सुधा सिंह
_कोई भी स्वस्थ मनुष्य दिन-रात में कुल 21600 बार साँस लेता है। इस संख्या में से 6000 साँस मूलाधार से, 6000 स्वाधिष्ठान से, 6000 मणिपूरक से, 2300 अनाहत से तथा 1300 विशुद्ध, आज्ञा और सहस्रार चक्र से निकलते हैं।_
आज्ञाचक्र भ्रूमध्य में है। जीवात्मा का यहीं वास है। सहस्रदल के ऊपर विंशति सहस्र दल कमल है जिसमें सर्वोपरि शक्ति शिवाकार पर आसीन है। इसी मंच पर समस्त शरीर का वायु आकर केंद्रित हो जाता है और यहीं शिव और शक्ति का एकीकरण हो जाता है :
*”एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का मामपरा।”*
जिस मंच पर वे एकाकार होते हैं, वहां कोई दूसरा नहीं होता। इसी महाशक्ति से ही दस अवतारों की उत्पत्ति और इसीसे दस महाविद्याओं का भी प्रादुर्भाव होता है।
दस महाविद्याएं हैं :*
“काली तारा महाविद्या
षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च
विद्या धूमावती तथा।।
मातंगी सिद्धविद्या च
कथिता बगलामुखी।
एता दश महाविद्या
सर्व तंत्रेषु गोपिताः”।।
साधक महाविद्या के प्रकाश के बिना न तो महेश्वर को देख सकते हैं और न पा सकते हैं। पराशक्ति ही परमेश्वर का दिव्य ज्योति स्वरूप है। इसी शक्ति को गायित्री कहते हैं :
“गायन्तं त्रायते इति–गायत्री।” जिसका अर्थ है –
वह गान करने वाले का तुरंत त्राण (रक्षा)करती है। यह गायत्री त्रिपाद है और प्रत्येक पाद में आठ -आठ अक्षर हैं। यही ‘ज्योतिषां ज्योति’ और परमा विद्या और जीव और चित्शक्ति का मूल है। इसके भीतर ‘शब्दब्रह्म’ है जो अनादि और अव्यय है एवं जिसका बाह्य स्वरुप प्रणव “ॐ” है। गायत्री में 24 अक्षर हैं।
_इसके छः चतुष्कोण ही इसकी छः शक्तियां हैं :_
पराशक्ति, ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति, कुण्डलिनी शक्ति और मातृका शक्ति।
पराशक्ति सभी शक्तियों का मूल है। ज्ञानशक्ति सभी विद्याओं का आधार है। इसीसे मन, चित्त, बुद्धि और अहंकार को स्वरुप प्राप्त होता है। पांच भौतिक उपाधि में दूरदर्शन, दूरश्रवण, अन्तर्दृष्टि, अन्तर्ज्ञान आदि की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इच्छाशक्ति से शरीर के स्नायुमंडल में लहरें पैदा होती हैं। कर्मेन्द्रियाँ उसके अनुसार संचालित होती हैं। क्रियाशक्ति आभ्यन्तर विज्ञान शक्ति है।
इससे एकाग्रता शक्ति प्राप्त होती है। कुण्डलिनी शक्ति की यह जीवनी शक्ति है। आकर्षण और विकर्षण इसके दो स्वरुप हैं। इसी के कारण पुनर्जन्म होता है।
मातृका शक्ति–यह अक्षर, बीजाक्षर, शब्द, वाक्य तथा गान विद्या की शक्ति है। बीजमंत्र इसी शक्ति का व्यक्त रूप है। मन्त्र, यंत्र, तंत्र को किस प्रकार साधा जा सकता है, इनसे जीवन में किस प्रकार सफलता प्राप्त की जा सकती है ?
यह एक गंभीर विषय है। ‘गायत्री’ तत्व को बिना समझे शक्ति से सफलता नहीं प्राप्त की जा सकती।