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देश : प्रार्थना कीजिये, प्रार्थना का कोई रंग नहीं होता

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-राकेश दुबे

मैं और मेरे कुछ समविचारी मित्र देश में चल रही सुगबुगाहट को भांप रहे हैं | वे किसी फिल्म के पक्ष या विरोध में नहीं हैं | फिल्म बनती रहती हैं, बिगडती रहती है पर उसे जो रंग दिया जा रहा है, उसकी तासीर ठीक नहीं है |समाज में सोशल मीडिया नाम का जो नया “रंगरेज” आया है, वो जो रंग उछाल रहा है, उसमें भंग मिली है | ये रंग और इसमें मिली भंग का असर समाज में न हो, इसके लिए हम प्रार्थना कर रहे हैं, आप भी कीजिये | यह प्रार्थना उछलते रंगों को रंगहीन करने का भी माद्दा रखती है, क्योंकि प्रार्थना का कोई रंग नहीं होता |
इस फिल्म को भी बालीवुड की उन फिल्मों की तरह ही समझिये, जैसे आप पिछले कई दशकों से बनती आ रही कई फिल्मों को देखते आ रहे हैं |कोई पिछले ५०सालों में बनी फिल्मों और दृष्टिपात करें तो कुछ कलात्मक यादगार फिल्मों से इतर अधिकांश फिल्मों के मसाले के रंग ‘हिन्दू सिख दकियानूसी’’उनकी धार्मिक परम्पराएँ बेतुकी’’समाज का एक वर्ग नेक और ईमानदार’’एक वर्ग की बेटियां दुश्चरित्र’ से भरे हैं | समाज में इन फिल्मों के प्रति कभी ऐसा द्वेष या अनुराग नहीं उमड़ा| इस बार राज्यश्रय ने इस मसाले में तड़का लगा दिया है | राज्य को अपने धर्म का पालन करना चाहिए की सीख देने वालों के वंशज वैसा नहीं कर रहे हैं | नये रंगरेज के उछलते रंग में होली खेलने को आतुर है, ये सब काबू में रहें , इसलिए प्रार्थना कीजिये | 
शायद यह पहला मौका है, जब किसी अख़बार के आधे पन्ने पर किसी फिल्म को देखने की कोई अपील की गई है | शायद किसी ९० बरस के किसी सामाजिक सन्गठन द्वारा किसी एक फिल्म को अनुष्ठान की तरह देखने के मंसूबे बांधे जा रहे हैं | और इस सबके बाद जो बचा है, उसमें सोशल मीडिया की रंगत साफ़ दिख रही है | ये अनुष्ठान देश को ९० के दशक की बदहाली याद दिलाते हैं | वो सब याद न आये इसके लिए जरूरी है प्रार्थना,प्रार्थना कीजिए | 
यह फिल्म जिन सिनेमाघरों में चल रही है वहां से कई वीडियो आ रहे हैं| सोशल मीडिया पर हाईलाईट इन वीडियो में जो दिख रहा है वो ठीक नहीं है| आप पूछेंगे, फिर क्या ठीक है ? ठीक यह है सिनेमा देखने परिवार के साथ आए लोगों को डराइए मत, ये मत कहिये कि आने वाले पांच-सात-दस बरसों में उनका भी नंबर आएगा| ऐसा कर के आप अपने देश की उस प्रणाली को नाकारा साबित कर रहे हैं, जिसे लॉ एंड ऑर्डर के रूप में परिभाषित किया जाता है |जिसे सुचारू तौर पर चलाते रहने के लिए हम आप दिन रात मेहनत कर रहे हैं, टैक्स दे रहे हैं| इस टैक्स से सारा भारत चलता है | ‘डेमोक्रेसी का मजाक मत बनाइए’| यह पूछना बंद कीजिये, तब [—– ] आप कहाँ थे ?
ऐसी बातों से बचिए, अगर देश में रहना होगा, ‘अमुक फिल्म’ देखना होगा |ये सब पीछे आई फिल्मों की तरह है, इसमें भी तथ्यों का निरूपण हुआ है | इसे लेकर बहुत कुछ कहा, सुना और लिखा पढ़ा जा रहा है | कुछ सार है, कुछ निराधार |निराधार बातों से बचिए| कुछ लोग इसे लेकर पूरे बालीवुड में उथल-पुथल की बात कर रहे हैं, ये सब उचित नहीं है | ऐसे जमावडों से दूर रहें और प्रार्थना करें, ऐसा कुछ न घटे जिस पर आगे किसी को फिल्म बनाना पड़े या इस कालखंड को इतिहास में काले अध्याय की तरह बांचा जाये | प्रार्थना कीजिये, प्रार्थना का कोई रंग नहीं होता |

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