सीता राम येचुरी व पीडीपी से महबूबा मुफ्ती समेत कई अन्य विपक्षी पार्टियों के नेता शामिल होने की संभावना है। इसमें वह विपक्षी दल के नेताओं की गिरफ्तारी व केंद्र सरकार के खिलाफ लोगों के साथ आवाज बुलंद करेंगे।

जायजा लेने आते रहे नेता
रामलीला मैदान में आप पार्टी के नेताओं का भी आना-जाना लगा रहा। वह यहां की पल-पल की जानकारी व जायजा लेने आते दिखे। इसमें दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय, विधायक दिलीप पांडेय समेत दूसरे नेता मौके पर पहुंचे। दूसरी तरफ आप नेता लोगों को महारैली में शामिल होने के लिए अपील भी की। गोपाल राय ने कहा कि महारैली को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। रविवार दिल्ली समेत देश के दूसरे हिस्से से आम लोग रामलीला मैदान की तरफ कूच करेंगे। वहीं, इंडिया गठबंधन का शीर्ष नेतृत्व भी यहां मौजूद रहेगा।

रामनवमी पर होने वाली भक्तों की संख्या से चंपत राय चिंतित, यह दी सलाह

Ayodhya: Champat Rai worried about the number of devotees on Ram Navami, gave this advice

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय का कहना है कि रामलला की पूजा-अर्चना के लिए यहां 1 लाख से 1 लाख 50 हजार तक श्रद्धालु आ रहे हैं। प्राण प्रतिष्ठा के बाद भक्तों की संख्या बढ़ गई है। होली मिलन समारोह में भारी भीड़ आने की जानकारी मिली थी और अब राम नवमी नजदीक आ रही है। लेकिन क्या अयोध्या बड़ी संख्या में मेहमानों के स्वागत के लिए तैयार है? गर्मी सबसे बड़ी चुनौती है।प्राण प्रतिष्ठा के बाद भक्तों की संख्या बढ़ गई है। होली मिलन समारोह में भारी भीड़ आने की जानकारी मिली थी और अब राम नवमी नजदीक आ रही है। लेकिन क्या अयोध्या बड़ी संख्या में मेहमानों के स्वागत के लिए तैयार है? गर्मी सबसे बड़ी चुनौती है। 

यहां (राम नवमी पर) 2 लाख से ज्यादा मेहमानों का आना एक बड़ी चुनौती होगी। पानी उपलब्ध है, लेकिन भोजन अभी भी एक चुनौती है। अब तक यहां भगदड़ की कोई घटना नहीं देखी गई है और हमें उम्मीद है कि भविष्य में भी ऐसा नहीं होगा। 

हम आप सभी से अनुरोध करते हैं कि यात्रा के दौरान अपने समूहों के साथ रहें। राम मंदिर आने वाले लोगों से भी अनुरोध करता हूं कि वे अपने साथ ‘सत्तू’ लेकर आएं और उसे खाएं। इससे उन्हें गर्मी से राहत मिलेगी। कई लोगों ने 22 घंटे के लिए ‘दर्शन’ की व्यवस्था करने का सुझाव दिया, लेकिन यह भी संभव नहीं है। राम लला को 24 घंटे जगा कर रखेंगे क्या?’

आखिर कैसे आर्यवर्त का नाम पड़ा भारत, जानें संस्कृति के पन्नों से

Aryavarta got name bharat know full mythological Story Rishi Vishwamitra

ऋषि विश्वामित्र जैसे ही नदी से निकले, उनकी दृष्टि मेनका पर पड़ी। उसे देखते ही विश्वामित्र सम्मोहित हो गए। उन्होंने बहुत प्रयास किया, परंतु विश्वामित्र का मन मेनका के सौंदर्य-पाश में उलझता चला गया।

महर्षि विश्वामित्र दिव्य शक्तियां अर्जित करने के उद्देश्य से कठोर तपस्या कर रहे थे। उनके तप का प्रभाव धीरे-धीर देवलोक तक जा पहुंचा। देवराज इंद्र का सिंहासन डगमगाने लगा। यद्यपि विश्वामित्र के तप करने का उद्देश्य कुछ और था, तथापि इंद्र को यही लगा कि विश्वामित्र देवलोक का शासन प्राप्त करना चाहते हैं। अतः उनकी तपस्या को भंग करना अनिवार्य हो गया। इंद्र ने मेनका नाम की एक अत्यंत सुंदर अप्सरा को चुना और उसे विश्वामित्र की तपस्या भंग करने भेजा।

मेनका तपस्थली पर पहुंची। उस समय विश्वामित्र नदी में स्नान कर रहे थे। ऋषि जैसे ही नदी से बाहर निकले, उनकी दृष्टि कामुक एवं मनमोहक मेनका पर पड़ी। उसे देखते ही विश्वामित्र जैसे सम्मोहित हो गए। उन्होंने मेनका की ओर न देखने का बहुत प्रयास किया, परंतु विश्वामित्र का ऋषि-मन मेनका के सौंदर्य-पाश में उलझता चला गया। मेनका की मादक सुगंध ने ऋषि की बुद्धि को अस्थिर कर दिया था। कठोर तपश्चर्या से उत्पन्न उनके तेजस्वी आभा-मंडल की चमक भी मेनका के आकर्षण के सामने फीकी पड़ गई। सहसा मेनका आगे बढ़ी और उसने विश्वामित्र का हाथ पकड़ लिया। तपस्या भंग हो चुकी थी। परंतु कथा यहां पूर्ण नहीं हुई!

