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आदिवासी गरीब किसान को कलेक्टर ने बना दिया ‘करोड़पति’

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एक आदिवासी किसान जिसने पूरी जिंदगी दूसरों के खेतों में मेहनत मजदूरी करके निकाल दी वो अचानक करोड़पति बन गया. जी हां, चौंक गए न आप यह मामला मध्य प्रदेश के रतलाम का है. जहां कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम ने सांवलिया रुंडी के गरीब आदिवासी किसान को उसकी 16 बीघा जमीन वापस दिलवाई. जमीन का मालिक बनते ही किसान बन गया करोड़पति.

करोड़ों रुपये की जमीन वापस मिलने से गरीब किसान बेहद खुश है. सांवलिया रुंडी निवासी किसान थावरा भावर अपनी 16 बीघा जमीन वापस लेने के लिए सालों से संघर्ष कर रहा था. इस काम के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कलेक्टर को शाबाशी दी और ट्वीट कर रतलाम जिले के आदिवासी किसान को जमीन वापस मिलने पर बधाई भी दी.

किसान ने बताया कि 1961 में सांवलिया रुंडी के रहने वाले थावरा और उसके भाई नानूराम भाबर से उसकी 16 बीघा जमीन कुछ लोगों ने बरगला कर उन्हें औने-पौने दामों में हथिया ली थी. इसके बाद बीते 60 सालों तक थावरा का परिवार मजदूरी करके गुजर बसर करता रहा. किसान थावरा भावर और उसके परिवार ने जमीन वापस लेने के लिए कई प्रयास किए पर उन्हें सफलता नहीं मिली. साल 1987 में तत्कालीन एसडीएम द्वारा 1961 का जमीन का विक्रय शून्य घोषित कर दिया गया था. बावजूद इसके थावरा के परिवार को जमीन पर कब्जा नहीं मिल पाया.

पिछले दिनों आदिवासी परिवार अपनी समस्या लेकर कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम के पास पहुंचा था जहां कलेक्टर ने सभी दस्तावेजों की जांच करने के बाद एसडीएम को किसान के जमीन के दस्तावेज तैयार कर देने और कब्जा दिलवाने के आदेश दिए थे. गुरुवार को कलेक्टर ने अपने कार्यालय में थावरा और उसके परिवार को बुलाकर उन्हें उनकी जमीन के दस्तावेज दे दिए. जिस जमीन को पाने की उम्मीद खो बैठे किसान के यह किसी सपने का सच होने जैसा है.

रतलाम मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर ग्राम सांवलिया रुंडी के रहने वाले आदिवासी मंगला, थावरा तथा नानूराम भावर के पिता अनपढ़ और गरीब थे. साल 1961 में कुछ लोगों ने बरगला कर ओने-पौने दामों में भूमि हथियाली थी लगभग 16 बीघा जमीन खो देने के बाद यह आदिवासी परिवार मजदूरी करके 60 सालों से अपना गुजर-बसर कर रहा था.

इसी दौरान थावरा और उसके भाइयों द्वारा अपनी भूमि वापस लेने के लिए बहुत कोशिश की गई. लेकिन नतीजा हाथ नहीं आया फिर 1987 में तत्कालीन एसडीएम द्वारा आदेश पारित किया गया. साल 1961 का विक्रय पत्र शून्य घोषित किया गया और भूमि का कब्जा थावरा ओर उसके परिवार को दिए जाने का आदेश जारी हुआ. लेकिन बावजूद इसके आदिवासी भाइयों का नाम राजस्व रिकार्ड में दर्ज नहीं किया गया.

इस आदेश के बाद जिन लोगों ने जमीन पर अवैध कब्जा किया हुआ था. उनके द्वारा अलग अलग कोर्ट और फोरम पर अपील की जाती रही. लेकिन वो लोग अपीलों में हार गए और 1987 के तत्कालीन एसडीएम के आदेश को यथावत रखा गया. इस दौरान भूमि अन्य व्यक्तियों द्वारा एक से दूसरे को बेचे जाने का क्रम जारी था. सभी जगहों से अपने पक्ष में फैसला आने के बाद भी भूमि का कब्जा थावरा और उसके परिवार को नहीं मिला था. कलेक्टर कार्यालय से लेकर हर उस ऑफिस का दरवाजा खटखटाया गया पर उन्हें उम्मीद थी. 61 साल के संघर्ष के बाद उन्हें अपनी जमीन मिल गई.

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