अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

नशे की राह पर नौनिहालों की  एंट्री ,  खोता जा रहा बचपन

Share

नशे की मंडी में अब नौनिहालों की भी एंट्री हो गई है. चरस, गाजा, अफीम, मुनक्का (भांग की गोली) और स्मेक जैसे नशे के बारे में तो हम सभी वाकिफ हैं. लेकिन, इन दिनों एक नए नशे की एंट्री हो गई है जो आसानी से उपलब्ध है. हैरानी की बात है कि नशे के कारोबारियों ने अपनी पहुंच गांवों तक बना ली है. इसरो नाबालिग नशेबाजों की एक ऐसी फौज पनपने लगी है, जिसमें नौनिहालों के वर्तमान और भविष्य पर ग्रहण लगा दिए हैं. बच्चों और युवाओं में वैकल्पिक नशे की लत जिस तेजी से फैलती जा रही है, वह समाज और सरकार के लए गंभीर चिंता का विषय होना वाहिए. लेकेन देखने में ये आ रहा है कि काली कमाई करके नौजवान पीढ़ी को नशे की दुनिया में धकेलने वालों के आगे हमारी कानून-व्यवस्था नतमस्तक है. वैक ल्पक नशे की जद में सबसे ज्यादा स्कूली बच्चे आ रहे हैं. वैकल्पिक नशे के खिलाफ सरकार और समाज दोनों को व्यापक अभियान चलाने को जरूरत है. साथ ही इस तरह के नशे का सामान मुहैया कराने वालों के खिलाफ कार्रवई भी हो. तभी हम अपनी भावी पीढ़ी को नशे के चंगुल से बचा पाएंगे.

ओजस्क र पाण्डेय

मजिक न्याय और अधिकारिता मंगलग के आंकड़े बताते हैं कि 40 लाख बच्चे ओपियाडका नशा करते हैं परंपरागन नशे के खिलाफ तो जगरूकता अभियान और कार्यक्रम चलाए ही जाते हैं, लेकिन चिंतनीय और हैरान करने बाली बात यह है कि आजकल वैकल्पिक नशे का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है और इस खतरे की तरफ किसी का ध्यान नहीं है. अक्सर लोग सिगरेट बीडी, तंबक शराब, भांग चरन, हेरेरोइन जैसे नशीले पदार्थों को ही नशीले पदार्थों गिनते हैं, लेकिन शायद लोगों को यहपता नहीं हैकि कुछ ऐसी भी चीजें हैं, जिनों हम नशे की श्रेणी में नहीं रखते पर उनसे भी नशा होत है जो दूसर्या नशों की तुलना में ज्यादा जानलेवा है.

यह नशा पंक्चर जोड़ने वाले (सायन, जाटार थिनर, कफ लिस, पेंट, जायोडेक्त, फेवीकिक और इंजेक्शन के रूप लिया जाने बाला एबिल, फोर्टबीन, फेनार्गन, केटामिल आदि का होता है, नशा देने वाली गे दवाइयां और रसायन सस्ते दाम में आसानी से दवा या दूसरी दुकानों पर मिल जाते है. नशे की चाहमें युब वर्ग कफ सिरप को शराब की तरह प्रयोग कर रहे हैं इस वजह से इसकी मांग बढ़ती जा रही है. ज्यादातर कप सिरप कोडिन, सीटीएम, फेगडलएफिग्नि युक्त होते हैं जो ज्यादा मात्रा में लेने पर नशा पैदा करते हैं अधिकतर युक्क नरे के लिए कफ सिरप के अलावा इंजेक्शनों का भी इस्तेमान करते हैं. इस वैकल्पिक नशे

की गिरफ्त में अधिकतर युक्क चौदह से लेकर तीरा बर्ष के हैं. इसके शादी हो चुके युवकों को वाली बात है कि एचिल का इंजेक्शन तीन रुपए में दवा दुकान पर आपानी से मिल जाता है हालाकि सरकार नियन है कि किती भी प्रकार की दवाओं की बिक्री बिन किमी अधिकृत चिकित्सक के परचे के बगैः न की जाए, चाहे वह खांसी का सिरप हो या फिर कोई परतु पैसे के लालच में दुकानदार भड़ल्ले से इसकी बिक्री कर रहे हैं जान जानकारों की मानें तो इन दवाओं के अनुचित प्रयोग पर बंदिश लगाने के लिएयुवाओं को शिक्षित किया जाना जरूरी है साथ ही, अभिभावक भी अपने बच्चों पर ध्यान दें.

जानकारों की माने तो औषिधड के तहत वो नशा आता है जिसे आमतौर पर इंसन दर दूर करने के लिए डॉक्टर की सलाह पर लेता है, जैसे दर्द दूर करने वाली टेबलेट, दर्द और नींद में राहत देने वाले इंजेक्शन आदि, लेकिन नशा करने वाले इसकी लत लगा लेते हैं, अपने हाथ से ही शरीर में इंजेक्शन लगने लगते हैं इस तरह का नश बच्चों के देमाग और उनके शरीर को नसों पर अप्तर डलता है. इनहेलर और अल्कोहल के मामले में बच्चों का आंकड़ा 30-30 लाख है इनहेलेंट के रूप में बच्चे व्हाइटनर, थिनर और जूता बनाने के काम में आने वाले एक सॉल्यूशन को कप हेम रखकर सूपते हैं. 18 साल से बड़े भी इन नरें को कर रहे हैं, मंत्रालय का आंकड़ा बताता है कि बालिग कहे जाने वाले की लाख लोग इस

