भोपाल/रायपुर/बेंगलुरु
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक, तीन राज्य जहां चुनाव करीब हैं और BJP अपने लिए मुश्किलें देख रही है। यहां सरकार बन ही जाएगी, पार्टी इसका दावा नहीं कर पा रही। वजह भी दिख रही है, लेकिन लीडरशिप के पास कोई उपाय नहीं। मध्यप्रदेश में पार्टी के सर्वे से पता चला है कि सीटें 100 से कम ही रहेंगी। और इतने में सरकार नहीं बन सकती। छत्तीसगढ़ में पार्टी के पास कोई CM फेस ही नहीं है। कर्नाटक में एंटी इनकम्बेंसी का तोड़ नहीं मिल रहा।
मैंने तीनों राज्यों में पार्टी के सीनियर लीडर और एक्सपर्ट से बात की। उनसे पूछा कि कभी गढ़ रहे इन प्रदेशों में पार्टी क्यों फंसा महसूस कर रही है।
मध्यप्रदेश: BJP और कांग्रेस, दोनों के पास 80-80 सीटों का बेस
मध्यप्रदेश में BJP और कांग्रेस दोनों के पास 80-80 सीटों का बेस है। बहुमत 116 सीट पर है। यहां लड़ाई इन्हीं 36 सीटों के लिए है, जो सरकार बनवाएंगी। स्टेट BJP के एक सीनियर लीडर कहते हैं ‘मुख्यमंत्री, प्रदेश संगठन और हाईकमान तक लगातार अपना-अपना सर्वे करवा रहे हैं। इनके आंकड़े तो हमें पता हैं, पर वे ऐसे नहीं हैं कि हम आपसे शेयर कर पाएं। अभी तो सीटें 100 के अंदर ही आते दिख रही हैं, इसलिए इस बार बहुत बड़े पैमाने पर विधायकों की टिकट काटी जाएंगी।’
‘पिछले विधानसभा चुनाव में ही 50 विधायकों की टिकट कटनी थी, लेकिन एक बड़े नेता अड़ गए। उनकी जिद की वजह से किसी की टिकट नहीं काट पाए। इस बार संगठन किसी के दवाब में नहीं आएगा, क्योंकि पिछला चुनाव हार गए थे। इसीलिए मल्टीपल लेवल पर सर्वे करवाए जा रहे हैं। टिकट देने का एक ही पैमाना होगा और वो है जीत। फिर इससे फर्क नहीं पड़ता कि कैंडिडेट किस गुट से है।’
CM शिवराज सिंह को हटाने पर वे कहते हैं, ‘ये कोई नहीं जानता कि कल BJP में क्या हो जाए। आज तक शिवराज सिंह चौहान ही पार्टी का चेहरा हैं, लेकिन दिल्ली में क्या चल रहा है, ये मध्यप्रदेश BJP के नेता भी नहीं जानते।
मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान 16 साल CM रह चुके
शिवराज सिंह चौहान 23 मार्च 2020 को चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। 30 नवंबर 2005 से 17 दिसंबर 2018 तक लगातार 13 साल 17 दिन तक वे CM रहे। फिर करीब डेढ़ साल कांग्रेस की सरकार रही और कमलनाथ CM बने। 23 मार्च 2020 से एक बार फिर CM की कुर्सी शिवराज के पास आ गई। उन्हें मुख्यमंत्री रहते हुए करीब 16 साल हो चुके हैं। अब तक प्रदेश में कोई भी इतने समय तक मुख्यमंत्री नहीं रहा है।
सीनियर जर्नलिस्ट राकेश दीक्षित बताते हैं- ‘2018 में BJP 107 सीटों पर रुक गई थी। इस बार भी हालात ज्यादा नहीं बदले हैं। कांग्रेस पिछली बार से ज्यादा इस बार संगठित दिख रही है। BJP ने भी ‘लाडली बहना’ जैसी योजना के साथ हिंदुत्व की धार तेज कर दी है। इस बार के बजट में भी धर्म और महिलाओं से जुड़ी योजनाओं के अलावा ज्यादा कुछ खास नहीं था।’
