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ढहा दीजिये लालकिला और गिरा दीजिये कुतुबमीनार, जमींदोज कर दीजिये ताजमहल भी..

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ब्रह्मानंद गर्ग

जो लोग इतिहास बना नहीं पाते या इतिहास के पन्नों में अपने मतलब की चीजें नहीं पाते वे इतिहास के साथ छेड़छाड़ जरूर करते हैं! हालांकि कहने को ये इतिहास के साथ छेड़छाड़ है परन्तु वास्तविक रूप में ये सभ्यता, संस्कृति और मानव जीवन की गाथाओं के साथ खिलवाड़ है!

गुगल के युग में मुगलों को हटाने के ख्वाब पालने वाले दर असल अपनी संस्कृति के अमिट हस्ताक्षर जैसे निराला, पंत, फिराक, मीरा आदि को भी नहीं बख्श रहे!

“रवि हुआ अस्त : ज्योति के पत्र पर लिखा अमर
रह गया राम-रावण का अपराजेय समर
आज का, तीक्ष्ण-शर-विधृत-क्षिप्र-कर वेग-प्रखर,
शतशेलसंवरणशील, नीलनभ-गर्ज्जित-स्वर,
प्रतिपल-परिवर्तित-व्यूह-भेद-कौशल-समूह,
राक्षस-विरुद्ध”

ऐसी कालजयी रचनाएँ लिखने वाले हिंदी भाषा के छायावादी स्तंभ ” सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” को भी ये पाठ्यक्रम में रखना नहीं चाहते तो वहीं दूसरी ओर-

“मैं नहीं चाहता चिर-सुख,
मैं नहीं चाहता चिर-दुख,
सुख दुख की खेल मिचौनी
खोले जीवन अपना मुख !”

जैसी गहरी अनुभूति से ओतप्रोत रचनाओं के जनक हिन्दी की नवीन धारा के प्रवर्तक “सुमित्रानंदन” पंत” भी इनके लिए असहनीय हो चले है!

“बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं”

जैसे जिंदादिल शेर कहने वाले फिराक गोरखपुरी को भी ये छात्रों की स्मृतियों से विस्तृत करने चले हैं!

मध्ययुगीन कवयित्री और भगवान श्री कृष्ण की अनन्य भक्त मीराबाई की रचनाओं को भी पाठ्यक्रम से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं!

मुगलों से नफरत की आग में ये अपनी सभ्यता और संस्कृति के जिवंत प्रमाण मिटाने चले हैं परंतु शायद भूल गए हैं कि इतिहास मिटाए नहीं मिटते!

आप मुगलों को हटा कर छात्रों के दिमागों में क्या भरना चाहते हैं?
आप क्या जवाब देंगे जब छात्र पूछेंगे कि अपनी मातृभूमि की आन बान और शान के लिए आजीवन संघर्ष की राह चुनने वाले वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने किसके साथ ऐतिहासिक संघर्ष किया? हल्दीघाटी का युद्ध किनके बीच हुआ? हकीम खां सूर कौन था?
“अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमरयो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।”

जैसी रचना कन्हैयालाल सेठिया को क्यों करनी पड़ी थी?

आप क्या कहेंगे जब छात्र पूछेंगे कि स्वराज और स्वराज्य के जनक मराठा साम्राज्य के अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज का संघर्ष किनके साथ हुआ था?

आप क्या कहेंगे जब पूछा जाएगा कि लालकिला, ताजमहल, कुतुबमीनार जैसे विश्व प्रसिद्ध स्मारक कौन बना गए?

दर असल आप मुगलों का इतिहास नहीं बल्कि भारतीय जीवन शैली के अध्याय खत्म करने चले हैं! आप मुगलों के साथ साथ महाराणा प्रताप, शिवाजी, अमर सिंह राठौड़, राणा सांगा, राणा कुंभा जैसे वीरों की स्मृतियाँ और संघर्ष को भी धूमिल करने चले हैं!

एक कवि हृदय और इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते मैं आपके इस फैसले को हमेशा नापसंद करूँगा और मुझे पूर्ण विश्वास है कि दूसरे कवि, लेखक, बुद्धिजीवी, इतिहासकार और साहित्यकार भी आपके इस कदम की आलोचना ही करेंगे!

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