कोई बच्चा या युवक इस तरह का नशा कर रहा हैया नहीं इसका कैसे पता लगया जाए, यह बडा सवाल है. कुछ बिंदुओं का ध्यान में रखने परव्यसन करने वाले का शुरु आर्त अवस्था में हो पता लगाया जा सकता है. जैसे- बच्चे के जेबखर्च में बढ़ोतरी अथवा पर से कीमती सामान गायब होते लगना, कार्य में अरुचि, अधिकतर स्मय घर से बाहर रहना, खेलकूद में अरुचि होना, अंतर्मुखी हो जाना, घर के लोगों के प्रति उदासीन हो जाना, एक स्थान पर लंबे समय तक बैठे रहन, स्वभाव में चिड़चिड़ापन और आक्रामकता का बढ़ना आदि. इसके अलावा शरीर और बांहों पर इंजेक्शन के ताजा निशान अथवा रुजन, नंबे समय तक आंखों का लाल रहना या आंखें बुझी-सी रहना, घरमें शवन कक्ष अथवा स्नानघर में इंजेक्शन को खाले सिरिजया कफ सिरपकी शीशी मिलना, या फिर अपराध प्रवृति बढ़जाना, उधारी और चोरी जैसी आदतें नयो की प्रवृति की सूचक हैं. ये सब संकेत इस बात की और इशारा करते हैं कि नशे की लत ने इंसान को उस स्तर पर लॉकर खड़ा कर दिया है कि व्यक्ति मादक पदार्थों के सेवन के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और जुर्म करने से भी परहेज नहीं करता.

तरहका नश कर रहे हैं, बड़ों में अल्कोहल के बाद इसी का दूसरा नंबर है. वहीं 30 लाख

बच्चे शराब और टिंचर-जिंजर की शक्ल में अल्कोहल ले रहे हैं. मासूम बच्चों को तो पह

भी नहीं पता कि वे अपर्न जिंदगी के साथ खितबाड़‌कर रहे हैं बरा ताल की उप्र के बच्चे वाइटनर जैसी बीजों के नशे के आदी होते जा रहे है. बाइटनर स्टेशनरी की दुकानों पर बेचना प्रतिबंधित नहीं है, इसलिए यह आसानी में उपलब्ध रहता है. तो कंपनियां वाइटनर बनाती हैं, उनके पास पैटेंट और अधिकार हैं. इसे बेचने के लिए कोई लाइसेंस भी नहीं चाहिए, बाइटनर पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीबीसी) का एक बहुलक है. पीवीसी रानी में घुलनशील नहीं होता. इसे घोलने के लिए अल्कोहल वाले द्रष की जरूरत होती है. इसी कारण यह न्शा करने के लिए प्रयोग किया जाता है. हालांकि सुप्रीम कोट के निर्देश के बाद इसे बनाने वाली कंपनियों ने पाइटनर-धिनः का मिश्रण तैयार कर उच्च सुरक्षा वाले पैकिंग में बिक्री का दाव किया थ, लेकिन अभी भी इसकी उपलब्धत आसान है. कुछ कंपनियों ने तो अब निब वाले पैकिंग ट्यूब बाजार में उतार दिए हैं. इसी तरह आयोडेक्स को खाकर नशा करने का चलन बढ़ रहा है. सामान्य पारंपरिक नशे से कहीं ज्यादा घातक इस नशीले पदार्थ को लत के जद में आ चुके कई किशोर और युवा मड़कों पर आसानी से मिल जाएंगे, झुग्गी बस्तियों में इस तरह के नशी का सेवन करने वाले सबसे ज्यादा हैं.

दिल्ली, मुंबई पटना, लखनऊ सहित कई बड़े शहर इसकी जद में है. दिल्ली में करीब दो सौ से ज्यादा झुग्गियों और इलाकों को पुलिस ने पहचान की है, जहां इस तरह नशा

सबसे अधिक हो रहा है. पुलिस का कहना है कि गहानगरों और अन्य शहरों में गुग्गी पस्तियों में नशे का कारोबार तो पहले ही से जोरों पर था, लेकिन अब ही यह रहा है कि चरस, हेरोउन जैसे नशे महंगे होने की वजह से लोग खासतौर से बच्चे सस्ते नशे की तलाश में जहरीले रसायनों का सेवन कर रहे हैं कबाड़ बीनने वाले प्रच्चों से लेकर स्कूल जाने वाले बच्चे तक इस नशे की जकड़ में है डाक्टरों की माने तोइस प्रकार के नशों से अचानक मौत भी हो सकती है. अल्कोहल पुक्त इव और रसायन तंत्रिका तंत्र को मीधा प्रभावित करते हैं, ऐसे में कम उम्र का व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है. सूंघने से श्वसन तंत्र पर दुष्प्रभाव पड़ता है. रासायनिक प्रभाव के कारण भीत्तरी हिस्सों में जख्म हो सकते हैं इस तरह के नशे से आमाशय और लीवर जैसे अंग तक प्रभावित हो सकते हैं और कैंसर जैसी गंभीर चीमारी की गिरफा में आ सकते हैं.

डेंडराइट और वाइटनर का ज्यादा सेवन मीभे दिमाग पर दुष्प्रभाव डालता है. इससे दिमाग की नसें सूखने लगती हैं और सोचने की क्ष्मता कम होती जाती है. इसी तरह, कोर्टबीन इंजेक्शन और कोर्डिनयुक्त कफ सिरप के लगातार सेवन से मतिभ्रम, पाददाश्त का कमजोर होना, लीवर में गड़बड़ और पेट व सीने में दर्द जैसी समस्याएं पैदा होती हैं. नशे के ये वैकल्पिक लीत नानसिक संतुलन भी बिगाड़ते हैं और मस्तिष्क की कोशिकाओं को नए कर देते हैं.

Add comment

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें