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दारा शिकोह: वो मुगल जिसका औरंगजेब ने कर दिया सर तन से जुदा

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औरंगजेब की क्रूरता और उसकी कब्र हटाने की चर्चाओं के बीच आज उसके बड़े भाई दाराशिकोह की चर्चा। दाराशिकोह शाहजहां का बड़ा बेटा था। जिसे साम्प्रदायिक सियासत से ज्यादा अमन पसंद था। इस समय देश की सियासत में ‘औरंगजेब’ की आग फैली हुई है। दो दिन पहले नागपुर का महल इसी आग का निवाला बनते बनते रह गया। चारों तरफ औरंगजेब की क्रूरता और उसकी कब्र हटाने की चर्चाएं हैं।

देवभाषा संस्कृत में रुचि होने के कारण मुसलमानों के काशी आने की परंपरा रही है। संस्कृत भाषा के आकर्षण से मुगल भी अछूते नहीं रहे। सत्रहवीं शताब्दी में शाहजहां के पुत्र दारा शिकोह भी संस्कृत, वेदांग, दर्शन आदि के ज्ञान की प्यास लेकर बनारस पहुंचे। उन्होंने बनारस में न केवल संस्कृत सीखी, बल्कि कई संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद भी किया।

काशी के पंडित ने क्यों दी शिक्षा

जब मुगल राजकुमार दारा शिकोह संस्कृत सीखने के लिए पंडित रामानंदपति त्रिपाठी के यहां पहुंचे, तब भी विरोध के स्वर उठे थे। इस पर पंडित रामानंदपति ने कहा था कि, ‘ज्ञान की प्यास लेकर दरवाजे पर आने वाले किसी भी व्यक्ति को शिक्षा का दान देना ब्राह्मणवाद है।’ बाद में दारा शिकोह के कहने पर पंडित रामानंदपति ने ‘विराट विवरणम’ लिखा।

इतिहासकार बताते हैं कि वे विनम्र और उदार हृदय के थे। दारा शिकोह एक विचारक, कवि, धर्मशास्त्री होने के साथ-साथ सैन्य मामलों के कुशल विशेषज्ञ भी थे। दारा को इस बात पर भी आश्चर्य हुआ कि सभी धर्मों के विद्वान अपनी-अपनी व्याख्याओं में उलझे हुए हैं और कभी यह नहीं समझ पाते कि इन सबका मूल सार एक ही है।

शाहजहां को प्रिय था दारा शिकोह

कहा जाता है कि बादशाह शाहजहां अपने बेटे दारा से इतना प्यार करते थे कि उन्होंने उसे किसी युद्ध में भाग नहीं लेने दिया। यह भी कहा जाता है कि अपने सभी बच्चों में से शाहजहां दारा शिकोह से सबसे ज्यादा प्यार करते थे, जो उनके अन्य बेटों को पसंद नहीं था। शाहजहां के इस प्यार ने दारा शिकोह और उनके छोटे भाइयों के बीच दरार पैदा कर दी।

शादी में खोल दिए गए ख़जाने

शाहजहां के दारा शिकोह के प्रति प्यार का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि शाहजहां ने उनकी शादी के लिए खजाना खोल दिया था। दारा की शादी मुगल इतिहास की सबसे महंगी शादी कही जाती है। आज के लिहाज से देखा जाए तो यह शादी बिजनेसमैन मुकेश अंबानी के बेटे अनंत की शादी से कई गुना महंगी थी।

उस समय इंग्लैंड से भारत आए पीटर मैंडी ने लिखा है कि उस शादी पर 32 लाख रुपए खर्च हुए थे, जिसमें से 16 लाख रुपए दारा की बड़ी बहन जहांआरा बेगम ने दिए थे। यह शादी 1 फरवरी 1633 को हुई थी। दावतों का सिलसिला 8 फरवरी तक चलता रहा। इस दौरान रात में इतने पटाखे फोड़े गए कि ऐसा लगा कि रात ही दिन में बदल गई है। कहा जाता है कि शादी के दिन पहनी गई दुल्हन की पोशाक की कीमत आठ लाख रुपए थी।

