मुनेश त्यागी
दो दिन पहले राजधानी दिल्ली के शाहबाद डेरी इलाके में इंसानियत फिर से शर्मसार हो गई। आरोपी साहिल ने अपनी परिचित साक्षी पर बेरहमी से चाकू और पत्थरों से ताबड़तोड़ हमला किया और उसे बेरहम और बर्बर तरीके से मार डाला। हैरान करने वाली बात यह है कि वारदात के समय गली में अच्छी खासी चहल-पहल थी। आरोपी बेखौफ होकर साक्षी पर हमला करता रहा और भीड़ तमाशबीन बनी रही। किसी ने भी उसे बचाने का प्रयास नहीं किया।
इससे पहले भी दिल्ली में 22 अक्टूबर 2021 को एकतरफा प्यार में एक युवक ने घर में घुसकर 19 वर्षीय इशरत नाम की युवती को आठ बार चाकू मारकर हत्या कर दी थी। हत्यारा श्याम उससे प्यार करता था। इसी प्रकार की एक और घटना 20 अक्टूबर 2021 को दिल्ली के बिंदापुर इलाके में हुई थी जिसमें एक तरफा प्यार में अंकित नामक युवक ने डोली बब्बर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था। इससे पहले हमने दिसंबर 2012 में देखा था कि हत्यारों ने कितनी बेरहमी के साथ निर्भया थी हत्या की थी।
इस घटना को लेकर दिल्ली में सियासत भी शुरू हो गई है। केजरीवाल ने कहा है कि दिल्ली में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी एलजी और केंद्र सरकार की है। वहीं दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने इस हत्या को लव जिहाद का मामला बताया है। बहुत ही आश्चर्यजनक बात यह है की 20 वर्षीय साहिल खान ने जिस पाश्विकता का परिचय दिया है, वह एकदम हैरान करने वाली है। उसके चेहरे पर इस जघन्य अपराध को करने के बाद भी कोई पछतावा नहीं था।
इस हत्याकांड के आरोपी साहिल खान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और उसने पुलिस की गिरफ्त में आकर अपना गुनाह कुबूल कर लिया है। उसका कहना है कि उसकी साक्षी से तीन साल पहले से दोस्ती थी। पिछले कुछ समय से साक्षी ने उसे बोलचाल बंद कर दी थी और वह अपने पूर्व प्रेमी से बातचीत करने लगी थी इसी रंजिश से उसने साक्षी की हत्या कर दी।
हम अखबारों में इस तरह के मामले लगातार पढ़ते रहते हैं। औरतों के खिलाफ होने वाले अपराधों में कोई कमी नहीं आ रही है। कोई दिन नहीं जाता कि जिस दिन औरतों की हत्या को लेकर अखबारों में कोई खबर ना हो। यहां पर सबसे गंभीर सवाल ये उठता है कि आखिर यह क्या मामला है? औरतों या बच्चियों के साथ होने वाले अपराध क्यों नहीं रुक रहे हैं?
जब हम औरतों के खिलाफ होने वाले अपराधों के इतिहास में जाते हैं तो हम देखते हैं कि हमारे समाज में इमानदारी से औरतों को कभी वह माहौल मोहिया ही नहीं कराया गया कि जिसमें वह आजादी से सांस ले सके। हालांकि हमारे समाज में औरतों को दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी की संज्ञा दी गई है, मगर आज भी उन्हें समाज में बराबरी का स्थान नहीं दिया गया है।
आज भी वे इसी औरत विरोधी मानसिकता और सोच का शिकार हैं। पितृसत्तात्मक सोच और रवैया औरतों के वाजिब अधिकार उन्हें नहीं दे रहा है और आज भी अधिकांश लोग उन्हें मनोरंजन की वस्तु और उपभोग का सामान समझते हैं, उन्हें अपनी मर्जी के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहते हैं।
ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि अपराध करने वाले लोगों की नजरों में औरतों का या बच्चियों का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। वे उन्हें कोई अधिकार ही नहीं देना चाहते। अगर कोई औरत या बच्ची, अपराधी की इच्छा के खिलाफ जाएगी और उसकी इच्छा के अनुसार काम नहीं करेगी तो वह उसे जान से मार देगा, आंख फोड़ देगा और बडी बेरहमी से उसकी हत्या कर देगा या उसे अपनी हबस का शिकार बना लेगा।
यहीं पर सवाल उठता है कि हमारी देश की राजनीति, हमारे देश और समाज की सोच और हमारे परिवारों का, औरतों के खिलाफ लगातार हो रहे अपराधों को लेकर क्या रवैया है? आजादी के 75 साल के बाद भी औरतों को वह आजादी प्राप्त नहीं हुई है जिसकी वह हकदार है। वैसे तो हमारा संविधान और कानून औरत और पुरुष की बराबरी की बात करते हैं, मगर हमारी हजारों साल पुरानी औरत विरोधी सोच और मानसिकता और रवैया, उन्हें बराबरी के अधिकार नहीं देना चाहता। उन्हें मनुष्य के समान नहीं समझा जा रहा है। आदमी उन्हें आज भी अपने से कमतर ही समझ रहा है। इसी कारण आए दिन औरतों की हत्याएं होती रहती है और उसके साथ अपराध होते रहते हैं।
