(विश्व जल दिवस विशेष 22 मार्च 2025)
डॉ. प्रितम भि. गेडाम
जल प्रकृति की सबसे बड़ी देन है क्योंकि संपूर्ण जीव सृष्टि का आधार पानी है, इसके बिना जीवन की कल्पना बेमानी हैं। जल समृद्धता से जंगल, पेड़-पौधे, वन्यजीव समृद्धता बढ़ती है, सबको शुद्ध जल और शुद्ध प्राणवायु मिलती है, ऋतु चक्र, मौसम और प्रकृति में संतुलन बना रहता है, खाद्यान की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ता है, प्रकृति के प्रत्येक घटक पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। जल शुद्ध और पर्याप्त मात्रा में सबको मिले तो समृद्धि निश्चित है, परंतु यह जल अपर्याप्त और प्रदूषित है, तो फिर यह जल विनाश का कारण है। विश्व का लगभग 97 प्रतिशत जल खारा है या पीने योग्य नहीं है। भारत देश में विश्व की सबसे ज्यादा 18 प्रतिशत जनसंख्या है, परंतु इसके मुकाबले दुनिया के जल संसाधनों का केवल 4 प्रतिशत भारत में है, जो इसे पानी की कमी वाले देशों में से एक बनाता है, इसका खामियाजा लोगों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ता है क्योंकि हर साल लाखों भारतीय दूषित पानी से बीमार होकर मरते हैं। द लैंसेट के एक अध्ययन के अनुसार, 2019 में जल प्रदूषण के कारण भारत में 500,000 से अधिक लोगों की मौत हुई।
हर साल 22 मार्च को दुनियाभर में “विश्व जल दिवस” पानी के महत्व और वास्तविक स्थिति पर जागरूकता हेतु मनाया जाता हैं। इस साल 2025 की थीम ‘ग्लेशियर संरक्षण’ है, जो भविष्य के लिए जमे हुए इन ग्लेशियर के जल संसाधनों का संरक्षण करने पर केंद्रित हैं। ग्लेशियर यह पानी का विशाल भंडार है, जो उसका पिघला हुआ पानी पेयजल, कृषि, उद्योग, स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक है, परंतु ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है और इस कारण बड़े-बड़े ग्लेशियर पिघल रहे है एवं वह पिघला हुआ शुद्ध जल समुद्र का स्तर बढ़ा रहे हैं। तेजी से पिघलते ग्लेशियर जल प्रवाह में अनिश्चितता पैदा कर रहे हैं, जिसका लोगों और ग्रह पर गहरा प्रभाव पड़ रहा हैं। कार्बन उत्सर्जन में वैश्विक कमी और ग्लेशियरों के सिकुड़ने के अनुरूप स्थानीय नीतियों की आवश्यकता हैं।
विश्व आर्थिक मंच ने 15 जनवरी, 2025 को जारी वार्षिक वैश्विक जोखिम रिपोर्ट के 20वें संस्करण में चेतावनी दी है कि भारत देश के सामने एक गंभीर चुनौती है, क्योंकि अगले दो वर्षों (2025-2027) में पानी की कमी देश के सामने सबसे गंभीर खतरा बनकर उभरेगी। शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार, सबसे बड़े वायु गुणवत्ता सूचकांक के अनुसार, प्रदूषित वायु औसत जीवन प्रत्याशा को 3.6 वर्ष तक कम कर रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल 3,575,000 लोग जल-संबंधी बीमारियों से मरते हैं। यह हर 10 सेकंड में एक मौत के बराबर हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने सरकार को 2024 के एक अध्ययन की जानकारी दी है, जिसमें पाया गया है कि पंजाब में प्रदूषित नदी-नालों के पास रहने वाले लोगों में कैंसर होने की संभावना अधिक होती हैं। जल प्रदूषण में औद्योगिक कूड़ा, मल, माइक्रोबियल प्रदूषण, निलंबित पदार्थ, रासायनिक प्रदूषण, घुलनशील प्रदूषक, रेडियोधर्मी कचरे, थर्मल प्रदूषण, मानव अपशिष्ट, औद्योगिक उद्यम, ऑयल पॉल्यूशन, कृषि प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, खनन, रेडियोधर्मी प्रदूषण, ठोस अपशिष्ट, अम्ल वर्षा जैसे कारण विशेष है, पानी के संपर्क में आते ही यह विशेष कारण जल को विषैला बना देते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2021 में 2 बिलियन से ज्यादा लोग पानी की कमी वाले देशों में रहते थे। 2022 में, वैश्विक स्तर पर कम से कम 1.7 बिलियन लोग मल से दूषित पेयजल स्रोतों का उपयोग करते थे। मल संदूषण के कारण पेयजल में सूक्ष्मजीवों का संदूषण, पेयजल सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। 2021 में, 251.4 मिलियन से अधिक लोगों को सिस्टोसोमियासिस के लिए निवारक उपचार की आवश्यकता थी। सूक्ष्मजीवीय रूप से दूषित पेयजल से डायरिया, हैजा, पेचिश, टाइफाइड और पोलियो जैसी बीमारियां फैल सकती है, तथा अनुमान है कि इससे हर साल डायरिया से संबंधित लगभग 505,000 मौतें होती हैं। 296 मिलियन लोग असुरक्षित कुओं और झरनों से पानी भरते है और 115 मिलियन लोग झीलों, तालाबों, नदियों और झरनों से अनुपचारित सतही जल एकत्र करते हैं।
