*डा नवीन*
कोरोना महामारी के संकट में उस वक्त यदि कोई सबसे चर्चा का विषय या केन्द्र बिन्दु था। तो क्यूबा देश है, जो अपने चिकित्सा और चिकित्सकों के तमाम पूंजीवादी देशों की नि:सहाय लोगों की बिना भेदभाव के बिना दुश्मनी को याद किए दिल से सेवा कर रहे हैं…. जिन देशों ने कभी क्यूबा पर प्रतिबंध लगा कर दिन रात जहर उगला दिन रात वहाँ की जनता को गाली दी, आज भी वही क्रम जारी है, वहीं क्यूबा अमेरिका, इंग्लैंड सहित तमाम यूरोपियन देशों में अपने चिकित्सक भेज रहा है वह भी बिना डर भय के, जान जोखिम में डाल कर. और न और…..वह भी अपने खर्च पर… ऐसा काम सिर्फ और सिर्फ समाजवादी देश ही कर सकता है जो बिना लालच और भेदभाव के सेवा कर सकता है…. संवेदनशीलता की सबसे बड़ी मिशाल समाजवादी ही होते हैं आज पूरे विश्व में यह साबित भी हो गया….. लोग अपने जाति, धर्म अपने देश के लिए लड़ मर रहे हैं तमाम तरह के खूनखराबे कर रहे हैं वहीं समाजवादी देश दूसरों के लिए, देश की सीमाओं से उठ कर एक नजीर बन गया है… वह देश है क्यूबा जिसे युगों युगों तक दुनिया याद करेगी….
आज इसी अवसर पर भारत से सबंधित क्यूबा की एक छोटी सी ऐतिहासिक घटना से हम क्यूबा को भारत के परिप्रेक्ष्य में समझेंगे वैसे तो बहुत सी राजनैतिक घटना क्रम हैं भारत और क्यूबा के मध्य लेकिन यह घटना हमारे देश में हो रहे कम्युनिस्ट आंदोलनों के प्रति क्यूबा के प्रेम और सहानुभूति की अनोखी मिशाल है…. इतिहास के आयने से एक सत्य घटना जो तमाम कामरेडों के लिए प्रेरणा का स्रोत है और भविष्य में होगी, समाजवादी इतिहास इस प्रेरणा को अपने में समाहित करे हुए है हालांकि इतिहास के तथ्य और कुछ नामों का क्रम पाठक या जानकार हमें अपडेट भी करेंगे.. लेकिन यह घटना ऐतिहासिक सच है जो साथी रोहित शर्मा जी ने एक वार्ता में प्रसंगवश बतलाई… हमने सोचा यह प्रेरणा देने के लिए बहुत आवश्यक प्रसंग हो सकता है, इसलिए इन कोरोना अवकाश में आपके लिए प्रस्तुत है…
क्यूबा और भारत का संबंध और उस पर भी कामरेडापन इस ऐतिहासिक घटना का मुख्य अंश है… बात नक्सलबाड़ी आंदोलन के समय की है तमाम लोग इस आंदोलन के गवाह रहे हजारों लोग तब शहीद हो गए थे उनमें अधिकांश पढे लिखे डाक्टर, इंनजिनियर, प्रोफेसर , तमाम अध्यापक सरकारी, उच्च पदों से त्यागपत्र देकर आए आंदोलनकारी जेलों में सड रहे थे उस समर में भारत का हर युवा उस आंदोलन से जुडा था वह भी दिलोजान से….. उन्ही में से एक इंजीनियर का छात्र था जिसके पिता बंगाल में किसी विश्व विद्यालय में प्रोफेसर पद पर कार्यरत थे … वह, बिहार के एक जेल, कैम्प जेल (तृतीय खण्ड) भागलपुर जेल में वह अपने साथियों सहित बंद था एक रोज कुछ क्रांतिकारी लोगों ने जेल तोड कर इन अपने साथियों को छुडाने का प्रयास किया प्रयास भी सफल भी हो गया लेकिन अंतिम समय में कुछ कामरेड पुलिस से मुकाबला करते हुए शहीद हो गए…इस भाग दौड में 16 नक्सलवादी क्रांतिकारी शहीद हो गए थे…. उनमें एक वह इंजीनियर जिनके पिता बंगाल में विश्व विद्यालय में प्रोफेसर थे…भी था…. जब उन्हें ज्ञात हुआ तो उन्हें दुख होना लाजमी था लेकिन… उन्होंने उसकी लाश लेने से मना कर दिया यहाँ तक कि उससे कोई संबंध न होने की बात तक स्वीकारी… और पुलिस ने ही किसी तरह अंतिम संस्कार कर दिया… उस समय तक वो हमेशा अपने लडके के खिलाफ रहते और वामपंथियों से नफरत करते थे अपनी औलाद को बहुत समझाते रहते… लेकर वह तो कम्युनिस्ट था आंदोलन की रौ में सवार हो शहीद हो गया…..