औरंग ने कर दिया सर तन से जुदा

इन कारणों के अलावा इतिहासकार यह भी कहते हैं कि दारा शिकोह के पिता समझ गए थे कि उनके बेटे ने भारत को समझ लिया है और वह शासन चलाने के लिए बेहतर साबित होगा लेकिन औरंगजेब ने बवाल मचा दिया। औरंगजेब को लगा कि अगर दारा शिकोह सफल हो गया तो इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा। यही वजह है कि उसने दारा शिकोह का सिर काटकर उसका सिर शाहजहां के पास भेज दिया और खुद दिल्ली की गद्दी पर बैठ गया।

औरंगजेब ने दारा शिकोह का सिर ताजमहल और धड़ दिल्ली में क्यों दफन करवाया

हंपी के विजयनगर राजाओं के कार्यकाल के दौरान इटली का एक यात्री आया था निकोलो मनूची। मनूची ने मुगल बादशाह शाहजहां के अंतिम दिनों का वर्णन किया है। मनूची ने अपनी किताब ‘स्टोरिया डी मोगोर’ में लिखा है-औरंगजेब आलमगीर ने अपने लिए काम करने वाले एतबार खां को शाहजहां को पत्र भेजने की जिम्मेदारी दी। उस पत्र के लिफाफे पर लिखा हुआ था कि आपका बेटा औरंगजेब आपकी खिदमत में एक तश्तरी भेज रहा है, जिसे देख कर उसे आप कभी नहीं भूल पाएंगे। शाहजहां ने जब तश्तरी का ढक्कन हटाया तो वह सन्न रह गया। तश्तरी में उसके सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह का कटा हुआ सिर रखा था। जानते हैं दाराशिकोह की वो दर्दनाक कहानी, जिसने हिंदुस्तान की किस्मत की दारुण शुरुआत कर दी थी। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने औरंगजेब के बजाय दाराशिकोह की वकालत करते हुए उसकी तारीफ की है।

दत्तात्रेय होसबोले ने कहा-जो हुआ वह यह है कि दारा शिकोह को कभी आइकॉन नहीं बनाया गया। जो लोग गंगा-जमुना संस्कृति की बात करते हैं, वे कभी दारा शिकोह को बढ़ावा देने की कोशिश नहीं करते हैं। दरअसल, मुगल बादशाह शाहजहां के उत्तराधिकारी दारा शिकोह को उदारवादी माना जाता है, जबकि उनके भाई औरंगजेब को कट्टर और क्रूर माना जाता है।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यदि औरंगज़ेब के बजाय मुगल सिंहासन पर दारा शिकोह का राज होता तो धार्मिक संघर्ष में मारे गए हज़ारों लोगों की जान बच सकती थी। दारा एक सूफी विचारक थे, जिन्होंने सूफीवाद को वेदांत दर्शन से जोड़ा था। अविक चंदा की किताब ‘दारा शिकोह, द मैन हू वुड बी किंग’ में कहा गया है कि ‘दारा शिकोह का व्यक्तित्व बहुत बहुमुखी था। वह एक विचारक, विद्वान, सूफी और कला की गहरी समझ रखने वाला व्यक्तित्व था। हालांकि, उसे एक उदासीन प्रशासक और युद्ध के मैदान में अप्रभावी भी माना गया। जहाँ एक ओर शाहजहां ने दारा शिकोह को सैन्य मुहिमों से दूर रखा वहीं औरंगज़ेब को 16 वर्ष की आयु में एक बड़ी सैन्य मुहिम की कमान सौंप दी।

