मुनेश त्यागी
जब 17वीं और 18वीं सदी में सामंतवादी व्यवस्था टूटी और पूंजीवादी व्यवस्था का जन्म हुआ तब सामंतवाद के मुकाबले पूंजीवादी व्यवस्था एक प्रगतिशील व्यवस्था थी। उसने सामंती जुल्मों सितम, शोषण, अन्याय और भेदभाव को कम किया, मजदूरों को काम दिया मगर 100 साल के अंदर ही पूंजीवादी व्यवस्था ने मजदूरों का शोषण करना और उनके साथ अन्याय करना शुरू कर दिया। इसमें काम के घंटे निश्चित नहीं थे, मजदूरी निश्चित नहीं थी, मजदूरी का मासिक भुगतान तथा लोगों को 12:12 घंटे और 16, 16 घंटे काम करना पड़ता था।
इसके बाद अमेरिका आस्ट्रेलिया आदि देशों में मजदूर आंदोलन शुरू हुए और मजदूरी बढ़ाने और काम के 8 घंटे तय करने के आंदोलन शुरू हुए। दुनिया में सबसे पहले रूसी क्रांति के बाद काम के 8 घंटे तय किए गए और मासिक वेतन का भुगतान करना तय हुआ, किसानों मजदूरों की सत्ता कायम की गई और सबको शिक्षा सबको काम, सबको स्वास्थ्य, सब को रोजगार और सबका विकास और प्राकृतिक प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल पूरी जनता के विकास के लिए किया गया। लोग, किसान, मजदूर और मेहनतकश दुनिया में पहली बार आपने भाग विधाता बन गए और शोषण, अन्याय, गैर बराबरी भेदभाव और तमाम तरह की गुलामी खत्म कर दी गई।
रूसी क्रांति का मजदूर किसानों और सारी दुनिया में प्रभाव पड़ा और 50 साल के अंदर एक तिहाई दुनिया लाल झंडे के प्रभाव में आ गई और अपनी भाग्यविधाता बन गई। अपने नियम कानून बनाने लगी, समाज में समता समानता और आजादी का विकास हुआ। महान लेनिन ने बीसवीं सदी के शुरू में ही एक किताब लिखी थी जिसका नाम था "साम्राज्यवाद पूंजीवाद के अंतिम अवस्था", मतलब यह कि पूंजीवादी व्यवस्था सन उन्नीस सौ में ही साम्राज्यवादी व्यवस्था में प्रवेश कर चुकी थी और इसने विभिन्न क्षेत्रों में अपने साम्राज्य स्थापित करके मानवाधिकारों पर हमले शुरू कर दिए थे।इन्हीं साम्राज्योंके को बढ़ाने और बचाने के लिए दुनिया के पूंजीपतियों ने, दुनिया को कब्जाने के लिए 2 विश्व युद्ध किए, जिसमें आठ करोड़ से ज्यादा लोगों की बलि ले ली गई और करोड़ों लोग घायल हुए।
दुनिया के अनेक देशों ने सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था के जाल से निकलने और बचने के लिए अनेक स्वतंत्र संग्राम और अनेक अधिकार जैसी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, व्यापार, शासन प्रशासन, नौकरी के सीमित घंटे, न्यूनतम वेतन, ग्रेच्युइटी, बोनस, बुढ़ापे की पेंशन और स्थाई नौकरी के अधिकार प्राप्त किए। मगर इस दौरान साम्राज्यवादी ताकतें, दुनिया को पुनः गुलाम बनाने वाली साम्राज्यवादी ताकतें चुप नहीं बैठीं। पहले इंग्लैंड और बाद में अमेरिका के नेतृत्व में दुनिया के सारे लुटेरों ने दुनिया को लूटने के लिए समाजवादी गठबंधन बनाए जिसमें कनाडा, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, पुर्तगाल,स्पेन, जापान ऑस्ट्रेलिया आदि देश शामिल थे। संयुक्त राज्य अमेरिका आज इन साम्राज्यवादी ताकतों का नेता बना हुआ है। इन पूंजीवादी लुटेरे देशों ने साम्राज्यवादी गठबंधन बनाए और अपने मुनाफों को बढ़ाने की हवस में दुनिया को फिर से गुलाम बनाने की मुहिम शुरू कर दी।
साम्राज्यवादी व्यवस्था का केवल और केवल एक ही मकसद है और वह है अपने मुनाफों को बढ़ाना और बरकरार रखना और दुनिया पर जबरन कब्जा करना और करोड़ों लोगों करोड़ों बलिदानों के बाद हासिल किए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, मजदूरों के हकों, अधिकारों को छीन लिया जाए। इन लुटेरी, शोषक और अन्यायी ताकतों का समता, समानता, न्याय, समाजवाद धर्मनिरपेक्षता, भाईचारा आदि मूल्यों को बढ़ाने में कोई विश्वास नहीं है। साम्राज्यवादी ताकतों ने वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की नीतियां लागू करके दुनिया भर के किसानों, मजदूरों और तमाम मेहनतकशोंके अधिकांश अधिकार छीन लिए हैं और अपने मुनाफे बनाए रखने के लिए उन्होंने दुनिया के अरबों लोगों को के तमाम हक और अधिकार छीन लिए हैं।
