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पार्षदों एक बार सोच लो…जनता कभी आपको माफ नहीं करेगी…… तो आठवीं बार कैसे नंबर वन आएगा इंदौर?

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 हरीश फतेहचंदानी

इंदौर लगातार सातवीं बार स्वच्छता में नंबर वन आ चुका है, लेकिन आठवीं बार की डगर इतनी आसान नहीं है। क्योंकि, सातवीं बार ही इंदौर को सूरत के साथ नंबर वन का खिताब मिला है। मध्यप्रदेश के जबलपुर जैसे शहर ही सूरत का पीछा करने में लगे हैं, ऐसे में थोड़ी सी लापरवाही भी इंदौर को नंबर वन की दौड़ से बाहर कर सकती है।

विडंबना यह कि कई पार्षद नगर निगम के सफाईकर्मियों से काम नहीं करने के एवज में पैसे वसूल रहे हैं। अस्थाई सफाईकर्मी से तो तो पूरे दिन काम न करने के तीन हजार रुपये महीने वसूले जा रहे हैं, वहीं आधे दिन काम नहीं करना है तो 1500 से 2 हजार रुपए देने पड़ते हैं। इतना ही नहीं स्थाई सफाईकर्मी से काम नहीं करने के बाद भी पूरा वेतन देने के एवज में 8 से 10 हजार रुपए महीना तक लिया जा रहा है। इनसे वसूली के लिए दरोगाओं को जिम्मेदारी दी गई है, जबकि गंदगी का पूरी ठीकरा उन्ही पर फूटता है।

इसके विपरित युवा आईएएस अभिलाष मिश्रा इसके लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं कि स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर की नाक नहीं कटे, लेकिन पार्षद उनकी मेहनत पर पानी फेरने में लगे हैं। ऐसे भ्रष्ट पार्षदों और भाजपा के कुछ नेताओं को इंदौर की प्रतिष्ठा की चिन्ता भी नहीं है। यहां सवाल यह है कि जब सफाईकर्मी काम ही नहीं करेंगे तो इंदौर को स्वच्छता में तमगा कैसे मिलेगा? नेताओं के कारण ही एनजीओ भी ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे।

जब युवा आईएएस अभिलाष मिश्रा ने स्वछता सर्वेक्षण से महज दो माह पहले स्वच्छता मिशन प्रभारी बन शहर की स्वच्छता की कमान संभाली तो मैदानी  जांच में उनके भी होश उड़ गए। पार्षदों के भ्रष्टाचार की कलई खुलने लगी। खुद सफाई कामगार कर्मचारी संघ ने इस मामले की शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से की है। संघ ने पार्षदों  पर सफाईकर्मियों और दरोगाओं से वसूली और दादागिरी करने का आरोप लगाया है। कई सफाईकर्मियों और दरोगाओं ने वसूली की कहानी अफसरों को नाम जाहिर न करने  पर सुनाई भी है।  समस्या यह भी है कि किसी बनी बनाई व्यवस्था को बिगाड़ने में भी वक्त लगता है और सुधारने में भी वक्त लगता है। आईएएस अभिलाष मिश्रा के हिस्से में बिगड़ी व्यवस्था आई, लेकिन वे अब भी ईमानदारी से आठवीं बार तमगा हासिल करने के लिए महापौर और कमिश्नर के साथ लगे हुए हैं।

खुद महापौर भी यह चाहते हैं क्योंकि इज्जत तो उनकी भी दांव  पर लगी है,  पर वे भी क्या करें। पार्षदों  का तो एक सूत्रीय एजेंडा हैं सफाई व्यवस्था को बिगाड़ कर रख देना। यह सबको पता है। पार्षद पति सीएसआई को गालियां देते हुए जूते मारने की बात कहता है और नगर निगम को रिपोर्ट लिखाने में 6 घंटे लग जाते है। इस तरह ढर्रा और बिगड़ता जा रहा है।

मैं सच कहता हूं। यह समय आत्ममुग्ध होने की बजाए ईमानदारी से मेहनत करने का है। हमें वही जज्बा अपनाना चाहिए, जो हमने पहली बार देश में नंबर वन आने के लिए अपनाया था। स्वच्छता सर्वेक्षण में समय कम है। एक अकेले अभिलाष मिश्रा और महापौर के प्रयास से कुछ नहीं होगा…

हमें यह भी सोचना है कि इस बार सिर्फ महापौर या इंदौर की जनता की इज्जत ही दांव पर नहीं लगी है। इस बार दांव पर लगी है प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की भी प्रतिष्ठा, क्योंकि  वे इस शहर के प्रभारी मंत्री है। इंदौर की सफाई पर भ्रष्टाचार का पलीता लगाने वाले पार्षदों एक बार सोच लो…जनता कभी आपको माफ नहीं करेगी…

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