शाहजहांनामा के अनुसार, औरंगजेब से पराजित होने के बाद दारा शिकोह को जंजीरों में बांधकर दिल्ली लाया गया। उसका सिर काट कर आगरा किले में शाहजहां के पास भेज दिया गया, जबकि उसके धड़ को हुमायूं के मकबरे के परिसर में दफनाया गया। मनूची लिखता है कि जब दारा का कत्ल हो रहा था तो ये दृश्य देख कर वहां मौजूद औरतें जोर-जोर से रोने लगीं। उन्होंने अपने सीने पीटने शुरू कर दिए और अपने ज़ेवर उतार कर फेंक दिए। औरंगजेब के हुक्म पर दारा के सिर को ताजमहल के परिसर में दफनाया गया। औरंगजेब का मानना था कि जब भी शाहजहां की नज़र अपनी बेगम के मक़बरे पर जाएंगी, वह यह सोचेगा कि उसके सबसे बड़े बेटे का सिर भी वहां सड़ रहा है। दरअसल, औरंगजेब ने ऐसा इसलिए करवाया क्योंकि दारा शाहजहां का चहेता बेटा था।

जब शहज़ादा दारा शिकोह सिर्फ सात साल के थे, तब उनके पिता शहजादा खुर्रम यानी शाहजहां ने अपने दो बड़े भाइयों के होते हुए भी साम्राज्य का दावा करने के लिए सम्राट जहांगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया। विद्रोह के सफल होने के अवसर बहुत कम थे। चार साल बाद उनकी ग़लतियों के लिए उन्हें माफ करते हुए पराजित शहज़ादे का शाही परिवार में वापस स्वागत किया गया। अपने बेटे की महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने के लिए सम्राट जहांगीर अपने पोतों को बंधक के रूप में महल में ले गए और उन्हें उनकी सौतेली दादी नूरजहां की निगरानी में रखा गया। 13 साल की उम्र में दारा अपने पिता से उस समय मिलने वाले थे, जब शहज़ादा खुर्रम को बादशाह शाहजहां का ताज पहनाया गया

दारा शिकोह का जन्म ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की भूमि अजमेर में हुआ था, जिनसे उनके पिता शाहजहां ने एक बेटे के लिए प्रार्थना की थी। छह पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र दारा को मुग़ल साम्राज्य के भावी शासक के रूप में तैयार किया गया और महल ही उनका घर था। हालांकि, उनके भाइयों को प्रशासक के रूप में सुदूर प्रांतों में प्रतिनियुक्त किया गया, मगर अपने पिता की आंखों के तारे दारा को शाही दरबार में ही रखा गया।

दारा ने 52 उपनिषदों का करवाया अनुवाद

सुदूर के धूल-धूसरित प्रांतों और प्रशासन कार्यों से दूर रखे जाने के कारण दारा अपना समय आध्यात्मिक खोज में लगा सके। उन्होंने छोटी उम्र में ही सूफी रहस्यवाद और कुरान में गहरी रुचि और दक्षता विकसित कर ली थी। दारा ने बनारस के पंडितों और संन्यासियों के सहयोग से इस विशाल कार्य को अंजाम दिया, ताकि उनमें छिपे ‘अस्तित्व की एकता’ (वहदत-अल-वजूद) के सिद्धांतों की खोज की जा सके। इसमें उनका तर्क है कि हिंदू एकेश्वरवाद की उपेक्षा नहीं करते हैं, बल्कि उपनिषद एक प्राचीन कार्य है जो एकेश्वरवाद के सागर का स्रोत है। दारा शिकोह ने 52 उपनिषदों का फारसी अनुवाद ‘सिर्र-ए-अकबर’ नाम से किया।

