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लोकतांत्रिक फ़िल्म?

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शशिकांत गुप्ते

महान प्रदर्शन कर्ता व्यक्ति (Greatest Showman) राजकपूर की एक फ़िल्म का स्मरण हुआ। सन 1970 में प्रदर्शित फ़िल्म का नाम है मेरा नाम जोकर
जोकर मतलब हास्यास्पद क्रियाकलाप करके हँसाने वाला, हँसने-हँसाने वाला, और उपहास करने वाला।
सर्कस में युवकों और युवतियों द्वारा विभिन्न हैरतअंगेज करतब प्रस्तुत किए जातें हैं।
हैरत अंगेज करतबों के बीच दर्शकों के मनोरंजन के लिए जोकरों के हास्यास्पद क्रियाकलाप प्रस्तुत किए जातें हैं।
ज्यादातर जोकर नाटे कद के होतें हैं। जोकरों की शारीरिक कद, काठी जैसी भी लेकिन उनकी वेशभूषा बहुत ही विचित्र होती है।
महान प्रदर्शन कर्ता व्यक्ति, राजकपूर ने उक्त फ़िल्म में स्वयं जोकर का अभिनय किया है।
अभिनेता हो या अभिनेत्री,ये लोग किसी भी तरह का अभिनय करतें हैं, मसलन अंधे होने का,अपाहिज़ होने का,भिखारियों का,चोरी करने का,पॉकेट मार का, शराबी का, मसखरे का आदि, हरतरह के अभिनय के लिए इन लोगों को पारिश्रमिक मात्र भरपूर मिलता है।
सिर्फ पारिश्रमिक ही नहीं इन्हें समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति (celebrity) का दर्जा प्राप्त होता है।
फिल्मों में खलनायक का किरदार अदा करने वाले कलाकार को चरित्र अभिनेता कहतें हैं। खलनायक को फिल्मों में सभी तरह के अवैध धंदे करते हुए दिखाया जाता है। खलनायक गरीब मजदूर की कन्या या अर्द्धागिनी, लाचार स्त्री, मजबूर औरत का अभिनय करने वाली अभिनेत्रियों के साथ जोर जबरजस्ती करते हुए शारीरिक शोषण करता है। फिल्मों में खलनायक को धनबली और बाहुबली दिखाया जाता है।
खलनायक को हरतरह के बुरे कार्यो में राजनेताओं,
अभिभाषको, प्रशासनिक अधिकारी, कानून व्यवस्था संभालने वालों का अभिनय करने वालों का पूर्ण प्रश्रय होता है।
फ़िल्म की कथा काल्पनातीत होती है।
फ़िल्म की पटकथा लिखने वाले लेखकों की कल्पना पर आश्चर्य होता है।
क्या ये लेखक समाज में हो रहे दुष्ट आचरण को देख पटकथा लिखतें हैं? फिल्मों के प्रदर्शन के बाद समाज को प्रेरणा मिलती है?
एक अहम प्रश्न कानून व्यवस्था को कमजोर दर्शाने से लेखक और फ़िल्म निर्माता समाज को क्या संदेश देना चाहतें हैं?
फ़िल्म प्रदर्शन एक सांस्कृतिक मोर्चा है। सांस्कृतिक मोर्चा, हर तरह की सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से मनोरंजन के साथ आमजन को शिक्षित करने का मोर्चा है।
आश्चर्य होता है यह जानकर की लेखक भारतीय,निर्माता भारतीय,दिग्दर्शक भारतीय,कलाकार भारतीय, गीतकार भारतीय,गायक भारतीय, खलनायक या खलनायिका का अभिनय करने वाले अभिनेता भी भारतीय। सबसे बडी आश्चर्य की बात तो यह है कि सेंसर बोर्ड के कार्यालय में कार्यरत, कर्मचारी अधिकारी सभी भारतीय होतें हैं। आश्चर्य जनक बात तो यह है कि, सेंसर बोर्ड के कार्यलय में स्त्री कर्मचारियों की संख्या अधिक है।
इनदिनों देश के दक्षिण क्षेत्र के फ़िल्म निर्माताओं द्वारा फिल्मों हिंसा की पराकाष्ठा का प्रदर्शन भी आश्चर्य चकित करता है।
ये भी सभी भारतीय ही हैं।
सीतारामजी ने उक्त लेख पढ़कर एक सलाह देतें हुए कहा कि इस लेख में इतना और जोड़ दो अपने देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।
भावीपीढ़ी को स्मरण करना के लिए यह भी लिख दो अपना देश में सत्य,अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जैसे क्रांतिकारी हुए हैं। शहीदे आज़म भगतसिंह ने युवावस्था में अंग्रेजों की हुकूमत को सिर्फ ललकारने के लिए एसेंबली में बम का विस्फोट किया था। भगतसिंह हिंसा के विरोधी थे।
अंत यह भी लिखों मेरा भारत महान

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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