साराह खान
15 जुलाई को हैदराबाद के 95 साल पुराने उस्मानिया जनरल अस्पताल के एक वार्ड में बारिश का पानी भर गया. देखते ही देखते सोशल मीडिया में अस्पताल स्टाफ के परिसर से पानी उलीचने वाले और तैरते सुरक्षा उपकरणों के वीडियो शेयर होने लगे. राज्य प्रतिक्रिया दल ने आकर पानी में डूबे वार्ड के 30 मरीजों को दूसरे माले के वार्ड में शिफ्ट किया तो पहले से ही खचाखच भरे इस अस्पताल में भीड़ और बढ़ गई.
पुराने हैदराबाद में उस्मानिया अस्पताल सहित कुल तीन अस्पताल हैं जबकि इस इलाके में हैदराबाद की तकरीबन आधी आबादी का बसेरा है. यह इलाका नए हैदराबाद से ज्यादा गरीब और आबादी के हिसाब से अधिक घना है और इसलिए महामारी से निपटने में तेलंगाना सरकार की विफलता यहां स्पष्ट दिखाई देती है. इसके बावजूद 25 जुलाई को राज्य सरकार ने बताया कि वह विधायकों से उस्मानिया जनरल अस्पताल को गिरा देने के विषय में परामर्श कर रही है.
यह अस्पताल ऐतिहासिक है और पुराने शहर के महत्वपूर्ण भवनों में से एक है. मैं दुनिया भर में रही हूं और फिलहाल न्यूयॉर्क में बसी हूं लेकिन मैं हर साल हैदराबाद आती हूं. जब भी मैं हैदराबाद आती हूं तो मुझे इस बात का भरोसा रहता है कि मूसी नदी के किनारे बने राजसी उस्मानिया जनरल अस्पताल की ऊंची मीनारें मेरे स्वागत में खड़ी होंगी. अस्पताल की तरह हैदराबाद के कई महत्वपूर्ण स्मारक, शहर के आखिरी निजाम मीर उस्मान अली खान के शासन काल में बने थे. निजामी शासन ने हैदराबाद में अपनी अमिट छाप छोड़ी है. इस शहर की गलियां हिंद-अरब वास्तुकला की नुमाइश हैं और शहर को अलग पहचान देती हैं. जैसे-जैसे निजाम का इतिहास भुलाया जा रहा है वैसे-वैसे साफ होता जा रहा है कि बीती सदी ने इस विरासत पर रहम नहीं किया.
उस्मानिया अस्पताल को गिराने की तेलंगाना सरकार की कोशिश, उस चलन का हिस्सा है जिसमें हैदराबाद को वास्तुकला की दृष्टि से आधुनिक बनाने के प्रयासों में उसकी समृद्ध विरासत और इतिहास को मिटाया जा रहा है. सरकार ने बार-बार दवा किया है कि शहर को आधुनिक शक्ल देने से विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा. 2016 में हैदराबाद नगर निगम चुनावों में जीत के बाद राज्य के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव ने घोषणा की थी कि वह हैदराबाद की आधारभूत संरचना के लिए निवेश लाएंगे ताकि हैदराबाद “सही मायने में वैश्विक शहर” बन सके. हैदराबाद के लिए राव की योजना के केंद्र में यही विचार है. लेकिन ऐसा करते हुए सरकार को शहर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान के मिट जाने की परवाह नहीं है.
इससे पहले 7 जुलाई को राव ने आधी रात को बिना किसी पूर्व जानकारी के 132 साल पुराने सैफाबाद महल को ढहा दिया. गिराई गई इमारतें कमजोर नहीं थीं लेकिन इन्हें शहर की ताकतवर रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन लॉबी की खुशामद के लिए जमींदोज कर दिया गया.
