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कश्मीर में हिंदुओं की लाशें गिर रहीं और हम 1990 जैसे बेबस हैं

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अनुराग मिश्र

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,

जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।

रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां आज सोशल मीडिया पर लोगों के गुस्से को बयां कर रही हैं क्योंकि आज एक बार फिर घाटी में एक निर्दोष हिंदू का खून बहा है। कश्मीर में मौजूद अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय खुद को असहाय महसूस कर रहा है। राहुल भट्ट, रजनी बाला, विजय कुमार… लोग पूछ रहे हैं कि सरकार और कितने हिंदुओं की जान लेना चाहती है। आतंकियों ने आज दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम में बैंक मैनेजर विजय कुमार पर गोली मार दी। उन्हें बचाया नहीं जा सका। कुलगाम में ही दो दिन पहले टीचर रजनी बाला को गोलिया से छलनी कर दिया गया था। आप आतंकियों का साहस देखिए कि वे स्कूल में, बैंक में घुसकर हिंदुओं को मार रहे हैं और कोई कुछ नहीं कर पा रहा है।

एक के बाद एक आतंकियों का हमला, उनकी गोलियों का शोर साफ-साफ बता रहा है कि उनके हौसले बुलंद है, कमजोर दिख रहा है तो सरकार का इरादा। आज कश्मीर ही नहीं, पूरे हिंदुस्तान के अमनपसंद लोग और हिंदू समुदाय गुस्से में है। 370 हटने के बाद शांति की उम्मीद पूरे देश को थी, लेकिन यहां तो चुन-चुनकर टारगेट किलिंग शुरू हो गई है। 1990 में आधी रात पंडितों को अपना पुश्तैनी घर छोड़कर भागना पड़ा था तब हालात अलग थे लेकिन आज अगर वही दोहराया जा रहा तो चिंतित होना लाजिमी है। आज 32 साल के बाद चंद लोगों ने अगर हिम्मत की है घाटी में लौटने की, तो उनके हौसले को आतंकियों की गोली से छलनी किया है। हैरत है कि सरकार की तरफ से पिछले एक महीने में कोई भी ठोस प्रयास नहीं दिखा। सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई में कई आतंकियों को ढेर कर दिया लेकिन हमें यह समझना होगा कि वे मरने या मारने के लिए ही आते हैं लेकिन हमें अपने लोगों की जान बचानी है।

अब खबर है कि टारगेट किलिंग पर 3 जून यानी कल जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और अन्य टॉप अधिकारियों के साथ गृह मंत्री अमित शाह बैठक करने वाले हैं। जम्मू-कश्मीर के एलजी उन्हें हालात की जानकारी देंगे। घाटी में हिंदुओं पर हमले ऐसे समय बढ़े हैं, जब इसी महीने के अंत में अमरनाथ यात्रा शुरू होनी है। जब घाटी में सरकारी नौकरी करने गए हिंदू सुरक्षित नहीं हैं तो देश के कोने-कोने से बाबा बर्फानी के दर्शन की आस लेकर जाने वाले हिंदुओं को सरकार कैसे सुरक्षा का आश्वासन देगी?

लोग कश्मीर में सरकार की चुप्पी, सरकारी रवैये को लेकर कोस रहे हैं। जिस पीएम पैकेज के जरिए 6000 हिंदुओं खासतौर से कश्मीरी पंडितों की घरवापसी पर सरकार ‘फीलगुड’ का संदेश देना चाह रही थी, वह हिंदुओं की जान पर भारी पड़ रहा है। अब घाटी में नौकरी कर रहे हजारों हिंदुओं की जान खतरे में है। जम्मू-कश्मीर में हिंदू समुदाय के लोग अपने परिजनों का घाटी से ट्रांसफर किए जाने की मांग कर रहे हैं मतलब वे कश्मीर में रहकर नौकरी नहीं करना चाहते। तो क्या सरकार फेल हो गई है? बड़ा सवाल यह है कि 1990 की तरह हम एक बार फिर बेबस क्यों दिख रहे हैं।

फौलाद से पक्के इरादे वाली सरकार को यह समझना चाहिए कश्मीरी पंडितों ने एक बार फिर पलायन का अल्टीमेटम दिया है। क्या यह आतंकियों के आगे सरकारी तंत्र का सरेंडर नहीं है? गृह मंत्री अमित शाह की होने वाली बैठक में देश के तेजतर्रार अफसर और ‘भारत के जेम्स बॉन्ड’ कहे जाने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी मौजूद रहेंगे। देश उनसे यही उम्मीद लगाए बैठा है कि बॉर्डर पर पाकिस्तान की गोली का जवाब दिया जाता रहेगा, पहले घाटी में घुस आए गद्दारों, पाकिस्तान के पाले दहशतगर्दों का काम तमाम करना जरूरी हो गया है।

कश्मीरी पंडित आज यह कहने को मजबूर हो गए हैं कि उन्हें सरकार ‘बलि का बकरा’ बना रही है। सरकार की नीतियों के प्रशंसक फिल्म निर्माता अशोक पंडित ने भी नम आंखों से कहा कि हम अनाथ हो गए, हमें कोई सुनने को तैयार नहीं है। अब वक्त आ गया है कि जब सरकार आतंकियों की गोली का जवाब गोले से दे। आतंकियों के हौसले को पस्त करने और घाटी को हिंदुओं के रहने लायक बनाने के लिए पूरा देश यही मांग कर रहा है।

हम प्रधानमंत्री से यह दरख्वास्त कर रहे हैं कि जम्मू में हमें (हिंदुओं) रीलोकेट किया जाए, जिससे हमारी लाशें गिरनी बंद हों। हम अनाथ हो गए हैं। कश्मीर में हमारी मौजूदगी से आप दुनिया को क्या जताना चाहते हो कि हमारे हालात घा में ठीक हैं। आप हमारे आंसुओं का इस्तेमाल कर रहे हो और आपने हमें हैवानों, राक्षसों के हाथो में छोड़ दिया।
– अशोक पंडित, फिल्ममेकर

एक रिपोर्ट के मुताबिक 5 महीने में 15 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए और 19 नागरिकों की हत्या कर दी गई। अब घाटी में हिदुओं की लाशें न गिरे, इसके लिए सरकार को पूरी ताकत लगानी होगी। कश्मीर पुलिस के टॉप अधिकारी मान रहे हैं कि अल्पसंख्यक हिंदुओं को टारगेट कर उन्हें डराने की कोशिश है पर हिंदू समुदाय पूछ रहा है कि क्या वे अपनी जान पर खेलकर घाटी में रहने का जोखिम उठाएं। अगर सरकार उन्हें सुरक्षा नहीं दे सकती तो लोग घाटी क्यों लौटेंगे? अब उपाय एक ही है सरकार को आतंकियों की बंदूकों का जवाब देना होगा। इसी साल अब तक 17 टारगेट किलिंग हो चुकी हैं। कश्मीर फाइल्स देखकर लोगों का जोश उबाल मार रहा था, अब हिंदुओं की लाशें देखकर खामोशी की चादर क्यों ओढ़ी गई है। देश जवाब चाहता है। मई महीने की रिपोर्ट है कि 100 कश्मीरी हिंदू परिवारों ने घाटी छोड़ दी है। 1990 पार्ट-2 कोई भी भारतीय देखना नहीं चाहता।

दिनकर की उसी कविता की एक लाइन है

बोल दिल्ली! तू क्या कहती है?
तू रानी बन गई वेदना जनता क्यों सहती है?

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