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दशपुर जनपद संस्कृति-प्रकाशन गाथा

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सीएम 8 दिसंबर को पुस्तक का करेंगे विमोचन

-विवेक मेहता 

             60 वर्ष बाद गौरव दिवस पर अनुपलब्ध ‘दशपुर जनपद संस्कृति’ पुस्तक का पुनः प्रकाशन हो रहा है। मुख्यमंत्री विमोचन करने वाले है। अच्छी बात है। 

             ‘दशपुर जनपद संस्कृति’ ग्रंथ अपने आप में एक मील का पत्थर है। जब भी दशपुर यानी नीमच मंदसौर जिले के बारे में जानकारी की बात आती है ‘दशपुर जनपद संस्कृति’ का उल्लेख अनिवार्य हो जाता है। यूं तो दशपुर पर उसके बाद मेहनत से लिखी दो तीन पुस्तकें तड़क-भड़क के साथ प्रकाशित भी हुई।कुछ काम चलाऊ भी। मगर संदर्भ ‘दशपुर जनपद संस्कृति’ का ही रहा।

          1961 के साल में श्री भगवतीप्रसाद श्रीवास्तव बीटीआई के प्राचार्य थे। दूर दृष्टा थे। वे बाद में शिक्षा विभाग से ज्वाइंट सेक्रेट्री के पद से सेवानिवृत्त हुए। मंगलजी जब से नीमच में शिक्षक थे तब से हस्तलिखित पत्रिकाओं के द्वारा बच्चों में लेखकीय प्रतिभा विकसित कर रहे थे। उनके लेख, कहानियां तब देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थी। वे बीटीआई मंदसौर में शिक्षक के रूप में स्थानांतरित हुए। उम्र होगी 30 वर्ष। श्रीवास्तवजी की इच्छा थी कि मंदसौर के गजेटियर की पूर्ति कर सके ऐसी पत्रिका का प्रकाशन हो। जिम्मेदारी मांगीलालजी मेहता यानी मंगलजी को दी गई। शुरुआत में चार पुस्तकों के प्रकाशन की योजना थी। इसीलिए पुस्तक पर एक छपा दिखाई देता है। पहला भाग 1962 में प्रकाशित हुआ और देश के ख्यात इतिहासकार, सीतामऊ के महाराजकुमार श्री रघुवीरसिंह जी को राजेंद्र विलास- जीवागंज के सभागृह में भव्य कार्यक्रम के दौरान समर्पित किया गया। ग्रंथ को हाथों-हाथ लिया गया। चर्चित रहा। 1 अप्रैल 1966 के पत्र में रघुवीरसिंहजी ने मंगलजी को लिखा था “-तुम्हारे प्रकाशन की पूछ दूर-दूर हो रही है अच्छी चीजों के ग्राहक सर्वत्र मिल ही जाते हैं।” 

             मंगलजी में डंडे मार कर लोगों से लिखवाने,प्रोत्साहित करने की क्षमता थी। मैंने कई लेखो की पांडुलिपिया देखी थी जिसमें उन्होंने इतने संशोधन कर दिए थे की मूल लेख से वे भिन्न हो गये थे। एक स्कूली पत्रिका को मील का पत्थर बनाना संपादक मंगलजी और श्रीवास्तवजी के बस की ही बात थी। इसमें त्रिवेदी स्टूडियो के कैलाशजी त्रिवेदी ने भी अच्छे फोटोग्राफ खींच कर चार चांद लगाएं। उनके उन फोटो का एल्बम मेरे पास है।

                इस ग्रंथ में संतुलन है। 60 परसेंट के आसपास वरिष्ठ लेखक थे। तो 40 परसेंट तबके बीटीआई के विद्यार्थी। पंडित सूर्यनारायण व्यास, रघुवीरसिंहजी, पंडित शिवनारायण गौड़, नागेश मेहता, हरिहर रुनवाल, कन्हैयालाल डूंगरवाल, नेमीचंद जैन जैसे लेखक थे तो कृष्णवल्लभ मोड़, महेंद्रसिंह चौहान जैसे तक के बीटीआई के अध्यापक थे। छात्रों में रामविलास संघवी, राधेश्याम सिखवाल प्रमुख थे।

           4 भाग में प्रकाशित होने की योजना पहले भाग के बाद आगे क्यों न बढ़ पाई इसका अंदाजा मंगलजी की इन पंक्तियों से हो जाता है- “दशपुर अंचल की संस्कृति, सांस्कृतिक निधियां सदैव से अनुप्राणित करती रही। किले, खंडहर, मंदिर, पुरानी मूर्तियां, शिलालेख-किसकी मोहकता अपना जादू नहीं चलाती रही पर यहां भी भावुकता में नहीं बहा। अतिशयोक्ति में बात नहीं की। ‘दशपुर जनपद संस्कृति’ का संपादन किया। कितने रोड़े अटकाये गए, किसने लंगी लगाई, टांगे खींची अब यह सब बताना निरर्थक है। उस समय भी जानकारी थी कि यही अंतिम पड़ाव नहीं है। यह पहला डग मात्र है। डगमगाता हुआ। इसके अलावा कुछ भी नहीं।”

          रूढ़ियों, भ्रांतियों, स्वार्थ के अपने जाल थे। अखबारों में विरोध में समाचार थे। फिर भी ‘दशपुर जनपद संस्कृति’ ग्रंथ प्रकाशित हुआ। सराहा गया। इसके प्रकाशन से नईविधा का भी जुड़ाव रहा । इसके पहले संस्करण के मुद्रक- प्रकाश मानव, ज्ञानोदय मुद्रणालय नीमच रहे ।उनका भी एक लेख इसमें है।

