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बौद्धवाद बनाम ब्राह्मणवाद

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संजय कनौजिया की कलम”✍️

सम्राट अशोक के अखंड भारतीय शासन काल में जहाँ बौद्ध धर्म चरम पर था..वही वैदिक पंथ के ब्राह्मण और छोटे-बडे क्षत्रिय राजाओं ने बौद्ध धर्म से दूरी बनाये रखी थी..ईसा से 200 साल पहले, अशोक के बाद विदेशी आक्रमण बढ़ने लगे थे और सम्राट व्रेहदत्त मौर्य जो अशोक के पपोत्र थे, उनके शासन काल तक मौर्य वंश कुछ कमजोर होने लगा था..तब तक अहिंषक प्रवर्तियाँ शान्ति के विरोध में अपने-अपने प्रभुत्व एवं स्वामिमान सहित अपनी संस्कृति के बजूद को बचाने के लिए विद्रोह पर उतर आईं थी वहीँ विदेशी आक्रमणकारियों में यवन सबसे प्रमुख रहे उन्होंने व्रेहदत्त की सैनिये शक्ति का आंकलन करने की कूटनीति प्रस्तुत की और बौद्धों को यह समझाने में सफल हुए की वैदिक और क्षत्रियों से बौद्ध धर्म की रक्षा की जायेगी, बाद में हमारे राजा और सभी लोग बौद्ध धर्म भी स्वीकार कर लेंगे..यही कारण था बहुत बड़ी संख्या में यवन सैनिक बौद्ध धर्म में भिक्षु बनकर शामिल हो गए और बाद में अपने हथियार भी ले आये..जब ये जानकारी व्रेहदत्त को मिली तब उसने इस घोर समस्या से निपटने का कार्येभार अपने योद्धा सेनापति पंडित पुष्पमित्र शुंग को सौंपी..शुंग ने यवनो को कुचला बल्कि भिक्षुओं के भेष में सैकड़ों यवनो को मौत के घाट उतार दिया तथा हज़ारो-हज़ारों उन बौद्ध भिक्षुओं को जिन्होंने यवन सैनिकों को संरक्षण दिया था, उन्हें भी गिरफ्तार कर व्रेहदत्त से मौत की सजा की घोषणा करवानी चाही..लेकिन व्रेहदत्त ने ये शर्त अस्वीकार कर शुंग को महत्वपुर्ण जिम्मेवारियों से दूर कर दिया जिसके कारण शुंग भी विद्रोही हो गया और मौका पाकर व्रेहदत्त की हत्या कर डाली और मौर्य साम्राज्य का ही अंत नहीं किया बल्कि बौद्ध धर्म को ही मिटा डाला, वह इतना हिंसक हो चुका था की यह एलान किया कि जो एक भिक्षु का सर काट के लाएगा उसको 100 सोने की स्वर्ण मुद्राएं दी जायेगी..जिसमे ब्राह्मणो और क्षत्रियों ने बढ़चढ़कर अपनी भूमिका निभाई थी..शुंग एक महापापी राजा सिद्ध हुआ जो बौद्धों का हत्यारा ही नहीं बल्कि बौद्ध धर्म के पतन का मुख्य कारण माना गया है..चीनी विद्वान लेखकों का कहना है कि बहुत से बौद्धिष्ट आज भी पुष्पमित्र शुंग की कड़े शब्दों में आलोचना करते पाए जाते हैं..!
बौद्ध धर्म मानवता, अहिंसा, बराबरी, भाईचारा, प्रेम, स्नेह, अपनत्व का प्रतीक रहा है और इसी आधार पर बौद्ध धर्म को समता के सिद्धांत का केंद्र माना गया..जबकि ब्राह्मणवाद का केंद्र विषमता, जन्मजात, ऊंच-नीच और गैरबराबरी रहा..17वीं शताब्दी में तिब्बत से आए एक विद्वान लेखक भिक्षु तारानाथ ने भी ये सभी बातें स्वीकारीं हैं जबकि डॉ० उपेंद्र शास्त्री ने आर्केलॉजिकल सर्वे के साक्ष्यों सहित अपनी लिखी एक किताब में जिक्र किया है कि साँची के स्तूपों पर भी पुष्पमित्र शुंग ने हमला कर उसे तुड़वाया था..शुंग ने अशोक को एक काल्पनिक व्यक्ति बताया और घोषणा करी कि अहिंसा हमारे देश को कमजोर कर देगी..पुष्पमित्र शुंग ने सबसे महत्वपूर्ण काम मनुस्मृति को लिखवाया, समाज के नियमो को बनाने की वर्णव्यवस्था, स्त्रियों का स्थान अथवा और भी अन्य कुरूतियों-पाखण्ड-अंधविश्वास आदि को रचित करने हेतू एक ब्राह्मण नियुक्त किया था..जिसके कारण लाखो-लाखो बौद्ध भिक्षु म्यांमार, श्री लंका, थाईलैंड, तिब्बत, चाइना आदि इत्यादि देशों में पलायन कर गए..!