मेनका के आकर्षण में उलझने से विश्वामित्र की हानि हुई, तो मेनका ने भी इसका मूल्य चुकाया। मेनका को विश्वामित्र से सचमुच ही प्रेम हो गया। विश्वामित्र ने मेनका के सामने विवाह का प्रस्ताव तक रख दिया। विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के बाद मेनका को देवलोक लौट जाना चाहिए था, परंतु उसे डर था कि विश्वामित्र क्रोधित हो गए, तो उसे शाप दे देंगे। इसलिए उसने विश्वामित्र से विवाह के लिए हामी भर दी। ऋषि के कोप से बचने और उन्हें पुनः तपस्या से रोकने का यही एक मार्ग था। विश्वामित्र और मेनका ने विवाह कर लिया। अब ऋषि विश्वामित्र संन्यासी से गृहस्थ बन गए और मेनका अप्सरा से गृहिणी।

कुछ समय बाद मेनका गर्भवती हुई और उसने एक अत्यंत सुंदर कन्या को जन्म दिया। विश्वामित्र ने कन्या का नाम ‘शकुंतला’ रखा। इस बीच मेनका भूल ही गई कि वह एक अप्सरा है। परंतु देवराज इंद्र को यह बात याद थी। एक दिन इंद्र अवसर देखकर मेनका के पास आए और बोले, ‘मेनका! मैंने तुम्हें जिस काम के लिए भेजा था, वह कब का पूरा हो गया ! अब तुम्हें तुरंत स्वर्ग लौट आना चाहिए।’ अप्सरा मेनका अब गृहिणी बन चुकी थी। वह बोली, ‘देवराज, मेरा अपना परिवार है। मैं यदि पति और पुत्री को छोड़कर देवलोक लौट गई, तो उन दोनों का क्या होगा?’

यह सुनकर इंद्र को क्रोध आ गया। वह गरजे, ‘अनर्गल बातें मत करो, मेनका ! तुम भूल कैसे गई कि तुम अप्सरा हो और अप्सराओं के परिवार नहीं होते। तुम्हारा कार्य केवल देवताओं का मनोरंजन करना है! यदि तुम देवलोक नहीं लौटीं, तो मैं तुम्हें शाप देकर शिला में बदल दूंगा। किसी भी स्थिति में तुम परिवार नहीं बसा सकती।’

मेनका अपने परिवार को नहीं छोड़ना चाहती थी, लेकिन इंद्र ने उसके लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ा था। वह जानती थी कि उसके जाने से विश्वामित्र और शकुंतला, दोनों दुखी होंगे। उसने विश्वामित्र को सारी बात कह दी। विश्वामित्र को दुख तो बहुत हुआ, किंतु उन्होंने मेनका को जाने से नहीं रोका। आखिरकार, मेनका को देवलोक लौटना ही पड़ा। मेनका के जाने के बाद विश्वामित्र ने फिर से तपस्या का संकल्प ले लिया। वह अपनी पुत्री शकुंतला को ऋषि कण्व के संरक्षण में छोड़कर तपस्या करने चले गए। कालांतर में, शकुंतला का सम्राट दुष्यंत से विवाह हुआ और उन्होंने एक यशस्वी बालक को जन्म दिया, जो बड़ा होकर राजा भरत के नाम से विख्यात हुआ। उसी के नाम से हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा।

 घट रही है नियमित वेतन पाने वालों की मासिक कमाई, 12 वर्षों में 12,100 से घटकर 10,925 रुपये रह गई आय

Employment Report 2024 Earnings decreased in 12 years Monthly earnings of regular salary earners decreasing

अंतरराष्ट्रीय संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) की नई रिपोर्ट ‘इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024’ के अनुसार भारत में नियमित वेतन पाने वालों और स्व-रोजगार में लगे लोगों की वास्तविक कमाई में पिछले एक दशक के दौरान गिरावट आई है। सरकारी आंकड़ों पर आधारित इस रिपोर्ट में वास्तविक कमाई का आकलन महंगाई (मुद्रास्फीति) के आधार पर किया गया है।रिपोर्ट कहती है कि भारत में श्रमिकों को उनके कौशल के आधार पर न्यूनतम मेहनताना नहीं मिल  है। श्रमिकों के एक बड़े हिस्से, विशेष रूप से आकस्मिक श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा।

