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मालदीव में बदलाव: भारत को कूटनीतिक चतुराई से कदम बढ़ाने की दरकार

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आनंद कुमार

हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव में मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के मोहम्मद सोलिह को हराने के बाद संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार मोहम्मद मुइज्जू ने अब मालदीव के नए राष्ट्रपति की भूमिका संभाल ली है। मालदीव में सत्ता परिवर्तन महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश भू-राजनीतिक लिहाज से अहम बन गया है। माना जाता है कि नई सरकार ऐसी नीतियां अपनाएंगी, जो पिछली सरकार से बिल्कुल अलग होंगी। इसका क्षेत्रीय सुरक्षा माहौल पर भी असर पड़ सकता है। इसलिए इस क्षेत्र की एक प्रमुख ताकत भारत ने मालदीव के नए राष्ट्रपति का सावधानी पूर्वक स्वागत किया है। मोहम्मद मुइज्जू के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए भारत की चिंता बढ़ गई है। जब अब्दुल्ला यामीन राष्ट्रपति थे, तब मुइज्जू उनकी सरकार में आवास और बुनियादी ढांचा विकास मंत्री थे। उस दौरान मालदीव पर चीन का व्यापक प्रभाव देखा गया था। तब चीन के हितों को देखते हुए फैसले लिए गए, जिससे विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू हुईं और मालदीव चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) में शामिल हो गया। बाद में आई सोलिह सरकार ने न सिर्फ चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते से परहेज किया, बल्कि मालदीव में चीन के विवादास्पद संयुक्त महासागर निगरानी केंद्र की योजना से भी पल्ला झाड़ लिया।

यामीन का सबसे विवादास्पद निर्णय द्वीपों को विदेशी देशों को बेचना था। ऐसी आशंका थी कि चीन इन द्वीपों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए करेगा। इससे मालदीव की संप्रभुता से समझौता होने की चिंता बढ़ गई। सौभाग्य से, यामीन अपने मंसूबों में सफल नहीं हो सके, क्योंकि उन्हें सत्ता से हटा दिया गया था। विडंबना देखिए कि जिस यामीन ने मालदीव की संप्रभुता का सम्मान नहीं किया, उसी ने उसकी रक्षा के नाम पर कथित तौर पर ‘इंडिया आउट’ अभियान चलाया। यामीन ने झूठा दावा किया कि मालदीव में तैनात भारतीय सैनिकों ने वहां के लोगों की राष्ट्रवादी भावनाओं का लाभ उठाकर देश की संप्रभुता को खतरे में डाल दिया है।

यामीन के ‘इंडिया आउट’ अभियान के समर्थक मुइज्जू ने इसका चुनावी लाभ उठाया, क्योंकि जेल में होने के कारण यामीन राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ सकते थे। चीन से मुइज्जू की निकटता पिछले साल उनके दौरे से स्पष्ट हो गई थी, जब उन्होंने अपने गठबंधन के सत्ता में आने की स्थिति में द्विपक्षीय संबंधों में एक नए अध्याय की संभावना जताई थी। इसलिए हैरानी नहीं कि मुइज्जू के चुनाव जीतते ही चीनी राजदूत ने तुरंत उन्हें बधाई दी। यामीन और मुइज्जू की चीन के प्रति निकटता को देखते हुए हाल में हुए राष्ट्रपति चुनाव को कई लोगों ने भारत और चीन की भूमिकाओं पर जनमत संग्रह के रूप में देखा था।

