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किसानों के मसीहा थे चौधरी चरण सिंह

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मुनेश त्यागी 

     चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को हुआ था। उनका देहांत 29 मई 1987 को हुआ था। यह उनकी 36वीं पुण्यतिथि का मौका है। उनका जीवन गरीबी में बीता। उनके परिवार वालों ने और उनके पिता ने उनके पढ़ने लिखने पर जोर दिया। उन्होंने विज्ञान से स्नातक किया और वकालत की परीक्षा पास की और गाजियाबाद और मेरठ में वकालत शुरू की।

     उनका परिवार और पूर्वज आजादी के दीवाने थे। उनके पूर्वजों ने 1857 के आजादी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और राजा नाहर सिंह अंग्रेजों का मुकाबला करने में सबसे आगे थे। 1929 में चरण सिंह ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और जेल गए। 1940 को वे दूसरी बार जेल दिए गए। 1952 में वे उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री बने और उन्होंने एक महत्वपूर्ण काम किया और वह यह था कि उन्होंने 1952 में जमींदारी उन्मूलन कानून पास कराया और किसानों को जमीन का मालिक मालिकाना हक दिलवाया।

     1952 में उन्होंने 27000 पटवारियों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया और किसानों को पटवारियों के आतंक से आजाद किया। नए पटवारियों की नयी नियुक्तियों में उन्होंने 18 पर्सेंट हरिजनों को नियुक्ति दी। कुछ दिन बाद उनके जवाहरलाल नेहरू मतभेद हो गए और उन्होंने 1967 में कांग्रेस छोड़ दी और एक नया दल बना लिया। इस बीच वे लगातार किसानों की भलाई के लिए कार्य करते रहे।

    1975 में आपातकाल का विरोध करते हुए वे तीसरी बार जेल में गए। 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार बनी और उसमें उन्हें उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बनाया गया। दो साल बाद मोरारजी देसाई से मतभेद हो गए और उन्होंने जनता दल छोड़ दिया। 1979 में वे कांग्रेस के समर्थन से भारत के प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस ने उन पर कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की शर्त रखी, जिसे उन्होंने नहीं माना और इस कारण प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 

    वे गांधी जी के समर्थक और शिष्य थे। उन्होंने कभी भी गांधी टोपी नहीं छोड़ी। चौधरी चरण सिंह ने गुलामी और अंग्रेजी साम्राज्यवाद का जमकर विरोध किया और भारत की जनता को आजाद कराने के आंदोलन में शरीक हुए और स्वतंत्रता सेनानी बन गए। उन्होंने जमींदारी उन्मूलन किया, आपातकाल का विरोध किया, किसानों की राजनीति की और किसानों के मसीहा बने। उन्होंने किसानों को वाणी प्रदान की और उन्हें अपने हक और अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया।

    वे किसान एकता के प्रबल समर्थक थे, हिंदू मुस्लिम एकता के कायल थे। सिद्धांत उनके दिमाग में और व्यवहार में कूट-कूट कर भरे थे। और वे धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करते थे। उन्होंने कभी पद का लालच नहीं किया और सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया और उन्होंने अपने सिद्धांतों की हिफाजत की खातिर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

     यहां पर सवाल उठता है कि वे क्या चाहते थे?  चौधरी चरण सिंह किसानों की एकता और हिंदू मुस्लिम एकता चाहते थे। किसानों के सभी प्रकार के शोषण और अन्याय के खिलाफ थे। वे चाहते थे कि भारत का किसान बिना शोषण के, बिना अन्याय के, बिना जुल्मों सितम के, एक आजाद और स्वाभिमानी व्यक्ति की तरह रहे और जिये और अपना कृषि कार्य करें। चौधरी चरण सिंह सारी जनता को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा चाहते थे। सबको काम और रोजगार चाहते थे। वे चाहते थे वह पूरी जनता को मुफ्त इलाज मिले, वे इसके प्रबल समर्थक थे। वे किसानों को फसलों का  लाभकारी दाम मिले, यह चाहते थे। वे किसानों की एकता और हिंदू मुस्लिम एकता और दोस्ती के सबसे बड़े समर्थक थे।

     चौधरी चरण सिंह जमींदारी और महाजनी व्यवस्था का खात्मा चाहते थे। कृषि प्रधान जातियों को राहत देना चाहते थे। वे किसानों की सत्ता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने अपने जीवन में  भारत किसानों की समस्याओं पर 12 किताबें लिखीं। पोल ब्रास अमरीकी प्रोफेसर ने उन पर 3 वोल्यूम में किताब लिखी और उनके विचारों से सारी दुनिया को अवगत कराया। चौधरी चरण सिंह ने किसान कर्ज मुक्ति की बात की, किसानों की मुक्ति की बात की। जमीदारों द्वारा किसानों की बेदखली का विरोध किया।