इस दुनिया को कब्जाने की मुहिम में दुनिया के इन पूंजीवादी लुटेरों ने दुनिया में दो विश्वयुद्ध किए जिनमें 8 करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए। कोरियन युद्ध में 4लाख लोग मारे गए, वियतनाम युद्ध में 30 लाख लोग मरे, हिरोशिमा नागासाकी बम विस्फोट में 2,60,000 आदमी मरे। अफगानिस्तान में 2,40,000 आदमी मरे। द्वितीय विश्व युद्ध में यूएसएसआर के 2 करोड़ से अधिक लोग मारे गए थे। ईरान इराक युद्ध में 10लाख से ज्यादा लोग मरे। इराक में लाखों लोगों से ज्यादा मारे गए और इंडोनेशिया में इन इंसानियत विरोधी साम्राज्यवाद ताकतों ने 5लाख से ज्यादा कम्युनिस्ट मार डाले।संधियों के विपरीत नाटो के रूप में इन पूंजीवादी लुटेरों ने पोलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, युगोस्लाविया, लिथुआनिया, लाटविया, एस्तोनिया जैसे देशों को कब्जा लिया है और अब यूक्रेन को कब्जाने की तैयारी है जिस पर युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। यह है मानव विरोधी साम्राज्यवादी ताकतों का युद्ध पिपासु, शोषणकारी, प्रभुत्ववादी और जन विरोधी चेहरा।
इन ताकतों का न्याय, आजादी, जनता के जनवाद, समाजवाद और समरसता के सिद्धांतों में कोई विश्वास नहीं है। इनकी नीतियों ने इन तमाम अधिकारों को रौंद दिया है और छीन लिया है। आर्थिक रूप से दुनिया आज सबसे ज्यादा असमानता का शिकार है। आज की मुख्य लड़ाई है 1% शोषकों बनाम 99% शोषितों की हो गई है। दुनिया की तमाम जनता की एकता तोड़ने के लिए ये जनविरोधी ताकतें, दुनियाभर की तमाम जातिवादी, नक्सलवादी, सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतों को तमाम तरह से पालपोस रही हैं और धन और निर्देशन प्रदान कर रही हैं ताकि दुनिया में लुटेरों का एकक्षत्र साम्राज्यवादी साम्राज्य कायम किया जा सके। अपने साम्राज्य को कायम रखने के लिए और बढ़ाने के लिए ये लुटेरी और प्रभुत्वकारी शक्तियां दुनिया के तमाम देशों में हस्तक्षेप करती हैं और जनता द्वारा चुनी गई सरकारों का तख्तापलट करती हैं और वहां वहां अपनी कठपुतली सरकारें कायम करती हैं। अब इन ताकतों ने दुनिया के सुनहरे भविष्य को हड़प लिया है। अब ये जनता के जनवाद, आजादी, धर्म निरपेक्षता और समाजवाद के खात्मे पर उतारू हैं।
इनका मुकाबला पूरी दुनिया के पीड़ित मजदूरों, किसानों, नौजवानों, बेरोजगारों की एकजुटता से ही किया जा सकता है। दुनिया भर के पैमाने पर जनता के जनवाद, धर्मनिरपेक्षता, समता, समानता,समाजवादी और भाईचारे की मुहिम को बढ़ाना और स्थापित करना ही, इस मानवविरोधी, जनविरोधी और समाज विरोधी और पूरी दुनिया की विरोधी इस साम्राज्यवादी, व्यवस्था सोच और मानसिकता को बदलना और बदलाव रोका जा सकता है।
इसीलिए इस लुटेरी, शोषक, अन्यायी और जनविरोधी व्यवस्था को बदलने के लिए ही भगत सिंह ने “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” और “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगाया था, महान लेनिन ने साम्राज्यवाद को परास्त करने की मुहिम चलाने का आह्वान किया था। इसी व्यवस्था का विनाश करने के लिए और रोकने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने अपने प्राणों की आहुति दी थी और महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने इस व्यवस्था को बदलने की आजीवन लड़ाई लड़ी थी।
पूरी दुनिया का इतिहास बताता है की साम्राज्यवादी लुटेरी व्यवस्था इस दुनिया के हित में नहीं है, मानवता के हित में नहीं है, आजादी, जनता के जनवाद, विकास, समता, समानता धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे के हित में नहीं है अतः किसी भी कीमत पर इसका विरोध किया जाना और इसे समाप्त करने की कोशिश करना ही हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। इसीलिए पूरे विश्व के महान मित्र कॉमरेड फिदेल कास्त्रो ने कहा था कि “साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंको.”
साम्राज्यवाद मुर्दाबाद,
इंकलाब जिंदाबाद।