डॉ० अंबेडकर ने लिखा कि भारत के इतिहास में मुख्य अंतर्विरोध हिन्दू-मुस्लिम कभी नहीं रहा बल्कि मुख्य अंतर्विरोध बौद्ध धर्म और ब्रह्मणवाद था..डॉ० अंबेडकर समता के सिद्धांत को क्रान्ति कहते थे और शुंग का आना एक प्रतिक्रांति रहा था..डॉ० अंबेडकर ने अपने वॉल्यूम नंबर-7 के पेज 134 से 138 में प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि भारत का इतिहास आर्यों के आगमन से शुरू हुआ, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया इसे अपना घर बनाया और अपनी संस्कृति स्थापित की..बिहार के मगध के नन्द वंश से लेकर कलिंग युद्ध के बाद अशोक का हृदय परिवर्तन के पश्चात जब बौद्ध धर्म को अखंड भारत में स्थापना हुई तो चारों ओर शांति-अहिंसा अपनत्व की गूँज अनुगूँज बन गई और वैदिक पंथ की पशुबलि, यज्ञ और बेबुन्यादि क्रियाकलापों पर प्रतिबन्ध से ब्राह्मणवाद में, मौर्य वंश के प्रति रोष उत्तपन होने लगा था..!
डॉ० अंबेडकर ने अपने हिंदी वॉल्यूम-40, के पेज 170 से 173 में अपने उस भाषण में जो उन्होंने 2 मई 1950 को बुद्ध जयंती के अवसर में बोला था कि कुछ युवाओं ने मेरे जन्मदिन को मनाने की बात कही, तब मैंने उन युवकों को भगवान बुद्ध का जन्मदिन मनाने को कहा और इसीलिए में अपने सभी काम छोड़कर यहाँ आया हूँ..डॉ० आंबेडकर ने ही 2500 वर्षों से भारत से गौण हुई सत्य की प्रतीक उपासना की पद्दति को पुनर्स्थापित किया..इसी भाषण में डॉ० अंबेडकर ने हिन्दू धर्म की बक्खियाँ उधेड़ डालीं और सवाल किया कि वर्ग को विचार-शिक्षा-आजादी नहीं मिल पाई हो तो क्या ब्राह्मणवादी लोग बताएँगे कि हिन्दू धर्म कैसे श्रेष्ठ है ?..मेरी मानो तो मुझे हिन्दुओं का घमंड और विषमता बिल्कुल भी पसंद नहीं..बौद्ध और हिन्दू धर्म में बहुत फर्क है बौद्ध धर्म जातिविहीन एक सभ्य व समता मूलक समाज की रचना को मानता है तो हिन्दू धर्म की नींव ही जातियों पर आधारित है..डॉ० अंबेडकर ने कहा कि बौद्धवाद और ब्राह्मणवाद के बीच का फर्क सदैव ध्यान में रखें..!
अंबेडकर के बाद बाद राजनीति और समाज को बदलने में जिस नेता की अनदेखी की गई वह थे समता के सिद्धांत पर अडिग, डॉ० राममनोहर लोहिया..जातिविहीन राजनीति की परिकल्पना करने वाले लोहिया की चर्चा, इस विषय पर बहुत ही कम हुई..जबकि जनेऊ, याने जाति के वर्चस्व के खिलाफ आज दलित लड़ाई लड़ रहे है, उन्हें तोड़ने के लिए लोहिया ने सोशिलिस्ट पार्टी के जरिये “जाति छोड़ो- जनेऊ तोड़ो” अभियान चलाया था और ब्राह्मणवादी चरित्र पर सवाल करते हुए पहली दफा पिछड़ों को आरक्षण की मांग करते हुए नारा दिया था कि “संसोपा ने बांधीं गाँठ- पिछड़े पांवें सौ में साठ” बल्कि सभी शोषित जमात के काम के घंटों के आधार पर “दाम बांधो” नारे के नाम से सड़क से संसद तक संघर्ष चलाने वाले डॉ० राममनोहर लोहिया ही थे..!!
“नमो बुद्धाय-जय भीम-जय समाजवाद”
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)

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