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सेबी चीफ माधबी पुरी बुच के इस्तीफे की मांग,400 सेबी कर्मचारियों का मुंबई मुख्यालय के सामने प्रदर्शन?

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नई दिल्ली।सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के इस्तीफे की मांग को लेकर गुरुवार को मुंबई में नियामकी संस्था के कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया. उनके इस प्रदर्शन के पीछे का कारण यह है कि इन कर्मचारियों ने सरकार से सेबी में वर्क कल्चर को लेकर शिकायत की थी. इसके बाद सेबी ने उनके इस दावे को गलत करार दिया था, जिसके बाद कर्मचारियों का गुस्सा भड़क उठा.

 यह खबर असाधारण है। सेबी के चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के कारनामों के नित नए खुलासों के बीच कल खबर आई कि सेबी के 500 से अधिक स्टाफ को भी अपने बॉस माधबी पुरी बुच और टॉप मैनेजमेंट से काफी शिकायतें हैं। मिडिल मैनेजमेंट संभालने वाले सैकड़ों सेबी स्टाफ ने यह शिकायत किसी और को नहीं सीधे वित्त मंत्रालय को लिखित में भेजी है।आज करीब 400 सेबी कर्मचारियों ने मुंबई स्थित, बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स मुख्यालय के सामने प्रदर्शन किया है और उन्होंने माधबी पुरी बुच के इस्तीफे की मांग की है।

SEBI: बाजार नियामक सेबी (भारतीय प्रतिभूति एवं विनियामक बोर्ड) की चेयरमैन माधबी पुरी बुच के इस्तीफे की मांग को लेकर गुरुवार को करीब 200 कर्मचारी मुंबई में प्रदर्शन कर रहे हैं. सेबी के ये सभी कर्मचारी बाजार विनियामक की ओर से अभी हाल में जारी किए गए एक प्रेस विज्ञप्ति के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. इसमें सेबी की ओर से कहा गया है कि उसके वर्क कल्चर को लेकर बाहरी तत्व गुमराह कर रहे हैं. सेबी के वर्क कल्चर को लेकर सेबी के कर्मचारियों ने सरकार से शिकायत की थी. सेबी कर्मचारियों का यह प्रदर्शन करीब दो घंटे तक चला. इसके बाद वे प्रदर्शन समाप्त करके अपने कार्यालय वापस लौट आए.

अपने पत्र में उनका कहना था कि सेबी के शीर्ष नेतृत्व के कारण विषाक्त माहौल बन गया है। कर्मचारियों को असाधारण लक्ष्य दिए जाते हैं और उन्होंने निगरानी की व्यवस्था की आलोचना की है।

इतनी बड़ी संख्या में किसी संस्थान के कर्मचारियों के द्वारा लिखित शिकायत को किसी भी संवेदनशील सरकार को बेहद गंभीरता से लेना चाहिए, विशेषकर यह ध्यान में रखते हुए कि मौजूदा सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार, पद के दुरुपयोग और एक खास कॉर्पोरेट समूह के हित में सेबी में नीतिगत फैसले लेने के गंभीर आरोप लगाये गये हैं। 

सिक्यूरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (सेबी) कोई प्राइवेट संस्था नहीं है, बल्कि यह भारत सरकार के तहत वित्त मंत्रालय का एक बेहद अहम संस्थान है, जिसका काम भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के प्रशासनिक क्षेत्र के अंतर्गत भारत में प्रतिभूति एवं कमोडिटी बाजार के लिए नियामक निकाय के बतौर काम करने का है।

इसकी स्थापना 12 अप्रैल 1988 को एक कार्यकारी निकाय के तौर पर की गई थी और इसे 30 जनवरी 1992 को सेबी अधिनियम, 1992 के माध्यम से वैधानिक शक्तियां हासिल हुई थीं।

इसके महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके अधीन देश में आज 15 करोड़ लोग डीमेट अकाउंट के माध्यम से अपने जीवनभर की जमापूंजी शेयर बाजार में लगाते हैं, जो बाजार की अनिश्चितता और बाजार में हर्षद मेहता और केतन पारीख जैसे बड़े घोटालेबाजों की वजह से समय-समय पर डुबो सकते हैं। 

बिजनेस इंडिया नामक पत्रिका ने अपने ताजे अंक में बाजार में रिटेल निवेशकों की भारी आमद पर कवर स्टोरी की है। अपने लेख में बिजनेस इंडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उद्धृत करते हुए बताया है कि पिछले 10 वर्षों में 2.3 करोड़ डीमेट अकाउंट की संख्या बढ़कर 15 करोड़ हो चुकी है।

जिसे पीएम मोदी भारतीय शेयर बाजार में भारतीय निवेशकों की अटूट निष्ठा के तौर पर देख रहे हैं।