राकेश दीक्षित कहते हैं ‘चुनाव में 8 महीने ही बचे हैं, इसलिए अब CM भी बदला नहीं जा सकता। पहले भी पार्टी को ऐसा कोई चेहरा नहीं मिला, जो शिवराज की जगह ले सके। BJP मुफ्त की रेवड़ी बांटने के खिलाफ है, लेकिन मध्यप्रदेश में चुनाव से पहले ‘लाडली बहना’ स्कीम लॉन्च कर दी गई। इसमें महिलाओं के खाते में 1 हजार रुपए डाले जाएंगे। इस तरह की स्कीम्स से पता चल रहा है कि पार्टी हड़बड़ाहट में है।’हालांकि, पार्टी प्रवक्ता हितेश वाजपेयी का कहना है कि ‘2018 में पार्टी कुछ सीटों से भले ही हार गई थी, लेकिन हमारा वोट पर्सेंट कांग्रेस से ज्यादा था।’
छत्तीसगढ़ : CM फेस नहीं, PM मोदी पर ही भरोसा
BJP के लिए मध्यप्रदेश से ज्यादा मुश्किल वाला राज्य छत्तीसगढ़ है। यहां वह सत्ता में नहीं, बल्कि विपक्ष में है। राज्य में वापसी के लिए BJP ने संगठन में बड़े बदलाव किए हैं। तीन बार के विधायक नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष और बिलासपुर से सांसद अरुण साव को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है। कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई पर भी पार्टी की नजर है, लेकिन BJP अब तक कांग्रेस के खिलाफ कोई मूवमेंट खड़ा नहीं कर पाई है।
CM भूपेश बघेल लगभग हर वर्ग के लिए स्कीम अनाउंस कर चुके हैं, इन्हें लागू भी कर दिया गया है। कर्ज माफी से लेकर बेरोजगारी भत्ता तक इसमें शामिल है। यहां BJP के लिए चुनौती CM फेस की भी है। कोई नहीं जानता कि BJP जीती, तो CM कौन होगा।
प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की राजनीति का बड़ा समीकरण है, इसलिए BJP किसी पिछड़ा वर्ग के नेता पर दांव खेल सकती है। CM भूपेश बघेल इसी वर्ग से आते हैं। कांग्रेस भूपेश बघेल के जरिए बैकवर्ड क्लास कार्ड खेल रही है। 90 विधानसभा सीटों में से अभी कांग्रेस के पास 71 और BJP के पास 14 सीटें हैं। हाल में हुए लोकल बॉडीज इलेक्शन में कांग्रेस जीती है। प्रदेश के सभी 14 नगर निगम पर कांग्रेस का कंट्रोल है।
सोर्सेज के मुताबिक, BJP ने यहां अब तक कोई सर्वे नहीं करवाया है। पार्टी ने ओम माथुर को जब से प्रभारी बनाकर भेजा है, तब से वे संगठन के साथ बूथ लेवल तक काम कर रहे हैं, लेकिन आज की स्थिति में चुनाव होते हैं तो कांग्रेस ज्यादा मजबूत दिख रही है। अगले 6 महीने में राज्य में क्या स्थिति बनेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
कर्नाटक : संघ की रिपोर्ट में 70 से 75 सीटें
कर्नाटक में BJP 20 जुलाई 2019 से सत्ता में है। इन 4 साल में उसे एक बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। 28 जुलाई 2021 से यहां बसवराज बोम्मई CM हैं। कर्नाटक में फरवरी में RSS ने एक सर्वे रिपोर्ट BJP को सौंपी है। इसमें उसे 70 से 75 सीटें जीतते बताया गया। बहुमत के लिए 113 सीटें जरूरी चाहिए।
BJP की हालत ऐसी है कि जिन बीएस येदियुरप्पा को पार्टी ने CM पद से हटाया था और जो रिटायरमेंट का ऐलान कर चुके हैं, अब उनके भरोसे ही इलेक्शन कैंपेन आगे बढ़ाया जा रहा है। इसकी वजह सर्वे रिपोर्ट हैं, जिनसे पता चला कि मौजूदा CM और पार्टी प्रेसिडेंट नलिन कुमार कटील लोगों का सरकार के प्रति नजरिया बदलने में नाकाम रहे हैं।
