सुसंस्कृति परिहार
आज साहिब ने सेंट्रल विस्टा नए संसद भवन की छत पर भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ की प्रतिमा का अनावरण किया है। अशोक स्तंभ की यह मूर्ति कांस्य धातु से बनाई गई है। इसकी ऊंचाई 6.5 मीटर है। इसका वजन 9500 किलो बताया जा रहा है। अशोक स्तंभ की इस मूर्ति को कई चरणों में बनाया गया है। जिसमें स्केचिंग, पॉलिसिंग सहित कई चरण शामिल हैं।
इस मौके पर पीएम मोदी के साथ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी भी मौजूद थे। निर्माणाधीन संसद भवन की छत पर बने अशोक के इस स्तंभ का निर्माण दो हजार से ज्यादा लोगों ने मिलकर किया है। संसद भवन की इस नई इमारत में 1224 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी। बताया जा रहा है कि इस इमारत का निर्माण दिसंबर 2022 तक पूरा हो जाएगा। शीतकालीन सत्र तक नया संसद भवन बनकर तैयार हो जाएगा।
निर्माणाधीन संसद भवन के ऊपर स्थापित किए गए अशोक स्तंभ का निर्माण औरंगाबाद के मूर्तिकार सुनील देवरे की नक्कासी पर तैयार किया गया है। सुनील देवरे जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स से स्वर्ण पदक विजेता हैं और उन्होंने अपने काम के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान हासिल की है। उनके पिता भी इसी संस्थान के पूर्व छात्र रहे हैं। इस प्रतिष्ठित काम के लिए उन्हें शॉर्टलिस्ट किया गया था। देवरे ने अपने पिता से मूर्तिकारी की प्रेरणा ली थी। देवरे के पिता ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जीर्णोद्धार विभाग में काम किया था।
देवरे ने बताया कि अशोक स्तंभ को तैयार करने का काम टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को मिला था जिसने साल एक सर्वेक्षण किया था और उनके अनुभव और साख को देखते हुए उन्हें इस प्रतिष्ठित काम के लिए चुना गया था। सबसे पहले क्ले मॉडल तैयार करने में कलाकार को लगभग पांच का समय लग गया, जिसे मंजूरी मिलने से पहले सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट से जुड़े विशेषज्ञों ने जांच की थी। मिट्टी का मॉडल उनके औरंगाबाद स्थित स्टूडियो में तैयार किया गया था।
वहींं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने पीएम मोदी के अशोक स्तंभ के अनावरण पर नाराजगी जताई है। ओवैसी ने @PMOIndia को टैग करते हुए लिखा, ‘संविधान संसद, सरकार और न्यायपालिका की शक्तियों को अलग करता है। सरकार के प्रमुख के रूप में नए संसद भवन के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था। लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा का प्रतिनिधित्व करता है जो सरकार के अधीनस्थ नहीं है। आपने सभी संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया है।’उनकी यह बात सौ फीसदी सही है।
दूसरी ओर स्तंभ की अनुकृति को देखकर चारों तरफ सुगबुगाहट है कुछ लोग खुलकर इसके विरोध में शामिल हैं।उनका कहना है मूर्तिकार ने इस कृति में उसकी मूलभावना का उपहास किया है सारनाथ की नकल पर यह बनाई हुई बिल्कुल भी नहीं लगती।सबसे ज्यादा आपत्ति सिंह के खुले खूंखार मुंह को लेकर है जो अशोक महान की भावना से खिलवाड़ है।सिंह के डीलडाल को लेकर भी सवाल किए जा रहे हैं।जो रंग किया गया वह भी सारनाथ स्तंभ के अनुरूप नहीं है।लोग सोशल मीडिया पर मज़ाक में कह रहे हैं कि यह मोदी जी की सोच से मेल खाता है।खौफ का जो माहौल है वह इन सिहों की स्थिति से ही उपजा है। इससे पहले हमारे भगवान राम को भी जिनका धनुष कांधे पर टंगा होता था उसे साहिबों ने क्रोध से तनी प्रत्यंचा में बदल दिया। सीताराम से वे जय श्री राम हो गए।कतिपय लोग इसलिए यह कह रहे हैं कि यह भारत की दुनिया में दहाड़ का प्रतीक है। वाकई इसे अशोक नहीं मोदी स्तंभ कहना ही उचित होगा।संभव है मूर्तिकार ने मोदीजी के बदलाव को अपना आदर्श मानते हुए इसमें सुनियोजित ढंग से काम किया है। जैसे सरदार बल्लभ भाई की प्रतिमा के साथ खिलवाड़ हुई मूर्ति का चेहरा सरदार पटेल से मेल नहीं खाता है। अब वो इतनी ऊंचाई से नज़र नहीं आता है।ऐसा ही अशोक स्तंभ के साथ भी होगा।आमीन।
वहीं आश्चर्यजनक यह भी है कि जब बुद्ध के बहुसंख्यक अनुयायियों का देश श्रीलंका इस समय आसन्न का संकट में है तब अशोक स्तंभ के पूजन की क्या ज़रूरत थी ?इस पूजा पाठ से बौद्ध धर्मावलंबियों में भी रोष है। बुद्ध के अनुयाई अशोक को यह सब पसंद नहीं था। वहीं बुद्धिजीवियों के अनुसार अशोकस्तंभ के शिल्प से छेड़छाड़ राष्ट्र का अपमान है चूंकि वह भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह है।
लेकिन क्या इतना सब होने के बावजूद हमारी बात पर अमल संभव हो सकता है।देवरे जी की टीम पर कोई कार्रवाई की उम्मीद की जा सकती है । शायद कदापि नहीं।नक्कार खाने में तूती की आवाज। कुछ नहीं होने वाला। साहिबे आला का ज़माना है जो हुआ वह ठीक।जो हो रहा वह ठीक।जो होगा वह भी ठीक। जय-जयकार कीजिए और कुछ नहीं।