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सीएम अशोक गहलोत को राजस्थान में पेट्रोल-डीजल पर वैट कम करना चाहिए

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एस पी मित्तल, अजमेर

इसे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का राजनीतिक विलाप ही कहा जाएगा कि केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल पर 8 रुपए और डीजल पर 6 रुपए की एक्साइज ड्यूटी कम कर दिए जाने के बाद भी राजस्थान में पेट्रोल डीजल पर वैट कम नहीं किए जाने की बात कही जा रही है। सीएम गहलोत का कहना है कि केंद्र की एक्साइज ड्यूटी कम होने से राजस्थान में कीमत अपने आप कम हो जाती है। केंद्र की ताजा कटौती से राजस्थान को 12 हजार करोड़ रुपए का राजस्व कम मिलेगा। यानी  वैट  में कटौती करने के बजाए इधर उधर की बात कही जा रही है। सवाल सीधा सा है कि जब केंद्र ने एक्साइज ड्यूटी कम कर दी है तो फिर राजस्थान में  वैट  कम क्यों नहीं किया जा रहा है? केंद्र द्वारा एक्साइज ड्यूटी को कम किए जाने पर सीएम गहलोत का कहना है कि कांग्रेस ने आंदोलन किया, उससे मजबूर होकर केंद्र की भाजपा सरकार को एक्साइज ड्यूटी कम करनी पड़ी है। तो क्या सीएम गहलोत राजस्थान में  वैट कम करने लिए भाजपा के आंदोलन का इंतजार कर रहे हैं? सीएम गहलोत को यह तो पता ही होगा कि मौजूदा समय में पूरे देश में राजस्थान में ही सबसे ज्यादा वैट हे। अभी गहलोत सरकार पेट्रोल पर 31 प्रतिशत और डीजल पर 19 प्रतिशत  वैट  वसूल रही है। जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, गुजरात आदि में वेट कम है,  पंजाब में  वैट कम होने की वजह से राजस्थान के गंगानगर, हनुमानगढ़ आदि जिलों में अधिकांश पेट्रोल पंप बंद हो गए हैं। लोग खास कर किसान वर्ग अपने प्रदेश से पेट्रोल डीजल खरीदने के बजाए पंजाब से खरीद रहा है। यह स्थिति तब से चली आ रही है, जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी।  भाजपा सरकारों पर दबाव:

सब जानते हैं कि पूरे देश में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की सरकार है। अशोक गहलोत की राजनीतिक सक्रियता के कारण देश में चर्चा राजस्थान की सरकार की ही होती है। ऐसी स्थिति में यदि गहलोत अपने प्रदेश में वेट कम करते हैं तो भाजपा शासित राज्यों पर भी दबाव पड़ेगा। मौजूदा समय में 18 राज्यों में भाजपा की सरकार हैं। यानी कांग्रेस एक राज्य में वेट कम कर भाजपा पर 18 राज्यों में कटौती का दबाव बना सकती है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि अशोक गहलोत के राजनीतिक सलाहकारों का विजन एक प्रदेश तक ही सीमित है। सीएम के  सलाहकार राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में विचार नहीं करते हैं। जहां तक कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व का सवाल है तो उसे यूक्रेन और लद्दाख में कोई अंतर नजर नहीं आता है। वैसे भी कांग्रेस का नेतृत्व करने वाला गांधी परिवार अशोक गहलोत को कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है। 13 से 15 मई के बीच उदयपुर में चिंतन शिविर करवा कर गहलोत ने गांधी परिवार को ओब्लाइज किया है।
 राजस्थान में तो अशोक गहलोत ही कांग्रेस आला कमान है। गहलोत माने या नहीं लेकिन वेट कम नहीं करने की उनकी जिद कांग्रेस को भारी पड़ेगी। गहलोत के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जब सर्वाधिक वेट राजस्थान में ही है तो फिर केंद्र की कटौती के बाद राजस्थान में वेट कम क्यों नहीं किया जा रहा? 12 हजार करोड़ रुपए के राजस्व की हानि का विलाप कर गहलोत सरकार अपना बचाव नहीं कर सकती है। 

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