सीनियर जर्नलिस्ट बेलागारू समीउल्ला के मुताबिक, ‘BJP के खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकम्बेंसी बनी हुई है। करप्शन यहां बड़ा मुद्दा है। 3 मार्च को BJP विधायक मदल विरुपक्षप्पा के ठिकानों से 8 करोड़ रुपए कैश मिले हैं। उनके बेटे को लोकायुक्त ने 40 लाख रुपए रिश्वत लेते गिरफ्तार किया। इससे पार्टी और ज्यादा मुश्किल में फंस गई है। PM मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की लगातार रैलियां हो रही हैं, लेकिन पार्टी एंटी इनकम्बेंसी का माहौल नहीं बदल पा रही है।’
‘अब येदियुरप्पा और PM मोदी की जोड़ी बनाकर कैंपेन किया जा रहा है। येदियुरप्पा लिंगायत वोटों को एकजुट कर सकते हैं, लेकिन अकेले पूरे राज्य में BJP को नहीं जिता सकते। मुख्यमंत्री की रैलियों में लोग नहीं पहुंच रहे। प्रदेश में कांग्रेस का प्रचार अभियान बहुत आक्रामक है। वह करप्शन के मुद्दे पर BJP को घेर रही है।’
नॉर्थ ईस्ट में BJP न घटी, न बढ़ी
फरवरी में नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों नगालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव हुए। 2 मार्च को आए नतीजों में त्रिपुरा-नगालैंड में BJP गठबंधन को बहुमत मिला। मेघालय में उसने सबसे बड़ी पार्टी NPP के साथ गठबंधन कर लिया। यानी तीनों राज्यों में पार्टी सरकार में है। इसके बावजूद पार्टी की ग्रोथ रुकी हुई है।
अगर 2013 से देखें, जब केंद्र में UPA की सरकार थी और BJP विपक्ष में थी। नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में BJP का वोट शेयर 2% से भी कम था। 2018 में मेघालय में पार्टी का वोट शेयर 10%, नगालैंड में 15% और त्रिपुरा में 44% पर पहुंच गया। तब तक BJP केंद्र सरकार में 4 साल पूरे कर चुकी थी।
5 साल बाद यानी 2023 में BJP मेघालय की 60 सीटों पर चुनाव लड़ी और 2 सीटें जीती। 2018 में पार्टी 47 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, तब भी उसे 2 सीटें मिली थीं। तब वोट शेयर 9.6% था और अब 9.33% है।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि मेघालय में BJP खुद को आगे नहीं बढ़ा सकी। ये हालत तब है, जब PM नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य में बड़ी रैलियां की थीं, केंद्रीय मंत्रियों को प्रचार में उतारा था। एक्सपर्ट्स कहते हैं इसके पीछे बड़ी वजह BJP की एंटी क्रिश्चियन इमेज होना है।
अब बात नगालैंड की। यहां BJP नेशनल डेमोक्रेटिव प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी और 60 में से 37 सीटें जीतीं। NDPP ने 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इसमें से 25 जीत गए। BJP ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, उसे 12 सीटों पर जीत मिली।
2018 में भी BJP ने 12 सीटें ही जीती थीं और तब उसका वोट शेयर 15.31% रहा था। इस बार वोट शेयर 18.81% पर पहुंचा है। यानी सीटों की संख्या पिछली बार के बराबर ही है, लेकिन करीब 3% वोट शेयर बढ़ा है।
त्रिपुरा में BJP ने 2018 की तरह इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। पिछली बार BJP ने 36 सीटें जीती थीं, इस बार 32 पर आ गई। उसकी गठबंधन पार्टी महज एक सीट जीत सकी। त्रिपुरा में सीटें घटने के साथ BJP के वोट शेयर में भी कमी आई है। 2018 में 44% पर था, इस बार 39% रह गया।