रिपोर्ट के अनुसार साल दर साल नियमित कर्मचारियों के औसत मासिक वास्तविक कमाई में लगातार गिरावट आई है। 2012 में नियमित कर्मचारियों की औसत मासिक कमाई 12,100 रुपये थी। अब यह सालाना 1.2 फीसदी की गिरावट के साथ 2019 में घटकर 11,155 रुपये प्रतिमाह हो गई। 2022 में यह 0.7 फीसदी की गिरावट के साथ 10,925 रुपये मासिक रह गया।

आकस्मिक श्रमिकों की कमाई में बढ़ोतरी दर्ज की गई
रिपोर्ट के अनुसार आकस्मिक श्रमिकों के मामले में उलट स्थिति सामने आई है। यानी पिछले दशक के दौरान उनकी वास्तविक कमाई में वृद्धि दर्ज की गई है। 2012 में इनकी औसत मासिक वास्तविक आय 3,701 रुपये थी जो सालाना 2.4 फीसदी की वृद्धि के साथ 2019 में बढ़कर 4,364 रुपये तथा 2022 में 4712 रुपये हो गई प्रतिमाह हो गई। नियमित कर्मचारियों और स्वरोजगार से संबद्ध लोगों की घटती कमाई के साथ ही आकस्मिक श्रमिकों की आय में हुई बढ़ोतरी का अर्थ यह है कि  2000 से 2022 के बीच पैदा हुई नौकरियों की गुणवत्ता पैमाने पर खरी नहीं थी।

खेती-बाड़ी से जुड़े मजदूरों को नहीं मिल रहा न्यूनतम मेहनताना
रिपोर्ट कहती है कि भारत में श्रमिकों को उनके कौशल के आधार पर न्यूनतम मेहनताना नहीं मिल  है। श्रमिकों के एक बड़े हिस्से, विशेष रूप से आकस्मिक श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा। राष्ट्रीय स्तर पर विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में 40.8 फीसदी नियमित श्रमिकों और 51.9 फीसदी आकस्मिक श्रमिकों को उतना पारिश्रमिक नहीं मिल रहा जितना उस क्षेत्र में किसी अकुशल श्रमिक के लिए प्रतिदिन के लिहाज से कम से कम तय किया गया है।

इसके अलावा रिपोर्ट में निर्माण क्षेत्र में लगे श्रमिकों की कमाई का भी उल्लेख किया गया है। इस क्षेत्र से जुड़े 39.3 फीसदी नियमित कर्मचारियों और 69.5 फीसदी आकस्मिक श्रमिकों को अकुशल श्रमिकों के लिए प्रतिदिन के हिसाब से निर्धारित औसत न्यूनतम वेतन नहीं मिल रहा है। यह आंकड़े 2022 के लिए किए गए पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे पर आधारित हैं।

स्वरोजगार में लगे लोगों की कमाई भी घटी
कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा जो स्व रोजगार में लगा हुआ है उनकी कमाई भी कम हुई है। इनकी वास्तविक कमाई में सालाना 0.8 फीसदी की गिरावट आई है। यह 2019 में करीब 7,017 रुपये प्रतिमाह से घटकर 2022 में 6,843 रुपये प्रतिमाह रह गई।

नेता कोई हो परिवारवाद सबको भाता है… हमले बढ़े तो अधिक हुईं बड़े दलों की चुनौतियां

Lok Sabha Elections: No matter who the leader is, familyism is liked by everyone.

ये चमक ये दमक फुलवन मा महक…सब कुछ सरकार तुम्हई से है…। कुछ सियासतदानों के लिए फुलवन का मतलब थोड़ा संकुचित होकर परिवारवाद तक सीमित नजर आता है। मसीहा हो या फिर माफिया, सबकी चाहत कुनबा ही होता है, जिसके सहारे वे अपनी शक्ति का विस्तार कर सकें। यूपी की सियासत में तमाम ऐसे सियासतदां उभरे, जिन्होंने तमाम आदर्शवादी विचारों के बावजूद अंत में परिवार को ही चुना। नेतागिरी हो या माफियागिरी, जहां जरूरत पड़ी परिवार को ही सुरक्षित करने में लगे रहे। यूपी की सियासत में ऐसे ढेरों किस्से भरे पड़े हैं। सियासतदां कैसे अपने परिवार को आगे बढ़ा रहे हैं, बता रहे हैं महेंद्र तिवारी..