           मंगलजी मेहता द्वारा संपादित ‘मालवी गद्य’, ‘सरपंच’ उपन्यास और ‘मामा बालेश्वरदयाल’ की जीवनी अपने आप में मिल का पत्थर हैं और अनुपलब्ध है ।

            बातें तो और भी है । लेखक को कौन पहचानता है ! कौन सम्मान करता है !! उसकी क्या औकात !!! पारिश्रमिक तो दूर की बात धन्यवाद तक देना उचित नहीं।

प्रत्येक युग में जनपदों का अपना महत्व रहा है, वे अपने में इतिहास, संस्कृति, परंपरा, लोकाचार को समेटे रहकर गौरव प्रदर्शित कर रहे हैं। इसी प्रकार दशपुर जनपद महाराज रंतिदेव की राजधानी रही। हृदय सम्राट सहस्त्रार्जुन से शासित सम्राट उदयन की चातुर्मास स्थली, कालांतर में महाराजा यशोधर्मन से रक्षित, वर्तमान में मंदसौर के नाम से विख्यात है। इस प्राचीन सुप्रसिद्ध मंदसौर नगर के तत्कालीन बुनियादी प्रशिक्षण संस्थान द्वारा 1962 में \”दशपुर जनपद संस्कृति नामक ग्रंथ प्रकाशित किया था जो वर्तमान में अनुपलब्ध था। दशपुर जनपद का समय परिचय व दिग्दर्शन कराने वाले ग्रंथ की द्वितीय आवृत्ति कलेक्टर गौतम सिंह के मार्गदर्शन में पुनर्मुद्रण कर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के प्राचार्य व समिति द्वारा प्रस्तुत की गई। इसका विमोचन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा गौरव दिवस के मौके पर 8 दिसंबर को किया जाएगा।

मंदसौर की प्राचीनता, संस्कृति, पुरातत्व इतिहास लोकाचार साहित्य, संत व विशेषज्ञाें से परिचय कराने वाला यह ‘दशपुर जनपद संस्कृति ग्रंथ 6 खंडाें व 2 विशेष स्तंभों में विभाजित किया है।

  • प्रथम इतिहास खंड है जिसमें दशपुर जनपद, दशपुर और ओलिंकर वंश, सम्राट यशोधर्मन और दशपुर, मुगलकालीन मंदसौर और 1857, इंद्रगढ़ और धर्मराजेश्वर जैसे स्थान व घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करते हुए सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल भादवामाता, जीरन का इतिहास, नीमच, मुगल मराठा संघर्ष में मंदसौर आदि से परिचय कराया है।
  • द्वितीय जनश्रुति खंड है जिसमें दशपुर की स्वाभिमानी दशोरा जाति व तत्कालीन मंदसौर जिले के पोलाडूंगर, सुखानंद, शामगढ़, आंतरी माता, मोड़ी के भग्नावशेष, अफजलपुर ग्राम बूढ़ा से अवगत कराया है।
  • तृतीय साहित्य खंड है जिसमें जैन साहित्य, कालिदास और वत्सभत्तिका का दशपुर, जैन आचार्य समंतभद्र और दशपुर के साहित्य से परिचय कराया है।
  • चतुर्थ पुरातत्व खंड है जिसमें प्राचीन सिक्कों, सौंधनी जयस्तंभ का शिलालेख, बसेड़ा के मंदिर, यशवंतराव होलकर बहादुर की छतरी, अर्धनारीश्वर मूर्ति व मंदसौर के भित्ति चित्रों से परिचय कराया है।
  • पंचम जनभाषा खंड है जिसमें जिले की द्राविड़ी भाषा, भील बोली, मातृभाषा जावदी और दशपुरी मालवी की विशेषताओं को संजोया है।
  • षष्ठम लोक संस्कृति खंड में क्रांतिदूत, साहित्यकार, समाजसेवियों के कृतित्व व व्यक्तित्व से अवगत कराया है। इसके माध्यम से उनके बारे में विभिन्न जानकारी मिल सकेगी।

इतिहासज्ञों, साहित्यकारों, की जानकारी के लिए उपयुक्त

इस ग्रंथ के पोथियों शीर्षक में रामस्नेही संप्रदाय की हस्तलिखित पोथियों, रघुवीर पुस्तकालय व दशपुर जनपद के लोकगीतों का विवरण दिया है। विविध खंड में दशपुर और राजस्थान का संबंध मालवा की पहेलियां, संझा गीत, करुण गीत, लोकनाट्य, लोकहास्य, संत विभूतियों, दशपुर के शिलालेख एवं उनकी लिपियों, बालकथाओं, प्राण वल्लभाएं, सहकारिता, कुलवधुएं, मेले व प्राचीन – नवीन उद्योग-धंधों के बारे में जानकारी प्रदान की है। ग्रंथ में जगह – जगह उपलब्ध चित्र दर्शाए हैं। इस प्रकार यह ग्रंथ जिज्ञासुओं, शोधार्थियों, पुरातत्ववेत्ता, इतिहासज्ञों, साहित्यकारों, लोकाचारों की जानकारी प्राप्त करने वाले के लिए उपयुक्त ग्रंथ है। कलेक्टर सिंह ने बताया हर शाला, महाविद्यालय, पुस्तकालय, विद्यार्थियों के लिए संग्रहणीय ग्रंथ है। मंदसौर के गौरव की जानकारी इस पुस्तक को पढ़े बिना अधूरी रहेगा।

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