अग्नि आलोक
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*आह्वान है विचारों का*

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शशिकांत गुप्ते

समाजवादी चिंतक विचारक स्वतंत्रता सैनानी डॉ राममनोहर लोहियाजी ने कहा है,लोकतंत्र रूपी हाथी पर जनता रूपी महावत राजतंत्र पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी है।
आमजन को राजनीति नहीं शुद्ध नीति गत राज चाहिए।
डॉ लोहिया जी ने कहा है,राजनीति को व्यापक सोच के साथ समझना जरूरी है। लोहियाजी ने कहा है कि,चाय पीते समय शक्कर एक चम्मच चाहिए,या दो चम्मच चाहिए,यह भी राजनीति ही तय करती है।
राजनीति नीति निर्धारण का मोर्चा, मतलब front है।
देश की स्वतंत्रता में साहित्यकारों का योगदान रहा है। साहित्यकारों ने लेख,कविता और गीतों के माध्यम से विदेशी हुकूमत के विरुद्ध अलख जगाया और राजनीति को सही दिशा दी है।
स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वालें पत्रकारों पर डॉ ए डी खत्री ने इतिहास लिखा है।
1857 में और 1857 के पूर्व के पत्रकारों में अजीमुल्ला खां,इंकलाबी शायर बहादुर शाह जफर का प्रमुख रूप से उल्लेख होता है। इनके अलावा भी बहुत शायर लेखक और पत्रकार रहें हैं।
बीसवीं सदी के प्रांरभ में,अरविंद घोष,बिपिनचंद पाल,लोकमान्य तिलक,पंडित सुंदरलाल,गणेश शंकर विद्यार्थी,माखनलाल चतुर्वेदी,महावीर प्रसाद द्विवेदी,
वृन्दावन लाल वर्मा,आर्य समाजी श्रद्धानंद जी,नाटककार गिरीशचंद्र घोष,इश्वरचंद विद्यासागर,लाला राजपत राय,महामना,मदन मोहन मालवीय,आदि,ये सभी साहत्यकार ही थे।
राष्ट्र कवि दिनकर जी तो नेहरू जी को स्पष्ट रूप से कहा है,जब भी राजनीति फिसलेगी साहित्यकार ही संभालेगा।
गांधीजी भी साहित्यकार ही थे।
गांधीजी के पास आत्मबल के साथ विचारों का ही शस्त्र था।
गांधीजी के शरीर की हत्या हुई है,गांधीजी के विचार अमिट और अमर रहेंगे।
साहित्यकार का सिर्फ कर्तव्य ही नहीं दायित्व है,राजनीति की शुचिता के लिए व्यक्तिवाद,
पूंजीवाद,यथास्थितिवाद
समाज में व्याप्त कुरीतियों,
अंधश्रद्ध आदि पर अंकुश रखना।
लोकतंत्र के हाथी पर सवार जनता रूपी महावत के हाथों परिवर्तनकारी विचारों का अंकुश देने का दायित्व साहित्यकारों का ही है।
साहित्यकार रचनात्मक सृजन के माध्यम से भी जनता में जागृति ला सकता है।
स्वतंत्रता सैनानी दूसरी आजादी के मसीहा स्व.जय प्रकाश नारायण जी ने वैचारिक क्रांति का आह्वान किया था।
(आह्वान मतलब पुकार,ललकार
आवाहन का अर्थ आमंत्रण)

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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