सत्ताधारी भाजपा के नेता परिवारवाद पर हमला बोलना शुरू करते हैं, तो विपक्षी नेता उसके ही कई नेताओं के नाम लेकर पलटवार करते हैं। भाजपा की ओर से परिवारवादी पार्टियां कहकर संगठन और सरकार के शीर्ष पद एक ही परिवार को विरासत में मिलने का उदाहरण देकर हमला बोला जाता है।…तो विपक्षी नेता भाजपा के कई नेताओं के परिवार में सांसद, विधायक, प्रमुख या जिला पंचायत अध्यक्ष गिनाकर हमला बोलने लगते हैं। इस चुनाव में भी ऐसे परिवारों की धूम है। एक ही परिवार से एक साथ कई लोगों को टिकट देने से परहेज के बावजूद भाजपा पूरी तरह से परिवारवाद से मुक्त नहीं हो पा रही है। इसी तरह मुख्य विपक्षी पार्टियां परिवारवाद की कीमत चुकाती साफ दिख रही हैं। पर, अपने परिवार का मोह छोड़ नहीं पा रही हैं।

परिवारवाद पर हमले बढ़े तो  बड़े दलों की चुनौतियां बढ़ीं

समाजवादी पार्टी 
2014 में सिर्फ परिवार के लोग जीते, 2019 में परिवार के भी हारे 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा अपने परिवार तक सीमित हो गई। परिवार से मुलायम सिंह यादव (दो सीट पर), अक्षय यादव, धर्मेंद्र यादव और डिंपल यादव ही जीत पाए थे। 2019 में हमला और बढ़ा तो मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ही जीत पाए। इस बार भी परिवार से चार लोग मैदान में हैं, वहीं अखिलेश यादव यह चुनाव लड़ने से फिलहाल बचते नजर आ रहे हैं।
सपा का परिवारवाद
अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष, डिंपल यादव सांसद व प्रत्याशी, प्रो. राम गोपाल यादव राज्यसभा सांसद, शिवपाल सिंह यादव विधायक व प्रत्याशी, धर्मेंद्र यादव प्रत्याशी, अक्षय यादव प्रत्याशी।

कांग्रेस : परिवार ही मैदान से बाहर! 
पिछले चुनाव तक यूपी की रायबरेली सीट से सोनिया गांधी और अमेठी सीट से राहुल गांधी उम्मीदवार हुआ करते थे। पिछला चुनाव राहुल हार गए थे। सिर्फ सोनिया ही जीती थीं। सोनिया ने इस चुनाव में न उतरने का एलान कर दिया है। इसके बाद से ही कांग्रेस के कई नेता राहुल व प्रियंका से इन सीटों से चुनाव लड़ने का आग्रह करते आ रहे हैं। लेकिन वे यूपी से चुनाव के लिए मन नहीं बना पा रहे हैं। दशकों बाद कांग्रेस के गांधी परिवार की यूपी के मैदान से बाहर होने की नौबत नजर आ रही है।

बसपा : मायावती भी परिवार से दूर नहीं जा पाईं
बसपा सुप्रीमो मायावती वर्षों से यह बात दोहराती नजर आ रही थीं कि उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी परिवार से नहीं होगा। मगर, इसे नजरअंदाज करते हुए उन्होंने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। मायावती ने भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप रखी है। हालांकि, इस चुनाव में मायावती के परिवार से किसी के मैदान में आने के फिलहाल संकेत नहीं हैं। 

…लेकिन छोटे दलों की पौ बारह, खूब उठा रहे फायदा

सुभासपा : प्रदेश के पंचायतीराज मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने सुभासपा बना रखी है। लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा से गठबंधन हुआ है। लोकसभा की एक मात्र घोसी सीट मिली है। राजभर ने अपने बेटे डाॅ. अरविंद राजभर को प्रत्याशी बना दिया है। दूसरे बेटे अरुण राजभर को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव व मुख्य प्रवक्ता बना रखा है।

अपना दल (एस) : भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल एस की मुखिया केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल हैं। केंद्र के बाद राज्य सरकार में हिस्सेदारी की नौबत आई तो पति आशीष पटेल को कैबिनेट का ओहदा दिलाया।

अपना दल, कमेरावादी : अपना दल के नेता स्वर्गीय सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल ने अपना दल कमेरावादी बना रखा है। कृष्णा को अवसर मिला तो सबसे पहले बड़ी बेटी पल्लवी पटेल को आगे किया। सपा से गठबंधन कर पल्लवी विधायक बनने में सफल रहीं।

रालोद : पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का परिवार पश्चिम यूपी का सबसे रसूख वाला सियासी परिवार माना जाता है। चौधरी चरण सिंह के बाद चौधरी अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल का गठन कर इसे आगे बढ़ाया। अब अजित के बेटे चौधरी जयंत सिंह पार्टी की अगुवाई कर रहे हैं। जयंत एनडीए का हिस्सा हैं।

निषाद पार्टी : प्रदेश सरकार में मंत्री संजय निषाद राजग में हैं। राज्य सरकार में शामिल होने का मौका मिला तो सबसे पहले स्वयं मंत्री बने। बेटों को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा के सिंबल पर टिकट स्वीकार कर लिया। बड़े बेटे प्रवीण निषाद को सांसद (संतकबीरनगर) और छोटे बेटे सरवन निषाद को विधायक (चौरीचौरा) बनवाने में सफल रहे हैं। 

