–सुसंस्कृति परिहार
सत्ता में अपनी पकड़ मज़बूत बनाने में इस बार मोदी सरकार ने फिर करोड़ों खर्च कर और दबिश के सहारे कांग्रेस और सपा विधायकों के मत हासिल कर सिद्ध कर दिया कि कि वे मनुवादी साम दाम दंड-भेद की नीति का कुशल प्रयोग कर रहे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह कृत्य अशोभनीय ही नहीं बल्कि पराभूत करने की नीचतम हरकतें है। आमतौर पर विधायकों की स्थिति यह बता देती रही कि कितने उम्मीदवार किस किस दल से चयनित हो सकते हैं और इसी हिसाब से प्रत्याशियों को चुनाव में शामिल किया जाता था।वे सभी अपने विधायकों की संख्या के आधार पर जीत जाते थे।कभी कोई परेशानी नहीं हुई।
लेकिन इस बार के राज्यसभा चुनाव में विधायकों की ख़रीद का वही आचरण अपनाया गया जो राज्य सरकारों को गिराने में हुआ है।एक बार फिर जनता की पसंद को सत्ता की पसंद बनाकर जनमत की उपेक्षा हुई है। सबसे बड़ा छल हिमाचल प्रदेश में हुआ जहां कांग्रेस सरकार सत्ता में ,पूर्ण बहुमत से है वहां 46 विधायक कांग्रेस के थे और 34 विधायक भाजपा के थे एक सीट का राज्यसभा के लिए चुनाव था कांग्रेस के उम्मीदवार वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी थे उनकी जीत आसान थी पर भाजपा के हर्ष महाजन जीत गए। कुत्सित प्रयासों ने कांग्रेस के 6 विधायकोंं से क्रास वोटिंग कराई गई। दोनों प्रत्याशियों को 40-40 मत मिले। फिर टास किया गया तो भाजपा विजित घोषित हो गई।
कांग्रेस ने कर्नाटक में तीन राज्यसभा सीटें जीत लीं, जबकि अपने एक विधायक द्वारा राज्य में सत्तारूढ़ दल के पक्ष में क्रॉस वोटिंग के बाद केवल एक सीट बचाने में सफल रही।जीतने वाले कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन, नासिर हुसैन और जीसी चंद्रशेखर क्रमशः 47, 46 और 46 वोट हासिल करके विजयी हुए और अब राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व करेंगे। यहां भाजपा से नारायण बंदिगे राज्यसभा के लिए चुने गए हैं।
उत्तर प्रदेश में 10 सीटों के लिए चुनाव हुए जिनमें से भाजपा ने उन सभी आठ सीटों पर जीत हासिल की, जिन पर उसने चुनाव लड़ा था। समाजवादी पार्टी ने जिन तीन सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से दो पर जीत हासिल की ।उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के 7 विधायकों ने पाला बदला।ऐसे में यहां बीजेपी के आठवें उम्मीदवार को भी जीत मिल गई। बीजेपी के सात उम्मीदवारों की जीत पहले ही तय मानी जा रही थी।वहीं, समाजवादी पार्टी के तीन में से दो उम्मीदवार राज्यसभा के लिए चुने गए।
दक्षिणी राज्य में भाजपा को उस समय भारी झटका लगा जब उसके विधायक एसटी सोमशेखर ने कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन के लिए मतदान किया, जबकि एक अन्य विधायक अरबैल शिवराम हेब्बार मतदान से अनुपस्थित रहे।कर्नाटक बीजेपी विधायक एसटी सोमशेखर और हेब्बार पार्टी नेतृत्व से नाराज थे और हाल के महीनों में कांग्रेस के साथ नजदीकियां बढ़ाते नजर आ रहे थे। सोमशेखर यशवंतपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और हेब्बार येल्लापुर क्षेत्र से।क्रास वोट करने का विचार उनका पहले से तय था वे कांग्रेस के साथ जुड़ रहे थे किंतु हिमाचल और उत्तर प्रदेश जो कुछ हुआ उसके पीछे करोड़ों रुपए के खेला के साथ दहशत भी शामिल थी।मरता क्या नहीं करता?ज़मीर बिक गया। बहरहाल। भाजपा से मोहभंग करने वाले बधाई के पात्र हैं जिन्होंने ऊपरी दबाव के बावजूद क्रास वोटिंग की।
क्रास वोटिंग कोई नई बात नहीं है।इतिहास गवाह है कि क्रॉस वोटिंग की घटनाएं होती रही हैं। ऐसा ही एक मामला 1998 के राज्यसभा चुनाव से जुड़ा हुआ है। 1998 के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार अपनी ही पार्टी के विधायकों की क्रॉस वोटिंग की वजह से हार गया था। माना जाता है कि इसी घटना की वजह से शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की स्थापना की थी।
राष्ट्रपति चुनाव में भी पंजाब में क्रॉस वोटिंग हुई थी।
2022 में हरियाणा के कांग्रेस नेता कुलदीप बिश्नोई ने क्रॉस वोटिंग की थी। वह बाद में बीजेपी में शामिल हो गए।इसी चुनाव में राजस्थान से बीजेपी नेता शोभारानी कुशवाह ने भी क्रॉस वोटिंग की थी। वह भी पार्टी से निकाल दी गईं। 2016 में उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के 6 नेताओं ने बीजेपी के लिए क्रॉस वोटिंग की थी। पार्टी ने सभी को निष्कासित कर दिया था। 2017 में कांग्रेस की अपील पर दो नेताओं के वोट खारिज हो गए थे, क्योंकि इन दोनों ने अपना बैलेट पेपर अमित शाह को दिखाया था। इसके बाद कांग्रेस के अहमद पटेल राज्यसभा सांसद बने थे। क्रास वोटिंग पर यदि विचार करें तो सन् 1998 में कांग्रेस विधायक के क्रास वोटिंग के बाद जितनी भी इस तरह की वोटिंग हुई वह 2014के बाद ही हुई हैं जिसमें नकद नारायण और दहशत का खेल चला।इस बार बड़े पैमाने पर पुनरावृत्ति हुई है।अब तो कहा जाने लगा है कि जिस तरह विधायकों की ओछी मानसिकता और डरपोक वृत्ति सामने आई है कहीं ऐसा ना हो लोकसभा चुनाव में खरीदारी का ग्राफ़ सब रिकार्ड तोड़ दे तथा सत्ता के नशे में चूर साहिब शाह और धर्मान्धता की अफीम में डूबीं जनता लोकतंत्र को ले डूबे। ये सब तो एक बानगी है।