इसी प्रकार पीएम मोदी म्यूचुअल फंड के बारे में दावा करते हैं कि 2014 में जहां मात्र 1 करोड़ म्यूचुअल फंड निवेशक थे, वे अब बढ़कर 4.5 करोड़ हो चुके हैं। इस प्रकार, पीएम मोदी इसे घरेलू निवेशक आधार में व्यापक विस्तार के तौर पर पेश कर रहे हैं। 

हम सभी जानते हैं कि शेयर बाजार में क्या तेजी चल रही है। देखते ही देखते शेयर बाजार कहां से कहां पहुंच गया है। विदेशी संस्थागत निवेशक और पोर्टफोलियो भारतीय शेयर बाजार छोड़कर निकल रहे हैं, लेकिन घरेलू निवेशकों और म्यूच्यूअल फंड निवेशकों की ऐसी बाढ़ आई हुई है कि कोयला भी सोना बनकर दमक रहा है।

इसका अंदाजा हाल ही में तब लगा जब एक कंपनी, रिसोर्सफुल ऑटोमोबाइल ने 22 अगस्त 2024 को अपना आईपीओ बाजार में निकाला, जिसमें 117 रूपये में 10.2 लाख शेयर बाजार में निकाले गये थे। प्रोमोटर को इस आईपीओ के माध्यम से 12 करोड़ रूपये की पूंजी चाहिए थी।

लेकिन जानते हैं बाजार ने इस आईपीओ के लिए कितने बड़े स्तर पर खुद को प्रस्तुत कर दिया? 4,800 करोड़ रूपये, अर्थात 400 गुना। 

जब इस कंपनी के बारे में खंगाला गया तो पता चला कि इस कंपनी में मात्र 8 कर्मचारी काम करते हैं, और उससे भी हैरत की बात यह थी कि यह कोई कंपनी-वंपनी नहीं थी, बल्कि इसके मालिक का बाइक का मात्र दो शोरुम था। अगर यह तथ्य रिटेल निवेशकों को पहले से पता होती, तो क्या यह आईपीओ 100% भी सब्सक्राइब हो पाता?

लेकिन यह तो 400 गुना सब्सक्राइब हो गया। सेबी का यही काम है, लेकिन वह क्या कर रही है, यह तो सिर्फ सरकार ही बता सकती है, जिसने नियमावली का स्वंय उल्लंघन कर 2 मार्च, 2022 को गैर प्रशासनिक अधिकारी को पहली बार सेबी का चेयरपर्सन बना डाला।

जी हां, माधबी पुरी बुच की नियुक्ति ही सवालों के घेरे में है। माधबी के साथ 8 लोग और हैं, जो सेबी बोर्ड के सदस्य हैं, जो 4 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक भारतीय पूंजी बाजार का संचालन देखते हैं। 

हाल के वर्षों में डीमेट अकाउंट खोलने की होड़ में उत्तर प्रदेश के लोग सबसे आगे देखे गये हैं। ये नये रिटेल निवेशक वे हैं, जिन्हें बैंक या अन्य निवेश में रिटर्न नहीं मिल रहा है, और छोटे और मझोले उद्योगधंधों के लिए भारत में अब कोई स्थान नहीं बचा।

90 के दशक से चीनी सस्ते माल के आयात की जो शुरुआत हुई, उसने गुजराती व्यवसाइयों को सबसे पहले मालामाल करना शुरू किया, जिसे पिछले 10-12 वर्षों से शेष भारत ने भी धड़ल्ले से अपना लिया है। 2016 में नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी तथा 2020 में कोविड-19 महामारी ने छोटे और मझौले उद्योगों की कमर तोड़ दी है।

भारत में उद्योग खोलने के लिए लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन, पीएफ, ईएसआई, जीएसटी में रजिस्ट्रेशन से लेकर लेबर कमिश्नर सहित महंगी बिजली, प्रदूषण नियंत्रण सर्टिफिकेट जैसे न जाने कितने झंझट हैं, जिससे पार पाकर यदि कोई काम करने की सोचे भी तो भारत सरकार की आयात-निर्यात नीति के चलते उसका कंगाल होना अवश्यंभावी है।

ऐसे में, अपनी पूंजी को इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट में लगाकर मुनाफा कमाने और जो बच गये हैं, उनके लिए विकल्प के अभाव में शेयर बाज़ार में अंधाधुंध निवेश ही एकमात्र विकल्प बचता है। 

सोचिये, महज 6% संगठित बाजार की मार्किट वैल्यू 4 ट्रिलियन डॉलर से ऊपर जा चुकी है, जबकि भारत की जीडीपी अभी भी 4 ट्रिलियन डॉलर को नहीं छू सकी है।