वे नेता जिनका परिवार खूब फला-फूला
कल्याण सिंह : 
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया एटा से सांसद हैं। इस बार फिर प्रत्याशी बनाया गया है। राजू भैया के बेटे संदीप सिंह राज्य सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री हैं। वहीं राजू भैया की पत्नी प्रेमलता वर्मा भी विधायक रही हैं।
हसन परिवार (कैराना) : कैराना सीट पर हसन परिवार का सियासी रसूख जगजाहिर है। मुनव्वर हसन सपा से व उनकी पत्नी तबस्सुम हसन बसपा से सांसद रहीं। बेटा नाहिद हसन कैराना से विधायक है। अब मुनव्वर की बेटी इकरा हसन की सियासत में एंट्री हुई है। वह सपा प्रत्याशी हैं।
आजम परिवार : पूर्व मंत्री आजम खां विधायक व सांसद और उनकी पत्नी तजीन फात्मा सांसद रही हैं। बेटा अब्दुल्ला आजम भी विधायक बना।  इस बार जेल में हैं और चुनावी मैदान से बाहर हैं।
हरिशंकर तिवारी : गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी का भी लंबे समय तक दबदबा रहा। खुद विधायक और मंत्री रहे। बड़ा बेटा भीष्म शंकर सांसद व छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी विधायक रहे।
मुख्तार परिवार : पूर्वांचल में माफिया मुख्तार अंसारी के सियासी रसूख की चर्चा खूब होती रही है। उसकी मृत्यु के बाद तमाम किस्से सामने आ रहे हैं। इस परिवार की समृद्ध सियासी विरासत रही है। परिवार में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, देशभक्त सैनिक और उपराष्ट्रपति तक रहे हैं। लेकिन, मुख्तार के सियासत में कदम रखने के बाद परिवार की छवि बदल गई। इस परिवार में अभी भी दो विधायक और सांसद हैं। 

  • मुख्तार अंसारी पूर्व विधायक, अफजाल अंसारी सांसद (भाई), अब्बास अंसारी विधायक (बेटा), सुहेब उर्फ मन्नू अंसारी विधायक (भतीजा- पूर्व विधायक सिगबतुल्ला अंसारी का बेटा)

बृजेश परिवार : पूर्वांचल के एक अन्य चर्चित माफिया बृजेश सिंह की सियासी पकड़ जगजाहिर है। इस परिवार में उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल भाजपा के एमएलसी रहे हैं। लेकिन बृजेश के सियासत में आने के बाद परिवार की छवि बदल गई। उसकी छवि मुख्तार अंसारी के कट्टर प्रतिद्वंद्वी के रूप में हुई।  nबृजेश सिंह पूर्व एमएलसी, अन्नपूर्णा सिंह (पत्नी), एमएलसी, सुशील सिंह विधायक (भतीजा)।
ब्रजभूषण परिवार : ब्रजभूषण शरण सिंह गोंडा, बलरामपुर (पूर्व संसदीय क्षेत्र) व कैसरगंज मिलाकर छह बार सांसद चुने गए। जेल में थे तो पत्नी केतकी सिंह सांसद बनीं। भाजपा के अलावा वह सपा से भी सांसद रहे हैं। महिला पहलवानों के शोषण से जुड़े आरोपों के बाद पहली बार उन्हें टिकट के लाले पड़े हैं। बेटा प्रतीक भूषण सिंह गोंडा सदर से सांसद हैं।
स्वामी प्रसाद परिवार : पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य परिवार को आगे बढ़ाने की महत्वकांक्षा में बसपा, भाजपा के बाद सपा की भी यात्रा कर चुके हैं। बेटी संघमित्रा मौर्य व बेटे उत्कर्ष को आगे बढ़ाने में लगे रहे। भाजपा में रहते हुए संघमित्रा को बदायूं से टिकट दिलाया और वह सांसद बनीं। बसपा में रहते हुए बेटे को विधायक का टिकट दिलाया लेकिन हार गया। इस बार बेटी का टिकट कट गया और वह सपा छोड़कर अपनी पार्टी बना चुके हैं।
राजनाथ सिंह : केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह पार्टी के दिग्गज नेता और लखनऊ से सांसद हैं। एक बार फिर लखनऊ से प्रत्याशी हैं। उनके बड़े बेटे पंकज सिंह नोएडा से विधायक हैं।
कौशल किशोर : केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर मोहनलालगंज से सांसद हैं। पत्नी जयदेवी मलिहाबाद से विधायक हैं। कौशल फिर मैदान में हैं।
रितेश पांडेय : बसपा के अंबेडकरनगर सांसद रितेश पार्टी छोड़कर भाजपा में आए हैं। भाजपा ने प्रत्याशी बना दिया है। रितेश के पिता पूर्व सांसद राकेश पांडेय मौजूदा विधायक हैं।
कीर्तिवर्धन सिंह : गोंडा के भाजपा सांसद कीर्तिवर्धन सिंह मनकापुर राजघराने के उत्तराधिकारी हैं। पिता कुंवर आनंद सिंह भी सांसद, विधायक व मंत्री रहे।

यहां परिवारवाद पर अंकुश
मां को टिकट दिया, बेटे का काटा : भाजपा ने इस बार मेनका गांधी को सुल्तानपुर से टिकट दिया, लेकिन पीलीभीत से वरुण का काट दिया। चर्चा है कि वरुण पीलीभीत नहीं छोड़ना चाहते थे। पार्टी ने अनुशासन पर नरमी न दिखाते हुए वरुण का टिकट काट दिया।

अब आभासी मंच पर होने लगी बड़ी लड़ाई, इंफ्लुएंसर-यूट्यूबर्स की फौज यूपी में

Lok Sabha Elections: Now a big fight is taking place on the virtual platform

याद करें बीस साल पहले का चुनावी माहौल। कुछ तस्वीरें आंखों के सामने तैर जाएंगी। वो बिल्ले, जिसके छोटे-बड़े सभी दीवाने थे। लाउडस्पीकर लगी गलियों की खाक छानती वो गाड़ियां याद आई होंगी। वह दौर था जब घरों पर लगे झंडे बता देते थे कि हवा का रुख किधर का है। पर, आज माहौल बदल गया है। सड़कों पर चुनाव का शोर कम हो गया है। चुनावी खुमारी में डूबे कार्यकर्ताओं की संख्या घट गई है। ऐसे में सोशल मीडिया जन-जन तक अपनी बात पहुंचाने का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। अब प्रचार जमीन से ज्यादा आभासी मंच पर हो रहा है।कुछ तस्वीरें आंखों के सामने तैर जाएंगी। वो बिल्ले, जिसके छोटे-बड़े सभी दीवाने थे। लाउडस्पीकर लगी गलियों की खाक छानती वो गाड़ियां याद आई होंगी। वह दौर था जब घरों पर लगे झंडे बता देते थे कि हवा का रुख किधर का है। पर, आज माहौल बदल गया है। 

फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स और व्हाट्सएप के जरिये प्रत्याशी अपनी बातें लोगों तक पहुंचा रहे हैं। यूपी में इसका जोर कुछ ज्यादा ही है, क्योंकि 17 करोड़ लोगों के हाथ में मोबाइल फोन है। अनुमान है कि अकेले यूपी में सोशल मीडिया का चुनावी बाजार 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा का है।

इंफ्लुएंसर, यूट्यूबर्स की फौज यूपी में
लोकसभा की 80 सीटों के साथ सबसे बड़ा राज्य यूपी है। राज्य के चुनावी रण में सोशल मीडिया बड़ी ताकत बना है। यही वजह है कि 110 से ज्यादा छोटी-बड़ी सोशल मीडिया कंपनियां यहां काम कर रही हैं। 

  • 400 से ज्यादा इंफ्लुएंसर और यूट्यूबरों की टीम ने यूपी में डेरा डाल रखा है। ये राजनीतिक दलों के साथ ही प्रत्याशियों के लिए भी काम कर रहे हैं।
  • कंटेंट राइटरों की भारी मांग है। करीब 600 कंटेंट राइटर चुनावी थीम पर लिख रहे हैं। सोशल मीडिया फ्रेंडली और युवाओं के मन की बात को समझने वाले कंटेंट राइटर राजनीतिक दलों की पहली पसंद बन गए हैं। एक बड़े प्रत्याशी के लिए काम कर रहीं क्रिएटिव राइटर ज्योति निगम बताती हैं कि सोशल मीडिया पर वन लाइनर का ट्रेंड है। यानी…मतलब की बात, जो सीधे लोगों, खासतौर पर युवाओं को हिट करे।

तमाम पाबंदियां भी वर्चुअल प्लेटफाॅर्म पर सक्रियता की बड़ी वजह : चुनाव को लेकर आयोग की ओर से जनसभा, पदयात्रा, साइकिल रैली, बाइक रैली व रोड शो की पैनी निगरानी की जा रही है। हर खर्च का रेट फिक्स है, जिसमें कोई हेरफेर नहीं कर सकते। इससे बचने के लिए भी प्रत्याशियों ने सोशल मीडिया पर अपनी ताकत झोंक दी है। हालांकि, आयोग ने सोशल मीडिया के लिए भी आचार संहिता लागू की है। पर, आज भी सोशल मीडिया प्रचार के बाजार में 70 फीसदी असंगठित क्षेत्र हावी है। सिंगल मैन शो वाले एक्सपर्ट की भरमार है और भारी मांग भी है। इसलिए प्रत्याशी जो खर्च का ब्योरा दे वही मानना होगा।

गर्मी से भी जंग : कार्यकर्ताओं और सोशल मीडिया का ही सहारा
इस बार चुनाव भीषण गर्मी के बीच हो रहे हैं। अप्रैल से मई के बीच तापमान 36 से 46 डिग्री सेल्सियस तक रहने का अनुमान है। ऐसे में कार्यकर्ता सड़क पर उतरकर कितना प्रचार कर पाएंगे, ये प्रत्याशियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। सुबह 10 बजे के बाद प्रचंड गर्मी और झुलसाने वाली धूप होगी। रात आठ बजे तक ही प्रचार कर सकते हैं। ऐसे में प्रत्याशी सोशल मीडिया के जरिये मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने की रणनीति तैयार कर रहे हैं। इलेक्शन मैनेजमेंट से जुड़ी एक कंपनी के मुताबिक वर्ष 2014 में फेसबुक-ट्विटर ज्यादा लोकप्रिय थे, जबकि 2019 में व्हाट्सएप। पर, अभी यूट्यूब और इंस्टाग्राम का क्रेज है। व्हाट्सएप तो सदाबहार है।

