अग्नि आलोक
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 इतिहास बदल कर तब तख्त गिराना पड़ता है 

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,मुनेश त्यागी

सत्ता से वही टकराने की हिम्मत रखता है
जिसकी रगों में क्रांतिकारी खून बहता है।
वरना हमने कितनों को माफी मांगते हुए
और सलवार पहन कर भागते हुए देखा है।

जुल्मी सत्ता से वही लड़ भिड सकता है
जो जनता के बीच संगठित होकर रहता है।
सच में दुश्मन को वही हरा सकता है
जो उसके हर वार पर हंसता रहता है।

देखो तो उसको कोई कैसे हरा पाएगा
जो अपनों के दाव भी खुश होकर सहता है।
आखिर दुश्मन को वही तो हरा पाएगा
जो बिगडे हालात से बागी होकर रहता है।

जब अपने सारे लोग ही बेगाने हो जायें
तब सब कुछ दांव पर लगाकर भिडना पड़ता है।
आग लगाकर बस्ती में जब नीरो बंसी बजाता है
इतिहास बदल कर, तब तख्त गिराना पड़ता है।

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