तीव्र शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जल संसाधनों का प्रदूषण बढ़ गया है, जिससे वे उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो गए हैं। अकुशल कृषि पद्धतियां, रसायनों का अत्यधिक उपयोग, भूजल का अत्यधिक दोहन, जलवायु परिवर्तन, खराब जल प्रबंधन और उचित बुनियादी ढांचे की कमी जैसे कई कारक जल की कमी के संकट को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विश्व बैंक के कुछ आंकड़े अनुसार, भारत देश में 163 मिलियन भारतीयों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है, 210 मिलियन भारतीयों को बेहतर स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच नहीं हैं। 21 प्रतिशत संक्रामक रोग असुरक्षित जल से संबंधित है, भारत में प्रतिदिन पांच वर्ष से कम आयु के 500 बच्चे दस्त से मरते हैं। भारत की आधी से अधिक नदियाँ अत्यधिक प्रदूषित हैं, तथा कई अन्य नदियाँ आधुनिक मानकों के अनुसार असुरक्षित स्तर पर हैं। शहरों से बहनेवाली नदियाँ नालों का स्वरूप धर चुकी हैं। नीति आयोग की 2018 समग्र जल प्रबंधन सूचकांक रिपोर्ट में कहा गया है कि सुरक्षित जल की अपर्याप्त पहुंच के कारण हर साल लगभग दो लाख लोग मर जाते हैं। 2030 तक लगभग 600 मिलियन लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है, जो भारत देश की अनुमानित जनसंख्या का लगभग 40 प्रतिशत होगा।
वॉटर गैर-लाभकारी संगठन बताती है कि, भारत देश में 1.4 बिलियन की आबादी में से आज भी 35 मिलियन लोगों के पास सुरक्षित जल तथा 678 मिलियन लोगों के पास सुरक्षित स्वच्छता तक पहुंच नहीं है, सुरक्षित जल और स्वच्छता की कमी के कारण हर वर्ष दस लाख से अधिक लोग मरते हैं, तथा हर दो मिनट में एक बच्चा जल या स्वच्छता से संबंधित बीमारियों के कारण जान गंवाता है। विश्व के 29 प्रतिशत स्कूलों में स्वच्छ जल और शौचालय जैसी बुनियादी आवश्यकताओं का अभाव है। बुनियादी जल और स्वच्छता की कमी के कारण हर वर्ष विश्वभर में 260 बिलियन डॉलर बर्बाद हो जाते हैं। विश्व की कम से कम 50 प्रतिशत जनसंख्या वर्ष में कम से कम एक माह तक अत्यधिक जल संकट में रहते हैं। दुनियाभर में महिलाएं और लड़कियां प्रतिदिन कई किलोमीटर तक पानी के लिए भटकती है और पानी इकट्ठा करने में 200 मिलियन घंटे तक बिताती हैं। घर पर सुरक्षित जल और स्वच्छता की उपलब्धता, व्यतीत किए गए समय को बचाती है, जिससे परिवारों को शिक्षा और कार्य के अवसरों को प्राप्त करने के लिए अधिक समय मिलता है, जिससे उन्हें गरीबी के चक्र को तोड़ने में मदद मिलेगी।
जब तक किसी चीज की कमी न हो, तब तक मनुष्य को उस चीज की कीमत नहीं समझतीं, जल से जीवन है, अधिकतर लोगों को पानी प्राप्त करने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती, उनके हिसाब से दुनिया में पानी सहज उपलब्ध है, शायद इसलिए पानी का मोल लोग नहीं समझते हैं। किसी कठिन परिस्थिति में अगर पानी न मिलें तो तन-मन व्याकुल हो उठता हैं, ग्रीष्म ऋतु के मौसम में शहरों में किसी कारणवश एक दिन भी जनता को पानी न मिलें तो हाहाकार मच जाता है, तब दुनिया की सबसे कीमती चीज पानी लगती हैं। आज जो पानी हमें सहज उपलब्ध हो रहा है, करोड़ों लोग उस पानी के लिए रोज दर-दर भटकते है, अपना कीमती समय पानी इकट्ठा करने में गवाते है, फिर भी उन्हें पर्याप्त मात्रा में शुद्ध जल नसीब नहीं होता, मज़बूरी में अशुद्ध जल के उपभोग के कारण घातक बीमारियों का शिकार होकर असमय मौत के आगोश में चले जाते हैं। पानी की कमी के कारण पशु-पक्षियों, वन्यजीवों का तो अधिक बुरा हाल होता है। पानी का अपव्यय और योग्य प्रबंधन द्वारा संग्रहण, इसके तरीके हम सभी जानते है, लेकिन गंभीरता नहीं समझतें। अनमोल पानी का महत्व समझें, शुद्ध जल पर प्रत्येक व्यक्ति और जीवों का बराबरी का अधिकार है, सबको शुद्ध जल मिलें यह हम सबकी जिम्मेदारी हैं। जल बचाएं, अनमोल जीवन बचाएं।
डॉ. प्रितम भि. गेडाम
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