पटना: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने बिहार कांग्रेस पर बड़ा फैसला लेते हुए मदन मोहन झा को तत्काल प्रभाव से प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मदन मोहन झा की जगह राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे अखिलेश प्रसाद सिंह को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया है। बता दें कि अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से आते हैं। यूं कहे तो कांग्रेस ब्राह्मण अध्यक्ष की जगह भूमिहार अध्यक्ष पर दांव लगा बीजेपी और जेडीयू वाली चाल चल दी है। जेडीयू ने भूमिहार जाति से आने वाले ललन सिंह को एक बार फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है। वहीं, बीजेपी ने बिहार विधानसभा में विजय कुमार सिन्हा को नेता प्रतिपक्ष बनाकर साफ-साफ संदेश पहले ही दे चुकी है।
बिहार में ट्रेडिशनल वोटरों को जोड़ने की कोशिश कर रही कांग्रेस
एक समय था जब भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत समेत अगड़ी जाति से आने वाले सभी समाज के लोग कांग्रेस के वोटर माने जाते थे। खासकर ब्राह्मण और भूमिहार तो वर्तमान समय में राष्ट्रीय जनता दल के एमवाई (MY) समीकरण यानी मुस्लिम-यादव गठजोड़ की तरह कांग्रेस के राज में उनके पक्के वोटर माने जाते थे। लेकिन लालू प्रसाद की राजनीति की वजह से सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस अपने ट्रेडिशनल वोटरों को संभाल कर रख पाने में नाकाम रही। सता से सालों दूर रहने और लगातार घटते जनाधार के बाद कांग्रेस के वोट अभी उनसे दूर होकर बीजेपी में शिफ्ट होते चले गए। हालत यह हो गई थी कि भारतीय जनता पार्टी को बिहार में अगड़ी जाति की पार्टी कहा जाने लगा था।
कांग्रेस के ट्रेडिशनल वोटर यानी भूमिहार और ब्राह्मण बीजेपी के वोटर बन चुके थे। अब भूमिहार जाति से आने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस बिहार में अपने ट्रेडिशनल वोटरों को फिर से जोड़ने की कोशिश कर रही है। हालांकि इसके पहले बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर मदन मोहन झा, जो कि ब्राह्मण समाज से आते थे। उन्होंने ब्राह्मणों को कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश जरूर की लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो सके। इस बार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने यह जिम्मेदारी अखिलेश प्रसाद सिंह के कंधे पर डाली है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अपनी जड़ें तलाश कर रही कांग्रेस को इस चाल से कितना फायदा पहुंचता है।
लालू यादव के पिछलग्गू बनने की वजह से दूर होते गए कांग्रेस के वोटर
आजादी के बाद से ही कांग्रेस बिहार में भूमिहार और ब्राह्मण और मुसलमानों के सहारे दशकों तक राज कर चुकी है। हालांकि 1990 के बाद कांग्रेस ने बिहार में कभी मुसलमान तो कभी दलित और कभी ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सत्ता में वापसी की राह तलाशती रही। यह सच है कि कांग्रेस ने भूमिहार और ब्राह्मणों के वोट बैंक के सहारे लंबे समय तक बिहार में राज किया था। लेकिन 1990 में लालू यादव ने पिछड़े-दलित राजनीतिक चाल चल कर बिहार की सत्ता हासिल कर ली। इसके बाद लालू यादव ने कांग्रेस के ट्रेडिशनल वोटर रहे मुसलमानों के साथ भी एमवाई ( मुस्लिम-यादव ) समीकरण बिठाकर कांग्रेस को और भी कमजोर कर दिया। इसके बाद कांग्रेस लालू यादव की पिछलग्गू पार्टी बन गई, लिहाजा उसके कोर वोटर उनसे दूर होते चले गए।
कांग्रेस के पास नहीं है जमीन!
बिहार विधान सभा चुनाव 2020 में कांग्रेस की सीट 27 से घटकर 19 रह गई। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में हार के लिए कांग्रेस के नेता ही दोषी ठहराए गए थे, क्योंकि उनका कोई भी बड़ा नेता चुनाव के दौरान जमीन पर दिखाई नहीं दिया था। राजनीतिक गलियारे में तो यह भी चर्चा होने लगी थी कि 2020 विधानसभा चुनाव में आरजेडी की वजह से ही कांग्रेस को 19 सीटों पर जीत हासिल हो सकी थी। बता दें कि उत्तर बिहार में ब्राह्मण और विशेषकर ‘झा’ काफी दिनों पहले ही कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी की तरफ अपना रुख कर चुके थे। लेकिन कांग्रेस आज भी मानकर चलती है कि ब्राह्मण उनके साथ हैं। इसी वजह से कांग्रेस को उत्तर बिहार में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था।
अब अखिलेश प्रसाद सिंह को बिहार प्रदेश का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने भूमिहारों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है। गौरतलब है कि बिहार की राजनीति में जनता दल यूनाइटेड में भूमिहार जाति से आने वाले ललन सिंह को नीतीश कुमार ने पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने भी भूमिहार जाति से आने वाले विजय कुमार सिन्हा को बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर नियुक्त किया है।