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संरक्षित वन क्षेत्र भूमि पर कमांडो शिविर का निर्माण पर्यावरण कानून का उल्लंघन

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केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 1 अक्टूबर को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की पूर्वी पीठ को दिए हलफनामे में कहा है कि असम के गेलेकी आरक्षित वन में पुलिस बटालियन कैंप का निर्माण प्रथम दृष्टया केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना किया गया, जो वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 का उल्लंघन है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय ने शिलांग स्थित अपने क्षेत्रीय कार्यालय को भी अधिनियम की धारा 3ए और 3बी के तहत मामले में कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया है। ये धाराएं वन संरक्षण कानून के प्रावधानों के उल्लंघन और अधिकारियों एवं सरकारी विभागों द्वारा किए गए अपराधों के लिए दंड से संबंधित हैं। अधिनियम के तहत वन भूमि पर गैर-वन कार्य के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होती है।

मंत्रालय का हलफनामा असम के शिवसागर जिले के गेलेकी वन में 28 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि पर कमांडो कैंप के निर्माण पर एनजीटी की पूर्वी पीठ द्वारा सुनवाई किए जा रहे मामले में दायर किया गया था। अगस्त में पीठ ने मंत्रालय को यह बताने का निर्देश दिया था कि वन संरक्षण कानून का उल्लंघन कर वन भूमि के डायवर्जन के लिए असम के वरिष्ठ वन अधिकारी एम के यादव के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, जिसके बाद हलफनामा दायर किया गया।

मंत्रालय के हलफनामे में ये बताया गया है कि उक्त एसआईआर (साइट निरीक्षण रिपोर्ट) की जांच की गई है और पहली नज़र में यह पाया गया है कि संबंधित वन भूमि पर केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना गैर-वानिकी गतिविधियों की अनुमति दी गई है, जो वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 के वैधानिक प्रावधान के नियमों का उल्लंघन है।

इसमें कहा गया है, “साइट निरीक्षण रिपोर्ट (एसआईआर) को ध्यान में रखते हुए, मंत्रालय ने 28.08.2024 के पत्र के माध्यम से अपने क्षेत्रीय कार्यालय, शिलांग से अनुरोध किया कि वह तत्काल मामले में वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 की धारा 3ए और 3बी के तहत उचित रूप से कार्रवाई शुरू करे। इसके अलावा, मंत्रालय ने दिनांक 28.08.2024 के पत्र के माध्यम से राज्य सरकार से अनुरोध किया कि वह संबंधित वन क्षेत्र में किसी भी प्रकार की गतिविधियों को तत्काल रोक दे।

मंत्रालय ने ये बात शिलांग में अपने क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा अगस्त में किए गए एक साइट निरीक्षण के आधार पर बताया। साइट निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार, शिविर के लिए बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य पूरे जोरों पर चल रहा था और यह स्थायी प्रकृति का था।

निरीक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्माण कार्य का अधिनियम के तहत वन संरक्षण के लिए अनुमत गतिविधियों से कोई समानता नहीं थी। एनजीटी की पूर्वी पीठ ने मामले की जांच के लिए पर्यावरण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति भी गठित की थी।

मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा कि समिति ने 27 सितंबर को कमांडो कैंपसाइट का दौरा किया था और अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए अक्टूबर के अंत तक का समय मांगा था। अगस्त में, असम सरकार ने एनजीटी को एक हलफनामे में बताया किया था कि बटालियन कैंप का निर्माण गेलेकी में जंगलों को अतिक्रमणकारियों से सुरक्षित करने के लिए किया जा रहा था और इस प्रकार यह वन संरक्षण और प्रबंधन के लिए था।

असम सरकार ने पर्यावरण मंत्रालय से भी पूर्व में मंजूरी मांगी है, हालांकि, यह अभी तक नहीं दी गई है क्योंकि मंत्रालय अभी भी इस मुद्दे की जांच कर रहा है।

एनजीटी ने 9 अगस्त को पिछली सुनवाई में राज्य सरकार की दलीलों को स्वीकार नहीं किया था और अपने आदेश में कहा था, “…हमारा मानना है कि असम के पीसीसीएफ (प्रधान मुख्य वन संरक्षक) को यह निर्णय लेने का अधिकार नहीं है कि हथियारों, गोला-बारूद और अत्याधुनिक हथियारों से लैस 800 कर्मियों के लिए मजबूत निर्माण से वन संरक्षण प्रभावित होगा या नहीं, क्योंकि ऐसे मामले में निर्णय वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 की अनिवार्य वैधानिक आवश्यकता के मद्देनजर केंद्र सरकार को लेना होता है।”

साभार :  सबरंग

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