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‘दशमत रावत’: हजारों आदिवासी आज और भी ज्यादा दहशत में     

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सुसंस्कृति परिहार 

सीधी के भाजपा कार्यकर्ता और विधायक केदारनाथ शुक्ला के विधायक प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला के शिवाम्बु की गिरती फुहार में नहाए धोए दशमत रावत जिस दहशत के साए में सोशल मीडिया पर आए वीडियो में देखें गए ठीक वैसी ही स्थिति उस समय भी देखी गई जब उनका पूरा ब्राह्मण विधि विधान से सम्मान किया गया और राज्य के मुख्यमंत्री ने उन्हें उपहार आदि भेंट कर क्षमा मांगी। उनकी पंडित जी या यूं कहें भगवान स्वरुप खिदमत की गई।फ़र्क सिर्फ़ यह रहा है कि दशमत के चरण धोने के बाद चरणामृत पिया नहीं माथे पर लगाया गया दूसरी बात मिठाई  का एक कौर अपने कर कमलों मामा ने खिलाया लेकिन पानी को नहीं पूछा उसे अपने हाथ से मुख पर लगा मीठा पोंछना पड़ा।जाते वक्त पता नहीं दशमत के चरण स्पर्श किए या नहीं,यह मामा की इस कलात्मक चुनावी फिल्म में दिखाया नहीं गया।दशमत की तरह देश के अधिकांश आदिवासी आज भी इसी तरह चुपचाप ज़ुल्म और सम्मान का आडंबर सह लेते हैं।वे ना दुखी होते हैं ना प्रसन्न जिसका फायदा अमूमन हर सरकार ने उठाया है। आज़ादी के बाद आदिवासी समाज की यह स्थिति सोचने बाध्य करती है। यह बात तब और परेशान करती है जब आदिवासी राष्ट्रपति भी ऐसे गंभीर मामले पर भी दो शब्द बोलने से कतराती हैं।

पिछले कुछ सालों में आपने गौर किया होगा भाजपा की नज़र आदिवासी वोट पर केंद्रित है इसीलिए राष्ट्रपति पद जैसे पद पर आदिवासी महिला को बैठाया गया। मध्यप्रदेश भाजपा विंध्य पर पिछले माहों से ज्यादा फोकस कर रही है शहडोल आदिवासी बहुल इलाका है। चुनावी साल में भाजपा पीएम मोदी का चेहरा सामने कर विंध्य के आदिवासी वोट बैंक को साधने की जुगत में है। इसीलिए प्रधानमंत्री विन्ध्य का दो बार दौरा कर चुके हैं।

प्रधानमंत्री का दो महीने में यह दूसरा विंध्य दौरा है। ज्ञातव्य हो इससे पहले मोदी ने 24 अप्रैल 2023 को रीवा में पंचायती राज दिवस पर आयोजित सम्मेलन में शिरकत की थी। इसी तरह भोपाल  में हबीबगंज स्टेशन का नाम गौंड रानी कमला पति  के नाम किया इसी रेल्वे स्टेशन से वंदे भारत ट्रेन को मोदी जी ने हरी झंडी दिखाई। आदिवासी सेनानियों को इस बीच बराबर फोकस किया गया।बिरसा मुंडा पर ऐतिहासिक आयोजन किए गए।

विंध्य को भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है, लेकिन मौजूदा दौर में उसका किला दरकता दिख रहा है। कारण यह है कि सत्ताधारी दल भाजपा ने विंध्य के जरिए अपने सत्ता के समीकरण तो साधे हैं, लेकिन विंध्य को सियासी प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में जिस अनुपात में विंध्य से भाजपा को सीटें हासिल हुई थीं, उस अनुपात में प्रदेश सरकार ने कैबिनेट में मंत्री नहीं बनाए हैं।

लंबे समय से विंध्य इलाका भाजपा का गढ़ रहा है। विंध्य इलाके में लोकसभा की चार सीटें हैं और चारों सीटें भाजपा के खाते में हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा ने चारों सीटें पहली बार जीती हैं। भाजपा चारों लोकसभा सीटों पर लगातार तीन से चार बार से जीत हासिल कर रही है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भी विंध्य में भाजपा को जबरदस्त कामयाबी मिली थी। 2013 के विधानसभा विधानसभा में विंध्य से दो सीटें बसपा को मिली थी और 2018 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें भी छीन लिया था।

कांग्रेस इस बार विंध्य में सेंध लगाने की तैयारी कर रही है, लेकिन भाजपा अपने वजूद को खोना नहीं चाहती है।  केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी लगभग तीन महीने पहले सतना में कोल रैली को संबोधित कर चुके हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार कई दौरे विंध्य के कर चुके हैं। ऐसे में भाजपा अपना पुराना किला आसानी से छोडऩा नहीं चाहती है।

