राजेश चौधरी
सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक आधार पर रिजर्वेशन पर मुहर लगा दी है। यह पहली बार हुआ है कि सरकार ने आर्थिक आधार पर रिजर्वेशन दिया और उस पर सुप्रीम मुहर लगी। संविधान में पिछड़ेपन को देखने का सामाजिक और शैक्षणिक आधार पहले से रहा है, लेकिन अब जो संशोधन हुआ है उसमें ‘आर्थिक आधार पर’ जोड़ दिया गया है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
- शीर्ष अदालत ने कहा है कि संविधान बनाने वालों ने रिजर्वेशन के लिए एक समयसीमा तय की थी। आजादी के 75 साल बीतने पर भी आरक्षण का मकसद पूरा नहीं हो पाया है। अब समाज के हित में इस पर विचार करने की जरूरत है।
- इससे समय के साथ रिजर्वेशन खत्म होने के आसार बने हैं। एंग्लो इंडियन के लिए संसद में जो रिजर्वेशन था वह खत्म हो चुका है।
- इसलिए कुछ जानकार इस संभावना से इनकार नहीं कर रहे कि देश धीरे-धीरे जातिगत आधार पर रिजर्वेशन खत्म करने की ओर भी बढ़ सकता है।
- लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा। इसमें कई पेचीदगियां हैं। इस सिलसिले में सबसे बड़ा सवाल यही है कि सरकार रिजर्वेशन को लेकर कौन सा रास्ता चुनती है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह ने इस टिप्पणी को अहम माना है। उनकी राय है कि अदालत ने जो मंशा जाहिर की है, उस पर सरकार आगे विचार कर सकती है। कई अन्य जानकार भी इससे सहमति जताते हैं।
ग्राफिकः BCCL
रिजर्वेशन पर क्या बदला
इंदिरा साहनी जजमेंट में 50 फीसदी की सीमा रिजर्वेशन के लिए तय की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे लचीला किया और आर्थिक आधार पर रिजर्वेशन पर मुहर लगा दी।
- आर्थिक आधार पर आरक्षण के सरकार के फैसले का विरोध करने वालों का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में जो प्रावधान हैं, उनके तहत सिर्फ जातिगत और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ों को ही रिजर्वेशन दिया जा सकता है। आरक्षण दिया जा सकता है। इसलिए आर्थिक आधार को जोड़ना संविधान की भावना के खिलाफ है।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना। उसने रिजर्वेशन को सकारात्मक कदम बताया, जिसका उद्देश्य है सभी का समावेश। इसमें आर्थिक तौर पर पिछड़ों के समावेश की भी बात है। इसलिए इस आधार पर रिजर्वेशन देना संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं है।
- शीर्ष अदालत ने बहुमत के फैसले में यह भी कहा कि ईडब्लूएस के लिए अलग कैटिगरी बनाया जाना और उसमें से एसईबीसी (सोशली एंड इकॉनमिकली बैकवर्ड क्लास) को बाहर रखा जाना भेदभावपूर्ण नहीं है, न ही यह संविधान के प्रावधान के खिलाफ है।
- लेकिन अल्पमत के फैसले में एससी/एसटी और ओबीसी वर्ग के गरीबों को आर्थिक तौर पर आरक्षण से बाहर करना (इस आधार पर कि उन्हें पहले से रिजर्वेशन का लाभ मिल रहा है) संविधान के तहत समानता का उल्लंघन बताया गया है। इसके मुताबिक, संविधान किसी को बाहर करने की इजाजत नहीं देता है और यह बेसिक स्ट्रक्चर को कमजोर करने वाली बात है।
रिजर्वेशन के तीन आधार
परंपरागत तरीके से एससी/एसटी को रिजर्वेशन दिया जाता रहा है। लेकिन 1992 में ओबीसी को भी आरक्षण दिया गया। उस समय हुई बहस के कुछ अहम पहलुओं पर गौर करना उपयोगी होगा।
- अगर हम संविधान के प्रावधान को देखें तो अनुच्छेद-15 में पिछड़ेपन की बात है। लेकिन पिछड़ेपन का पता कैसे लगाया जाए और रिजर्वेशन किसे दिया जाए यह बहस का मुद्दा था।
- इंदिरा साहनी केस में भी मुख्य मुद्दा यही था कि संविधान में जब रिजर्वेशन के लिए जाति का जिक्र नहीं किया गया है तो फिर ओबीसी को रिजर्वेशन कैसे दिया जा रहा है।
- सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि पिछड़ेपन का पता लगाने के लिए जाति एक पहचान हो सकती है और तब के संवैधानिक परिप्रेक्ष्य में अदालत ने कहा था कि सामाजिक और शैक्षणिक आधार रिजर्वेशन के लिए होगा।
- अब केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन कर आर्थिक आधार को भी जोड़ दिया है तो फिर रिजर्वेशन के लिए तीन आधार हो गए हैं।
- ओबीसी रिजर्वेशन के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमीलेयर वालों को रिजर्वेशन से वंचित किया था यानी देखा जाए तो ओबीसी में भी जो गरीब हैं, उन्हें ही रिजर्वेशन का लाभ मिलता रहा है।
- इस लिहाज से ओबीसी और जनरल कैटगरी में आरक्षण का लाभ उन्हें ही मिलेगा, जो गरीब हैं।
ऐसे में आने वाले समय में आर्थिक आधार पर आरक्षण का जो फैसला है, वह नई दिशा तय कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि रिजर्वेशन अनंत काल के लिए नहीं हो सकता। जो रिजर्वेशन दिया जा रहा है, उस पर दोबारा विचार करने की जरूरत भी बताई गई है क्योंकि उससे समानता का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है। ऐसे में यह संभावना तो बनती ही है कि आने वाले दिनों में रिजर्वेशन के लिए आर्थिक आधार को प्रमुखता मिले और जातिगत रिजर्वेशन खात्मे की ओर बढ़ चले।