सोशल मीडिया की ऐसे निगरानी कर रहा आयोग
सोशल मीडिया के किसी भी माध्यम से चुनाव प्रचार करने के लिए संबंधित चुनाव अधिकारी से इसके लिए इजाजत लेनी होती है। राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार इसके लिए किसी टीम या स्टाफ को हायर करते हैं, तो इसकी जानकारी चुनाव अधिकारी को देनी होती है। साथ ही रील बनाने या अन्य प्रचार पर किए जाने वाले खर्चों की जानकारी भी चुनाव अधिकारी को देनी होगी।

  • चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया समेत आचार संहिता उल्लंघन पर निगरानी रखने के लिए राज्य एवं जिला स्तर पर कंट्रोल रूम बनाए हैं। सी-विजिल, पीजी सेल की मदद से निगरानी करने के अलावा इनपर मिलने वाली शिकायतों के निपटारे के लिए भी काम किया जाता है।

महज 20 फीसदी ही बचा कारोबार 30 साल से प्रचार सामग्री के कारोबार में हूं। दस साल पहले तक खासा काम था। चार लोगों के स्टाफ को बढ़ाकर 15 करना पड़ता था। छह लोगों का काम तो केवल दिल्ली से माल लाना होता था। पांच-पांच प्रेस को एक साथ ऑर्डर देते थे। दो महीने तो रात-दिन काम चलता था। एक चुनाव साल-दो साल का खर्च निकाल देता था। पर, अब महज 20 फीसदी काम बचा है।
-सुशील वर्मा, थोक प्रचार सामग्री विक्रेता

जितना क्रिएटिव, उतनी कीमत  दस साल पहले ब्लाॅगर से काॅमर्शियल कंटेंट राइटर बना। अब अपनी कंपनी खोल ली है। 31 प्रत्याशियों की सोशल मीडिया हैंडलिंग कर रहे हैं। इस प्लेटफॉर्म पर आप जितना क्रिएटिव होंगे, उतना ही मुंहमांगा दाम मिलेगा। फीस नहीं बता सकता, लेकिन इतना जरूर  संकेत दे सकता हूं कि सालभर का खर्च और मुनाफा इस चुनाव से निकल जाएगा।
-विक्रांत सिंह, इलेक्शन मैनेजमेंट कंपनी हेड

वोट के दम पर टिकट, मोदी-शाह युग में मुसलमानों पर बदली भाजपा की रणनीति

BJP strategy on Muslims changed in Modi-Shah era Lok sabha election 2024

आम चुनाव के लिए भाजपा अब तक 405 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है, लेकिन केरल की मल्लपुरम ही एकमात्र ऐसी सीट है, जहां से पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार अब्दुल सलाम को उतारा है। कभी पार्टी का मुस्लिम चेहरा रहे शाहनवाज हुसैन, मुख्तार अब्बास नकवी जैसे नेताओं को उम्मीदवारों की सूची में जगह नहीं मिली है। वह भी तब, जब देश की 65 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की भागीदारी 30 से 65 फीसदी, तो करीब 35 सीटों पर प्रभावशाली उपस्थिति है।भाजपा का संकेत साफ है…मुस्लिमों में पैठ बनाने के लिए पार्टी दशकों से चली आ रही प्रतीकात्मक राजनीति का सहारा नहीं लेगी। इस वर्ग को उन मुश्किल सीटों पर अपनी प्रासंगिकता साबित करनी होगी, जहां उनके वोट निर्णायक स्थिति में हैं। भाजपा ने प्रभाव वाले राज्यों में मुसलमानों पर दांव लगाने से परहेज बरतने का स्पष्ट संदेश दिया है।

दरअसल, बीते एक दशक में पार्टी में मोदी-शाह युग की शुरुआत के बाद मुसलमानों के संदर्भ में भाजपा की रणनीति में बड़ा बदलाव आया है। पार्टी अब वोट की कीमत पर ही इस समुदाय को टिकट देना चाहती है। दो साल पूर्व जब हैदराबाद में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पीएम नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों तक पहुंच बनाने का आह्वान किया, तब एकबारगी लगा कि इस बार पार्टी प्रभाव वाले राज्यों में इस वर्ग को मौका देगी। इस आह्वान के बाद पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने इस वर्ग में पहुंच के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश में भाईचारा, सूफी सम्मेलन सहित कई कार्यक्रमों का आयोजन किया था। इस दौरान जब करीब 18 लाख मोदी मित्र बनाए गए, तब उम्मीदवारी में मुसलमानों को मौका मिलने की धारणा को मजबूती मिली थी।