प्रदेश में 47 सीट शिड्यूल ट्राइव के लिए रिजर्व है। 2018 के विधानसभा चुनाव में इनमें 31 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा किया था। बीजेपी के खाते में महज 16 सीटें आई थीं। आदिवासी वोटरों के छिटकने के कारण ही बीजेपी को 2018 में 15 साल बाद विपक्ष में बैठना पड़ा था। कमलनाथ सरकार के जाने के बाद बीजेपी ने आदिवासी वोटरों को लुभाने के लिए खास प्लानिंग की। कोल महोत्सव जैसे आयोजन हुए। प्रधा अमित शाह सतना के शबरी महोत्सव में आदिवासी वोटरों को रिझाने उतरे थे। नरेंद्र मोदी पिछले 3 महीने में चार बार मध्यप्रदेश का दौरा चुके हैं। इन दौरों में वह आदिवासी इलाकों में ही फोकस करते रहे। चार दिन पहले भी नरेंद्र मोदी शहडोल के पकरिया और लालपुर में आदिवासी बच्चों को दुलारते-पुचकारते नजर आए थे।

उनकी इस मेहनत पर सीधी के भाजपा कार्यकर्ता ने एक आदिवासी के साथ जो घिनौनी, अमानवीय और अक्षम्य हरकत की। उससे इन सभी की मेहनत पर पानी फिर गया।सबसे महत्वपूर्ण तो यह माफी मांगने का तरीका था या एक आदिवासी को हिंदू बनाने की कोशिश? निस्संदेह इस वीडियो के जरिए शिवराज सिंह चौहान यही संदेश देने की कोशिश करते हैं कि सभी आदिवासी हिंदू हैं। फिर बेशक कोई हिंदू उनके ऊपर पेशाब करने जैसा घिनौना अपराध कर दे। क्या यह केवल इसलिए कि इस साल के अंत में होनेवाले राज्य में विधानसभा चुनाव और अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनााव में उनका वोट भी चाहिए ?

बहरहाल, शिवराज सिंह चौहान द्वारा दशमत रावत के इस तथाकथित सम्मान पर अपनी प्रतिक्रिया में गोंड साहित्यकार उषाकिरण आत्राम का कहना है कि इस तरह से किसी आदिवासी का सम्मान नहीं किया जाता है। उसे गणेश की प्रतिमा देकर मुख्यमंत्री क्या साबित करना चाहते हैं। आदिवासी गणेश को अपना देवता नहीं मानते। दूसरी बात यह कि जिस आदमी के शरीर पर पेशाब कर दिया गया हो, क्या उसके मन की पीड़ा केवल पैर धोने से दूर हो जाएगी? रही बात क्षमा मांगने की तो मुख्यमंत्री और उस आरोपी युवक को पूरे आदिवासी समाज के सामने माफी मांगनी चाहिए थी। विधायक महोदय क्यों पीछे रहे यह भी कई सवालों को जन्म देता है।

कई लोग प्राचीन पुस्तकों और वेदों में, मूत्र को जो शिवाम्बु (स्व-मूत्र) से संदर्भ‍ित किया गया उस शिवाम्बु को पवित्र द्रव्य कह रहे हैं। उनके अनुसार, मूत्र दूध से भी ज्यादा पोषक होती है। गंभीर बीमारियों को ठीक करने के लिये मूत्र चिकित्सा एक प्रभावी एवं दवा रहित तरीका है। आजकल शिवान्बू से  भी ज्यादा महत्वपूर्ण गौ मूत्र माना जा रहा है उसे पीना, नहाना भी स्वास्थ्य कारक बताया जा रहा है उसका गोबर भी चिकित्सकीय पाथेय में सरकार की मंशानुरूप शामिल किया जा रहा है फिर अपने शिवान्बू से प्रवेश शुक्ला द्वारा स्नान क्या इसी मनोदशा का परिचायक तो नहीं। जो सनातन से किसी अन्य स्वरूप में मौजूद  है।

बघेलखंड में ब्राह्मणों, ठाकुरों की दवंगई जानी पहचानी है। दशमत के चरण धोकर शिवराज ने यहां के ब्राह्मण समाज को भी रुष्ट कर दिया है। पहली बार किसी ब्राह्मण युवक की करतूत की सजा पूरा परिवार बेघर होकर भुगत रहा है जिसका असर सीधी ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में साफ दिखाई दे रहा है। यह समाज  भी एकजुट हो रहा है प्रवेश का घर बनाने। सूत्र बता रहे हैं चंदा करने वाले विधायक केदारनाथ शुक्ला जी हैं।संभव है ब्राह्मण वोट टूटने से बचाने के लिए प्रवेश शुक्ला परिवार को सरकार ही गुपचुप मदद कर दे।

बहरहाल यह तय है कि आदिवासी समाज आज और भी ज्यादा दहशत में है शिवराज ने उन्हें अलग थलग कर दिया है। शिवराज के कहने पर जिस तरह दशमत को थाने बुलाकर यकायक भोपाल ले जाया गया उससे परिवार जन भी ख़फ़ा है। यही वजह है कि विधायक शुक्ला उसके आवास पर जब पहुंचते हैं तो चप्पल दिखाकर महिलाएं अपना विरोध जताती हैं। जल्दबाजी में मामा का यह डेमेज कंट्रोल उल्टा पड़ गया है देखते ही देखते कांग्रेस की स्थिति और मज़बूत हो गई। शायद महाकाल लगातार मामा को बर्बाद करने उतारु हैं।उनके कोपभाजन से सनातन धर्म कहता है कोई नहीं बच सकता है।

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