इस अंधेरगर्दी को बढ़ाकर ही मौजूदा सरकार खुद को विश्व की सबसे तेजी से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था बता रहा है। यही वह आखिरी उम्मीद है, जिसके बल पर बगैर पूंजी निवेश किये ही कॉर्पोरेट भारी मुनाफाखोरी कर रहा है।

भारतीय स्टॉक मार्किट को फुलाते रहने और इसे किसी भी सूरत में फुस्स न होने देने के पीछे बाज़ार की बड़ी ताकतों के साथ-साथ हमारी सरकार का भी बड़ा स्वार्थ है, जिससे उसे आवश्यक प्राणवायु प्राप्त हो रही है।

शायद इसीलिए उसे माधबी पुरी बुच के ऑफशोर एफपीआई में करोड़ों रूपये के निवेश या सेबी की 2017 से होलटाइम डायरेक्टर बनने के बाद भी एक निजी बैंक से हर माह दो-दो सैलरी उठाने से भी कोई परहेज नहीं है।

इस बेहद महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए माधबी पुरी बुच ने किस प्रकार अपने पति की अमेरिकी कंपनी के बांड के लिए आगे बढ़कर सेवाएं प्रदान की हैं, इसकी कहानी हाल ही में भारतीय समाचारपत्रों में आकर बिला चुकी हैं। 

सेबी की वेबसाइट पर झांकने पर पता चलता है कि इसके करीब 3000 कर्मचारी हैं, जिन्हें वित्त मंत्रालय के तहत अपने कर्तव्य का निर्वहन करने की जिम्मेदारी है। इसमें बड़ी संख्या में लोअर एंड मिडिल मैनेजमेंट में काम करने वाले लोग युवा हैं, जिनमें से अधिकांश फाइनेंस और एमबीए डिग्रीधारी हैं।

पत्र में उनकी शिकायत है कि सेबी में कार्यदक्षता बढ़ाने के नाम पर प्रबंधन ने हाल के वर्षो में सिस्टम में कई बदलाव कर दिए हैं, और प्रतिगामी नीतियां लागू की गई हैं। इसके साथ ही पत्र में कहा गया है कि पिछले 2-3 वर्षों में सेबी में डर मुख्य प्रेरक शक्ति बन गया है।

इन अधिकारियों का यह भी कहना है कि वरिष्ठ प्रबंधन अक्सर उन्हें उनके “नाम से पुकारता है” और उनके ऊपर “चिल्लाता है”, जिससे कार्यस्थल में दमनकारी वातावरण निर्मित होता है।

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, करीब 50% सेबी अधिकारियों ने बाजार नियामक के नेतृत्व पर कार्यस्थल में विषाक्त वातावरण को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है।

वित्त मंत्रालय को भेजे गए एक पत्र के अनुसार, सेबी कर्मचारियों ने आरोप लगाया है कि “मीटिंग्स में चिल्लाना, डांटना और सार्वजनिक रूप से अपमानित करना एक सामान्य बात हो गई है,” जिससे एक शत्रुतापूर्ण माहौल पैदा हो रहा है, जिसने उनके मानसिक स्वास्थ्य और कार्य-जीवन संतुलन पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।

इसके जवाब में सेबी प्रबंधन ने इन सभी आरोपों से इंकार करते हुए जवाबी पत्र कल ही प्रेषित कर दिया था। सेबी की ओर से कहा जा रहा है कि कर्मचारियों के मुद्दों को संबोधित किया जा चुका है और कर्मचारियों के ऊपर किसी प्रकार का भारी बोझ नहीं लादा जाता है।

प्रबंधन के मुतबिक, ये कर्मचारी बाहरी शक्तियों के प्रभाव में आकर वित्त मंत्रालय के नाम ज्ञापन प्रेषित किये हैं। इसका मकसद सेबी एवं नेतृत्व की विश्वसनीयता को गिराने का है। 

आज खबर है कि करीब 400 सेबी कर्मचारियों ने मुंबई स्थित, बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स मुख्यालय के सामने प्रदर्शन किया है और उन्होंने माधबी पुरी बुच के इस्तीफे की मांग की है।

आर्थिक मामलों एवं भारतीय स्टॉक मार्केट की विख्यात आर्थिक मामलों की पत्रकार, सुचेता दलाल ने आज की घटनाओं पर सामयिक टिप्पणी करते हुए अपने सोशल मीडिया हैंडल X पर देश की वित्त मंत्री को टैग करते हुए पोस्ट किया है, “यह बहुत ही शर्मनाक है… क्या मुख्यधारा का मीडिया आखिरकार जागेगा?

पहली बार किसी नियामक, #SEBI ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की है और उसके कर्मचारियों ने इसे झूठ का पुलिंदा बताया है और विरोध में उतर आए! क्या यह @HindenburgRes के बारे में है? @FinMinIndia @nsitharaman क्या वे अभी भी खुद को, देश को और पूंजी बाजार को शर्मिंदा करने पर आमादा हैं?

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