एस पी मित्तल,अजमेर
गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाए जाने पर रिक्त हुए राजस्थान भाजपा विधायक दल के नेता के पद अब उपनेता राजेंद्र राठौड़ के नाम पर आम सहमति बनती नजर आ रही है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार कटारिया के नेता रहते राठौड़ ने उपनेता के तौर पर विधानसभा में जो भूमिका निभाई उस से भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व संतुष्ट है। फिलहाल कटारिया के पद की जिम्मेदारी भी राठौड़ को ही दे रखी है। राठौड़ चूरू से लगातार सात बार विधायक चुने गए हैं, इसलिए विधायी कार्यों का भी राठौड़ को लंबा अनुभव है। सबसे खास बात यह है कि राठौड़ विवादों से दूर रहते हैं। वसुंधरा राजे जब मुख्यमंत्री थीं तो उन्हें राजे का सबसे भरोसेमंद मंत्री माना जाता था। अब जब विपक्ष में रहते हुए डॉ. सतीश पूनिया को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया, तब भी राठौड़ और पूनिया के बीच अच्छा तालमेल रहा। पिछले साढ़े चार वर्षों में राठौड़ ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे पर एक बार भी प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की। ऐसे कई मौके आए हैं, जब भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने राठौड़ को दिल्ली बुलाकर प्रदेश की राजनीति पर मंथन किया है। विधानसभा में प्रश्न पूछने के प्रकरण में गत वर्ष वसुंधरा राजे के समर्थक विधायकों ने एक पत्र लिखकर गुलाबचंद कटारिया की कार्यशैली पर एतराज जताया था, तब भी राजेंद्र राठौड़ ने ही मध्यस्था कर विवाद को शांत करवाया। विधानसभा में कांग्रेस सरकार को घेरने में राठौड़ ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन राठौड़ ने हमेशा संसदीय मर्यादाओं में रहकर सरकार का विरोध किया। कांग्रेस के 81 विधायकों के इस्तीफों पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी द्वारा कोई निर्णय नहीं लिए जाने के मामले को भी राठौड़ हाईकोर्ट ले गए। हाईकोर्ट में राठौड़ खुद पैरवी कर रहे हैं। असल में राठौड़ के वकील भी है। कानून और विधायी कार्यों का लंबा अनुभव होने के कारण ही राठौड़ हाईकोर्ट में प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। राठौड़ ने स्वयं ने ही जनहित याचिका प्रस्तुत की है। एक ओर जहां कांग्रेस सरकार अभिषेक मनु सिंघवी जैसे सुप्रीम कोर्ट के वकील से पैरवी करवा रही है वहीं भाजपा की ओर से अकेले राठौड़ ने ही मोर्चा संभाल रखा है। राठौड़ की याचिका के कारण ही विधानसभा अध्यक्ष जोशी को कांग्रेस विधायकों के इस्तीफों पर निर्णय लेना पड़ा। इस निर्णय के बाद कांग्रेस का आंतरिक विवाद और तेज हो गया है। कोर्ट में विधानसभा के सचिव की ओर से कहा गया कि विधायकों ने अपनी मर्जी से इस्तीफा नहीं दिया था, इसलिए इस्तीफों को अस्वीकार कर दिया गया। अब पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट गुट के नेता पूछ रहे हैं कि आखिर 25 सितंबर को किसके दबाव में 81 विधायकों ने इस्तीफे का सामूहिक पत्र विधानसभा अध्यक्ष को सौंपा? उल्लेखनीय है कि गत वर्ष 25 सितंबर को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से प्रदेश के कांग्रेस विधायकों की बैठक बुलाई गई थी। तब सीएम गहलोत के इशारे पर मंत्री शांति धारीवाल के निवास पर समानांतर बैठक बुलाकर 81 विधायकों के इस्तीफे करवा दिए गए। तब इन विधायकों की ओर से कहा गया कि हमें अशोक गहलोत के अलावा और कोई नेता मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार नहीं है। राजेंद्र राठौड़ की याचिका की वजह से कांग्रेस का आंतरिक विवाद और गहरा गया है। गुलाबचंद कटारिया आठ बार के विधायक थे। मौजूदा समय में संभवत: राजेंद्र राठौड़ ही भाजपा के सात बार के विधायक हैं। राठौड़ को भाजपा विधायक दल का नेता बनाने से जातिगत समीकरण भी बैठ जाते हैं। प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया जाट है। यदि राठौड़ को नेता का पद मिलता है तो जाट राजपूत का गठजोड़ भी होगा। मालूम हो कि राजस्थान में भाजपा ही प्रमुख विपक्षी दल है। इसलिए भाजपा विधायक दल के नेता को प्रतिपक्ष के नेता का दर्जा मिलता है। प्रतिपक्ष के नेता को कैबिनेट मंत्री की सुविधाएं मिलती है। यदि राठौड़ प्रतिपक्ष के नेता बनते हैं तो उनके राजनीतिक कद में भी वृद्धि होगी।