चुनाव प्रचार के दौरान मुइज्जू ने मालदीव में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी का मुद्दा उठाया था। उन्होंने यह भी कहा था कि भारत-मालदीव के बीच द्विपक्षीय व्यापार भारत के पक्ष में है। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कई बार दोहराया कि पद संभालने के पहले दिन से ही वह भारतीय सैनिकों की वापसी के लिए कदम उठाना चाहते हैं। कार्यभार संभालने से पहले ही उन्होंने भारतीय उच्चायुक्त के साथ इस पर चर्चा की और भारत से मालदीव के ऋण का पुनर्गठन करने की इच्छा व्यक्त की थी। इस समय भारत मालदीव में करीब 45 बुनियादी परियोजनाओं में शामिल है, जिनमें से पेयजल एवं स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों की कुछ परियोजनाएं सीधे मालदीव के लोगों को लाभ पहुंचा रही हैं। ‘ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट’ जैसी परियोजनाओं का उद्देश्य पड़ोसी द्वीपों को राजधानी माले से जोड़ना है।

हालांकि मुइज्जू ने इस बात की पुष्टि की है कि वह पहले से चल रही भारतीय परियोजनाओं को बाधित नहीं करेंगे, लेकिन अपने इस नजरिये में संभावित विरोधाभास दिखाते हुए उन्होंने समीक्षा का संकेत दिया है। यामीन के राष्ट्रपति काल में जीएमआर जैसी परियोजनाओं को 27 करोड़ डॉलर के मुआवजे के भुगतान के बाद भी अचानक रद्द कर दिया गया था। मुइज्जू ने अब तक केवल ऋण पुनर्भुगतान पर फिर से बातचीत की मांग की है, लेकिन भारतीय परियोजनाओं में कोई भी बाधा द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा कर सकती है।

एक दूसरी संभावित चिंता मुइज्जू का सलाफी विचारधारा से करीबी जुड़ाव है, जो द्विपक्षीय रिश्तों के लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है। आईएस लड़ाकों में शामिल होने की बढ़ती संख्या के साथ मालदीव में मजहबी कट्टरवाद का उदय लंबे समय से एक मुद्दा रहा है। वास्तव में सोलिह सरकार द्वारा कट्टरवाद के साथ सावधान रवैया ही एमडीपी में विभाजन का एक प्रमुख कारण था।

भारतीय सैनिकों की तैनाती को राजनीतिक मुद्दा बनाने वाले यामीन के साथ मुइज्जू का जुड़ाव वास्तव में भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को और जटिल ही बनाने वाला है। मालदीव के विशाल समुद्री क्षेत्र को देखते हुए स्वतंत्र रूप से इसकी सुरक्षा मालदीव के लिए चुनौतीपूर्ण रही है और भारत को ऐतिहासिक रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा प्रदान करने वाले देश के रूप में देखा गया है। वर्ष 2004 की सुनामी और हालिया पेयजल संकट के दौरान सबसे पहले भारत ने ही मालदीव में मदद का हाथ बढ़ाया था। दोनों देशों के लोगों के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। मालदीव के लोग अक्सर चिकित्सा के लिए भारत आते हैं और भारतीय शिक्षक एवं डॉक्टर मालदीव के स्कूलों एवं अस्पतालों में कार्य कर रहे हैं।

अतीत में मालदीव ने संतुलित कूटनीतिक रुख अपनाया, लेकिन यामीन की सरकार के दौरान यह अपनी राह से भटक गया। इससे चीन को हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव और बढ़ाने में मदद मिली। अपने शपथ ग्रहण समारोह में मुइज्जू ने फिर दोहराया कि वह कूटनीतिक तरीकों से भारतीय सैनिकों को हटा देंगे। कुछ लोग इसे मुइज्जू द्वारा मालदीव में भारत की स्थिति को कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखते हैं। हालांकि उनके राजनीतिक सलाहकार मोहम्मद हुसैन शरीफ ने पद संभालने के बाद पहली बार भारत आने की परंपरा का सम्मान करने और हिंद महासागर क्षेत्र की सुरक्षा में किसी बाहरी ताकत की भूमिका नहीं होने देने पर जोर दिया है। ऐसे में देखना होगा कि कार्यभार संभालने के बाद मुइज्जू का रुख क्या रहने वाला है।

-लेखक एमपी-आईडीएसए में एसोसिएट फेलो हैं।

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