उस्मानिया अस्पताल गिराने की सरकार की कोशिश आधे दशक पुरानी है. समाचार वेबसाइट द न्यूज मिनिट में 9 अक्टूबर 2015 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सी. लक्ष्मण रेड्डी ने कहा था कि इस अस्पताल की बिल्डिंग कमजोर है और यहां नियमित अस्पताल का संचालन नहीं किया जा सकता. इसके बाद तेलंगाना सरकार ने उस्मानिया अस्पताल को हेरिटेज साइट या धरोहर स्थल की सूची से हटा दिया था और प्रस्ताव दिया था कि भवन को गिरा कर उसकी जगह 24 मंजिल का आधुनिक अस्पताल बनाया जाएगा. लेकिन नागरिक समाज और भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर ट्रस्ट (इनटेक) जैसे संगठनों के विरोध के बाद सरकार ने अपनी योजना वापस ले ली.
इनटेक की 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार, उस्मानिया अस्पताल का भवन ढांचागत रूप से बहुत अच्छी और स्थिर स्थिति में है. उस रिपोर्ट में कहा गया था कि यह इमारत रहने वालों के लिए खतरा नहीं है. नवंबर 2019 में राज्य के वास्तुकला और म्यूजियम विभाग ने और आगा खान सांस्कृतिक ट्रस्ट ने कहा था कि उस्मानिया अस्पताल को बहुत मामूली मरम्मत की जरूरत है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भवन का ढांचा स्थिर है और बहुत अच्छी तरह से संरक्षित है और भवन के गिरने या ढांचे के बैठने का खतरा नहीं है.
हाल की बाढ़ ने राज्य सरकार को 2015 के अपने मंसूबे को अमली जामा पहनाने का मौका दे दिया है. 22 जुलाई 2020 को राज्य के चिकित्सा शिक्षा निदेशक रमेश रेड्डी ने अस्पताल के प्रशासन को पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने छह वार्डों और दो ऑपरेशन थियेटरों सहित संपूर्ण भवन को खाली कर देने को कहा था. सरकार ने अस्पताल के 11 खंडों में से आठ खंडों को प्रयोग के लिए अनफिट करार दिया है. सरकार के फैसले का समर्थन करते हुए 20 जुलाई को तेलंगाना राज्य सरकार चिकित्सक संगठन ने अस्पताल के बाहर प्रदर्शन किया और नए भवन के निर्माण की मांग की. उसी दिन तेलंगाना के वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री इताला राजेंद्र ने घोषणा की कि “जल्द” उस्मानिया अस्पताल को गिरा दिया जाएगा.
हैदराबाद की संरक्षक वास्तुकार अनुराधा नायक ने मुझे बताया, “सरकार के फैसले की सबसे खराब बात यह है कि महामारी के बीच में राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल बंद किया जा रहा है.” नायक ने आगे कहा, “हैदराबाद में पुराने शहर में महामारी का सबसे खराब असर पड़ा है और यहां के गरीब लोग दूर के अस्पतालों में जा पाने की स्थिति में नहीं हैं और इन हालात में लोगों से अस्पताल छीन लेना माफी के लायक बात नहीं है.” नायक और अन्य विशेषज्ञों के अनुसार, मामला इमारत में समस्या का नहीं है बल्कि समस्या अनदेखी किए जाने की है. नायक ने कहा, “अगर कोई शख्स बीमार है तो हम उसे मार नहीं देते, हम बीमारी को ठीक करते हैं.”
फिर सरकार बीमार को मारना क्यों चाहती है? इस सवाल का जवाब उस त्रासदी में छुपा है जो इस शहर में दशकों से जारी है. इस शहर में सिएटल के बाहर अमेजन का सबसे बड़ा कार्यालय है और यहां गूगल, फेसबुक और एप्पल जैसी कंपनियों के बड़े-बड़े कार्यालय हैं. हैदराबाद अपने समृद्ध अतीत की कीमत पर भविष्य में छलांग लगाना चाहता है. संरक्षण कार्यकर्ता और इतिहासकार सज्जाद शाहिद ने मुझसे कहा, “आपके पास इतिहास, सांस्कृतिक विरासत और महत्व की बुनियादी समझदारी होनी ही चाहिए. ये शहर की पहचान हैं, ये इतिहास के स्मारक हैं और अगर आप इनका संरक्षण नहीं करते तो फिर हैदराबाद 400 साल पुराना हैदराबाद नहीं रह जाता.”