दारा ने फारसी और संस्कृत में क्या लिखवाया था

कुछ विशेषज्ञों दारा शिकोह को अपने समय के सबसे महान मुक्त विचारकों में से एक के रूप में माना है। फारसी में उसके ग्रंथ हैं- सारीनतुल औलिया, सकीनतुल औलिया, हसनातुल आरफीन (सूफी संतों की जीवनियां), तरीकतुल हकीकत, रिसाल-ए-हकनुमा, आलमे नासूत, आलमे मलकूत (सूफी दर्शन के ग्रंथ), सिर्र-ए-अकबर (उपनिषदों का अनुवाद)। दारा ने श्रीमद्भगवद्गीता और योगवशिष्ठ का भी फारसी भाषा में अनुवाद किया। ‘मज्म-उल्-बहरैन्’ फारसी में उसकी अमर कृति है, जिसमें उसने इस्लाम और वेदांत की अवधारणाओं में मूलभूत समानताएं बताई हैं। दाराशिकोह ने ‘समुद्रसंगम’ (मज़्म-उल-बहरीन) नाम से संस्कृत में भी रचना की।

उत्तराधिकार का युद्ध एक अफवाह से शुरू हुआ

जब मुगल बादशाह शाहजहां एक गंभीर और लंबी बीमारी से ग्रस्त हो गया तो औरंगजेब ने बादशाह की मौत होने की अफवाह फैला दी। इस अफवाह ने छह भाई-बहनों के बीच उत्तराधिकार के युद्ध की चिन्गारी को भड़का दिया। दारा के दावों को उनकी बहन जहांआरा बेगम ने समर्थन दिया। वहीं, बहन रोशनारा बेगम ने औरंगजेब का समर्थन किया। उस वक्त औरंगजेब, मुराद और शुजा ने मिल कर शाही राजधानी पर हमला बोल दिया।

जब दारा उत्तराधिकार की लड़ाई हार गए

सूफी शहजादे दारा शिकोह 1658 में सामूगढ़ की लड़ाई हार गए। पराजित शहज़ादे ने अफग़ानिस्तान के दादर में शरण मांगी, लेकिन उनके मेजबान ने उनके भाई औरंगजेब को उनके बारे में सूचना दे कर उन्हें धोखा दे दिया। युद्ध में दारा शिकोह को हराना ही पर्याप्त नहीं होता। दारा के लिए शाहजहांनाबाद (दिल्ली) के लोगों के मन में जो आराधना जैसा प्रेम था। औरंगजेब को उस चीज को हराना था।

जब दारा को चिथड़ों में लाया गया था दिल्ली

दराशिकोह को चिथड़ों में दिल्ली लाया गया। इसके बाद उन्हें ज़ंजीरों से बांध कर और कलंकित करके शाही राजधानी की गलियों में एक मादा हाथी के ऊपर बिठा कर उनका जुलूस निकाला गया। उस वक्त दिल्ली दरबार में आए फ्रांसीसी यात्री फ्रांसुआ बर्नियर ने कहा है कि इस घृणित अवसर पर अपार भीड़ जमा हो गई और हर जगह मैंने देखा कि लोग रो रहे थे और बेहद मार्मिक भाषा में दारा के भाग्य पर अफसोस जत रहे थे। हर तरफ़ से कर्णभेदी और कष्टप्रद चीखखें मुझे सुनाई दे रही थीं, क्योंकि भारतीय लोगों का दिल बहुत कोमल होता है। पुरुष, महिलाएं और बच्चे ऐसे रो रहे थे जैसे खुद उन पर कोई भारी विपत्ति आ गई हो।

क्या आरोप लगाकर दारा का किया गया कत्ल

औरंगजेब के इशारों पर उसके चाटुकार उलेमाओं ने दारा पर इस्लाम विरोधी कृत्य का आरोप लगाया गया। दारा को 9 सितंबर, 1659 को मार दिया गया और उसके शव को एक हाथी की पीठ पर लाद कर दिल्ली के शहर के हर बाजार और गली में प्रदर्शित किया गया था। इतिहासकारों ने उस वक्त दारा शिकोह के कत्ल को दुखद व्यक्ति के रूप में बताया है। जिससे हिंदुस्तान में एक नई उम्मीद खत्म हो गई।

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