भोपाल की बड़ी झील के किनारे 200 एकड़ में फैला हुआ है। यह भारत का सबसे बड़ा मानव विज्ञान संग्रहालय है, जो मानव जाति के विकास और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है। इसकी स्थापना मार्च 1977 में की गई थी और यह समय और स्थान के संदर्भ में मानव जीवन की यात्रा को खुले और बंद प्रदर्शनियों के माध्यम से प्रस्तुत करता है।
24 और 25 फरवरी को इसी ऐतिहासिक स्थल पर मध्य प्रदेश ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया जाएगा। इस कार्यक्रम में 50 से अधिक देशों के निवेशक भाग लेंगे, जिससे प्रदेश में निवेश और व्यापार के नए अवसर खुलने की संभावना है।
दिल्ली से भोपाल तक का सफर
इस संग्रहालय की शुरुआत दिल्ली के बहावलपुर हाउस में हुई थी। लेकिन जगह की कमी के कारण इसे भोपाल स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया। भोपाल की श्यामला पहाड़ी को इस संग्रहालय के लिए चुना गया, क्योंकि यहां पहले से ही प्रागैतिहासिक शैल चित्र मौजूद थे। इस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को ध्यान में रखते हुए इसे भोपाल में स्थापित किया गया।
1979 में मध्य प्रदेश सरकार ने दी 200 एकड़ भूमि
मानव संग्रहालय भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्तशासी संस्थान है। इसकी शुरुआत 1977 में नई दिल्ली में संस्कृति विभाग के अधीनस्थ कार्यालय के रूप में हुई थी। 1979 में मध्य प्रदेश सरकार ने 200 एकड़ भूमि इस परियोजना के लिए आवंटित की, जिसके बाद इसे भोपाल स्थानांतरित कर दिया गया।
पारंपरिक जीवन की झलक प्रस्तुत करता संग्रहालय
राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में विभिन्न समुदायों की पारंपरिक जीवनशैली को जीवंत रूप में प्रदर्शित किया गया है। यहां जनजातीय आवास, तटीय गांव, रेगिस्तानी जीवन और हिमालयी बस्तियों की झलक देखी जा सकती है। इसके अलावा मिथक वीथी और पारंपरिक तकनीकों की भी प्रदर्शनी लगाई गई है। ये सभी कलाकृतियां स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार की गई हैं, जिनमें क्षेत्रीय सामग्रियों का उपयोग किया गया है।
1985 में बना स्वायत्तशासी संस्थान
मार्च 1985 में इस संग्रहालय का दर्जा अधीनस्थ कार्यालय से बदलकर स्वायत्तशासी संस्थान कर दिया गया। वर्तमान में इसकी गतिविधियों का संचालन एक ‘राष्ट्रीय मानव संग्रहालय समिति’ द्वारा किया जाता है, जो इसके विकास और प्रशासन की देखरेख करती है।