     उनका मानना था कि ज़मींदारी व्यवस्था खत्म करके ही भारत में लोकतंत्र और कानून के शासन को जिंदा रख सकते हैं। वे राजनीतिक अपराधीकरण के पूर्ण रूप से विरोधी थे। उन्होंने चकबंदी का कानून पास किया जो किसानों को बहुत बड़ी राहत देता है। चरण सिंह का बनाया चकबंदी कानून किसानों के लिए एक वरदान साबित हुआ। इस कानून ने किसानों के लिए नालियों और चकरोड़ों व रास्तों का जाल बिछा दिया, जिससे किसानों को खेती करने में बहुत बड़ी राहत मिली थी। यह चौधरी चरण सिंह का किसानों के लिए यह सबसे बड़ा काम था। वे जाट नेता नहीं बल्कि किसान नेता के रूप में पूरी दुनिया में जाने गए। अपने प्रगतिशील कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कांग्रेस का समर्थन लिया। लोगों से बातचीत करने की नीति को अपनाया। उनकी भाषा सीधी, सरल और सुसंस्कृत थी। 

    उन्होंने लैंड सीलिंग कानून पास कराया और जमीदारों से फालतू जमीन निकलवाई और उसका बटवारा किसानों ने किया। उन्होंने ओबीसी का आरक्षण कराया। वे भारतीय कृषि व्यवस्था को बेहतर करना चाहते थे। अपने मंत्रित्व काल में उन्होंने कृषि को और किसानों को बहुत राहत प्रदान की। वे भारत की ग्रामीण जनता को राहत देने के लिए ग्रामीण उद्योग धंधों को स्थापित करना चाहते थे और उन्हें गांव स्तर पर बढ़ाने और स्थापित करने की बात करते थे।

    इन्हीं कारणों से, उनके काम और नीतियों को भारत का शोषक और शासक वर्ग पसंद नहीं करता था। भारत के बड़े-बड़े पूंजिपति, धन्ना सेठ और पैसे वाले, उनकी नीतियों से मतभेद रखते थे और उनके काम में रोड़े अटका आते थे, वे उनकी नीतियों को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे।इन सब मतभेदों के कारण उन्होंने प्रधानमंत्री पद तक की परवाह नहीं की थी। इन सब मतभेदों के कारण, उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

     वे किसानों और मजदूरों को राजनीति की मुख्यधारा में लाना चाहते थे, उन्हें इस देश का शासक प्रशासक बना देना चाहते थे। मगर आज जब हम उनके किए गए कार्यों पर एक नजर दौड़ाते हैं तो हम पाते हैं कि यह चौधरी चरण सिंह के सपनों का भारत नहीं है। आज उनकी नीतियों को छोड़कर, हमारी सरकार पूंजीपतियों और धन्ना सेठों की मदद कर रही है और इस काम को करने में सरकार सबसे आगे है। सरकार चौधरी चरण सिंह के अनुसार किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम देने को तैयार नहीं है, वह किसानों की समस्याओं को रोजी, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुढ़ापे की सुरक्षा की समस्याओं को दूर करने को तैयार नहीं है।

    हम यहां पर एक बात और कहना चाहेंगे कि जिस तरह से और जितनी मेहनत से चौधरी चरण सिंह ने अपनी सारी जिंदगी किसानों के कल्याण के लिए लगाई, उनके कल्याण के लिए बहुत सारे कानून बनाए, अगर उसी मेहनत से वे इस देश के मजदूरों, गरीबों, एससी, एसटी के कल्याण के लिए भी कुछ नियम कानून बनाते, तो वे दुनिया के सर्वकालिक महान दार्शनिक और नेता कहे जाते। फिर भी उन्होंने किसानों के लिए जो कुछ किया, वह किसानों के लिए बहुत बड़ा काम था।उनका वह कार्य ही उन्हें एक महान किसान नेता के रूप में प्रदर्शित और स्थापित करता है।

     अब हमारे पास एकजुट होकर, चौधरी चरण सिंह की नीतियों को जनता के बीच ले जाकर, उनके सपनों का भारत बनाने के अलावा कोई चारा नहीं है। सच में  वे किसानों के मसीहा थे। उन्होंने किसानों के लिए जो कुछ किया, भारत में वह काम कोई अन्य नेता नहीं कर पाया। किसानों मजदूरों और भारत की जनता की समस्याओं को हल करने के लिए आज हजारों चौधरी चरण सिंहों की जरुरत है।

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