कोशिश तो खूब हुई, पर नहीं बनी मजबूत पैठ
साल 1980 में स्थापना के बाद पार्टी ने मुस्लिम वर्ग के कई चेहरों को महत्व देकर इस वर्ग में पैठ बनाने की कोशिश की। इस वर्ग के नेताओं को बार-बार राज्यसभा और सत्ता मिलने पर सरकार में मौका दिया गया। बावजूद इसके पार्टी इन नेताओं के जरिए इस वर्ग में अपनी पैठ मजबूत करने में नाकाम रही। यहां तक कि साल 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई, तब पहली बार पार्टी ने इस समुदाय के दो नेताओं एमजे अकबर और नजमा हेपतुल्ला को मंत्रिमंडल में जगह दी। हालांकि पार्टी के सात मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतने में असफल रहे थे।

2019 में पहली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में शून्य प्रतिनिधित्व
साल 2019 के आम चुनाव में भी पार्टी ने मुस्लिम बिरादरी को छह टिकट दिए। सभी उम्मीदवारों की हार के बाद मुख्तार अब्बास नकवी को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। हालांकि, बदली रणनीति का अहसास तब हुआ, जब नकवी को राज्यसभा का नया कार्यकाल नहीं मिलने पर आजाद भारत में पहली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व शून्य हो गया।

नई रणनीति…नया नेतृत्व उभारने पर जोर  
राज्यसभा-लोकसभा के टिकट के सहारे उपकृत कर मुसलमानों में पैठ बनाने की नीति पीछे छूट चुकी है। भाजपा शहरी निकाय, पंचायत चुनावों में इस वर्ग को मौका देकर नया नेतृत्व खड़ा करना चाहती है। वह इस वर्ग के ऐसे चेहरों को साधना चाहती है, जो मुलसमानों में पार्टी के प्रति फैले भ्रम को दूर कर सकें। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी तारिक मंसूर, आरिफ मो. खान, शहजाद पूनावाला, जफरुल इस्लाम को साधना इसी रणनीति का हिस्सा है।

भाजपा में मुस्लिम चेहरे
भाजपा में मुस्लिम चेहरों की बात करें तो नई दिल्ली में सिकंदर बख्त जनता पार्टी के टिकट पर एक बार चांदनी चौक से लोकसभा चुनाव जीते। उन्हें कई बार राज्यसभा भेजा गया। बख्त राज्यसभा में पार्टी के नेता भी रहे थे। आरिफ बेग 1977 व 1989 में आम चुनाव जीते। कई बार राज्यसभा सदस्य और मंत्री रहे मुख्तार अब्बास नकवी बस एक बार लोकसभा चुनाव जीते। शाहनवाज हुसैन इकलौते मुस्लिम चेहरा हैं, जिन्होंने तीन बार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की है। भाजपा के सत्ता में आने पर बख्त, शाहनवाज और नकवी कई बार मंत्री भी बने। एमजे अकबर व नजमा हेपतुल्ला भी मंत्रिमंडल में रह चुके हैं।

पैटर्न समझें
भाजपा ने 2019 में 6 और 2014 में 7 मुस्लिमों को टिकट दिया…पर एक भी टिकट यूपी, बिहार या पार्टी के प्रभाव वाले राज्यों में नहीं दिए गए। ज्यादातर प. बंगाल, जम्मू-कश्मीर और लक्षद्वीप से मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, क्योंकि यहां इस समुदाय के वोट निर्णायक हैं। संकेत साफ है, भाजपा में आने के लिए अब समुदाय के नेताओं को अपने समुदाय में पैठ साबित करनी होगी।

100 सीटों पर मुस्लिमों का व्यापक असर

  • 65 सीटों पर 30 से 65 फीसदी मुस्लिम आबादी
  • 14 सीटें यूपी की तो 13 सीटें पश्चिम बंगाल की
  • 8 केरल, 7 असम, 5 जम्मू-कश्मीर, 4 बिहार, 3 मध्य प्रदेश,  दिल्ली, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र, तेलंगाना की 2-2 और तमिलनाडु की एक सीट।

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इलेक्टोरल बांड दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है- अशोक गहलोत (राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री)

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31 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में होने जा रही INDIA गठबंधन की रैली पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि INDIA गठबंधन कल दिल्ली के रामलीला मैदान में एक कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से नेता फारूक अब्दुल्ला इसमें हिस्सा लेंगे। चुनाव के समय कई तरह की अफवाहें उड़ती हैं। मैं चुनाव लड़ूंगा या नहीं या कहां से चुनाव लड़ूंगा, ये पार्टी का फैसला होगा, मेरा नहीं।

गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी के जनाजे में लोगों का हुजूम उमड़ा। गुरुवार रात गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी की बांदा मेडिकल कॉलेज में हृदय गति रुकने से मौत हो गई थी।

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