इस घटना के कुछ सालों बाद भारत सरकार ने एक प्रतिनिधिमण्डल क्यूबा भेजा उस समय तक उस शहीद इंजीनियर के पिता किसी विश्व विद्यालय के कुलपति बन गए थे और विषय के विशेषज्ञ बन गए थे…. उन्हें भी एक उस दल का एक सदस्य बनाया गया प्रतिनिधिमंडल में… और वो क्यूबा गए… क्यूबा में फिदेल कास्त्रो का शासन था… प्रतिनिधिमंडल की अच्छी व्यवस्था थी जैसे अमूमन होती है राजनायिकों की…. एक सुबह नास्ते में उन कुलपति महोदय ने नास्ता नहीं किया, तो इस पर सबको चिंता हो गई वो उस दिन बहुत उदास भी थे दल के लिए नियुक्त लोगों ने कुलपति महोदय से जानना चाहा तो.! पहले तो वे नहीं बोले लेकिन…. फिर अनुरोध करने पर बता ही दिया कि वो आज ही के दिन उनका लडका मारा गया था… इसलिए हर साल उसकी याद में वे खाना छोड देते हैं….. और दुख मनाते हैं…. क्यूबा सरकार की तरफ से नियुक्त सदस्य में से एक ने खेद जताते हुए उनसे सहानुभूतिपूर्ण रूप से बात की और कुछ और जानना चाहा ताकि उनका दुख कम हो सके…तो… उन्होंने सारी ऐतिहासिक कहानी बता दी…. कामरेड को जब यह ज्ञात हुआ यह तो भारत में कम्युनिस्ट मुवमेंट का हिस्सा वाली घटना थी उन्होंने तुरंत फिदेल कास्त्रो को सम्पर्क किया और उन्हें सारी बात उन प्रोफेसर महोदय की, बतलाई गई…. फिदेल कास्त्रो ने उनसे यकायक ही मुलाकात की और उन्हें सांत्वना दी तथा सारे क्यूबा में उस दिन भोजन न करने का सभी को राज्य की ओर से निर्देश दिया…. एक भारत का कामरेड शहीद का पिता और आज उनके साथ था वह भी उस शहादत दिवस पर…. उन क्यूबाईयो से बेहतर कौन जान सकता था मरने, शहादत का मूल्य… जिन्होंने चे ग्वेरा से लेकर लाखों लोग क्रांति में खोए थे… ऐसी महान शहादत को भला वो कैसे नहीं मानते…. क्यूबा के ऐसे सम्मान देने पर वह भी उनके लडके के शहीद होने पर…. वो कुलपति महोदय गदगद हो गए…. जिस बेटे की लाश लेने से उन्होंने मना कर दिया था आज उसी लडके की बदौलत सारा क्यूबा उन्हें जान रहा है इतना सम्मान एक शहीद के पिता के रूप में हो रहा है…. आज पहली बार उन्हें अपने बेटे के कम्युनिस्ट होने पर गर्व हो रहा था…. ऐसी गहरी संवेदनशीलता क्यूबा ने भारत के सुदूर में चले नक्सली आंदोलन के प्रति रखी यह मानवीय होने के प्रमाण थे…. सात समुद्र पार अनजान देश में वह भी पहली बार बेगाने लोगों के बीच ऐसा सम्मान मिल रहा है जिस क्यूबा की चर्चा तत्कालीन विश्व में प्रमुखता में थी क्यूबा की क्रांति रुस और चीन की क्रांति के बाद सबसे आकर्षित क्रांति थी क्योंकि विश्व के तथाकथित दाद अमेरिका की नाक के नीचे यह क्रांति सम्पन्न हुई थी…. जबकि अमेरिका ने सारी ताकत झौंक दी थी क्यूबा की क्रांति को असफल करने के लिए यह सर्वविदित है इतिहास के पन्नों में सब भरा पडा है…. उस क्यूबा में जो आज भी एक मात्र समाजवाद का झंडा उठाए खडा है उस कम्युनिस्ट देश में एक बाप को ऐसा अनोखा सम्मान मिला उसकी आंखों में आंसू आना स्वभाविक था उसका रोम रोम अचंभित था कि जिस, देश में उसके बेटे और तमाम ऐसे लडाकों को नक्सली कह कर गाली दी जाती है उस देश में ऐसा सम्मान नही मिला और कोशों दूर इस क्यूबा में ऐसा सम्मान…. उस बाप को पछतावा जरूर हुआ और कम्युनिस्टों के प्रति नजरिया बदला कि यह लडाई एक आदमी या एक जाति एक क्षेत्र की नहीं न ही एक विश्व मात्र की है यह लडाई तो वास्तव में सम्पूर्ण मानवता की लडाई है जो बिना देश की सीमा को मानते हुए निरंतर जारी है और अपने अंतिम सौपान तक मानव के मानव के शोषण तक समाप्त किया बिना और एक अहिंसात्मक सभ्य समाज बनने तक जारी रहेगी. जिसकी विजय सुनिश्चित है तय है…….
*डा नवीन*
( इस एतिहासिक घटना पर किसी के पास कोई तथ्यात्मक आंकड़े हो या ऐतिहासिक तिथि तो अवश्य अवगत कराइये वैसे घटना पूर्णतः सत्य है जिस कामरेड रोहित शर्मा साथी ने अवगत कराया.. लिपिबद्ध करने की प्रेरणा दी….लेकिन फिर भी कुछ और शोधात्मक जोडा जाए तो बेहतर रहेगा )