उम्मीदवारों के चयन में सचिन पायलट का पूरा दखल।
एस पी मित्तल, अजमेर
कांग्रेस आला कमान ने निर्णय कर लिया है कि राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव अकेले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दम पर नहीं लड़ा जाएगा। यह बात नवनियुक्त सहप्रभारी वीरेंद्र सिंह राठौड़ और अमृता धवन ने 27 अप्रैल को जयपुर में कही है। प्रदेश सह प्रभारी बनने के बाद जयपुर आए राठौड़ और अमृता धवन ने कहा कि कांग्रेस में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का भी उतना ही महत्व है जितना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का। दोनों के सहयोग से ही आगामी विधानसभा का चुनाव लड़ा जाएगा। आला कमान के निर्णय और सह प्रभारियों के कथन से गहलोत के समर्थकों को निराशा हुई है। क्योंकि गहलोत समर्थक तो पायलट को कांग्रेस से निलंबित करने की उम्मीद लगाए बैठे थे। प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने तो स्पष्ट कहा था कि 11 अप्रैल के अनशन के मद्देनजर पायलट के खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्यवाही होगी। लेकिन इसके उलट कांग्रेस हाईकमान ने रंधावा की जुबान को नियंत्रित रखने के लिए तीन सह प्रभारियों की नियुक्तियां कर दी। जिन रंधावा ने 18 से बीस अप्रैल तक सीएम गहलोत के साथ बैठ कर कांग्रेस विधायकों से फीडबैक लिया अब उसी के मुकाबले में तीनों सह प्रभारी अपने नजरिए से फीडबैक ले रहे हैं। जानकारों की माने तो कांग्रेस हाईकमान ने रंधावा को भी कह दिया है कि वे ऐसा कोई कृत्य नहीं करें जिसकी वजह से यह लगे कि हाईकमान अकेले अशोक गहलोत के साथ खड़ा है। सूत्रों के अनुसार सात माह बाद होने वाले विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों के चयन में पायलट का पूरा दखल रहेगा। भले ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर गहलोत समर्थक गोविंद सिंह डोटासरा बैठे हो, लेकिन उम्मीदवारों की सूची कांग्रेस संसदीय बोर्ड द्वारा जारी की जाएगी। सूची दिल्ली में सचिन पायलट की राय से बनाई जाएगी। पायलट ने भी अब अपना सारा फोकस उम्मीदवारों के चयन में लगा दिया है। चूंकि पायलट को गत विधानसभा के चुनाव का अनुभव है, इसलिए पायलट को प्रदेश की सभी 200 सीटों के बारे में जानकारी है। मालूम हो कि 2018 में पायलट ही प्रदेश अध्यक्ष थे और उन्हीं की रणनीति से कांग्रेस को बहुमत मिला था। यह बात अलग है कि तब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे। लेकिन अब हाईकमान को भी यह पता चल गया है कि गहलोत सिर्फ मुख्यमंत्री पद के प्रति वफादार है। गहलोत का कांग्रेस और गांधी परिवार से कोई लगाव नहीं है। गत वर्ष 25 सितंबर को जब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने विधायक दल की बैठक बुलाई तो अशोक गहलोत ने खुली बगावत कर दी। 25 सितंबर के बाद से ही गहलोत और कांग्रेस आला कमान के बीच दूरियां बढ़ गई। अब गहलोत को लगता है कि सरकार की उपलब्धियां के दम पर सरकार रिपीट हो जाएगी। जबकि आला कमान का मानना है कि सरकार रिपीट में सचिन पायलट का सहयोग जरूरी है। यदि पायलट अलग होते हैं तो राजस्थान में कांग्रेस का 2013 से भी बुरा हाल होगा। 2013 में गहलोत की मुख्यमंत्री थे, तब कांग्रेस को 200 में से मात्र 21 सीट मिली थी। गहलोत के मुख्यमंत्री रहते राजस्थान में कांग्रेस की कभी भी जीत नहीं हुई है।