जिस शहर से मैं प्यार करती हूं उस शहर की पहचान का मिट जाना मेरे लिए दिल के टूटने जैसा है. बंजारा हिल्स और जुबली हिल्स से जुड़ी बचपन की यादें, आज भी भीड़भाड़ वाली सड़कों से गुजरते हुए मेरे दिमाग में तैर जाती हैं. जब मैं बड़ी हो रही थी तो मुझे मेरे दादा-दादी के घर में अविश्वसनीय रूप से लंबे अशोक के पेड़ों को देखकर हैरानी होती थी. आज मेरे दादा-दादी का घर व्यस्त मुख्य सड़क में अकेला हो गया है और तब के ऊंचे पेड़, ढेरों अपार्टमेंटों के सामने बौने नजर आते हैं. मेरे अब्बू पुराने शहर की गलियों में बनी बालकनियों और महराब वालीं खूबसूरत इमारतों के धीरे-धीरे खराब होकर गायब हो जाने से लगातार नाराज रहते हैं.
मैं अक्सर हैदराबाद की गायब होती विरासत के बारे में लिखती हूं और जब भी यहां आती हूं, तो मैं इस शहर के शानदार अतीत की निशानियों की तलाश में निकल जाती हूं. चारमीनार, कुतुब शाही मकबरा और चौमहल्ला पैलेस जैसी जानी-मानी इमारतों और कम नाचीन स्मारक जैसे संगमरमर पर नक्काशी कर बनाए गए पैगाह मकबरे, 17वीं सदी का गोशामहल बारादरी और शियाओं के मोहर्रम की जगह बादशाही आशुरखाना घूमती हूं. लेकिन स्थानीय हैदराबादियों की नजरों में उस्मानिया जनरल अस्पताल आज भी उनकी सबसे चहेती पहचान है.
अस्पताल की इमारत को उस्मान अली खान ने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में शहर की अपनी कल्पना के तहत बनवाया था. जिस वक्त यह अस्पताल बना था, वह दौर भी आज के समान ही उथल-पुथल वाला था. खान को आधुनिक हैदराबाद का वास्तुकार कहा जाता है. उन्होंने एक महत्वकांक्षी निर्माण परियोजना की अगुवाई की जिसने शहर को बिजली, रेल यातायात, डाक सेवा, हवाई अड्डा, कई पुस्तकालय, कई बागीचे, बांध, बाजार, अदालतें और अस्पताल दिए. लगता है कि तीव्र आधुनिकीकरण की चाहत इस शहर की पुरानी आदत है लेकिन अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद शहरी योजना में निजाम अपने वक्त से बहुत आगे थे. लेकिन आज की इमारतों के बरअक्स, जो बदसूरत और फीकी होती हैं, निजाम का सौंदर्यबोध जानदार था. उन्होंने 1912 शहर सुधार बोर्ड की स्थापना की जिसका उर्दू नाम बड़ा रुमानी है. निजाम ने बोर्ड का नाम रखा था आराइश-ए-बलदिआ या शहर की सजावट. निजाम के शासनकाल में आधुनिक चिकित्सा हैदराबाद में चमक रही थी. 1888 में क्लोरोफॉर्म अध्ययन में शहर आगे था. हैदराबाद मेडिकल कॉलेज की स्थापना 1847 में हुई थी और इसी कॉलेज में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉक्टर रॉनल्ड रॉस ने मलेरिया पैरासाइट की खोज की थी. निजाम ने 1919 में ब्रिटिश वास्तुकार विंसेंट इश्च को आधुनिक अस्पताल का डिजाइन तैयार करने का ठेका दिया जिसके परिणाम स्वरूप बना उस्मानिया जनरल अस्पताल जो अपनी हिंद-अरब वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध तो था ही साथ ही आधुनिक सुविधाओं के लिए भी मशहूर था. इस भवन को मरम्मत जरूर है लेकिन इसकी बनावट और डिजाइन जबरदस्त हैं. यह अस्पताल किसी महल के अंदर नहीं बना है और ना ही यह हेरिटेज इमारत है बल्कि इसका निर्माण आधुनिक चिकित्सा सुविधा को ध्यान में रखकर किया गया है. नायक ने मुझे बताया, “यह इमारत आने वाली सदी के लिए भी तब तक प्रासंगिक रहेगी जब तक की चिकित्सा में कोई बड़ा बदलाव नहीं आ जाता. हम शहर के बीच में बनी एक स्वास्थ्य सुविधा को हटा रहे हैं जिसकी हमें बहुत जरूरत है.”
