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अरुन्धति और डॉ. शेख़ पर यूएपीए के तहत मुक़दमा 

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        पुष्पा गुप्ता 

प्रख्यात लेखिका अरुन्धति रॉय और डॉ. शेख़ शौकत हुसैन के ख़िलाफ़ यूएपीए के तहत मुक़दमा चलाने की अनुमति दे दी गई है.

      दिल्ली के उपराज्यपाल ने अरुन्धति रॉय और डॉ. शेख़ शौकत हुसैन के ऊपर 14 साल पुराने भाषण के मामले में यूएपीए के तहत मुक़दमा चलाने की अनुमति दे दी है। 

    प्रख्यात लेखिका अरुन्धति रॉय और कश्मीर सेण्ट्रल यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर डॉ. शेख़ शौकत हुसैन द्वारा नवम्बर 2010 में एक कार्यक्रम में कश्मीर को लेकर दिये गये वक्तव्य को आधार बनाकर सुशील पण्डित द्वारा मुक़दमा दर्ज़ कराया गया था, जिस पर 14 साल बाद यूएपीए लगाया जा रहा है। 

      ग़ौरतलब है कि एक ऐसे समय में, जब जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमलों की तमाम घटनाएँ सामने आ रही हैं और मोदी सरकार के धारा 370 के समाप्त होने के बाद “शान्ति” बहाल होने के सारे दावे कठघरे में हैं, इस मामले को उठाकर मोदी सरकार अपने कुकृत्यों पर पर्दा डालना चाहती है।

     वास्तव में यह पूरी क़वायद देश के तमाम जनपक्षधर बुद्धिजीवियों/सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुँह पर ताला लगा देने और बिना किसी ट्रायल के सालों-साल जेल में सड़ा देने की उसी फ़ासीवादी साज़िश का हिस्सा है, जिसका शिकार भीमा कोरेगाँव मामले में तमाम सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता और दिल्ली दंगों में उमर ख़ालिद जैसे लोग हुए हैं।

      हाल ही में लोकसभा चुनावों में 400 पार के जुमले की सारी हवा निकल जाने के बाद सत्ता में बैठी मोदी सरकार चुनाव बीतते ही इस तरह की क़वायदों के ज़रिये यह संकेत देना चाहती है कि मोदी सरकार के इस तीसरे कार्यकाल में भी जनता के ऊपर बर्बर दमन/फ़र्ज़ी मुक़दमों का यह सिलसिला ज़ारी रहेगा।

      देश के तमाम इलाक़ों में जनता के ऊपर दमन के बुल्डोज़र और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर फ़र्ज़ी मुक़दमों से आने वाले समय की तस्वीर के बारे में अन्दाज़ा लगाया जा सकता है।

      ज़ाहिर है कि तमाम भाजपा और संघ के नेता देश की जनता की आपसी एकता को तोड़ने वाले नफ़रती-साम्प्रदायिक बयान देते रहते हैं। ख़ुद प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावों के दौरान इसी तरह की नफ़रती बयानबाज़ी करके चुनावों में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की पूरी कोशिश की। 

     लेकिन फ़ासीवादी मोदी सरकार की जेब में बैठी सत्ता की पूरी मशीनरी की नज़र में देशद्रोह केवल वह है जो भाजपा और संघ परिवार के फ़ासीवादी एजेण्डों के ख़िलाफ़ जाता है।

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