हमारे देश की राजनीति और हमारे समाज की सोच इस औरत विरोधी माहौल के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। हमने बहुत सारे पश्चिमी देशों में और समाजवादी मुल्कों में देखा है कि वहां पर औरतों को आदमी के बराबर अधिकार दिए गए हैं, उन्हें रोजी-रोटी शिक्षा रोजगार और अपने जीवन साथी चुनने का पूरा अधिकार दिया गया है। वहां पर औरत विरोधी सोच और मानसिकता का बुनियादी रूप से खात्मा कर दिया गया है। वहां पर बच्चों को और मनुष्य को यह तालीम दी जाती है, यह सीख दी जाती है कि वे बच्चों का, बच्चियों का मनमाना इस्तेमाल ना करें, उन्हें अपने मनमर्जी तरीके से चलाने की कोशिश ना करें।
वहां औरतों को मनोरंजन का और केवल इच्छापूर्ति का सामान नहीं समझा जाता। वहां औरतों को लेकर एक आजाद सोच का विकास किया गया है जिस वजह से खासतौर से समाजवादी देशों में औरतों के साथ होने वाले अपराधों में काफी कमी आ गई है। वहां के परिवार भी अपने बच्चों को सही और गलत की शिक्षा देते हैं। अपने बच्चों को और बच्चियों को बराबरी की शिक्षा देते हैं, उनके हित और अहित की सीख देते हैं, और उनसे बराबरी का व्यवहार करते हैं, जिस वजह से वहां पर औरतों के खिलाफ अपराधों में काफी कमी आई है।
मगर हमारे देश में ऐसा नहीं किया गया। भारत की राजनीति, भारत का समाज और हमारे परिवार, आज भी बच्चियों को, बच्चों के बराबर नहीं समझते, आज भी उन्हें उपभोग व मनोरंजन की वस्तु और दोयम दर्जे की नागरिक समझा जाता है। यही कारण है कि हमारे देश में औरतों और बच्चियों के खिलाफ होने वाले अपराध थमने का नाम नहीं ले रहे हैं और सख्त कानूनों के बाद भी अपराधियों को कानून का कोई खौफ नहीं है।
अब सवाल उठता है बच्चियों और औरतों के खिलाफ लगातार बढ़ते जा रहे अपराधों को रोकने के लिए क्या किया जाए? इस मुद्दे को हमें समग्रता में लेना होगा। इसके लिए हमारे देश की राजनीति, हमारे देश के समाज, हमारी कानून व्यवस्था और हमारे परिवारों को एकजुट होकर कार्यवाही करनी होगी। हमें औरत विरोधी मानसिकता, सोच और पितृसत्तात्मक सोच का खात्मा करना पड़ेगा।
देश के पैमाने पर एक राजनीतिक माहौल के तहत बच्चे और बच्चियों में भेदभाव करने की मानसिकता को खत्म करना होगा। बच्चियों को और औरतों को मनोरंजन और उपभोग की वस्तु समझने पर रोक लगानी होगी। उन्हें आदमी के बराबर और लड़कों के बराबर, अधिकार देने होंगे, उनकी इज्जत करनी होगी। हमें अपने परिवारों में अपने बच्चों को सिखाना होगा कि लड़की या औरत किसी की गुलाम नहीं है, उसकी भी अपनी इच्छाएं हैं, अपनी सोच है और उसे अपनी सोच के अनुसार काम करने का पूरा अधिकार है। हमें उसके व्यक्तित्व को एक निश्चित स्पेस देना होगा। अपने परिवारों में हमें अपने बच्चों को और बच्चियों को यह महत्वपूर्ण सीख और शिक्षा भी देनी होगी कि वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते समय, अपने जीवन साथी चुनने में बहुत ही सोच-समझकर कदम उठाएं।
इसी के साथ साथ हमें अपनी न्याय व्यवस्था को मजबूत और चुस्त दुरुस्त करना होगा। औरत विरोधी अपराधों के मामलों को ज्यादा से ज्यादा तीन माह में निपटाना होगा। इसके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में रोजाना के आधार पर, न्यायिक कार्यवाही करनी होगी और अपराधियों को सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए। जघन्यतम अपराधों में आजन्म कारावास की सजा दी जाए, जिसे किसी भी आधार पर कम नहीं किया जाएगा। इस प्रकार अपराधियों के दिलो-दिमाग में कानून का खौफ पैदा करके ही इन अपराधों में कमी लाई जा सकती है।
जब तक इस प्रकार की राजनीति, कानून व्यवस्था और सोच हमारे देश, हमारे समाज और हमारे परिवार में काम नहीं करेगी, तब तक हमारे देश में, हमारे समाज में और हमारे परिवारों में, औरतों और बच्चियों के खिलाफ होने वाले अपराधों को नहीं रोका जा सकता और तब तक ऐसे जघन्य अपराधों से मानवता को शर्मसार होने से नहीं बचाया जा सकता।