2015 से राव उस्मानिया अस्पताल के स्थान पर चमकदार नया भवन बनाने की जिद्द पर अड़े हुए हैं. ऐसा कर वह हैदराबाद के इतिहास पर अपना ठप्पा लगाना चाहते हैं. नायक ने मुझसे कहा, “यह अस्पताल हैदराबाद शहर के बीचोबीच 26 एकड़ जमीन पर बना है और रियल एस्टेट की दृष्टि से बहुत से लोगों की इस पर नजर है. लेकिन इस जमीन पर खड़ी इमारत बहुमूल्य है. लेकिन लोग इस तरह कहां सोचते हैं. वे तो हर चीज की कीमत लगाते हैं.” हैदराबाद के हाल के नेता शहर को भविष्य में ले जाने में इस कदर आमादा हैं कि अपने इतिहास को लेकर अंधे हो गए हैं. अपनी विरासत की उन्हें इतनी चिंता भी नहीं रहती कि अपने से पहले के नेताओं की विरासत का संरक्षण कर लें.
राव ने 2014 में ही 132 साल पुराने सैफाबाद महल को गिरा देने की अपनी इच्छा व्यक्त की थी. तब वह पहली बार राज्य की सत्ता में आए थे. राव ने वास्तु विशेषज्ञों को सचिवालय का अध्ययन करने को कहा था और उन्होंने राव को बताया था कि यह भवन उनके लिए बुरा है. इसके बाद से ही मुख्यमंत्री ने इस सचिवालय में काम नहीं किया है बल्कि वह मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास में बने एक ऑफिस से काम करते हैं.
कांग्रेस सांसद और फोरम फॉर गुड गवर्नेंस के रेवंत रेड्डी ने सचिवालय और सैफाबाद महल को गिराए जाने के राव के फैसले को तेलंगाना उच्च अदालत में चुनौती दी पर 30 जून को हाई कोर्ट ने उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया जिसके बाद तेलंगाना सरकार ने सचिवालय गिरा दिया. विरासत संरक्षण कार्यकर्ताओं के अनुसार, यह भवन भी अच्छी हालत में था और उसमें बहुत मामूली मरम्मत करने की जरूरत थी लेकिन सरकार उसे गिरा कर उसके स्थान पर एक चमकदार नया सचिवालय बनाने की जिद्द पर अड़ी रही.
“आप खुद की वास्तुकला पहचान तब तक नहीं बना सकते जब तक कि लोगों के दिमाग में ज्यादा अंदर तक बसी हुई पहचान से निजाद ना पा लें.” यह बात मुझे इतिहासकार और संरक्षण कार्यकर्ता शाहिद ने कही. लेकिन जिस तरह की इमारतें आज हैदराबाद में दिखाई देती हैं उनसे लगता नहीं कि आज के नेता शहर की वास्तुकला विरासत के सही नुमाइंदे हैं. शाहिद ने कहा, “हमें संवेदनशील होना चाहिए. हमने उनके सौंदर्यबोध को देखकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठाया है.”
आज 17 अगस्त को तेलंगाना हाई कोर्ट अस्पताल को गिराए जाने से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. इस बीच हजारों हैदराबादियों ने शहर के बचे वास्तुकला आकर्षण को गिराए जाने का विरोध करते हुए याचिका में हस्ताक्षर किए हैं. नायक कहते हैं, “एक कहावत है कि बिना इतिहास का शहर उस आदमी की तरह है जिसकी कोई याददाश्त नहीं होती. हैदराबाद हाईटेक जॉंम्बी की तरह हो जाएगा जिसकी आत्मा नहीं होगी क्योंकि इसके पास इतिहास से कुछ नहीं होगा.”
साराह खान ट्रैवल जर्नलिस्ट हैं और न्यू यॉर्क में रहती हैं