सुसंस्कृति परिहार
सन् 2014 से डूबा कांग्रेस का सितारा एक बार फिर सत्ता से भाजपा को उखाड़ फेंकने की तैयारी में मनोयोग से जुटा है। आप,बसपा जैसी चंद पार्टियों को छोड़ तमाम विपक्षी पार्टियों में भी इस विषय को लेकर उधेड़बुन चल रही है। कई पार्टियों में अपने चुनावी कौशल का करतब दिखा चुके प्रशांत किशोर अब ये पार्टी तौर पर समझ गए हैं कि अब भी कांग्रेस एक बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है और उसी के ज़ोर से भाजपा को तख्त से उतारा जा सकता है।उनकी सोच आम जन के उन लोगों की सोच से मेल खाती है जिनका यकीन अब भाजपा से बुरी तरह आहत हुआ है।
लेकिन हालात मुश्किलात भरे हैं।आम कांग्रेसी बिना कुछ मेहनत के गांधी परिवार के नाम पर हर बार जीतने की सोच लेता है और उल्टे मुंह गिर जाता है किन्तु सबक सीखने तैयार नहीं होता।उधर कांग्रेस के चारण निरंतर गांधी परिवार की चरण वंदना कर उनमें ही अपना भविष्य सुरक्षित मान कर चलते हैं।जबकि फिलवक्त देखा जाए तो कांग्रेस में सिर्फ राहुल-प्रियंका ही तमाम संकटों के बीच अकेले जूझ रहे हैं ।दिल से मेहनत करते हैं लेकिन भाजपा के कटु झूठे प्रचार ने इस परिवार के प्रति ऐसे नफरत के बीज बो दिए हैं जो अब बड़ी तादाद में युवाओं के मन में जड़ पकड़ लिए हैं। गांव की बात तो छोड़िए पढ़ें लिखे आज के युवा जो वाटर्स ऐप ज्ञान से बड़ी तादाद में लैस है ,के मन में इतनी घृणा इन दोनों के लिए मौजूद है कि वे किसी की कुछ सुनना नहीं चाहते बल्कि उन्हें मजाक या जोकर की नाई देखते हैं। यह माहौल एकाएक बदला नहीं जा सकता।सब ख़ूबियां होते हुए भी उन्हें ,किसी अन्य व्यक्ति को पार्टी अध्यक्ष बनाकर उनके साथ भरपूर प्रचार करना होगा क्योंकि एक बात यह भी सच है अपनी ख़ूबी आप बता नहीं सकते और बताते हैं तो ये हल्कापन लगता है ।प्रशांत किशोर क्योंकि चुनावी रक्तवाहनियों के संसर्ग में रहे हैं इसलिए संभवतः वे भी यह चाह रहे होंगे।उड़ती ख़बरें भी ऐसा ही इशारा करती हैं। यह ठीक भी होगा नाराज़ कांग्रेसी और भाजपाईयों का वंशवाद का आरोप भी निराधार हो जायेगा ।दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस को बड़ी संख्या में जुझारू युवाओं को साथ लेकर चलना होगा जो अब तक सक्रिय भूमिका में रहे हैं उन्हें जिम्मेदारी सौंपनी होगी। पुराने क्षत्रपों को साहस के साथ सलाम करने की भी ज़रूरत है। मध्यप्रदेश में सरकार गिराने वाली सिंधिया टीम ऐसे क्षत्रपों की नाराज़गी से बनी थी।काम करने वाले को यदि उचित पद और सम्मान नहीं मिलेगा तो ऐसा होगा ही।सभी महात्मा गांधी और सोनिया नहीं हो सकते। भाजपा ने जिस चतुराई से मार्गदर्शक मंडल बना दिया वैसा ही कुछ इन क्षत्रप महानुभावों के लिए पूर्व से तय किया जा सकता है।जिससे वे साथ बने रहें उनका पार्टी से मोहभंग ना हो।
प्रधानमंत्री की घोषणा कर चुनाव लड़ना पूरी तरह अलोकतांत्रिक है इसलिए यह सब परिणाम आने के बाद बैठकर तय किया जाए। चुनाव में सिर्फ कांग्रेस मैदान में हो कोई खास चेहरे नहीं। कांग्रेस का इतिहास और कार्यपद्धति और वर्तमान सरकार की तुलना ही प्रचार में हो। कांग्रेस के समय की विपक्षी भाजपा का खुलकर चरित्र चित्रण किया जाए। चाहें तो उनके कथन दिखाकर उनसे ही उनका चरित्र हनन किया दल बदलुओं को महत्व ना दिया जाए बल्कि पार्टी के उपेक्षित समर्पित समर्थकों की सूची बनाकर उन्हें तरजीह दी जाए। दलबदलुओं से जनता सख्त नाराज हैं।
राजनीति में धर्म का उपयोग कांग्रेस ना करें क्योंकि संविधान इसकी इजाज़त नहीं देता। मिली जुली सरकार बनाने का ख़ाका पहले ही तय हो जाना चाहिए ताकि विवाद ना हों। मित्र दलों और समान विचारधर्माओं से रिश्ते मजबूत करें। दलों से टिकिट समझौता कठिन होता है उसकी तैयारी पहले कर लें। क्योंकि टिकिट वितरण में लेटलतीफी के दुष्परिणाम आते रहे हैं इसलिए टिकिट कम से कम तीन माह पूर्व दे दिए जाएं जिससे असंतुष्ट होने वाले का पता हो जाए और उसे संतुष्ट करने का अवसर मिल सके।
कांग्रेस जो गांधी नेहरू नाम से ही जानी जाती है इस बार सिर्फ कड़ी मेहनत करे और कांग्रेस बचाने ही में संलग्न रहें तो मुमकिन है भाजपा के पास कहने कुछ नहीं बचेगा।यह त्याग भी उनके भविष्य के वज़ूद को सुरक्षित बनाएगा तथा कांग्रेसियों को भी कांग्रेस की दम खम पर लड़ने का हौसला मिलेगा। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद छोड़कर कांग्रेस का एक इतिहास पहले ही रचा हुआ है।अजी मज़ा तो चुनाव का तभी है जब प्रत्येक प्रत्याशी कांग्रेस के अवदान पर चुनाव जीते। गांधी परिवार को यदि तब भी कांग्रेस सम्मान देता है तो जीते उम्मीदवार उनकी भूमिका तय करने का संवैधानिक अधिकार रखते ही हैं।
विश्वास है गांधी परिवार देश को फासिस्टवादी ताकतों से बचाने इन मुद्दों पर सहमत होकर कांग्रेस बचाने की प्रतिज्ञा को अमलीजामा पहनायेगा। कांग्रेस देश की बड़ी पार्टी है उसमें बड़प्पन है देश की चिंता है प्रशांत किशोर सहित देश की तमाम जनता आशा भरी नज़रों से कांग्रेस को देख रही है।